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मणिपुर में मर्डर करने वाले किस ड्रग्स के पैसे से अपना हथियार जुटा रहे हैं?

किस नशीले पदार्थ की खेती हो रही है मणिपुर में?

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मणिपुर में आ रहे हथियार किस देश की साजिश हैं? (बाएं - मणिपुर पुलिस द्वारा जब्त किये गए हथियार, दाएं - पहाड़ियों पर अफीम के पौधे)

मई 29, 2023. रात के 9 बजकर 5 मिनट पर जब देश के गृहमंत्री अमित शाह का हवाई जहाज मणिपुर में उतरा तो इंफाल में बैठे एक पत्रकार के फोन की घंटी बजी. उठाने पर दूसरी ओर से छितराई हुई हिन्दी में आवाज आई,

“अमित शाह कुछ बोला क्या? इंटरनेट कब चालू होगा?"

अमित शाह ने इस बात का जवाब तो नहीं दिया, लेकिन 1 जून की अपनी प्रेसवार्ता में उन्होंने साफ कर दिया कि मणिपुर में हो रही हिंसा की जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में गठित आयोग करेगा. जिनके परिवारों में मौतें हुई हैं, उन्हें 10 लाख का मुआवजा भी दिया जाएगा. धीरे-धीरे सेवाएं शुरु होंगी. उन्होंने शांति की अपील की.

सूबे में 28 अप्रैल की तारीख से कर्फ्यू और इंटरनेट बंदी चल रही है. पत्रकारों को खबर भेजने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ इनफार्मेशन एंड पब्लिक रिलेशन (DIPR) के धीमे इंटरनेट की मदद लेनी पड़ती है. गृहमंत्री की शांति की अपील के चश्मे से देखें तो मैतेई और कुकी समुदायों के बीच बीते एक महीने से भी ज्यादा समय से हो रही हिंसा का अभी कोई अंत नहीं दिख रहा है. जिस समय अमित शाह मणिपुर में थे, उसी समय राज्य की राजधानी इंफाल में कुकी समुदाय के घर में आग लगा दी गई. किसने लगाई? किसी ने नहीं देखा.

दोनों ही समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हैं. दोनों ही समुदाय राज्य की बीरेन सिंह की सरकार के रवैये और कामकाज के तरीके से नाखुश हैं. नाखुश होने की वाजिब वजह भी है. इस पूरे हिंसाकाल में लगभग 100 लोगों की मौत होने, सैकड़ों के घायल और विस्थापित होने के बाद भी स्थितियां किसी हाल में नहीं रुक रही हैं. हत्याएं जारी हैं. कोई भरोसा करे तो कैसे?

सुरक्षा बलों पर भरोसा न कर रहे दोनों समुदाय खुद के स्तर पर मोर्चेबंदी कर रहे हैं. कुकी और मैतेई समुदाय के लोग अपने-अपने इलाकों में रोडब्लॉक करते हैं. पता करने के लिए क्या गाड़ी में कोई दुश्मन समुदाय का बंदा तो नहीं बैठा है? पत्रकारों को एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने के लिए मैतेई पंगाल यानी मुसलमान ड्राइवरों की मदद लेनी पड़ती है. ये ड्राइवर सामने वाली पार्टी से फोन पर बात करने के लिए 'हैलो' के बाद सबसे पहले ये बताते हैं कि वो मैतेई पंगाल हैं  ताकि उन्हें मार न दिया जाए. इन्हें दोनों ही समुदाय अपना दुश्मन नहीं मानते हैं. रोड ब्लॉक कर रहे लोग ये भी चेक करते हैं कि कोई दुश्मन पार्टी की मदद तो नहीं कर रहा है? इस जांच में दिन में ये लोग तामूल (पान) का सहारा लेते हैं और रात में चावल से बनी लोकल शराब का. एक कुकी महिला कहती हैं, 

“5-6 घंटे का सबका शिफ्ट है. सबको खड़ा रहना है, हम लोग तामूल-दारू के बिना कैसे रहेगा?”

मैतेई और कुकी की मोर्चेबंदी में दुकानों और घरों की शिनाख्त भी होती है. कुकी इलाकों में घरों-दुकानों में 'ट्राइबल' लिखा मिलता है. जिन घरों पर नहीं लिखा है, वो मैतेई के घर हैं और जल चुके हैं. मैतेई इलाकों में 'नगा, हिंदू दुकान, मैतेई पंगाल, मुस्लिम दुकान' लिखा मिलता है. जिन पर नहीं लिखा है, वो घर कुकी का है और जल चुका है.

मणिपुर के बिष्णुपुर में जलाया गया एक घर (फोटो : सिद्धांत मोहन / लल्लनटॉप)

उखरुल और सेनापति जैसे नगाबहुल इलाकों को छोड़ घाटी में मौजूद मैतेई और पहाड़ियों पर बसे कुकी समुदायों के बीच लगातार हिंसा हो रही है. और ये सारी हिंसा पहाड़ियों के पैरों में हो रही है - जिन्हें यहां के लोग फुटहिल्स के साथ-साथ फ्रंटलाइन भी कहते हैं. कुकीबहुल इलाकों जैसे चुराचंद्रपुर और कांगपोकपी और मैतेईबहुल इंफाल में हर जगह राज्य सरकार की नाकामी के पोस्टर और नारे सुनाई-दिखाई पड़ते रहते हैं. बीरेन सिंह की सरकार पर आरोप हैं कि उन्होंने जानबूझकर हिंसा को रोकने में दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि वो खुद मैतेई समुदाय से आते हैं. इसलिए सभी का ध्यान है केंद्र सरकार पर.

