ऐसे में हमने अपने न्यूज़रूम के क्रिकेट प्रेमियों से धोनी की रिटायरमेंट पर चंद शब्द लिखने को कहा. लल्लनटॉप के लोगों
की त्वरित प्रतिक्रिया इस लिंक पर पढ़ी जा सकती है. इस आर्टिकल में हम आपको पढ़ा रहे हैं लल्लनटॉप के एडिटर सौरभ द्विवेदी के दिल की बात. यकीन मानिए धोनी पर आपने आज तक जो भी पढ़ा होगा, ये आर्टिकल उन तमाम पढ़े आर्टिकल्स के टॉप-5 में आसानी से आ जाएगा. चलिए, शुरू कर दीजिए...
मुझसे अक्सर जब ये पूछा जाता है कि लल्लनटॉप का मतलब क्या है? तो मेरे दिमाग में सबसे पहली चीज आती है कि उदाहरणों से चीजें आसानी से समझ आती हैं. थ्योरी, परिभाषा बड़ी बोझिल सी होती है, लेकिन जैसे ही उसमें कोई उदाहरण आता है, थ्योरी जिंदा हो जाती है. जब मैं लल्लनटॉप का उदाहरण देता था, कि लल्लनटॉप माने क्या? तो अक्सर दो व्यक्तियों पर ध्यान टिकता था. इंटरनेशनल में यूसेन बोल्ट और नेशनल में महेंद्र सिंह धोनी.
धोनी का सीन कुछ ऐसा है कि बहुत समाजशास्त्रीय ढंग से देखा जाए तो कई बॉक्सेज हैं जिन पर टिक होता है. जैसे, बहुत मॉडेस्ट बैकग्राउंड से आने वाला व्यक्ति. और मॉडेस्ट बैकग्राउंड से आने वाले व्यक्तियों को बड़े सपने देखने की इज़ाज़त नहीं होती. ये बयान अपने आप में बहुत फिल्मी है, लेकिन उतना ही सच भी है. क्योंकि बचपन से ही हम बहुत छोटी ख्वाहिशों से घिरे रहते हैं और इन ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाते जाते हैं.
ऐसे में कुलांचे भरने का ना तो वक्त होता है, ना माद्दा होता है, ना इज़ाज़त होती है और ना ही हिम्मत होती है. अब पिताजी पंप ऑपरेटर थे तो धोनी का जीवन भी वैसा ही रहा. फिर उस जीवन में और रंग, और कल्पनाएं भरी गईं क्योंकि उस पर बायोपिक बनी. एक वो तरीका है धोनी की जिंदगी में दाखिल होने का.
# गणित नाम का
नाम भी देखिए.. नामों का अपना एक समाजशास्त्र होता है. बड़े अच्छे-अच्छे नाम रखे जाते हैं आजकल. बड़ा चिंतन-मनन होता है. पूछो कि भैया क्या नाम है, तो एक नाम बताया जाएगा कि भैया वो फलानी सभ्यता में इसका ये मतलब होता है. वो धमाकी भाषा में इसका अर्थ ये निकलता है टाइप से. इन सबके बीच ऐसा नाम. एकदम साधारण सा. जो आपके चाचा की पीढ़ी में नाम होते थे- सुरेंद्र, राजेंद्र, महेंद्र, वैसा एक नाम आता है. फिर उसके बारे में शुरुआती ख़बरें आती हैं कि वो 2-3 लीटर दूध पीता है. नशा नहीं करता. Advertisement
लंबे बाल वाले धोनी.
फिर दिल किया तो लंबे बाल रख लिए. भारत के साथ लव-हेट रिलेशनशिप वाले परवेज़ मुशर्रफ से उन बालों पर तारीफ भी हासिल कर ली. धोनी के साथ एक खास बात ये थी, कि वह जो भी करता था उससे लगता था कि अब इस चीज को मिडिल क्लास में स्वीकार्यता मिल जाएगी. जैसे, पहले लंबे बाल वालों को लोफर माना जाता था, एकदम आवारा. लेकिन फिर बात ये हो गई कि धोनी ने भी तो रखे हैं. फिर एक दिन धोनी ने एकदम छोटे बाल रख लिए.
