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देश के 10 सबसे फंडू स्टार्टअप्स, जो आज करोड़ों में खेल रहे हैं

अपने आइडिया से चिपके रहे और धमाल कर दिया.

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आज इंजीनियरिंग का स्टूडेंट हो या एमबीए का. कोई प्रफेशनल कोर्स कर रहा हो या स्कूलिंग के दिन हों. सब सपना देख रहे हैं अपने स्टार्टअप का. करोड़पति बनने का. बस सबको एक अदद आइडिये की दरकार है. सारा खेल आइडिये का ही तो है. नासकॉम की रिपोर्ट में यूं ही नहीं दावा किया गया है कि देश में 2020 तक 10,500 स्टार्टअप्स होंगे. ऐसे ही 10 आइडियाज को ढूंढ निकाला है बिजनेस टुडे ने. अपने कूलेस्ट स्टार्टअप अवार्ड्स के लिए. नॉमिनेशन तो 100 से ज्यादा कंपनियों ने किए थे मगर चुना उन आइडियाज को गया जो धाकड़ थे. तमाम दिक्कतों के बावजूद जो डटे रहे. साबित किया कि वो हैं हमारी तरह एकदम लल्लनटॉप. तो क्या है वो आइडिया और क्या दम है उनमें, जानिए-

पहले वो 5 धाकड़ स्टार्टअप्स जिनको 0-2 साल का एक्सपीरियंस है

 

1. एक हादसे से आया आइडिया

बेंगलुरु के एक स्कूल में 6 साल की बच्ची के साथ रेप की वारदात हुई थी. आरोपी स्कूल में ही काम करता था, मगर उसके बैकग्राउंड के बारे में किसी को कोई जानाकारी नहीं थी. इसका फायदा उठाकर आरोपी भाग निकला. इस वारदात ने दो बेटियों के पिता प्रवीन अग्रवाल को झकझोर दिया. और यहीं से उन्हें आया आइडिया. आइडिया एक ऐसी कंपनी का जो कामगार लोगों का पहले बैकग्राउंड जांचें और फिर उन्हें जॉब दिलवाए. इन कामगारों में गार्ड, कुक, ड्राइवर या कोई भी काम करने का इच्छुक हो सकता है. फिर कंपनी बनी. नाम बेटरप्लेस सेफ्टी सॉल्यूशन्स रखा. कामगारों की जरूरत वाली कंपनियां भी मिल गईं और आइडिया हिट हो गया. फिलहाल ये कंपनी बेंगलुरु में ही काम कर रही है. इसके को-फाउंडर प्रवीन अग्रवाल का साथ दिया उनके दोस्त सौरभ टंडन ने. स्टार्टअप शुरू करते वक्त प्रवीन एक क्लाउड डिवेलपमेंट कंपनी में बतौर ग्लोबल हेड काम कर रहे थे. मगर वो स्टार्टअप को शुरू करने की ठान चुके थे. ये जिद कामयाब भी हुई. आज 200 से ज्यादा कंपनियों से वो बिजनेस कर रहे हैं, जिनमें अमेजन, फ्लिपकार्ट, ओला जैसी कंपनियां भी शामिल हैं.
प्रवीन अग्रवाल(बाएं) और सौरभ टंडन
प्रवीन अग्रवाल (बाएं) और सौरभ टंडन

 
कंपनी - Betterplace Safety 
को-ओनर- प्रवीन अग्रवाल और सौरभ टंडन
2017 का रेवेन्यू- 1 मिलियन डॉलर (करीब 6.5 करोड़ रुपये)
Investors- Unitus Seed Fund, VH Capital and  angel funding
फंड जुटाया - 5 करोड़ रुपये
शुरुआत - जनवरी 2015
खास बात- इस कोशिश ने ना सिर्फ एस विश्वसनीय प्लैटफॉर्म तैयार किया बल्कि बंजारे टाइप लोगों को बढ़िया जॉब दिलवाने का भी काम किया.
 

