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क्या अमित शाह के दौरे से हिंसाग्रस्त मणिपुर में हालात सुधर जाएंगे?

मणिपुर में करीब एक महीने से चल रही हिंसा को मोदी सरकार अब तक रोक क्यों नहीं पाई है?

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मणिपुर में रविवार को भड़की हिंसा के बाद जमकर आगजनी भी हुई (फोटो- पीटीआई)

एक बेहद संवेदनशील राज्य है. जो पिछले 24 घंटे से हिंसा की चपेट में है. गोलियां चल रही हैं. लोग मारे जा रहे हैं. लगातार हो रही हिंसा, जान-माल को नुकसान के बावजूद ये हिंसाग्रस्त राज्य पक्ष-विपक्ष के एजेंडे में क्यों नहीं है और पूर्वोत्तर को लेकर बड़े-बड़े दावे करने वाली मोदी सरकार करीब एक महीने से चल रही हिंसा को अब तक रोक क्यों नहीं पाई है?

मणिपुर राज्य के कई इलाक़ों में एक बार फिर हिंसा भड़क गई है. इंडिया टुडे नॉर्थ ईस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक़, मणिपुर के सीरस और सुगनू इलाक़े में 28 मई को हुई हिंसक झड़पों में 5 लोगों की जान चली गई और 12 लोग गंभीर रूप से घायल हैं. मरने वालों में राज्य का एक पुलिसकर्मी भी शामिल है. वहीं, इम्फाल में भीड़ ने बीजेपी विधायक के रघुमणि के घर में तोड़फोड़ की और दो गाड़ियों में आग लगा दी.

शुरुआत में आई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि ये हिंसा दो समुदायों के बीच हो रही है. फिर ख़बरें आईं कि दो नहीं, एक ही समुदाय है. इसी धुंध के संदर्भ में सूबे के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. CM का दावा ये कि हिंसा दो समुदायों के बीच नहीं, बल्कि कूकी उग्रवादियों और सुरक्षाबलों के बीच झड़पों के बाद शुरू हुई. कूकी उग्रवादियों के पास M-16 और AK-47 बंदूक़ें हैं. उन्होंने आम जनता पर हमले किए, लोगों के घर जला दिए. इसके बाद सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई में कम से कम 33 उग्रवादियों को मारा है. ये CM का दावा है. हमले में शामिल कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है. मुख्यमंत्री ने कूकी उग्रवादियों को 'आतंकवादी' तक कह दिया और कहा कि

"जो राज्य को बांटने और शांति भंग करने की कोशिश कर रहे हैं, वो बाक़ी 34 समुदायों के दुश्मन हैं."

मणिपुर में सुरक्षाबलों और उग्रवादियों के बीच अब भी एनकाउंटर जारी है. संवेदनशील इलाक़ों की पहचान की गई है और उग्रवादी समूहों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक़, सरकार ने राज्य में इंटरनेट बैन को 31 मई तक बढ़ा दिया है.

इससे पहले, राज्य में स्थिति की समीक्षा के लिए आर्मी चीफ़ जनरल मनोज पांडे भी दो दिन के दौरे पर मणिपुर पहुंचे थे. उन्होंने 28 मई को मीडिया को जानकारी दी थी कि कूकी उग्रवादियों ने बीती रात सेरौ, सुगनू, तांगजेंग, तेराखोंगसांगबी, सेकमाई में कई मैतेई घरों को आग के हवाले कर दिया. सेरौ में कूकी उग्रवादियों के साथ मुठभेड़ में मणिपुर के 3 कमांडो शहीद हो गए थे. 24 मई को बिष्णुपुर ज़िले में राज्य के लोक निर्माण विभाग के मंत्री गोविंददास कोंथौजम के घर में तोड़फोड़ की गई थी. और अब केंद्रीय गृहमंत्री के दौरे से ठीक पहले एक बार फिर से हिंसा शुरू हो गई है. अब यहां सवाल ये है कि अमित शाह के दौरे का मणिपुर पर क्या असर पड़ेगा?