#व्यवस्था की जरूरत
एक व्यक्ति, जो अपने क्राफ्ट में माहिर है. अरबों लोगों को सपनों को आगे लेकर जाता है, उन्हें पूरा करता है. इनके साथ तमाम तरीकों से हमारे जीवन में मौजूद होता है. लल्लनटॉप पर जब धोनी के करियर पर बात हुई, तमाम बातें जैसे- कोरोना में उन्होंने इतना दिया, या नहीं दिया. तब इन बातों पर काफी कड़ा रिएक्शन आया. ऐसा कड़ा रिएक्शन तभी आता है जब उससे कोई तार जुड़ा होता है. जैसे बचपन में दो खाली डब्बों में छेद कर, उनमें रस्सी लगा हम दूरभाष का खेल खेलते थे और चकित होते थे. सोचते थे कि देखो, कैसे ज्यादा आवाज आ रही है.इसमें एक चीज समझ आई कि आवाज को कैरी करने के लिए एक व्यवस्था चाहिए. बाद में पता चला कि लाइट को भी ऐसी व्यवस्था की जरूरत पड़ती है. मुझे लगता है कि धोनी के होने से बहुत सारी चीजें हम तक ऐसे ही कैरी हो गईं. जैसे- मैं जिस साल पैदा हुआ भारत ने उसी साल वर्ल्ड कप जीता था. तो मैंने ये बात सिर्फ सुनी थी. कहते हैं कि भारत ने 83 का वर्ल्ड कप ऐसे हाल में जीता था जब किसी को कोई उम्मीद ही नहीं थी.
हम लोगों ने जब क्रिकेट देखना शुरू किया तब क्रिकेट रंगीन हुआ.बेनसन एंड हेज़्स वर्ल्ड कप हुआ. ग्लोबलाइजेशन हुआ तो सचिन तेंडुलकर आए. फिर एकदम से पोस्टर और इश्तहारों की शक्ल में क्रिकेट हमारे दैनंदिन जीवन का हिस्सा बन गया. अब यह क्रिकेट सम्राट के पोस्ट और कुछ आंखो तक ही सीमित नहीं था.
उसके बाद शुरू हुईं अफवाहें. लोग कहने लगे कि बेनजीर भुट्टो ने कह दिया था कि वह गद्दाफी स्टेडियम में भारत को सुरक्षा नहीं दे पाएंगी. इसलिए जानबूझकर मैच हारना पड़ा. वर्ल्ड कप बीतने के बाद दोबारा से बातें हुई कि वर्ल्ड कप दोबारा होगा क्योंकि जयसूर्या ने अपने बल्ले में चुंबक लगा रखा है. इस तरह की तमाम अतार्किक बातें हुई.अब इसके दो तरीके हैं, या तो इसे सिरे से ख़ारिज कर दें. या फिर सोचें कि हम और हमारे बड़ों को क्यों इस बात पर यकीन होता था. क्योंकि एक खलिश सी थी, कि हम वर्ल्ड कप नहीं जीत पाए.
# फिर आया 2007
उस दौर में बल्ला खरीदने की मांग करना, ऑफिशली बड़े होने की पहचान सा बन गया था. स्पोर्ट्स मतलब ही क्रिकेट हो रखा था.अब इसे नेगेटिव लें या पॉजिटिव लेकिन सच यही था. हम 96 नहीं जीत पाए. फिर आया 99. अबकी बार तो पूरा माहौल ही खराब था. कॉन्फिडेंस की चिड़िया उड़ चुकी थी और हम सचिन से ओपनिंग तक कराने में डरते थे. सचिन को नीचे उतारा जाता था कि तब तक स्विंग खत्म हो जाएगी.फिर 2003 आया. हम फाइनल तक गए लेकिन आखिरी सीढ़ी पार करने से पहले ही लुढ़क गए और वर्ल्ड कप गंवा दिया. एक ख्वाहिश सी पलती जा रही थी इसी बीच आया T20 वर्ल्ड कप. ये क्रिकेट का इतना छोटा गुटका संस्करण था कि लोग देखना ही नहीं चाहते थे. फिर आया हरियाणा का एक लड़का. उसने आखिरी ओवर फेंका. सबकुछ मिथुन दा की फिल्म जैसा हो रहा था. मिथुन साइकिल की आड़ लेकर गोलियां चला रहे थे और सुरक्षित भी थे.एकदम असंभव सा लगने वाला वृत्तांत रचा जा रहा था और पूरी दुनिया उसके रचनाकार को देख रही थी.
