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नेटो के सैनिकों पर बड़ा हमला हुआ, रूस बोला, यूरोप बारूद के ढेर पर बैठा है!

नेटो पर हमला,बड़ा बवाल होगा!

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कोसोवो में तैनात नेटो के 25 सैनिकों के घायल होने की ख़बर है. इसके बाद से कई पश्चिमी देशों ने चेतावनी जारी की है.

तारीख़, 29 मई 2023.

जगह, उत्तरी कोसोवो का एक शहर. यहां पर नेटो के सैनिकों ने एक सरकारी इमारत को घेर रखा है. वे प्रोटेस्टर्स को इमारत के अंदर घुसने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं. बदले में नारा लगता है, कोसोवो, सर्बिया का दिल है. फिर पत्थरों और मॉकटेल्स से हमला होता है. सड़क पर खड़ी गाड़ियों में आग लगा दी जाती है. पुलिस कार्रवाई करती है. इस टक्कर में 50 से अधिक प्रदर्शनकारी घायल होते हैं. नेटो के 25 से अधिक सैनिकों को अस्पताल ले जाना पड़ता है.

होने को ये एक सामान्य प्रोटेस्ट की घटना हो सकती थी. लेकिन बयान और तथ्य कुछ अलग ही कहानी बयां करते हैं.
पहले बयानों पर गौर करिए.

- कोसोवो की राष्ट्रपति जोसा उस्मानी ने ट्वीट किया,

जो कोई सर्बिया के इशारे पर हिंसा कर रहा है, उसे कड़ी सज़ा मिलेगी.

- सर्बिया के प्रेसिडेंट ऑफ़िस का बयान आया,

50 से अधिक सर्ब नागरिक घायल हुए हैं. तीन की हालत गंभीर है. राष्ट्रपति वुविक ने सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने का आदेश दिया है.

- नेटो बोला,

हमारे सैनिकों पर हमला हुआ है. ये अस्वीकार्य है. हम अपना काम बिना किसी भेदभाव के करते रहेंगे.
कोसोवो में नेटो की पीसकीपिंग फ़ोर्स 1999 से तैनात है. इन्हें कोसोवो पीसकीपिंग फ़ोर्स या के-फ़ोर (K-For) के नाम से जाना जाता है.

- कोसोवो में अमेरिका के राजदूत ने कहा,

मैंने प्रधानमंत्री एल्बिन कुरती से बात की है. हम हालात ठीक करने पर सहमत हैं. लेकिन हमें नहीं पता कि ये होगा कैसे.

- फिर आया रूस का बयान. विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव की तरफ़ से. बोले,

सेंट्रल यूरोप बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है. इसमें कभी भी धमाका हो सकता है.

आपने बयान सुने. अब कुछ तथ्य जान लीजिए.

> कोसोवो एक स्वतंत्र देश है. उसने 2008 में सर्बिया से आज़ादी की घोषणा की थी.

> लगभग एक सौ देशों ने उसकी आज़ादी को मान्यता दी है. इसमें अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान जैसे देश हैं. भारत ने अभी तक कोसोवो को मान्यता नहीं दी है.

अब यहां पर दो सवाल उठते हैं.

पहला, जब कोसोवो संप्रभु देश है, फिर नेटो के सैनिक उसकी ज़मीन पर क्या कर रहे हैं? और दूसरा, कोसोवो के इंटरनल मैटर में सर्बिया क्यों कूदा? उसने अपनी सेना को अलर्ट क्यों किया? आज इन्हीं सवालों के जवाब जाननें की कोशिश करेंगे. साथ में जानेंगे.

- कोसोवो की पूरी कहानी क्या है?
- नेटो के सैनिकों पर हमला क्यों हुआ?
- और, क्या सच में यूरोप बारूद के ढेर पर बैठा है?

जहां आज कहानी कोसोवो की.

ये नक़्शा देखिए.