इंडियन एक्सप्रेस अखबार में सोर्सेज के हवाले से 18 मई को छपी खबर के मुताबिक हिंसा के शुरुआती कुछ दिनों में मणिपुर पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज, दो पुलिस स्टेशन्स और इम्फाल में IRB बटालियन कैम्प से 1 हजार से अधिक हथियार और 10 हजार राउंड से अधिक बुलेट्स लूटे गए. सोर्सेज के मुताबिक चुराचंदपुर में भी हथियारों के लूटपाट की घटना हुई. आजाद भारत में हथियारों की इतनी बड़ी लूट की कोई घटना हमें ध्यान नहीं आती है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक राज्य सरकार के सलाहकार और सीआरपीएफ के पूर्व डीजी कुलदीप सिंह ने कहा,

"हम रिकवरी कर रहे हैं. अब तक हमने 456 हथियार और 6,670 गोलियां बरामद की हैं. इनमें मैतेई और कुकी दोनों गुटों द्वारा लूटे गए हथियार शामिल हैं. राज्य में अभी भी कुछ तनाव है. लेकिन हमें उम्मीद है कि जल्द ही स्थिति सामान्य हो जाएगी."

हमने आपको हिंसा की हालिया घटनाओं के बारे में बताया. अब थोड़ा सा पीछे चलते हैं और समझते हैं कि इस हिंसा के पीछे की वजह क्या है, और इसकी शुरुआत कैसे हुई? सबसे पहले टकराव की वजह को समझ लेते हैं. और इसके लिए मणिपुर के भौगोलिक और समाजिक स्वरूप को समझना जरूरी है. भूगोल की किताबों में मणिपुर को दो हिस्सों में बांटा गया है. सेंट्रल वैली यानी घाटी और पहाड़ी इलाके. मणिपुर के 60 विधानसभा सीटों में से 40 घाटी में है. जो राजधानी इम्फाल सहित 6 जिलों में फैली है. जबकि बाकी की 20 सीटें 10 पहाड़ी जिलों में फैली है. घाटी राज्य के कुल क्षेत्र की महज 11 फीसद है. लेकिन 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां राज्य की करीब 57 फीसद आबादी बसी हुई है. जिसमें मुख्यत: हिंदू बहुल मैतेई समुदाय का दबदबा है. पहाड़ी इलाकों में राज्य की 88 फीसद से ज्यादा जमीन और यहां करीब 43 फीसद आबादी की बसावट है. जिसमें 33 से अधिक जनजातीय समूह शामिल हैं. हालांकि इसमें मुख्य दो हैं नागा और कुकी. दोनों में इसाइयों की बहुलता है.

मैतेई. नागा और कुकी. तीनों समुदायों के बीच जातीय प्रतिद्वंदिता का लंबा इतिहास रहा है. मैतेई समुदाय, मणिपुर का सबसे बड़ा समुदाय है. राज्य के शासन-प्रशासन में प्रभावी भी. विधानसभा की 60 में से 40 सीटों पर इनका दबदबा है. राज्य के सिस्टम को भी मैतेई समुदाय काफी प्रभावी तरीके से कंट्रोल करता है. लेकिन मैतेई के पास जनजातिय दर्जा नहीं है. और इसका नुकसान इस तरह से उठाना पड़ा है कि मैतेई समुदाय के लोग सेंट्रल वैली में ही सिमट कर रह गए हैं. क्योंकि पहाड़ी इलाके रिजर्व हैं. वहां जमीन खरीदने का अधिकार केवल जनजातीय समूहों को ही है. यानी मैतेई केवल राज्य के 11 फीसद इलाके में ही सिमटे हैं.

