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इस महिला की जीत पर लोग मुसोलनी को क्यों याद करने लगे?

इटली की पहली महिला पीएम होंगी जियोर्जिया मेलोनी

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इटली की पहली महिला पीएम होंगी जियोर्जिया मेलोनी (फोटो-AFP,AP)

28 अक्टूबर 1922 की सुबह काले रंग की शर्ट पहने 30 हज़ार से लोग इटली की राजधानी रोम की सड़कों पर समवेत स्वर में मार्च कर रहे थे. ये लोग बेनिटो मुसोलिनी की नेशनल फ़ासिस्ट पार्टी के मेंबर थे. इस रैली से चार दिन पहले नेपल्स में मुसोलिनी ने एक भाषण दिया था. जिसमें उसने कहा था, “या तो सत्ता हमें बिना ख़ून-खराबे के सौंप दी जाएगी या हम रोम पर चढ़ाई कर उसे छीन लेंगे.”

इससे सरकार को चिंता हुई. इटली के तत्कालीन प्रधानमंत्री लुइजी फ़ाक्ता ने रोम में सेना बुलाने का आदेश दिया. लेकिन किंग विक्टर इमैनुएल तृतीय को सिविल वॉर का अंदेशा था. उन्होंने आदेश पर दस्तख़त नहीं किया. इसकी बजाय उन्होंने एक चिट्ठी लिखकर मुसोलिनी को सरकार बनाने के लिए बुला लिया. वो इसी का इंतज़ार कर रहा था. 31 अक्टूबर 1922 को बेनिटो मुसोलिनी इटली का प्रधानमंत्री बन गया. प्रधानमंत्री बनते ही उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. जिस तरह उसका तानाशाही शासन उदाहरण बना, उसी तरह उसका वीभत्स अंत भी. अप्रैल 1945 में स्विट्ज़रलैंड भागने के दौरान भीड़ ने मुसोलिनी और उसकी पत्नी को पीट-पीटकर मार दिया गया. फिर दोनों की लाश मिलान रेलवे स्टेशन के बाहर टांग दी गई. इसके बाद इटली में फ़ासीवादी विचारधारा वाली किसी राजनैतिक पार्टी को सत्ता में कभी जगह नहीं मिली. लेकिन अब ये परंपरा टूटने वाली है.

बेनिटो मुसोलिनी (फोटो-AFP)

बेनिटो मुसोलिनी के ‘मार्च टू रोम’ के ठीक सौ बरस बाद इटली की सत्ता में एक फ़ासीवादी पार्टी की वापसी हो रही है. 25 सितंबर को हुए आम चुनाव के एग्जिट पोल्स में ‘ब्रदर्स ऑफ़ इटली’ सबसे बड़ी दावेदार बनकर उभरी है. ब्रदर्स ऑफ़ इटली के मूल में मुसोलिनी की नेशनल फ़ासिस्ट पार्टी है. अगर एग्जिट पोल्स के दावे सच साबित हुए तो, इसी पार्टी की नेता जियोर्जिया मेलोनी इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री बन सकतीं है. मेलोनी की संभावित जीत को मुसोलिनी-युग की वापसी के तौर पर पेश किया जा रहा है. लेकिन क्या ये सच में इतना ख़तरनाक है? विस्तार से समझेंगे.

साथ में जानेंगे,

- ब्रदर्स ऑफ़ इटली और जियोर्जिया मेलोनी की पूरी कहानी क्या है?
- इटली का पोलिटिकल सिस्टम कैसे काम करता है?
- और, मेलोनी के सत्ता में आने से इटली और बाकी यूरोप पर क्या असर पड़ सकता है?

इटली यूरोपीय महाद्वीप के दक्षिणी मुहाने पर बसा है. इसका एक बड़ा हिस्सा भूमध्यसागर से घिरा है. फ़्रांस, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया और स्लोवेनिया से इसकी ज़मीनी सीमा लगती है. इटली की आबादी लगभग छह करोड़ है. आकार में देखा जाए तो इटली राजस्थान से भी छोटा है.

आज के समय का इटली एक देश है. इसमें 20 से अधिक प्रांत हैं. लेकिन आज से लगभग डेढ़ सौ बरस पहले ऐसा नहीं था. उस समय का इटली अलग-अलग नगर-राज्यों में बंटा हुआ था. 1861 में उनका एकीकरण हुआ. और, तब किंगडम ऑफ़ इटली की स्थापना हुई. तब देश पर राजा का शासन हुआ करता था.

किंगडम वाला सिस्टम जून 1946 तक चला. दूसरे विश्वयुद्ध में हार के बाद इटली में जनमत-संग्रह हुआ. इसमें जनता ने राजशाही खत्म करने का फ़ैसला सुनाया. यहां से इटली में लोकतांत्रिक व्यवस्था की शुरुआत हुई. फिर इटली को रिपब्लिका इटैलियाना या रिपब्लिक ऑफ़ इटली के नाम से जाना जाने लगा.