दूसरी ओर अमित शाह ने अपने मणिपुर प्रवास में सभी गुटों से मिलने की कोशिश की. लेकिन अमित शाह एंड टीम का सामना मणिपुर की कई मांगों से हुआ होगा. मैतेई समुदाय ने राज्य में NRC लागू करने की भी मांग की है, जिससे गैरकानूनी शरणार्थियों की शिनाख्त हो सके. दूसरी ओर कुकी समुदाय ने एक सेपरेट कुकीलैंड की मांग की है. एक अलग राज्य की. क्यों अलग राज्य? चुराचंद्रपुर में रहने वाले अध्यापक डीलन इंडिया टुडे से कहते हैं कि ये झगड़ा दिल्ली या यूपी का झगड़ा नहीं है. मेनलैंड का झगड़ा नहीं हैं. यहां पर लाशें गिर रही हैं और चूंकि दोनों समुदायों के बीच विभाजन की फांक इतनी गहरी है कि दोनों का साथ रह पाना लगभग असंभव है. कुकी कहते हैं कि उन्हें एक अलग प्रशासन चाहिए. मणिपुर से अलग.

लेकिन घाटी में मौजूद इससे मैतेई अलग तरीके से सोचते हैं. 28-29 मई के दिन चंदेल के इलाके में मौजूद सुगनू में कुकी और मैतेई के बीच हिंसा शुरु हुई. दोनों ओर से घर जलाए गए. लोग घर छोड़कर भागने लगे. सुगनू से मोईरांग के रास्ते में कई सारे मैतेई भीड़ लगाकर सुगनू से बचकर आ रहे मैतेई लोगों का स्वागत करते हुए दिखते हैं. इनके बीच मौजूद सरिता हमसे कहती हैं, 

'मणिपुर बस मैतेई लोगों का है. सब कुकी लोगों को यहां से भगा दो. वो लोग चला जाए बर्मा या मिज़ोराम. उन लोगों को अलग कुकीलैंड देने का जरूरत नहीं है.'


जिस समय सरिता हमसे कुकी लोगों पर अपनी राय साझा कर रही थीं, उस समय उनके पीछे मैतेई लड़कों का हुजूम वापिस सुगनू की ओर जा रहा था. चूंकि सुगनू तो पूरी तरह से जल चुका था तो वापिस वहां जाने की क्या जरूरत थी? सरिता ने जवाब दिया, 

'ये हमारा मैतेई लड़का लोग लड़ाई करने जा रहा है.'

शरणार्थियों को दिलासा देने वाली भीड़ फ्रंटलाइन पर जाने वाले लड़कों का साहस भी बढ़ा रही थी.

मैतेई और कुकी समुदाय के लोग एक दूसरे पर अत्याधुनिक हथियार होने के आरोप लगा रहे हैं. किसके पास ज्यादा फायरपॉवर है? सारी बहस इस पर टिकी है. और दोनों खुद के पास "महज लाइसेंसी" बंदूक होने का दावा करते हैं लेकिन फ्रन्टलाइन पर दोनों के पास कमोबेश ऐसे हथियार दिखते हैं, जिन पर लगे व्यूफाइन्डर युवाओं ने PUBG जैसे गेम में ही देखे हैं. शेष दुनाली-एक नाली बंदूकें, जिनमें 12 बोर कारतूस का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन ये हथियार आए कहां से? सूत्र बताते हैं कि कुकी समुदायों के बीच पहाड़ियों में कुछ उग्रवादियों ने कब्जा कर लिया. इनमें से अधिकांश उग्रवादी गैर-कानूनी तौर पर सटे हुए देश म्यांमार से आए. मणिपुर की सीमावर्ती पहाड़ियों पर पहले गांजे और बाद में अफीम की खेती करने लगे तो उग्रवाद और ड्रग्स का एक घातक कॉकटैल तैयार हो गया. 16वीं और 17वीं  सदी में पनपे बर्मा, थाईलैंड और लाओस में पनपे नशे के सुनहरे त्रिकोण को इससे मदद मिली. जहां पहले गांजे की खेती होती थी और समय के साथ अफीम की खेती होने लगी. फिर नशे की सुरक्षा के लिए हथियार आए तो और स्थिति और घातक हो गई. तो कुकी उग्रवादियों के पास थे अत्याधुनिक हथियार. और आम कुकी समुदाय के पास हैं 12 बोर की बंदूकें, कुछ तमंचे, कुछ हैंडमेड तोपें और गुलेल. गुलेल के बारे में कहा जाता है कि गोली से तो बचा भी जा सकता है, मणिपुरी की गुलेल से बचना नामुमकिन है.