जनजातीय समूह के लोग कहते है कि घाटी के लोगों ने राजनीतिक वर्चस्व के दम पर राज्य में विकास के काम हथिया लिए. अब उनकी नजर जंगलों पर है. जबकि मैतेई समुदाय के लोग अपने लिए ST स्टेटस की मांग कर रहे हैं. ताकि सेंट्रल वैली के अतिरिक्त राज्य के अन्य इलाकों में जमीन खरीद सकें. ज़मीन के अलावा दूसरा प्रश्न है रोज़गार का. मणिपुर में उद्योग नहीं के बराबर हैं. खेती के लिए भूमि बेहद सीमित है. ऐसे में पक्की नौकरी का एक ही ज़रिया है - सरकार. इन सरकारी नौकरियों में सूबे के सभी समुदायों की दिलचस्पी है. ऐसे में मैतेई, जिन्हें ST आरक्षण नहीं मिलता, उनमें ये भावना पनप रही है कि नौकरियां उनके हाथ से चली जा रही हैं.

यहां हम ये बात रेखांकित कर दें कि मणिपुर में जनजातिय तनाव को सिर्फ ज़मीन और रोज़गार के चश्मे से देखना भूल होगी. मैदानों में बसे मैतेई, और पहाड़ों पर बसी कूकी-नागा जनजातियां, दोनों के भीतर जातिय अस्मिता और पहचान का गहरा बोध है. और दोनों समूह अपनी-अपनी पहचान को लेकर आक्रामक हैं. उसपर किसी तरह के अतिक्रमण को बर्दाश्त नहीं करते. खैर, हाल के तनाव पर लौटते हैं.  

बीते दिनों मणिपुर हाईकोर्ट का एक फैसला आया. हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार से मैतेई समुदाय को ST स्टेटस दिलाने की सिफारिश करे. कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश प्राप्ति के 4 हफ्तों के भीतर सिफारिश करने का निर्देश दिया. इस फैसले ने मणिपुर का माहौल और गरम कर दिया. जनजातीय समूहों में राज्य की एन बीरेन सिंह की सरकार के खिलाफ पहले से ही नाराजगी थी. वजह थी राज्य में अफीम की खेती और जंगली इलाकों में अवैध अतिक्रमण के खिलाफ चल रहा अभियान. जनजातीय समूहों का कहना था कि कार्रवाई के नाम पर बेगुनाह लोगों को टार्गेट किया जा रहा है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार के खिलाफ जनजातीय समूहों का प्रदर्शन तेज हो गया.

अब आते हैं मणिपुर हिंसा की टाइमलाइन पर.
हिंसा की पहली घटना रिपोर्ट हुई, 27 अप्रैल की रात. जब चुराचंदपुर जिले में अराजक भीड़ ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के कार्यक्रम स्थल पर तोड़फोड़ किया. इसके अगले दिन भी तोड़फोड़ और हिंसक घटनाएं हुईं. जिसके बाद ज़िले में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं. शहर के सभी प्रमुख चौराहों और बड़े इलाक़ों में भारी पुलिस बल तैनात किया गया. इन सबके बावजूद 28 अप्रैल की रात पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प की खबर आई. 29 अप्रैल को एक अज्ञात भीड़ ने चुराचंदपुर में एक सरकारी बिल्डिंग को आग लगा दी.

इसके बाद 3 मई को छात्र संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ मणिपुर (ATSUM) ने 3 मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आह्वान किया. ये मार्च मैतेई समुदाय की ST कैटगरी में शामिल होने की मांग के ख़िलाफ़ थी. छात्र संगठन ने कहा कि मैतेई समुदाय की मांग ज़ोर पकड़ रही है और घाटी के विधायक खुले तौर पर इसका समर्थन कर रहे हैं. इसलिए, जनजातीय हितों की रक्षा के लिए कुछ करना होगा. मार्च के समर्थन में हजारों लोगों ने रैली निकाली. अलग-अलग इलाकों में रैली निकाली गई.