1948 में इटली को अपना संविधान मिला. इटली का पोलिटिकल सिस्टम काफी हद तक भारत से मिलता-जुलता है. वहां भी शासन-तंत्र तीन हिस्सों में बंटा है - कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका.

कार्यपालिका की शक्ति कैबिनेट में निहित है. जबकि कैबिनेट की ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री के पास होती है.

न्यायपालिका की शक्ति जजों के पास होती है. इसका काम संसद के द्वारा पास किए गए कानूनों को लागू कराना है. इटली में जजों की नियुक्ति नहीं होती. वे परीक्षा और इंटरनल कमीशन के जरिए चुने जाते हैं.

तीसरा अंग है, विधायिका. इसकी शक्ति संसद में निहित है. संसद का काम कानून बनाने से लेकर संविधान में संशोधन करने और सरकार के कामकाज की समीक्षा करने तक फैला है.
भारत की ही तरह इटली में भी संसद के दो सदन हैं. ऊपरी सदन को सेनेट, जबकि निचले सदन को चैम्बर ऑफ़ डेप्युटीज़ कहा जाता है. सितंबर 2022 के चुनाव से पहले सेनेट में 315 सदस्य होते थे. निचले सदन में सदस्यों की संख्या 630 थी. लेकिन इस बार ये संख्या घट गई है. अब ऊपरी सदन में 200, जबकि निचले सदन में 400 सांसद होंगे. इनका कार्यकाल पांच बरस का होता है. युद्ध या किसी आपातकालीन स्थिति में कार्यकाल बढ़ाया भी जा सकता है. किसी भी कानून को पास कराने के लिए दोनों सदनों का अप्रूवल ज़रूरी होता है.

ये सांसद चुने कैसे जाते हैं?

इसके लिए होता है, चुनाव. दोनों सदनों का चुनाव एक ही समय पर होता है. वोटर्स के पास दो वोट डालने का अधिकार होता है. एक निचले सदन के लिए, जबकि दूसरा वोट ऊपरी सदन के लिए.
दोनों सदनों में 37 प्रतिशत सांसद डायरेक्ट वोट से चुने जाते हैं. यानी, वोटर्स सीधे कैंडिडेट के नाम पर वोट डालते हैं. बाकी के सांसदों की नियुक्ति पार्टियां करतीं है. जिस पार्टी को जितने टोटल वोट मिलते हैं, उसी अनुपात में उन्हें सीटें अलॉट की जातीं है. फिर पार्टियां उन सीटों पर अपना सांसद भेजतीं है. किसी पार्टी को संसद में एंट्री के लिए कम-से-कम तीन प्रतिशत वोट चाहिए. वहीं, गठबंधन को मिनिमम दस प्रतिशत वोट्स हासिल करना होता है.

इसके अलावा, इटली में एक और दिलचस्प व्यवस्था है. इटली उन चुनिंदा देशों में से है, जहां बाहर रह रहे नागरिकों के लिए संसद में आरक्षण है. निचले सदन में आठ सीटें और ऊपरी सदन में चार सीटें विदेश में रहने वाले इतालवी नागरिकों के लिए रिजर्व्ड है.

वोटिंग कैसे होती है?

इटली में वोटिंग बैलेट पेपर के ज़रिए होती है. इटली में अभी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का सिस्टम नहीं आया है.
18 वर्ष से ऊपर का कोई भी इतालवी नागरिक, जिसके ऊपर कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है, आम चुनाव में वोट डाल सकता है. विदेशों में रहने वाले लोग पोस्ट के जरिए अपना मत दर्ज़ कराते हैं.

इटली में बड़ी पोलिटिकल पार्टियां कौन सी हैं?

दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद शुरुआती चार दशकों तक दो बड़ी पार्टियों का प्रभुत्व रहा. पहली थी, क्रिश्चियन डेमोक्रेसी (DC) और दूसरी पार्टी का नाम था, इटैलियन कम्युनिस्ट पार्टी. इसके अलावा कई छोटी-मोटी पार्टियां भी थीं. लेकिन उनका प्रभाव कुछ प्रांतों तक सीमित था.

