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मेघालय में इतना बवाल क्यों हो रहा है?

बड़ी खबर में आज बात होगी मेघालय में मचे बवाल की.

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मेघालय के पूर्व मुख्य मंत्री कोनराड सांगमा और वहां लगे कर्फ़्यू की तस्वीर
15 अगस्त को जब हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, तब कुछ लोगों के मन में अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात को लेकर चिंता थी. लेकिन बहुत कम लोगों का ध्यान इस तरफ गया कि हमारे 75 वें स्वतंत्रता दिवस के दिन भारत के ही एक सूबे में ब्लैक फ्लैग डे मनाया गया. एक पूर्व उग्रवादी के मरने पर इतना बवाल हुआ कि सूबे के गृहमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा. राज्यपाल के काफिले पर पत्थर चल गए. बड़ी खबर में आज बात होगी मेघालय में मचे बवाल की. लेकिन उससे पहले दिन की सुर्खियों पर एक नज़र.
पहली सुर्खी का ताल्लुक है सुप्रीम कोर्ट में होने वाली नियुक्तियों से. आज देश भर के समाचार संस्थानों ने सूत्रों के हवाले से खबर चलाई कि भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट के लिए 9 जजों के नाम की सिफारिश की है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इनमें से तीन महिला जज हैं -
  • कर्नाटक हाईकोर्ट से जस्टिस बीवी नागरत्ना,
  • तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली,
  • और गुजरात हाईकोर्ट से जस्टिस बेला त्रिवेदी
आगे चलकर जस्टिस बीवी नागरत्ना देश की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश हो सकती हैं. इन तीन जजों के अलावा, बाकी के छह नाम ये हैं -
  • कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका
  • गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ
  •  सिक्किम हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीतेंद्र कुमार माहेश्वरी
  •  केरल हाईकोर्ट से जस्टिस सीटी रवि कुमार
  •  केरल हाईकोर्ट से एमएम सुंदरेश
  •  वरिष्ठ वकील और पूर्व अडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा. ये रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में राम लला विराजमान के वकील थे.
सुप्रीम कोर्ट में 34 जज हो सकते हैं. लेकिन जबसे पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई नवंबर 2019 में रिटायर हुए हैं, तबसे सुप्रीम कोर्ट को कोई नया जज नहीं मिला. लेकिन एक के बाद एक जज रिटायर होते गए. 12 अगस्त को जस्टिस रोहिंटन फाली नरीमन रिटायर हुए. आज जस्टिस नवीन सिन्हा भी रिटायर हो गए. माने अब सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ 24 जज सुनवाई के लिए मौजूद होंगे.
अगर कोलेजियम की ये सिफारिशें मान ली जाती हैं, तो सुप्रीम कोर्ट में 33 जज हो जाएंगे.
ये तो हुई जानकारी. अब आते हैं ज्ञान पर. इंडियन एक्सप्रेस पर छपी अपूर्वा नाथ की रिपोर्ट इन नियुक्तियों में हुई देरी की एक और कहानी सुनाती है. रिपोर्ट इस तरफ इशारा करती है कि मार्च 2019 से कोलेजियम का हिस्सा रहे जस्टिस नरीमन कोलेजियम की इन सिफारिशों से सहमत नहीं थे. उनका मानना था कि ऑल इंडिया सीनियॉरिटी लिस्ट में दो वरिष्ठतम जजों के नाम की सिफारिश जब तक नहीं होती, कोलेजियम नामों पर एकमत नहीं होगा.
कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका भारत की सभी हाईकोर्ट्स में वरिष्ठतम जज हैं. इनके बाद नाम आता है त्रिपुरा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अकिल कुरैशी का.
जस्टिस नरीमन के रिटायर होने के बाद हुई कोलेजियम की जिस सिफारिश की चर्चा है, उसमें जस्टिस ओका का नाम है, लेकिन जस्टिस अकिल कुरैशी का नहीं है. कानूनी मामलों पर रिपोर्टिंग करने वाली समाचार वेबसाइट बार एंड बेंच के मुताबिक कोलेजियम ने 9 नामों की सिफारिश तो की है, लेकिन जजों ने मिनिट्स ऑफ मीटिंग पर दस्तखत नहीं किए हैं. मिनिट्स ऑफ मीटिंग का मतलब होता है, एक बैठक के दौरान हुई बातचीत और फैसलों का लिखित ब्योरा. फिलहाल कोलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जज हैं -
  • मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना
  • जस्टिस यूयू ललित
  • जस्टिस एएम खानविलकर
  • जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
  • जस्टिस एल नागेस्वरा राव
इन सारी खबरों के सामने आने और चर्चा छिड़ने के बाद मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने आज कहा कि कोलेजियम के नामों को अंतिम स्वीकृति मिलने से पहले हुए कयासबाज़ी से उन्हें पीड़ा पहुंची है. इसका उलटा असर हो सकता है. जजों के करियर पर असर पड़ सकता है. जस्टिस रमन्ना आज रिटायर हो रहे जस्टिस नवीन सिन्हा के विदाई समारोह के अवसर पर बोल रहे थे.