कई जगह रैली शांतिपूर्ण रही और कई जगह इसने हिंसक रूप ले लिया. हिंसा के बाद मणिपुर के आठ ज़िलों में कर्फ़्यू लगा दिया गया और पूरे प्रदेश में इंटरनेट बंद कर दिया गया. 4 मई को हालात नियंत्रित करने के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया. 10 हजार से अधिक हिंसा प्रभावित लोग सरकारी शिविरों में शरण लेने के लिए पहुंचे. राज्य सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक हिंसा में लगभग 60 नागरिकों की जान गई. 231 लोग घायल हो गए और 1700 घर जला दिए गए. उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए.

इसके बाद मणिपुर के राज्यपाल ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए कई सीनियर IAS और IPS अधिकारियों को लगाया. राज्यपाल ने रिटायर्ड सीनियर IPS और CRPF के पूर्व DG कुलदीप सिंह को राज्य सरकार का सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया. स्थिति को नियंत्रित करने और राज्य में सामान्य स्थिति लाने के लिए आशुतोष सिन्हा, एडीजीपी (खुफिया) को ओवरऑल ऑपरेशनल कमांडर नियुक्त किया गया.

इसके अलावा मणिपुर के राज्यपाल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी डॉ. विनीत जोशी को राज्य का नया मुख्य सचिव नियुक्त किया. इस बीच एक चर्चा ज़ोरों से हुई कि केंद्र ने सूबे में अनुच्छेद 355 लगा दिया है. और आपात शक्तियों का इस्तेमाल कर स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है. और इसी कवायद के नतीजे में सुरक्षा सलाहकार की तैनाती हुई है.

इस बाबत एक भाजपा विधायक ने ट्वीट भी किया था. और मणिपुर पुलिस की ओर से स्वयं एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात बताई गई थी. लेकिन बाद में जब आधिकारिक अधिसूचना खोजी गई, तो वो कहीं मिली नहीं. इस आधार पर दावा किया गया कि अनुच्छेद 355 नहीं लगाया गया. 355 लगा या नहीं लगा, इस बात का महत्व इसीलिए है कि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होते हुए अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल एक बेहद दुर्लभ उदाहरण पेश कर रहा था. और साथ ही ये सवाल भी कि क्या स्थिति इतनी खराब हो गई है कि केंद्र को सीधे हस्तक्षेप करना पड़ा?

फिलहाल स्थिति यही है कि अनुच्छेद 355 लगने की आधिकारिक अधिसूचना किसी के पास नहीं है. लेकिन इलाका राज्य शासन के नहीं, केंद्र के नियंत्रण में है, इसका इशारा कई चीज़ें करती हैं. ज़्यादातर बड़े ऐलान मुख्यमंत्री कार्यालय नहीं, राज्यपाल के यहां से होते हैं. सूबे के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने कई बार सीधे प्रेस को संबोधित किया है. सेना, असम राइफल्स और केंद्रीय अर्धसैनिक बल दिन रात ऑपरेशन कर रहे हैं. सेनाध्यक्ष जनरल पांडेय इन्हीं सैनिक कार्रवाईयों और फौज की तैयारियों का जायज़ा लेने गए थे.

केंद्रीय दखल का एक कारण अगर राज्य शासन की विफलता है, तो इकबाल की कमी भी है. ये अब सर्वविदित है कि पहाड़ी जनजातियों और बिरेन सिंह प्रशासन के बीच संबंध बेहद नाज़ुक मोड़ पर हैं. ऐसे में केंद्रीय बल ही हैं, जिनकी बात दोनों पक्ष सुन सकते हैं. ध्यान रहे, हमने सुन सकते हैं कहा है. सुन रहे हैं, ऐसा कहने की वजह अभी नहीं मिली है. क्योंकि एनकाउंटर जारी हैं. और बड़ी संख्या में लोग मारे जा रहे हैं - खुद सीएम के मुताबिक 40.