Credit - Britannia Encyclopedia

ये यूरोप का दक्षिण-पूर्वी इलाका है. इसके पश्चिमी किनारा एड्रियाटिक सागर से मिलता है. ये इलाका बाल्कन्स का भी हिस्सा है. बाल्कन्स का नामकरण बाल्कन पेनिनसुला के नाम पर किया जाता है. ये पेनिनसुला एड्रियाटिक सागर, एजियन सागर और भूमध्यसागर से घिरा हुआ. बाल्कन्स की कोई निर्धारित सीमा नहीं है. फिर भी इसमें अल्बानिया से लेकर स्लोवेनिया और रोमेनिया तक के हिस्से को शामिल किया जाता है. कभी-कभी ग्रीस और तुर्किए को भी बाल्कन्स में गिना जाता है. इन दिनों बाल्कन्स का एक इलाका उबल रहा है.

एक और नक़्शा देखिए.

क्रेडिट - AFP

ये सर्बिया और कोसोवो हैं. 2008 में अलग होने से पहले तक कोसोवो, सर्बिया का ही हिस्सा हुआ करता था. आज के समय में ये दोनों अलग-अलग मुल्क हैं. लेकिन साझा इतिहास इनका पीछा नहीं छोड़ रहा है. जियो-पोलिटिक्स में किसी भी मुल्क की अहमियत समझने के लिए सबसे ज़रूरी होता है, उसके पड़ोसियों को समझना.
सर्बिया और कोसोवो के पड़ोसी कौन हैं?

हंगरी, रोमेनिया, क्रोएशिया, बुल्गारिया, नॉर्थ मेसीडोनिया, अल्बेनिया, मॉन्टिनीग्रो, बोस्निया एंड हर्जेगोविना.

इनमें से हंगरी, रोमेनिया, क्रोएशिया और बुल्गारिया नेटो के साथ-साथ यूरोपियन यूनियन (EU) के सदस्य भी हैं. जबकि अल्बेनिया, मॉन्टिनीग्रो, नॉर्थ मेसीडोनिया सिर्फ़ नेटो के सदस्य हैं. बचा एक पड़ोसी, बोस्निया एंड हर्जेगोविना. उसको रूस ने 2022 में धमकी दी थी, अगर नेटो जॉइन करने की कोशिश की तो बुरा नतीजा भुगतना होगा.

नक़्शा देखकर एक बात तो समझ में आ चुकी होगी कि ये इलाका पश्चिमी देशों के साथ-साथ रूस के लिए भी बेहद अहम है. यहां जो कुछ भी घटता है, उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है. यही वजह है कि कोसोवो में चल रही हिंसक झड़पों पर नेटो, अमेरिका, EU से लेकर रूस और चीन तक की नज़र बनी हुई है. 30 मई को इनके प्रतिनिधि सर्बिया के राष्ट्रपति से इमरजेंसी मीटिंग करने वाले हैं. अब आपके मन में एक सवाल उठ रहा होगा. कोसोवो, सर्बिया से अलग क्यों हुआ और ये बवाल का सेंटर कैसे बन गया? ये समझने के लिए हमें इतिहास पर गौर करना होगा.

इतिहास क्या कहता है?

14वीं सदी में तुर्की का ऑटोमन साम्राज्य बाल्कन्स में अपने पैर पसार रहा था. उन्हें सबसे बड़ी चुनौती सर्बिया से मिल रही थी. 1389 में ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तान मुराद प्रथम ने चढ़ाई कर दी. कोसोवो में भयंकर लड़ाई हुई. सर्बिया की सेना को उनका राजकुमार लाज़ार लीड कर रहा था. लाज़ार को युद्ध के दौरान ही पकड़कर मार दिया गया. सर्बिया हार गया. वहां से सर्बिया पर तुर्कों का शासन शुरू हुआ. युद्ध के तुरंत बाद मुराद की भी हत्या हो गई. लेकिन ऑटोमन साम्राज्य बना रहा. उन्होंने अगली पांच सदी तक सर्बिया और कोसोवो पर शासन चलाया.
फिर 1912 में बाल्कन्स के देशों ने बाहरी शासन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया. इसमें उनकी जीत हुई. ऑटोमन साम्राज्य को भारी नुकसान हुआ. कोसोवो को सर्बिया ने अपने कंट्रोल में ले लिया.

