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रूस ने अमेरिका को ठेंगा दिखाते हुए भारत का नाम क्यों लिया?

G7 देशों ने रूसी तेल की कीमत पर लगाम लगाने की क्यों ठानी?

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G7 देशों ने रूसी तेल की कीमत पर लगाम लगाने की क्यों ठानी?

G7- कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका, इन देशों का एक गुट है. इन देशों ने मिलकर रूस पर लगाम लगाने के लिए एक नया योजना बनाई है. क्या है ये योजना? समझिए -

इसी साल फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप के देशों ने लगातार रूस पर प्रतिबन्ध लगाए. इन प्रतिबंधों के बावजूद रूस धड़ल्ले से अपना तेल बेच रहा है. यूरोप की काफी कोशिशों के बावजूद वो सस्ते तेल की मांग को नहीं रोक सका है. इसलिए अब G7 देशों ने तय किया है कि वो रूसी तेल की कीमत पर सीमा लगाएंगे. और उस सीमा के ऊपर किसी भी देश को रूस का तेल खरीदने की इजाज़त नहीं होगी. अगर कोई देश इन कीमतों के ऊपर तेल खरीदता है तो उसे G7 और EU से मिलने वाली सेवाएं बंद कर दी जाएंगी. कौन सी सेवाएं?

तेल को एक देश से दूसरे देश में भेजने के लिए एक पूरा सिस्टम काम करता है. इसमें बड़े जहाज़, टैंकर, समुद्री मार्ग, बंदरगाह सब शामिल हैं. तेल को समुद्री मार्ग से ले जाने में कई तरह के ख़तरे होते हैं. मसलन कोई एक्सीडेंट हो गया तब क्या होगा? जहाज़ को कोई क्षति पहुंचती है तो उसका खामियाज़ा कौन भुगतेगा. तेल को लाने वाले जहाज़ में काम करने वालों की अगर किसी दुर्घटना में मौत हो जाती है तो उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा? इन सब के लिए बीमा किया जाता है. इस शिपिंग बीमा की कीमत बहुत ज़्यादा होती है. और शिपिंग बीमा की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी में से एक UK में है. कंपनी का नाम है इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ प्रोटेक्शन एंड इन्डेम्निटी क्लब्स (IGPIC). UK की ये कंपनी पूरी दुनिया के समुद्री मार्ग से जाने वाले 95 फीसदी जहाजों का बीमा करती है. G7 देश ने इसी बात का फायदा उठाया है. G7 देशों की मीटिंग में तय हुआ है कि अगर कोई देश हमारी तय कीमतों के ऊपर रूस से तेल खरीदेगा तो उन्हें इस बीमा सर्विस से महरूम कर दिया जाएगा.

रूस का क्या कहना है?

रूस का कहना है कि वो सीमा लगाने वाले देशों को तेल बेचने से इंकार कर देगा. हालांकि ये इतना आसान नहीं है. तेल की सप्लाई बंद होते ही तेल की ड्रिलिंग भी रोकनी पड़ती है. औरा अगर वो लम्बे समय तक रुकी रही तो उसे दुबारा शुरू करने में लम्बा वक्त लग सकता है. 1990 में सोवियत विघटन के बाद रूस की तेल निकालने की क्षमता में भारी गिरावट आई थी. और उसे दुबारा पुराने स्तर तक पहुंचाने में 10 साल का वक्त लग गया था. इसी एंगल के चलते G7 देशों को लगता है कि उसका ये प्लान सफल रहेगा. हालांकि इस प्लान में कुछ पेंच भी हैं.

G7 देश ने रूसी तेल के लगाम की जो योजना बनाई है उसको सफल करने के लिए दूसरे देशों का साथ ज़रूरी है. तभी रूस को आर्थिक मुहाने पर चोट पहुंचाई जा सकती है. इन देशों में भारत और चीन बड़ा रोल अहम करते हैं. कैसे?

फरवरी महीने में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तब रूसी तेल की खरीद-फ़रोख में भारी गिरावट देखी गई थी. रूस की निर्यात में प्रतिदिन 10 लाख बैरल की कमी आने का बड़ा कारण था यूरोप. यूरोप ने रूसी तेल लेने से इंकार कर दिया था. तब अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने चेतावनी दी थी कि रूसी तेल का उत्पादन 10 से 30 लाख बैरल और घट सकता है. रूस ने इस ख़तरे को भांप लिया और इसके लिए एक तिकड़म आजमाई. वो तिकड़म थी, सस्ते दरों में तेल बेचने की. रूस ने भारत को इसकी पेशकश की और भारत ने इसे कबूल कर लिया. भारत का इसके पीछे फायदा भी था और मजबूरी भी. भारत पहले ईरान से तेल लिया करता था लेकिन 2019 में अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए थे जिसके बाद भारत ने ईरान से तेल लेना बंद कर दिया था. अब भारत की तेल की खपत सस्ते रूसी तेल से पूरी हो रही थी तो उसने इसके लिए हामी भर दी.

भारत लगातार रूस से तेल खरीद रहा है. अमेरिका को उम्मीद है कि भारत G7 के इस फैसले के साथ आएगा. इसके उलट रूस को उम्मीद है कि भारत G7 के इस प्लान का हिस्सा नहीं बनेगा. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने इस मामले में एक बयान जारी करते हुए कहा है,

“एस. जयशंकर सहित भारतीय नेताओं ने रूसी तेल की खरीद पर प्रतिबंध में शामिल होने से मना कर दिया है. उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपने हितों का पालन करेंगे.”

आने वाले दिनों में G7 देशों के विदेश मंत्रियों की इस मामले में महत्वपूर्ण मीटिंग होने वाली है, जिसमें इस प्लान पर और चर्चा होगी. चीन और भारत ने अभी तक इस खबर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. इस मामले से जुड़ी जो भी अपडेट्स होंगी, आप तक पहुंचाते रहेंगे.

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