2. HR का झमेला आसान किया इन्होंने

इस कंपनी के तीन को-फाउंडर्स हैं. तीनों पक्के वाले दोस्त हैं. इंजीनियरिंग की है. शौक भी एक जैसे हैं. उम्र भी एक ही है. नाम हैं रोहित चेन्नामनेनी, जयंत प्रसाद और चैतन्य पेड्डी. दो साल पहले तीनों ने एक साथ जॉब छोड़कर स्टार्टअप की सोची. आइडिया एक ऐसा HR यानी ह्यूमन रिसोर्स प्लैटफॉर्म देने की जो जानने समझने में आसान हो और आपकी हर मदद में साथ हो. नाम रखा डारविनबॉक्स (Darwinbox). इस प्लैटफॉर्म पर एम्पलॉइज की सभी जरूरतें पूरी हो सकती थीं. रिक्रूटमेंट, लीव, अटेंडेंस, पेरोल, एम्पलाई ट्रेनिंग से लेकर उसका सारा रेकॉर्ड सब मेंटेन होगा इसी प्लैटफॉर्म पर. यानी हर छोटे बड़े काम के लिए एचआर के पास जाने से आजादी. आइडिया एचआर की तलाश में भटक रही कंपनीज को पसंद आया और उनका सॉफ्टवेयर भी और स्टार्टअप चल पड़ा. एक साल के ही अंदर डारविनबॉक्स के 12 लोगों की टीम में अब 60 लोग हो गए हैं. करीब 50 कंपनियां उनसे जुड़ी हुई हैं, जिनके करीब 1 लाख एम्पलाइज को वो एचआर सर्विस दे रहे हैं. आगे तैयारी कम से कम 200 कंपनियों को जोड़ने की है.
रोहित चेन्नामनेनी, चैतन्य पेड्डी और जयंत प्रसाद(बाएं से दाएं)
रोहित चेन्नामनेनी, चैतन्य पेड्डी और जयंत प्रसाद(बाएं से दाएं)
कंपनी - Darwinbox 
को-ओनर्स- रोहित चेन्नामनेनी, जयंत प्रसाद और चैतन्य पेड्डी
2017 का रेवेन्यू - 6 लाख डॉलर(करीब 4 करोड़ रुपये)
Investors- Lightspeed, Endiya Partner, 3One4, StartupXseed, Tracxn
इंवेस्टर्स - लाइटस्पीड, एंडिया पार्टनर्स, 3वन4, स्टार्टअपएक्स स्पीड और ट्रैक्स्न
इतना फंड जुटाया - 29 करोड़ रुपये
कब शुरू हुआ - जनवरी 2015
खास बात- इस कोशिश ने ना सिर्फ एस विश्वसनीय प्लैटफॉर्म तैयार किया बल्कि बंजारे टाइप लोगों को बढ़िया जॉब दिलवाने का भी काम किया.
 

3. किसानों के असली मददगार हैं ये

25 साल का लड़का. कंपनी के काम से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाके में जाने का मौका मिला. पता लगाना था सरकार की डायरेक्ट बैनेफिट ट्रांसफर स्कीम के असर का. पर पता लगा क्या. किसानों की बदहाली का. कैसे गरीब किसान संसाधनों की कमी के कारण सही से खेती नहीं कर पा रहे. इसी दर्द से निकला उनका आइडिया. किसानों को जरूरी संसाधन दिलवाने का. इनका नाम है अलेख संघेरा. अलेख आइडिया लेकर पहुंचे अपने 16 साल पुराने मित्र मेहताब सिंह के पास. तय हुआ कि वो एक ऐसा बिजनेस मॉडल बनाएंगे जिसमें ऐसे लोगों को जोड़ा जाएगा जिनके पास खेती के लिए जरूरी मशीनरी हो. फिर इन मशीनों को जरूरतमंद किसानों तक पहुंचाया जाएगा. इससे मशीनरी वालों को नियमित काम मिल जाएगा और किसानों को भी सस्ती दरों पर मशीनें मिल जाएंगी. कंपनी का नाम रखा फारमार्ट. शुरुआत जनवरी 2016 में यूपी के सहारनपुर के 10 गांवों से की. किसानों के लिए एक नंबर जारी किया जिसपर वो जरूरत का सामान किराए पर मंगवा सकते थे. आइडिया हिट हुआ अलेख के लिए भी और किसानों के लिए भी. सात महीने के अंदर ही 500 से ज्यादा ऑर्डर आ गए. एक साल बाद कंपनी से 100 मशीन मालिक जुड़े हुए हैं. इसके लिए ऐप भी बन गया है. करीब 125 गांवों के 1500 किसान इसका फायदा उठा रहे हैं. यूपी के बाद अगली तैयारी हरियाणा की है.
महताब सिंह हंस(बाएं) और अलेख संघेरा
महताब सिंह हंस (बाएं) और अलेख संघेरा
कंपनी - Farmart
को-ओनर्स: अलेख संघेरा, महताब  सिंह हंस और लोकेश सिंह
2017 का रेवेन्यू - 2.95 लाख रुपये
Investors- Indian Angel Network
इतना फंड जुटाया - 1.6 करोड़ रुपये
कब शुरू हुआ - जनवरी 2016
खास बात- किसानों को कम पैसे में संसाधन दिलाने के लिए वो किया जो शायद सरकार भी नहीं कर पा रही.
 