लेकिन इस बीच एक कोसोवो की डेमोग्राफ़ी पूरी तरह बदल चुकी थी. ऑटोमन साम्राज्य के शासन में सर्ब लोगों का दमन हुआ. वे भागकर उत्तर की तरफ़ चले गए. इस बीच अल्बेनियाई मूल के लोग आकर कोसोवो में बसने लगे. उनमें से अधिकतर इस्लाम का पालन करते थे. 1913 में बाल्कन युद्ध खत्म होने के समय कोसोवो की लगभग 90 प्रतिशत आबादी अल्बेनियाई मूल के लोगों की थी. पांच सौ बरस पहले स्थिति उलटी थी. तब सर्ब बहुमत में हुआ करते थे.

20वीं सदी में जब कंट्रोल उनके हाथों में आया, उन्होंने बदला लेने का फ़ैसला किया. लेकिन उसी समय पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया. 1918 में विश्वयुद्ध खत्म हुआ. सर्बिया विजेता देशों में से था. उसने कोसोवो पर शिकंजा कस दिया. 1918 में ही मौजूदा सर्बिया, क्रोएशिया, स्लोवेनिया, बोस्निया एंड हर्ज़ेगोविना और मॉन्टेनीग्रो को मिलाकर युगोस्लाविया की स्थापना हुई. कोसोवो भी सर्बिया के साथ इस फ़ेडरेशन में शामिल हुआ. इस दौरान सर्ब सरकार ने अपना बदला पूरा किया.

फिर 1941 में इटली ने अल्बेनिया को जीत लिया. वे कोसोवो पर भी चढ़ आए. उसे उन्होंने ग्रेटर अल्बेनिया का हिस्सा बना दिया. विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद कोसोवो को फिर से युगोस्लाव फ़ेडरेशन में रख दिया गया. कई सालों तक वहां पर मार्शल लॉ लगा रहा. 1974 में युगोस्लाविया ने अपने फ़ेडरेशन में शामिल छह प्रांतों को ऑटोनॉमी दी. उन्होंने कोसोवो को अलग से स्वायत्तता दी. मगर उसे सर्बिया से अलग नहीं किया गया.

1981 में कोसोवो में आज़ादी की मांग उठने लगी. अल्बेनियाई मूल के लोग बहुमत में थे. वे सर्बिया के साथ नहीं रहना चाहते थे. उन्होंने प्रोटेस्ट शुरू कर दिया. सर्बिया के प्रशासन ने उन्हें दबाने की कोशिश की. मगर विरोध नहीं रुका. 1987 में सर्बिया में स्लोबोदान मिलोसेविच नामक सर्ब नेता तेज़ी से आगे आया. उसने कोसोवो का संकट सुलझाने का दावा किया. 1989 में वो राष्ट्रपति भी बन गया. उसने कोसोवो की स्वायत्तता कम करनी शुरू कर दी. इससे नाराज़ अल्बेनियाई जनता ने कोसोवो की आज़ादी की घोषणा कर दी. बदले में मिलोसेविच ने कोसोवो की सरकार भंग कर दी. एक लाख अल्बेनियाई लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया. इसके बाद तो मामला हाथ से निकल चुका था.

1993 में आज़ादी की मांग कर रहे अल्बेनियाई लोगों ने कोसोवो लिबरेशन आर्मी (KLA) बनाई. इसने सर्बिया सरकार पर हमले शुरू किए. बदले में आम जनता को भी निशाना बनाया जाने लगा. सितंबर 1998 में मिलोसेविच की सेना ने फ़ाइनल ऑपरेशन चलाने का ऐलान किया. तब नेटो ने ऑपरेशन रोकने का अल्टीमेटम दिया. मिलोसेविच ने मानने से इनकार कर दिया.
आख़िरकार, मार्च 1999 में नेटो ने कोसोवो में सर्बिया के सैन्य अड्डों पर हवाई बमबारी शुरू कर दी. कुछ ही समय में मिलोसेविच की सेना के पांव उखड़ गए. उन्हें वापस बुलाना पड़ा.
जून 1999 में सर्बिया और यूएन के बीच शांति समझौता हुआ. इसके तहत,

कोस्वो में नेटो सेना (AP)

- सर्बिया ने अपनी सेना को कोसोवो से वापस बुला लिया. हालांकि, कोसोवो उसका हिस्सा बना रहा.