2007 टी20 वर्ल्डकप फाइनल. फोटो: ICC Twitter
श्रीसंत ने कैच पकड़ा और हम वर्ल्ड कप जीत गए. लेकिन कुछ लोग थे जो अब भी कह रहे थे- ये वो वाला वर्ल्ड कप नहीं है. और फिर वो 2011 का वर्ल्ड कप आता है. हम जीतते हैं और जश्न मनाते हैं.यहां मुझे याद आई एक इतिहास की किताब. इस किताब में मैंने पढ़ा था कि जब पहली बार गोपाल कृष्ण गोखले संसद में खड़े हुए और बेहद शांत ढंग से अंग्रेजों के बजट की धज्जियां उड़ाई तो अगले दिन के अखबार उनकी तारीफ से पटे हुए थे. ऐसे ही किसी अंग्रेजी कवि के क़ोट का उल्लेख करते हुए इतिहासकार विपिन चंद्रा लिखते हैं- उस सुबह जीवित होना अद्भुत था लेकिन युवा होना तो स्वर्ग के समान था.हमारे लिए 2011 के मार्च-अप्रैल के महीने वैसे ही थे.
धोनी का ऐतिहासिक छक्का.
# थैंक्यू धोनी
मैं गौतम गंभीर की उस बात से भी सहमत हूं कि धोनी का छक्का उस टूर्नामेंट का समापन बिंदु था.पर कई दफा क्या होता है कि, चूंकि हम लोगों की जो ख्वाहिशें हैं, हम लोग क्रिकेट और सिनेमा से बहुत प्रभावित रहते हैं. इसलिए हम लोगों की ख्वाहिशों को भी पूरा होने के लिए एक मेलोड्रमैटिक मोमेंट चाहिए होता है. हम चक दे इंडिया देखते हैं तो ये राइट लेगी, लेफ्ट लेगी, विद्या मेरी तरफ देखो... मतलब एकदम टॉप पर ले जाना है हमको उसे. तो उस हिसाब से देखें तो वो छक्का एक डॉमिनेंस भी स्थापित करता है. लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि मैं गंभीर से सहमत हूं कि और भी बहुत सारी चीजें थीं.2013 चैम्पियंस ट्रॉफी में धोनी. फोटो: Twitter
उनके साथ कई विवाद भी रहे. लेकिन इसमें एक खास मानसिकता दिखती है. होता क्या है कि हम लोग पहले एक देवता चुनते हैं फिर उसमें रंग भरते हैं और फिर उनके पतन पर नाराज़ होते हैं.गुस्सा कई बार हमें खुद पर आता है क्योंकि उस आदमी ने तो ये कहा नहीं होता कि आप ऐसा करिए. धोनी से जुड़े तमाम विवाद जांच का विषय हो सकते हैं, लेकिन इस पर टिप्पणी करना विशेषज्ञों का काम है.लेकिन इन सबसे इतर महेंद्र सिंह धोनी उस आश्वस्ति का अगला चरण थे जो सचिन तेंडुलकर के बारे में लिखा जाता है कि एक मिडिल क्लास से आने वाला लड़का. सचिन मिडिल क्लास से जरूर आते थे लेकिन वह मुंबई जैसे महानगर के थे.
सचिन और धोनी, भारत का क्रिकेट. फोटो: India Today Archive
जैसे सिद्धांत चतुर्वेदी कह चुके हैं- हमारे सपने जहां पूरे होते हैं वहां से इनका स्ट्रगल शुरू होता है. तो यह कुछ ऐसा ही था. एक बड़ा स्टेप सचिन का आना था लेकिन धोनी का आना उससे कहीं बड़ा स्टेप था. मुझे ऐसा लगता है कि धोनी को देखकर ऐसा लगता है कि पसीना भले बहाना पड़े लेकिन सफलता मिलेगी जरूर. एक क्रिकेट फैन के तौर पर हम इतना ही कहेंगे- थैंक्यू धोनी. थैंक्यू एक लल्लनटॉप उदाहरण होने के लिए.
फुटनोट : सौरभ जी लगभग अमित मिश्रा लेवल के लेग स्पिनर हैं और आज भी इन्हें अपने फर्स्ट क्लास डेब्यू का इंतजार है.