4. फोन में क्षेत्रीय भाषाएं पहुंचा दीं 

ये स्टार्टअप 3 आईआईटी के स्टूडेंट्स का है. 3 साल पहले इन्होंने गुजराती में ऑपरेटिंग सिस्टम बना डाला. इसे लोगों तक पहुंचाने के लिए 5000 फोन खरीदे. इसमें ऑपरेटिंग सिस्टम डाले और गुजरात के सौराष्ट्र के 370 स्टोर वालों को बेचें. आइडिया हिट हो गया और सभी फोन दो महीने में बिक गए. ये आइडिया था कंपनी के को फाउंडर्स राकेश देशमुख, आकास डोगरे और सुधीर बनगरमबंडी का. कंपनी का नाम रखा इंडस ओएस. देशमुख का कहना है कि देश में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों में महज 10 फीसदी लोग ही इंग्लिश जानते हैं. ऐसे में लोग फोन केवल बात करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. वे और फीचर्स का इस्तेमाल करें इसके लिए जरूरी है कि फोन की भाषा उनकी मातृभाषा में हो. बस यही बात देशमुख को जम गई और वे जुट गए अपने आइडिया को अंजाम तक पहुंचाने में. कंपनी ने करीब 10 क्षेत्रीय भाषाओं में 5000 ऐप बना डाले. जैकपॉट हाथ तब लगा जब माइक्रोमैक्स के को-फाउंडर राहुल शर्मा अपने नए फोन में उनका ऑपरेटिंग सिस्टम डालने को तैयार हो गए. फोन लॉन्च हुआ और 17 दिन में ही 88 हजार पीस बिक गए. इंडस ओएस में अब 12 लोकल भाषाएं हैं और देश की करीब 95 फीसदी जनसंख्या कवर कर रहा है.
राकेश देशमुख, सुधीर बनगरमबंडी और आकास डोगरे(बाएं से दाएं)
राकेश देशमुख, सुधीर बनगरमबंडी और आकास डोगरे (बाएं से दाएं)
कंपनी - Indus OS
को-ओनर- राकेश देशमुख, आकास डोगरे और सुधीर बनगरमबंडी 
2017 का रेवेन्यू - नहीं बताया
Investors- Omidyar Network, Ventureast, JSW Ventures
इतना फंड जुटाया - 5 मिलियन डॉलर
कब शुरू हुआ - अक्टूबर, 2015
खास बात- क्षेत्रीय भाषा जानने वाले लोगों के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल आसान बनाया.
 