- यूएन ने कोसोवो का प्रशासन अपने हाथों में ले लिया.

- नेटो की पीसकीपिंग फ़ोर्स भेजी गई. अभी भी 27 देशों के लगभग 04 हज़ार सैनिक कोसोवो में तैनात हैं.

- युद्ध के कारण कोसोवो छोड़कर भागे 10 लाख लोगों को वापस लाया गया.इससे कोसोवो में रह रहे सर्ब लोगों को ख़तरा महसूस हुआ. अधिकतर सर्ब अपना घर-बार छोड़कर भाग गए. उनमें से कुछ सर्बिया चले गए. कुछ कोसोवो के उत्तर में बस गए. इसने आबादी का संतुलन और गड़बड़ कर दिया. उत्तर में सर्ब बहुसंख्यक हो गए. आगे चलकर ये विवाद का सबसे बड़ा कारण बनने वाला था.

अक्टूबर 2000 में सर्बिया की राजधानी बेलग्रेद में मिलोसेविच के ख़िलाफ़ क्रांति हुई. उसे कुर्सी छोड़नी पड़ी. नई सरकार ने उदार रवैया अपनाने का वादा किया. मिलोसेविच पर जनसंहार और मानवता के ख़िलाफ़ अपराध का मुकदमा चला. मार्च 2006 में उसकी जेल में ही मौत हो गई.

1999 के बाद कोसोवो गई नेटो की पीसकीपिंग फ़ोर्स के तीन बड़े मकसद थे.

- कोसोवो लिबरेशन आर्मी से हथियार डलवाना.
- सर्बिया की सेना की वापसी सुनिश्चित करना.
- और, विस्थापित लोगों को वापस लाना और दोनों समुदायों के बीच हिंसा की गुंजाइश को खत्म करना.

पीसकीपिंग फ़ोर्स काफ़ी हद तक अपने मकसद में कामयाब भी रही. लेकिन छिटपुट दंगे होते ही रहे. इसको लेकर कोसोवो और सर्बिया के बीच तकरार बढ़ती गई. आख़िरकार, 17 फ़रवरी 2008 को कोसोवो ने सर्बिया से अलग होने का आधिकारिक ऐलान कर दिया. अमेरिका और यूरोप में उसके सहयोगी देशों ने उसको मान्यता देने की पहल की. रूस ने इसका विरोध किया. लेकिन सर्बिया ने सेना भेजने से मना कर दिया. अधिकतर पश्चिमी देशों की मान्यता मिलने के बाद कोसोवो की आज़ादी का रास्ता साफ़ हो चुका था. जुलाई 2010 में इंटरनैशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने भी कोसोवो के ऐलान को जायज ठहरा दिया.

उधर, 2008 में ही EU के नेतृत्व में इंटरनैशनल स्टीयरिंग ग्रुप (ISG) बनाई गई. इसमें शामिल देश ऑब्जर्वर की भूमिका में थे. उनके पास नए मुल्क की नीतियां तय करने और अधिकारियों को हटाने का अधिकार था. ये ग्रुप सितंबर 2012 तक काम करता रहा. फिर इसने सरकार की ज़िम्मेदारी स्थानीय लोगों के हाथों में सौंप दी.
ISG तो भंग हो चुकी थी. लेकिन नेटो की पीसकीपिंग फ़ोर्स K-For रुकी रही. हिंसा भड़कने की आशंका हमेशा बनी रहती थी. डर था कि अगर K-For को हटाया गया तो दंगे हो जाएंगे. और, सर्बिया फिर से कोसोवो पर हमला कर सकता है. नेटो का होना उनके सुरक्षा की गारंटी है.

2013 के साल में सर्बिया और कोसोवो ने रिश्ते सुधारने की पहल की. अप्रैल के महीने में ब्रुसेल्स में समझौता हुआ. इसमें कोसोवो ने अपने यहां के सर्ब्स को ज़्यादा अधिकार देने का वादा किया गया. सर्बिया ने कोसोवो के कुछ दस्तावेजों को मान्यता देने की बात कही. सर्बिया के अंदर इसका भारी विरोध हुआ. कहा गया, सरकार कोसोवो की आज़ादी की बात भी मान लेगी.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ब्रुसेल्स समझौता पूरी तरह लागू नहीं हो सका. कुछ मुद्दों पर असहमतियां बनी रहीं. उत्तरी कोसोवो के सर्ब 1999 से पहले वाली स्थिति में लौटने की मांग करते रहे.

