इन गेम्स के शुरू होने के साथ ही एक बुरी खबर आई है. महज 12 साल की असम की रहने वाली तीरंदाज शिवांगिनी को प्रैक्टिस के दौरान एक तीर लग गया. यह तीर शिवांगिनी के कंधे में लगा और गले तक पहुंच गया था. एक दिन से ज्यादा वक्त तक यह तीर वहीं रहा और फिर एम्स, दिल्ली में ऑपरेशन के जरिए उसे निकाला गया. एम्स के एक सीनियर डॉक्टर ने पीटीआई को बताया कि गुरुवार रात को वहां लाई गई शिवांगिनी की सर्जरी काफी कॉम्प्लेक्स रही. सर्जरी के बाद उनके शरीर से 15 सेंटीमीटर की मेटल रॉड (तीर का हिस्सा) निकाली गई.
# लगी गंभीर चोट
डॉक्टर ने बताया कि तीर शिवांगिनी के कंधे की हड्डी से होते हुए निकला और उनकी गर्दन, रीढ़ की हड्डी और बाएं फेफड़े को नुकसान पहुंचाया. अब शिवांगिनी को ICU में शिफ्ट कर दिया गया है. डॉक्टर ने बताया कि यह तीर उनकी कशेरुका धमनी को छू रहा था, इसी के जरिए दिमाग को खून मिलता है. डॉक्टर ने कहा कि उनके शरीर से 15 सेंटीमीटर तीर निकाला गया. उन्होंने बताया कि तीर का 0.5 सेंटीमीटर हिस्सा स्पाइनल कॉर्ड के ठीक सामने था. साढ़े तीन घंटे तक चली यह सर्जरी बहुत कॉम्प्लेक्स थी.Archer Shivangini Gohain
असम से एयरलिफ्ट कर एम्स लाई गई शिवांगिनी असम के डिब्रूगढ़ जिले के चाबुआ टाउन स्थित दखा देवी रसिवसिया कॉलेज में ट्रेनिंग करती हैं. बुधवार, 8 जनवरी को यह हादसा इसी कॉलेज में हुआ. यह कॉलेज गुवाहाटी स्थित स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के एक्सटेंशन सेंटर के रूप में काम करता है.
# SAI पर आरोप
असम की आर्चरी असोसिएशन का दावा है कि यह दुर्घटना लोकल कोच और ऑफिशल्स की लापरवाही का परिणाम है. असम आर्चरी असोसिएशन (AAA) के जॉइंट सेक्रेटरी पुलिन दास का कहना है कि शिवांगिनी को चोट इसलिए लगी क्योंकि प्रैक्टिस के वक्त कोई ऑफिशल वहां मौजूद नहीं था. पुलिन ने PTI से कहा,'वहां कॉन्ट्रैक्ट पर मर्सी नाम का एक SAI का कोच है. वह गुवाहाटी में हो रहे खेलो इंडिया गेम्स के लिए निकल गया. उसने या फिर कॉलेज के प्रिंसिपल ने ट्रेनियों से कैंप को रोकने के लिए नहीं कहा. यह प्रिंसिपल इस सेंटर के व्यवस्थापक के रूप में काम करता है और प्रैक्टिस का ख्याल रखना भी उनका काम है.'इस सेंटर पर कुल 11 ट्रेनीज हैं जिनमें छह लड़के और पांच लड़कियां हैं. वे सब नगालैंड के रहने वाले SAI कोच AC मर्सी के अंडर ट्रेनिंग करते थे. मर्सी अभी खेलो इंडिया गेम्स के लिए गुवाहाटी में हैं. दास ने बताया कि शिवांगिनी को प्रैक्टिस के दौरान लड़कों के चलाए तीर से चोट लगी. यह तीर एक दिन से ज्यादा वक्त तक उनके शरीर में रहा. इसके बाद गुरुवार रात को उन्हें एयरलिफ्ट कर दिल्ली भेजा गया.
# नहीं मिली मदद
शिवांगिनी के पिता ब्रिंची प्रैक्टिस एरिया के बाहर थे. SAI या कॉलेज के किसी भी ऑफिशल ने उनकी कोई मदद नहीं की. बाद में शिवांगिनी को 33 किलोमीटर दूर डिब्रूगढ़ के असम मेडिकल कॉलेज में लाया गया. दास ने कहा,'मुझे बताया गया कि तीर उसके शरीर में एक दिन से ज्यादा वक्त तक पड़ा रहा. वह एक मजबूत इरादे वाली लड़की है और वह डटी रही. उसके पिता निश्चित तौर पर एक मजदूर हैं और वह काफी घबराए हुए थे.'SAI ने कहा है कि वह लड़की के इलाज का पूरा खर्च उठाएंगे. इधर AAA ने उनके इलाज के लिए 20,000 रुपये का योगदान दिया है. एक SAI ऑफिशल ने PTI से कहा,
'डिब्रूगढ़ में हुए हादसे में घायल हुई तीरंदाज को नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एयरलिफ्ट किया गया है. SAI उनके इलाज का पूरा खर्च उठा रहा है, हवाई यात्रा समेत. एक सीनियर SAI अफसर को जिम्मेदारी दी गई है कि उसे बिना किसी समस्या के सर्वश्रेष्ठ इलाज मिले.'
# ऐसे होगा खेलों का विकास?
रिपोर्ट्स हैं कि शिवांगिनी खेलो इंडिया गेम्स का हिस्सा नहीं थी. लेकिन सवाल तो यह है कि देश में खेलों के विकास के लिए बनी संस्था SAI के अंडर ट्रेनिंग कर रही एक बच्ची को इतनी गंभीर चोट लगी. चोट इसलिए लगी क्योंकि उसके प्रैक्टिस सेशन की देखभाल के लिए कोई जिम्मेदार व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था. चोट लगने के बाद भी SAI के जिम्मेदार लोगों ने उस बच्ची की कोई मदद नहीं की. उसे किसी तरह असम के मेडिकल कॉलेज लाया गया.Khelo India Games 2020 के उद्घाटन में Assam CM Sarbananda Sonowal, Sports Minister Kiren Rijiju, Athlete Hima Das
यहां भी तीर निकाला नहीं जा सका और एक दिन से ज्यादा वक्त बीतने के बाद उसे एयरलिफ्ट कर दिल्ली भेजा गया. इस लापरवाही का जिम्मेदार कौन है? शिवांगिनी को जहां तीर लगा वह काफी संवेदनशील एरिया है. अगर इस तीर से लगी चोट के चलते उसका करियर खत्म हो जाता या फिर कोई ऐसी चोट लग जाती जिसकी भरपाई संभव नहीं है तो क्या SAI क्या करता?
इस आला दर्जे की लापरवाही में अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है. देश के लोग बड़े अरमान के साथ अपने बच्चों को SAI के सेंटर्स में भेजते हैं. अगर इन सेंटर्स पर बच्चे सुरक्षित ही नहीं रहेंगे तो खेलों का विकास कैसे होगा? SAI के सेंटर्स में जाने वाले बच्चों में ज्यादातर गरीब परिवारों से होते हैं. तमाम विषम परिस्थितियों से जूझकर यह बच्चे कुछ सीखने के लिए घर से दूर SAI सेंटर आते हैं. एक उम्मीद रहती है कि देश के लिए मेडल्स जीतेंगे और लेकिन SAI सेंटर्स का ये हाल है.
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