5.कचहरी के झंझट से दिलाया छुटकारा

18 साल बाद दो बचपन के दोस्त मिले. स्कूल में साथ पढ़े थे. मिले तो दोनों ही कोर्ट-कचहरी के चक्कर से त्रस्त थे. एक महाशय कृपेश भट्ट को तो प्रॉपर्टी केस के चक्कर में अमेरिका से लौटना पड़ा. दूसरे दोस्त अशोक कदसूर को भी बेंगलुरु में किराए का घर लेते वक्त रेंट एग्रीमेंट बनवाने में खूब पापड़ बेलने पड़े थे. फिर क्या था दोनों दोस्तों का दर्द मिला और निकला आइडिया. आइडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने का जिसमें लोगों के कचहरी के काम घर बैठे हो जाएं. प्लेटफॉर्म बन गया और नाम रखा लीगल डेस्क.कॉम. इसमें आप गिफ्ट डीड, नाम बदलने या करेक्शन, लोन वगैराह के लिए एफिडेविट जैसे करीब 100 डॉक्यूमेंट्स बनवा सकते हैं. एग्रीमेंट्स में सिग्नेचर करने का झंझट होता है. इसके लिए इन दोनों ने यूआई़डीएआई से आधार वेरिफिकेशन के लिए करार किया. आइडिया हिट हुआ और आज कंपनी के पास 35000 से ज्यादा कस्टमर हैं. इसके साथ ही एचडीएफसी, बजाज फिन्सेर्व, अक्षयपात्र जैसी तमाम बड़ी कंपनियां भी लीगल डेस्क की मदद ले रही हैं. कंपनी में 40 लोग काम कर रहे हैं, जिनमें 6 वकील भी हैं.
अशोक कदसूर और कृपेश भट्ट(बाएं)
अशोक कदसूर और कृपेश भट्ट(बाएं)
कंपनी - Legal Desk
को-ओनर- अशोक कदसूर और कृपेश भट्ट 
2017 का रेवेन्यू - 30 लाख रुपये
Investors- Self funded
इतना फंड जुटाया - NA
कब शुरू हुआ - सितंबर, 2016
खास बात- लोगों को छोटे-छोटे कामों के लिए कचहरी जाने के झंझट से राहत दिलाई.
 

अब बात उन 5 धाकड़ स्टार्टअप की जिनको 2-4 साल का एक्सपीरियंस है

 

6. मिनटों में बाइक-कार इंश्योरेंस का रास्ता बनाया

कार- बाइक इंश्योरेंस कराना कितना बवाली काम लगता है ना. पुलिस वालों के चालान काटने का डर ना हो तो शायद ही कोई करवाए. इसी झंझट को खत्म करने का बीड़ा उठाया देवेंद्र राणे और वरुन दुआ ने. इन्होंने इंश्योरेंस को ऑनलाइन शॉपिंग जितना सिंपल बना दिया. यानी बाइक का इंश्योरेंस 4 मिनट में. कार का 7 मिनट से भी कम में. लाजमी है कि ये धाकड़ आइडिया हिट होना ही था. कंपनी का नाम है कवर फॉक्स. शुरुआत में तो ये लोग बड़ी इंश्योरेंस कंपनीज को टेक्निकल मदद ही दे रहे थे. फिर इन्होंने सोचा हम ही क्यों ना सीधा इंश्योरेंस का प्लेटफॉर्म दे दें लोगों को. नतीजा देखिए कि आज की तारीख में ऑनलाइन इंश्योरेंस बेचने के मामले में कवर फॉक्स सबसे आगे हैं. 2015 के आखिर तक कंपनी हर महीने 11000 पॉलिसीज बेच रही थी और अब ये आंकड़ा 30000 पॉलिसीज तक पहुंच गया है. कंपनी ना सिर्फ लोगों के इंश्योरेंस दिलवाती है बल्कि पॉलिसी चुनने में मदद भी करती है. ये लोग अब ऑनलाइन लाइफ इंश्योरेंस सेक्टर भी ज्यादा जोर दे रही है. खैर कंपनी के एक को ओनर वरुन दुआ की राहें अब अलग हो गईं हैं.
देवेंद्र राणे
देवेंद्र राणे
कंपनी - Coverfox
को-ओनर - देवेंद्र राणे
2017 का रेवेन्यू - NA
Investors- Catamaran Ventures, SAIF Partners, Accel India
इतना फंड जुटाया - NA
कब शुरू हुआ - मई, 2013
खास बात- इंश्योरेंस एजेंट के झंझट से दूर ऑनलाइन इंश्योरेंस का रास्ता खोला.
 