फिर आया 2022. कोसोवो सरकार नया नियम लेकर आई. कोसोवो में सर्बिया के नंबर वाली कार पर फ़ाइन लगाने का फ़ैसला किया गया. ये नंबर प्लेट्स 1999 से पहले जारी किए गए थे. उत्तरी कोसोवो में इसका भारी विरोध हुआ. सर्ब पुलिसवालों ने डिपार्टमेंट से इस्तीफ़ा दे दिया. हिंसा की आशंका बढ़ गई थी. फिर EU की मध्यस्थता में डील कराई गई. दोनों पक्षों ने मामला वहीं पर खत्म करने का फ़ैसला किया. तब जाकर मामला शांत हुआ.

अब झगड़ा किस बात पर शुरू हुआ?

जैसा कि हमने पहले भी बताया, उत्तरी कोसोवो में सर्ब्स बहुमत में हैं. वहां अप्रैल 2023 में स्थानीय चुनाव कराए गए. सर्ब आबादी ने इस चुनाव का बहिष्कार किया. वोटिंग हुई तो 05 प्रतिशत से भी कम वोट पड़े. इसके कारण अल्बेनियाई मूल के मेयर जीत गए. सर्ब आबादी ने ये नतीजा मानने से इनकार कर दिया.
26 मई को नए मेयर्स ने अपने ऑफ़िस में जाने की कोशिश की. सर्ब लोग विरोध में उतर आए. पुलिस आने के बावजूद उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया. 29 मई को मामला और बढ़ गया. इस दिन सर्ब्स ने सरकारी इमारतों पर क़ब्ज़े की कोशिश की. इसके चलते पुलिस के साथ टकराव का ख़तरा बढ़ गया. तब नेटो की पीसकीपिंग फ़ोर्स आई. उनका मकसद हिंसा को रोकना था. लेकिन अंत में वही हिंसा का शिकार होने लगे. इसके चलते मामला इंटरनल से इंटरनैशनल हो गया.

अब आगे क्या?

EU, अमेरिका, रूस और चीन ने बातचीत की पहल की है. लेकिन दोनों जगहों पर ऐसी सरकार बैठी है, जिनकी शांति में दिलचस्पी कम है.
कोसोवो में एल्बिन कुरती प्रधानमंत्री हैं. उन्होंने सर्बिया के ख़िलाफ़ स्टूडेंट प्रोटेस्ट में हिस्सा लिया था. कुछ समय तक सर्बिया की जेल में भी रहे. वे कोसोवो को अल्बेनिया के साथ मिलाने के पक्ष में हैं. वो सर्बिया के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं चाहते. दूसरी तरफ़ सर्बिया में अलेक्जेंदर वुविक की सरकार है. वुविक कोसोवो युद्ध के दौरान सर्बिया के सूचना मंत्री थे. उनका कहना है, जिस समझौते में हमें कोई फायदा नहीं होगा, हम उस बातचीत की मेज पर नहीं बैठेंगे.

अब आगे तीन स्थिति नज़र आती है.

पहली, सर्बिया, कोसोवो पर हमला कर सकता है. अगर उसने ऐसा किया तो उसे KFor से निपटना होगा. इसलिए, डायरेक्ट अटैक की संभावना कम है.
दूसरी, सर्बिया, कोसोवो को मान्यता दे दे. इसकी उम्मीद भी कम ही है. क्योंकि अगर उसने कोसोवो को मान्यता दी तो उसके यहां की सर्ब आबादी नाराज़ हो जाएगी. इससे आंतरिक विद्रोह का ख़तरा बढ़ जाएगा.तीसरी, शांति कायम हो जाए. अंतरराष्ट्रीय संगठनों और प्रभावशाली देशों के नेता सर्बिया और कोसोवो के नेताओं से मिल रहे हैं. फिलहाल, सबसे वाजिब और सबसे ज़रूरी विकल्प इसी रास्ते से होकर जाता है.

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