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पहली तिमाही में 13.5% की GDP ग्रोथ, वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत का प्रदर्शन रहा शानदार

वहीं दूसरी ओर आरबीआई का अनुमान था कि पहली तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था तकरीबन 16.2 फीसदी की दर से आगे बढ़ेगी. लेकिन 2022-23 की पहली तिमाही में ग्रोथ रेट 13.5 फीसदी रही. ये आंकड़ा आरबीआई के अनुमान से काफी पीछे है लेकिन दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं बेहतर है.

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सांकेतिक फोटो (इंडिया टुडे)

साल 2020 और 2021 कोरोना की भेंट चढ़ गए थे. अर्थव्यवस्था को जो शॉक लगा, उसने आम और खास में से किसी को नहीं बख्शा. उद्योग चौपट हुए, लोगों की नौकरी गई, दिहाड़ी मज़दूर पलायन को मजबूर हुए. अच्छी बात है कि 2022 में हम ऐसी किसी बड़ी आफत से बचे हुए हैं. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण से दुनिया भर के बाज़ारों में पैदा हुआ तनाव अब कुछ कम हो गया है. ऐसे में ये सही मौका है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी पर बात की जाए. अर्थव्यवस्था की रिकवरी कहां तक पहुंची है? रिकवरी के जो लक्ष्य हमने तय किए थे, क्या उन्हें पा लिया गया? फिर हमारे पास साल 2022-23 की पहली तिमाही के लिए GDP ग्रोथ के आंकड़े भी आ गए हैं.

केंद्रीय सांख्यिकि मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस NSO ने 31 अगस्त की शाम को एक प्रेस रिलीज़ जारी करके अप्रैल से जून 2022 तक GDP के लिए अपना अनुमान जारी किया. NSO का अनुमान है कि पहली तिमाही में GDP का मूल्य 36 लाख 85 हज़ार करोड़ रहा. ये पिछले साल की पहली तिमाही, माने अप्रैल-जून 2021 की तुलना में 13.5 फीसदी ज़्यादा है. ये राहत की बात है. इसी के साथ GDP अप्रैल-जून 2019 वाली तिमाही के 35 लाख 48 हज़ार 958 करोड़ के आंकड़े से आगे निकल गई है. इसका मतलब हम कोरोना महामारी के पहले जहां थे, अब उससे आगे निकल गए हैं. ये अच्छी खबर है. लेकिन RBI ने ग्रोथ का जो अनुमान लगाया था, उससे NSO का अनुमान पीछे रह गया है. RBI ने अनुमान लगाया था कि पहली तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था तकरीबन 16.2 फीसदी की दर से आगे बढ़ेगी. लेकिन रहे साढ़े 13 के आसपास. इतना ज़रूर है, कि हमने ग्रोथ के धीमे पड़ने के ट्रेंड को पलट दिया है. पिछली चार तिमाहियों के आंकड़ों को देखें, तो

2021-22 की पहली तिमाही में ग्रोथ रेट था 20.1 फीसदी
2021-22 की दूसरी तिमाही में हो गया 8.5 फीसदी
तीसरी तिमाही में हो गया 5.4 फीसदी 
और चौथी तिमाही में 4.1 फीसदी पर सिमट गया. 
इसका मतलब ग्रोथ रेट हर तिमाही के साथ लुढ़क रही थी. लेकिन 2022-23 की पहली तिमाही में ग्रोथ रेट 13.5 फीसदी रही. ये आंकड़ा दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं बेहतर है. बाज़ार पर कोरोना का असर पूरी तरह मिटने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन विशेषज्ञ इतना तो मान ही रहे हैं कि सबसे बुरा दौर पीछे छूट गया है. अब बस ये देखना है कि प्री कोविड पीरियड की तुलना में भारत अब कैसा प्रदर्शन करता है.

जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया था, उसके बाद से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था का हाज़मा बिगड़ा हुआ है. तेल की कीमतों के चलते महंगाई बढ़ी है, जिसके चलते ग्रोथ धीमी हुई है. लेकिन बीते कुछ दिनों से तेल की कीमतें 100 डॉलर के आसपास बनी हुई हैं. इसके चलते तेल कंपनियों पर से दबाव कुछ कम हुआ है. भारत में सरकार कहती तो है कि तेल की कीमतों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं, लेकिन सच्चाई इसके ठीक उलट है. 21 मई को केंद्र ने पेट्रोल पर 8 रुपए प्रति लीटर और डीज़ल पर 6 रुपए प्रति लीटर एक्साइज़ को कम किया था. 100 से भी ज़्यादा दिन बीत गए हैं, लेकिन तेल के दाम नहीं बढ़े हैं. इस स्थिरता ने बाज़ार को राहत दी है. तेल कंपनियों ने आज रसोई गैस के 19 किलो वाले कमर्शियल सिलेंडर की कीमत में 100 रुपए की कटौती की है. अगर ये ट्रेंड जारी रहा तो महंगाई से और राहत मिल सकती है.

रिकवरी का एक और इशारा अगस्त महीने के GST कलेक्शन से भी मिलता है. कुल मिलाकर जमा हुए हैं 1 लाख 43 हज़ार 612 करोड़ रुपए. इसमें से -
CGST, माने सेंट्रल GST - 24 हज़ार 710 करोड़ 
SGST - माने स्टेट GST - 30 हज़ार 951 करोड़
IGST - माने इंटीग्रेटेड GST - 77 हज़ार 782 करोड़
सेस - 10 हज़ार 168 करोड़

अगस्त छठा महीना था, जब GST कलेक्शन 1 लाख 40 हज़ार करोड़ के ऊपर बना रहा. अगस्त 2021 की तुलना में अगस्त 2022 में हुआ GST कलेक्शन 28 फीसदी ज़्यादा था. लेकिन ये बात ध्यान में रखी जाए कि 2021 का साल कोरोना की दूसरी लहर का साल था.

इन सारे अच्छे संकेतों को सही संदर्भ में देखना आवश्यक है. दरअसल दुनियाभर में महंगाई को काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंक, मिसाल के लिए यूएस फेडरल रिज़र्व और भारतीय रिज़र्व बैंक दरों में बढ़ोत्तरी कर रहे हैं, ताकि बाज़ार से नकदी समेटी जा सके. सादी भाषा में कहें तो रेपो और रिवर्स रेपो रेट बढ़ा रहे हैं. इसे महंगाई तो कम की जा सकती है, लेकिन कर्ज़ महंगा हो जाता है, और इसी के चलते GDP की रफ्तार मद्धिम होती है. IMF का मानना है कि भारत की जीडीपी इस साल 7.4 फीसदी की दर से बढ़ेगी. ये आंकड़ा यूक्रेन युद्ध से पहले 8.2 फीसदी था. क्या हम 7.4 फीसदी का आंकड़ा छू पाएंगे? इसका जवाब आने वाली तिमाहियों के पास है.

इस साल की पहली तिमाही के आंकड़े इसलिए भी ज़्यादा आकर्षक हैं, क्योंकि पिछले साल अप्रैल से जून के बीच महामारी का सबसे बुरा दौर चल रहा था. तब लॉकडाउन 2022 की तरह सख्त नहीं था, लेकिन बाज़ार सुस्त तो हुए ही थे. ऐसे में तब के प्रदर्शन को पीछे छोड़ना हमारे लिए आसान था. चूंकि बीते साल की दूसरी तिमाही से बाज़ार ने नुकसान की भरपाई करना शुरू कर दी थी, हमारे लिए उस प्रदर्शन से बेहतर करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. फिर
ऊपर बताए कारणों के चलते GDP की रफ्तार कुछ कम होना भी लाज़मी है. इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत IMF के साढ़े 7 फीसदी के अनुमान से पीछे रह जाए. लेकिन तब भी विकास दर के मामले में हम अमेरिका और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से आगे रहेंगे. 
 

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