7.मैथ्स को इन्होंने आसान बना दिया

मैथ्स को भारत ने बहुत कुछ दिया है. इसमें सबसे बड़ा था आर्यभट्ट का दिया जीरो. मगर आजकल स्कूलों में जाइये तो बच्चों के आ रहे हैं जीरो. सब मैथ्स से दूर भागते हैं. कहते हैं मैथ में दिल नहीं लगता. लगे भी कैसे इतने उबाऊ ढंग से पढ़ाया ही जाता है. इसी मैथ्स को मस्त ढंग से पढ़ाने की ठानी मनन खुर्मा ने. वो भी ऑफलाइन. उनके मॉडल की खास बात ये है कि उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए ऐसी महिलाओं को चुना जो पढ़ाना तो चाहती हैं मगर घर में कैद थीं. मनन ने उन्हें ट्रेनिंग दी और कुछ स्कूलों में नर्सरी से लेकर आठवीं तक पढ़ाना शुरू किया. ये क्लास स्कूल खत्म होने के बाद होती थी. आज मनन के साथ 2500 टीचर्स काम कर रहे हैं. उसमें महज 1% ही मास्टर साहब हैं. बाकि सब मस्टराइन जोकि 6 शहरों में करीब 20 हजार बच्चों को पढ़ा रही हैं. एक बच्चे से करीब 1800 रुपये फीस ली जाती है. रेवेन्यू में से 60% टीचर्स को दिया जाता है.
मनन खुर्मा
मनन खुर्मा
कंपनी - Cuemath
को-ओनर- मनन खुर्मा
रेवेन्यू - 9.6 करोड़ रुपये
Investors- Sequoia Capital And Capital G 
इतना फंड जुटाया - 19 मिलियन डॉलर
कब शुरू हुआ - जुलाई, 2013
खास बात- बच्चों के लिए मैथ आसान बनाई और महिला टीचर्स को मौका दिया.
 

8. जमकर दौड़ा ऑनलाइन ऑटो का आइडिया

बात 2014 में पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में हुए एक फेस्टिवल की है. यहां डिमांड पर ऐप बनाने वाली कंपनी क्लिक लैब्स स्पॉन्सरशिप कर रही थी. क्लिक लैब्स के मालिक आईआईटी दिल्ली के पढ़े समर सिंगला ने ऐसे ही मस्ती में इसके लिए एक ऐप बनाई, जिसमें ऑटो रिक्शा यहां आने के लिए किराये पर लिए जा सकते थे. पहले दिन ही 90 लोगों ने ऐप से ऑटो लिया. कामयाबी को देखते हुए ये ऐप चंडीगढ़ में शुरू कर दी. 3-4 महीने के अंदर ही रोजाना 1000 बुकिंग मिलने लगीं. फिर क्या ऐवईं शुरू किया गया आइडिया हिट हो गया. आज ये ऐप करीब 30 बड़े शहरों में काम कर रहा है. करीब 50 हजार ऑटो रिक्शा वाले इसके नेटवर्क में हैं. ऐप का नाम है जुगनू. इस ऐप की खास बात ये है कि इसमें सिर्फ ऑटो ही मिलते हैं. इससे जुड़े ऑटो वाले खाली समय में खाना भी डिलीवर करते हैं.
समर सिंगला(बाएं) और चिनमय अग्रवाल
समर सिंगला(बाएं) और चिनमय अग्रवाल
कंपनी - Jugnoo
को-ओनर- समर सिंगला और चिनमय अग्रवाल
रेवेन्यू - 10 मिलियन डॉलर 
Investors- Paytm, Snow Leapord Ventures, Rocketship VC
इतना फंड जुटाया - 16 मिलियन डॉलर 
कब शुरू हुआ - नवंबर, 2014 
खास बात- ऑटो वालों के लिए मददगार बनकर आए और ओला जैसे कंपिटीटर के आगे टिके रहे.
 