फिर शुरू हुआ 1990 का दशक. बर्लिन वॉल गिर चुका था. यूरोप में कम्युनिस्ट सरकारों का पतन होने लगा था. सोवियत संघ विघटन की राह पर था. कम्युनिस्ट-विरोधी राग कमज़ोर पड़ने लगा था. जो पार्टियां इसी के दम पर अपना अस्तित्व बचा रहीं थी, उन्हें झटका लगा. फिर 1992 में मिलान के अधिकारियों ने घूसखोरी के कुछ स्कैंडल्स की जांच शुरू की. जैसे-जैसे उनकी जांच आगे बढ़ी, उनके हाथ भानुमति का पिटारा लग चुका था. इस जांच की चपेट में बिजनेसमैन, सरकारी अफ़सर, मंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक आए. इसमें हर बड़ी पार्टी के लोग शामिल थे. भ्रष्टाचार हर स्तर पर बराबर फैला था. एक प्रधानमंत्री को सज़ा हुई तो वो चुपके से ट्यूनीशिया भाग गए. निर्वासन में ही उनकी मौत हो गई. 1994 तक 200 से अधिक सांसद जांच के घेरे में थे. उनमें से कईयों को सज़ा भी हुई. इस ऐपिसोड को इतिहास में ‘ऑपरेशन क्लीन हैंड्स’ के नाम से जाना जाता है. इस घटना ने मिलान को इतना बदनाम किया कि इस शहर को ‘ब्राइब्सविले’ कहा जाने लगा था.

इस स्कैंडल के बाद चुनावी सुधार की मांग हुई. कई पार्टियों ने ख़ुद को भंग कर लिया. बाद में अलग नाम से उनकी राजनीति में वापसी हुई. इटैलियन कम्युनिस्ट पार्टी कालांतर में डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ द लेफ़्ट और फिर डेमोक्रेटिक पार्टी के तौर पर चुनाव लड़ने लगी. क्रिश्चियन डेमोक्रेसी उस संकट से कभी उबर नहीं पाई. उसका खात्मा हो गया. इससे विचारधारा के दूसरी तरफ़ जगह खाली हुई. नई पार्टियों को उभरने का मौका मिला.

फिलहाल, इटली की राजनीति में पांच पार्टियों का दबदबा है.

- डेमोक्रेटिक पार्टी - इसकी स्थापना 2007 में हुई थी. ये सेंटर-लेफ़्ट पार्टियों से मिलकर बनी है.

- द लीग राइट-विंग पार्टी है. इसकी स्थापना 2017 में हुई थी. द लीग पिछली सरकार में शामिल थी.

- फ़ोज़ा इटैलिया सिल्वियो बेर्लुस्कोनी की पार्टी है. बेर्लुस्कोनी चार बार इटली के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. फ़ोज़ा इटैलिया की स्थापना 1993 में हुई. 2009 में इसे भंग कर दिया गया था. 2013 में इसने वापस से काम करना शुरू किया. कभी-कभी इसको बेर्लुस्कोनी की पर्सनल पार्टी के तौर पर भी संबोधित किया जाता है.

- फ़ाइव स्टार मूवमेंट साल 2009 में बनाई गई थी. इसको एक कॉमेडियन और एक वेब डेवलपर ने मिलकर शुरू किया था. 2018 के आम चुनाव में ये सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. तब से ये राइट और लेफ़्ट दोनों तरफ़ की पार्टियों के साथ मिलकर सरकार चला रही थी. जुलाई 2022 में गठबंधन में खटपट होने लगी. और, तब प्रधानमंत्री मारियो द्राही ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति ने उन्हें मनाने और अगला चुनाव होने तक पद पर बने रहने के लिए कहा. मगर बात नहीं बनी. कायदे से इटली में अगला चुनाव 2023 में होना था. लेकिन इसे इसी साल सितंबर में कराना पड़ा.

- पांचवीं बड़ी पार्टी का नाम है, ब्रदर्स ऑफ़ इटली. इस बार के चुनाव में सबसे ज़्यादा चर्चा इसी को लेकर है. ये पार्टी 2012 में बनाई गई थी. ये अति-कट्टर और सांप्रदायिक है. इसके मूल में मुसोलिनी की फ़ासिस्ट पार्टी है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इटली में फ़ासिस्ट पार्टी को बैन कर दिया गया. तब मुसोलिनी के कुछ वफ़ादारों ने एक नई पार्टी बनाई, मूविमेंतो सोशिएल इटैलियानो (MSI). 1990 के दशक में MSI ने अपना रुख बदलने की कोशिश की. लेकिन जनवरी 1995 में MSI नेशनल अलायंस का हिस्सा बन गई. 2009 में नेशनल अलायंस भंग हो गया. पार्टी के कुछ नेता बेर्लुस्कोनी के साथ चले गए. दिसंबर 2012 में उनमें भी दो फाड़ हो गई. तब उन्होंने ब्रदर्स ऑफ़ इटली की नींव रखी. पार्टी का सिंबल MSI से लिया गया है. इसके झंडे पर भी वही निशान दिखता है. 2014 में ब्रदर्स ऑफ़ इटली की कमान जियोर्जिया मेलोनी के हाथों में आई. मेलोनी नेशनल अलायंस की मेंबर रह चुकी है.