लेकिन मैतेई समुदाय के पास हथियार कैसे आए? 3-4 मई की हिंसा के बाद इंफाल में लूट हुई. मैतेई समुदाय के लोगों मणिपुर पुलिस ट्रेनिंग स्कूल, पुलिस थानों और इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) के कैंप से हथियार लूट लिए. अलग-अलग सूत्र इन हथियारों की संख्या अलग-अलग बताते हैं. लेकिन संख्या 1 हजार राइफल और हजारों राउंड गोलियों के आसपास जाकर रुकती है. जिन बंदूकों का इस्तेमाल पुलिस और आईआरबी को करना था, उसका इस्तेमाल अब मैतेई समुदाय के लोग कर रहे हैं. इसके अलावा मैतेई लोगों के पास तमंचों, तलवारों और गुलेलों के अलावा कुछ अत्याधुनिक हथियार हैं, जो मैतेई उग्रवादी ग्रुप पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए), मैतेई लिपुन और अरंबाई टेंगोल के बताए जाते हैं.

जेएनयू में सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नन्स के अध्यापक डॉक्टर थॉंगखोलल हॉकिप कहते हैं कि मणिपुर में ड्रग्स और हथियारों का बहुत पुराना रिश्ता रहा है, ये कोई आज की बात नहीं है. और ये किसी एक समुदाय की बात भी नहीं है.

कुकी-मैतेई युद्ध में दोनों ही पक्ष दांत-नाखूनों तक हथियारबंद हैं.

फिर जब बीरेन सिंह की सरकार ने 'नशे पर हमले' और 'अवैध लोगों को निकालने' का दावा किया तो स्थिति और घातक हो गई. अफीम के खेत उजाड़े जाने लगे तो कुकी समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी करार देकर पहाड़ियों से बेदखल किया जाने लगा. इधर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए सर्वे कराने का आदेश भी दे दिया तो कुकी समुदाय को एक वाजिब डर सताने लगा. डर ये कि मैतेई जनजाति बनने के बाद उन पहाड़ियों पर आकर बसने लगेंगे, जहां से उन्हें बेदखल किया जा रहा है. इन्हीं बातों को लेक र3 मई को छात्र संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ मणिपुर (ATSUM) ने 3 मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आह्वान किया. ये मार्च मैतेई समुदाय की ST कैटगरी में शामिल होने की मांग के ख़िलाफ़ थी. छात्र संगठन ने कहा कि मैतेई समुदाय की मांग ज़ोर पकड़ रही है और घाटी के विधायक खुले तौर पर इसका समर्थन कर रहे हैं. इसलिए, जनजातीय हितों की रक्षा के लिए कुछ करना होगा. मार्च के समर्थन में हजारों लोगों ने रैली निकाली. अलग-अलग इलाकों में रैली निकाली गई. कई जगह रैली शांतिपूर्ण रही और कई जगह इसने हिंसक रूप ले लिया.

अब सारी लड़ाई इस बात पर आकर टिक गई है कि कैसे इन समुदायों को हथियारों से फ्री किया जाए. ताकि हिंसा रोकी जा सके. इसको लेकर हर पक्ष की निगाह केंद्र सरकार और केंद्रीय फोर्सेस पर जाकर टिक गई है. कुकी और मैतेई समुदाय के लोग ही नहीं, अब तो कई विधायक भी इस बात को कहने लगे हैं कि बीरेन सिंह से यदि स्थिति नहीं सम्हाली गई तो राष्ट्रपति शासन लगाकर शांति लानी चाहिए. निर्दलीय विधायक निशिकांत सपम हमसे कहते हैं, 

'एक विधायक के तौर पर मुझे राष्ट्रपति शासन सही फैसला नहीं लगेगा, लेकिन स्थिति नहीं सम्हाली जाती है तो चारा ही क्या बचता है?'

और घटनाक्रम देखें तो बीरेन सिंह अब राज्य की सत्ता को सम्हालते दिख भी नहीं रहे हैं. चीजें मुख्यत: केंद्र के पास चली गई हैं. अधिकतर फैसले राजभवन से किये जा रहे हैं. फील्ड में सीआरपीएफ, असम राइफल्स और इंडियन आर्मी की टुकड़ियाँ ज्यादा दिखती हैं. कुकी और मैतेई दोनों ही इन आर्म्ड फोर्सेस पर सामने वाली पार्टी के साथ मिला होने का आरोप लगाते हैं. अपने हथियार लुटवाने के बाद राज्य की पुलिस हाशिये पर दिखाई दे रही है.

केंद्र सरकार से तेज उपाय की उम्मीद करना भी नाजायज़ नहीं है, क्योंकि अशांति फैलाने वाले लोगों की नजर उखरुल और सेनापति के इलाकों पर कभी भी जा सकती है; ये इलाका साल 1993 के नगा-कुकी संघर्ष में जल चुका है और गनीमत से अभी के तनाव में बिल्कुल शांत है.

 

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: मणिपुर में जारी हिंसा के बीच गृहमंत्री अमित शाह के दौरे से क्या असर पड़ेगा?