9. किराए का मकान, वो भी बिना ब्रोकर के

किसी नए शहर जाओ तो सबसे ज्यादा दिक्कत होती है किराए का मकान लेने में. क्योंकि बिना ब्रोकर लिए मकान मिलता नहीं और ब्रोकर मिल जाए तो वो 1-2 महीने का किराया खुद ही मांगने लगता है. इसी मुसीबत से निजात दिलाने आई एक ऐप. नाम- नो ब्रोकर. इसको शुरू किया आईआईटी- बॉम्बे के तीन दोस्तों ने. नाम है अखिल गुप्ता, अमित अग्रवाल और सौरभ गर्ग. बेंगलुरु में इस ऐप की शुरुआत में हालांकि कुछ ब्रोकरों ने इनके दफ्तर पर हमला किया पर इन्होंने हार नहीं मानी. ये लोग ना सिर्फ एक तयशुदा रकम देकर में गारंटीड मकान दिलवाते हैं. बल्कि मकान दिलवाने के बाद तीन दिन के अंदर रेंट एग्रीमेंट भी घर पहुंचा देते हैं. कंपनी फिलहाल मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नै, पुणे और गुरुग्राम में सर्विस दे रहे हैं. कंपनी में इस वक्त 270 लोग काम कर रहे हैं. इस ऐप को करीब 1 मिलियन लोग अब तक डाउनलोड कर चुके हैं.
सौरभ गर्ग(बाएं), अखिल गुप्ता(बीच में) और अमित अग्रवाल
सौरभ गर्ग(बाएं), अखिल गुप्ता(बीच में) और अमित अग्रवाल
कंपनी - Nobroker
को-ओनर- अखिल गुप्ता, अमित अग्रवाल और सौरभ गर्ग
रेवेन्यू - नहीं बताया
Investors- SAIF Partnes, Fulcrum Ventures, BEENOS, Asuka, Qualgro, Angel Investors.
इतना फंड जुटाया - 20 मिलियन डॉलर
कब शुरू हुआ - मार्च, 2014
खास बात- लोगों को ब्रोकरेज से बचने में बड़ी मदद की.
 

10. मकान का साजो सामान मिलेगा वो भी आसान किश्तों पर

नया शहर, नई नौकरी...बढ़िया है. खाक बढ़िया है. पहले मकान लो. उसका किराया, ब्रोकरेज चुकाने के बाद आदमी भिखारी बन चुका होता है. नई नौकरी की सैलरी तो अगले महीने आएगी ना. ऐसे में जो मकान लिया है उसमें साजो सामान जैसे बेड, टीवी, फ्रिज, फर्नीचर वगैराह भी तो लाना पड़ेगा ना. मगर उसके लिए पैसे तो होते नहीं हैं. इसी दिक्कत को दूर करने के लिए एक स्टार्टअप शुरू हुआ. नाम है रेंटोमोजो. ये आसान किश्तों पर घर बैठे ही आपको सारा साजोसामान दिलवा देता है. शहर बदलने में इस सामान की टेंशन भी नहीं लेनी आपको. कंपनी सारा सामान वापस ले लेती है. इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का आइडिया है अचल मित्तल, अजय नैन, गौतम अदुकिया और गीतांश बमानिया का. आज कंपनी 8 बड़े शहरों में सर्विस दे रही है और इसके लिए 350 लोग काम कर रहे हैं. कंपनी अब तक 22000 लोगों को किराए पर घर का जरूरी साजोसामान दे चुकी है.
अचल मित्तल, अजय नैन, गौतम अदुकिया और गीतांश बमानिया(बाएं से दाएं)
अचल मित्तल, अजय नैन, गौतम अदुकिया और गीतांश बमानिया(बाएं से दाएं)
कंपनी - Rentomojo
को-ओनर- अचल मित्तल, अजय नैन, गौतम अदुकिया और गीतांश बमानिया 
2017 का रेवेन्यू - 3 मिलियन डॉलर
Investors- Accel Partners, IDG Ventures, Bain Capital
इतना फंड जुटाया - 17 मिलियन डॉलर
कब शुरू हुआ - दिसंबर, 2014
खास बात- लोगों को बिना किसी बड़े इन्वेस्टमेंट के आसान किश्तों पर घर का साजोसामान दिलवाया.