ब्रदर्स ऑफ़ इटली के मूल में व्यक्तिगत आज़ादी का विरोध, समलैंगिकों के अधिकारों का खात्मा और यूरोपियन यूनियन की आलोचना है. जियोर्जिया मेलोनी का जन्म 1977 में हुआ था. 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने MSI का यूथ विंग जॉइन कर लिया. 1995 में जब वो MSI के लिए चुनाव-प्रचार कर रहीं थी, तब उन्होंने एक टीवी चैनल पर मुसोलिनी की तारीफ़ की थी. उन्होंने कहा था, ‘मुझे लगता है कि मुसोलिनी एक अच्छे राजनेता थे. उन्होंने जो कुछ किया, इटली के लिए किया.’

पार्टी की कमान संभालने के बाद भी उन्होंने कभी खुले तौर पर मुसोलिनी की आलोचना नहीं की. वो बस इतना कहती रहीं कि उनकी पार्टी रुढ़िवादी है और फ़ासीवाद बीते समय की बात हो चुका है.

आज हम ब्रदर्स ऑफ़ इटली और जियोर्जिया मेलोनी की चर्चा क्यों कर रहे हैं?

दरअसल, इटली में 25 सितंबर को आम चुनाव हुए. चुनाव के तुरंत बाद एग्जिट पोल्ट के नतीजे सामने आए. इसके मुताबिक, ब्रदर्स ऑफ़ इटली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है. पार्टी ने सिल्वियो बेर्लुस्कोनी की फ़ोज़ा इटैलिया और प्रवासी-विरोधी द लीग के साथ गठबंधन बनाया है. उन्हें लगभग 40 से 45 प्रतिशत वोट मिलने की संभावना है. ऐसा हुआ तो जियोर्जिया मेलोनी का प्रधानमंत्री बनना तय है. वो इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री बन सकतीं है.

निश्चित तौर पर किसी भी देश या समाज के लिए ये बड़ा हासिल है. लेकिन मेलोनी की संभावित जीत ने सिर्फ़ इटली ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप की उदार आबादी को चिंतित कर दिया है. इसकी कई वजहें हैं.

जियोर्जिया मेलोनी  (फोटो-AP)

पहली, मेलोनी और उनकी पार्टी मुसोलिनी की फ़ासीवादी विचारधारा से लैस है. उनके सिंबल और उनके भाषणों में ये साफ़ दिखता है. वे प्रचार करते हैं कि प्रवासियों के आने से इटली की स्थानीय नस्ल खत्म हो जाएगी. उन्हें रिप्लेस कर दिया जाएगा. इसके लिए वे प्रजनन-दर बढ़ाने की वक़ालत करते हैं. इटली में प्रवासियों की एंट्री रोकने की मुहिम चलाते हैं. आशंका है कि सत्ता हाथ में आने के बाद कट्टरता और बढ़ सकती है.

दूसरी वजह निजी अधिकारों से जुड़ी है. मेलोनी सिविल राइट्स और समलैंगिकों के अधिकारों के ख़िलाफ बोलतीं रहीं है. माना जा रहा है कि उनके कार्यकाल में व्यक्तिगत आज़ादी पर चोट बढ़ सकती है.

तीसरी वजह, EU के प्रति मेलोनी की नफ़रत. कहा जा रहा है कि सत्ता में आने के बाद मेलोनी इटली को EU से अलग राह पर ले जा सकतीं है. उन्होंने कई मौकों पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की तारीफ़ की है. यूक्रेन वॉर शुरू होने के बाद उन्होंने रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन किया था. लेकिन उनके आलोचक कहते हैं कि वो सत्ता हाथ में आने तक नरम रहेंगी. उसके बाद वो अपना असली रंग दिखाएंगी.

दिलचस्प ये है कि ब्रदर्स ऑफ़ इटली को पिछले चुनाव में सिर्फ चार पर्सेंट वोट मिले थे. इस बार ये बढ़कर 26 प्रतिशत पर पहुंच गया है.उनके गठबंधन को 44 फीसदी वोट्स मिलते दिख रहे हैं. 26 सितंबर की रात तक अंतिम परिणाम आ जाएगा. नए सांसद मिलकर दोनों सदनों के अध्यक्ष का चुनाव करेंगे. फिर वे दोनों राष्ट्रपति के साथ मिलकर बातचीत करेंगे कि किसे सरकार बनाने के लिए बुलाना है. इस सलाह के आधार पर नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा. प्रधानमंत्री को संसद में बहुमत साबित करना होगा. इन सबमें नवंबर तक का समय लग सकता है.

पुतिन ने भाषण में ऐसा क्या कहा कि लोग रूस छोड़कर भागने लगे?