15 मई को मणिपुर के 10 विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी. ये सभी विधायक आदिवासी समुदाय से हैं. इन विधायकों ने केंद्र सरकार से आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग की. विधायकों ने चिट्ठी में लिखा कि राज्य सरकार आदिवासियों की रक्षा करने में बुरी तरह फेल रही है. इन 10 विधायकों में 7 विधायक सत्ताधारी भाजपा के हैं. जबकि 2 विधायक बीजेपी की सहयोगी कुकी पीपल्स अलायंस और एक निर्दलीय विधायक शामिल है.

इधर 17 मई को सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले की आलोचना की. चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला कई संविधान पीठ के फैसलों के विपरीत था. जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जनजातियों की सूची को बदलने के लिए न्यायिक आदेश पारित नहीं किए जा सकते, क्योंकि यह राष्ट्रपति की शक्ति है.

टिप्पणियों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया. हालांकि मणिपुर हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ बड़ी बेंच में अपील की गई है. इधर पूरे राज्य में सेना और अर्धसैनिक बलों के जवानों की तैनाती के बाद माहौल थोड़ा शांत हुआ लेकिन तनाव बरकरार हुआ. बीच-बीच में हिंसा की छिटपुट घटनाएं होती रहीं. लेकिन 20 मई के बाद से एक बार फिर हिंसक घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिली. जिसके बारे में हमने आपको शुरू में बताया.

ये तो हो गया अब तक का घटना क्रम. अब आते हैं सवालों पर. सबसे पहला सवाल तो यही है कि करीब एक महीने बीत चुके हैं और अब तक मणिपुर में हिंसा नियंत्रित नहीं हो पाई है. केंद्र की ओर से भेजे गए तमाम अफसरों और सेना की टुकड़ियों और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद. और ये केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की रणनीतियों पर भी सवाल उठाता है, क्योंकि उनके दौरे से ठीक पहले एक बार फिर से हिंसा भड़क उठी है.

दूसरा सवाल.  पूर्वोत्तर, मोदी सरकार के लिए एक फोकस एरिया रहा है. सरकार दावा करती है,  - वो शांति स्थापित कर रही है, ताकि विकास हो सके. और इसी विकास के वादे पर भारतीय जनता पार्टी पूर्वोत्तर में एक के बाद एक चुनाव भी जीत रही है. लेकिन मणिपुर में हुई एक घटना ने सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड और शांति के नैरिटिव पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न लगा दिया है. मेइती बनाम नागा-कुकी को महज़ जनजातिय संघर्ष कहकर खारिज नहीं किया जा सकता. क्योंकि बात इससे कहीं आगे बढ़ गई है. मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में आगज़नी हो जाती है, बलवा ऐसा पनपता है कि रात ही रात में सेना को मैदान में उतरना पड़ता है. और एक महीने बाद भी स्थिति नियंत्रित नहीं हो पाती.

कल पहलवानों के प्रदर्शन और नई संसद के उद्घाटन से पूरा मीडिया और सोशल मीडिया पटा हुआ था. आज भी उसके अफ़्टर-इफ़ेक्ट्स आपको दिख ही जाएंगे. लेकिन उसी देश के एक राज्य में भयानक हिंसा हो रही है. लोगों की सरेआम हत्या की जा रही है. साशन-प्रशासन रोकथाम के दावे कर रहा है, लेकिन स्थिति क़ाबू में है या स्थिर है. ये कहना भी बेमानी होगा. मणिपुर, दिल्ली नहीं है. दिल्ली से 2500 किलोमीटर दूर है. मगर ख़बरें देखेंगे, तो लगेगा कि उससे भी कहीं ज़्यादा दूर है.

इसमें मणिपुर में जो दर्शक हिंदी समझ सकते हैं, उनसे हमारी अपील है कि हिंसा का सहारा न लें. प्रशासन के निर्देशों का पालन करें. पहली प्राथमिकता जीवन की सुरक्षा है. जो मसले हैं, उन्हें बाद में बैठकर भी सुलझाया जा सकता है.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: मणिपुर को 'जलने' से बचाने के लिए अमित शाह का ये प्लान काम करेगा?