वैसे कोलेजियम की सिफारिशों की बात चली है तो आपको कुछ और जानकारियां भी देते चलें. 9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर नाराज़गी जताई थी कि सरकार कोलेजियम की सिफारिशों पर महीनों और सालों तक फैसला नहीं लेती. और इसके चलते गंभीर मामलों की सुनावाई में विलंब होता है. जस्टिस किशन कौल और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने दिल्ली उच्च न्यायालय का उदाहरण देते हुए कहा था कि दिल्ली हाईकोर्ट में स्वीकृत क्षमता के आधे से भी कम जज बचे हैं - माने 60 में से 29. सरकार कोलेजियम की सिफारिशों पर अमल करने में समय का ध्यान नहीं रख रही है. मार्च 2021 में भी इसी तरह की खबरें आई थीं जब सुप्रीम कोर्ट को सरकार से कोलेजियम की 55 सिफारिशों पर फैसला लेने को कहना पड़ा था. अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली उच्च न्यायालों से संबंधित 10 सिफारिशों के संबंध में सवाल किया, तो अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार को इनके लिए 3 महीने का वक्त चाहिए होगा. ये सिफारिशें तब 6 महीने से लंबित थीं. तब अदालत ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा की गई सिफारिशों पर अमल के लिए सरकार को एक टाइमलाइन बना लेनी चाहिए.
अब ये देर होती कैसे है, इसपर नज़र डाल लेते हैं. जब हाईकोर्ट का कोलेजियम अपनी सिफारिश भेजता है, तो केंद्रीय कानून मंत्रालय खुफिया विभाग और दूसरी एजेंसियों के मार्फत एक बैकग्राउंड चेक करते हैं. इसके बाद ये नाम सुप्रीम कोर्ट के पास जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट इन नामों को केंद्र के पास भेजता है, जो इनपर मुहर लगाता है. सुप्रीम कोर्ट के मामले में कोलेजियम की सिफारिशों के बाद भी इसी तरह की प्रक्रिया का पालन किया जाता है.
कभी कभी सरकार सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को लौटा भी देती है. जैसे इसी अगस्त के महीने में सरकार ने जम्मू कश्मीर की वरिष्ठ वकील मोक्षा खजूरिया काज़मी का नाम पुनर्विचार के लिए वापस भेजा लेकिन इसके लिए कोई कारण नहीं दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इनका नाम जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के लिए भेजा था. इस खबर ने सुर्खियां बनाई थी क्योंकि 2 सालों में ये चौथी बार था, जब सरकार ने जम्मू कश्मीर के लिए भेजे किसी नाम को अस्वीकार किया था. काज़मी का नाम अक्टूबर 2019 में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले कोलेजियम ने भेजा था. काज़मी के बाद भेजे तीन दूसरे नामों की नियुक्ति हाईकोर्ट में हो चुकी है. आज कांग्रेस नेता और तिरुवनंतपुरम सांसद शशि थरूर को एक बड़ी राहत मिल गई. दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मृत्यु के मामले में बरी कर दिया है. थरूर पर आरोप था कि उन्होंने सुनंदा को आत्महत्या के लिए उकसाया. 17 जनवरी, 2014 को सुनंदा दिल्ली के होटल लीला पैलेस के स्वीट नंबर 345 में मृत पाई गई थीं. पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर्स का कहना था कि सुनंदा की मौत अचानक, किसी अप्राकृतिक कारण से हुई थी. शुरुआती जांच में भी SDM ने कहा कि सुनंदा की मौत का कारण हत्या या कोई हादसा हो सकता है, इसीलिए पुलिस को गहराई से जांच करनी चाहिए.
इस हाई प्रोफाइल केस में ढेर सारे ट्विस्ट आते रहे. कभी पोस्ट मॉर्टम करने वाले एम्स के डॉक्टर ने कहा कि उनपर पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट बदलने का दबाव बनाया जा रहा है. तो कभी सुनंदा के शरीर पर अलग अलग चोट के निशानों की चर्चा चल पड़ती. कभी सुब्रह्मण्यम स्वामी कह देते कि वो मामले में जनहित याचिका लगाएंगे तो कभी दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर बीएस बस्सी कह देते कि सुनंदा ने आत्महत्या नहीं की, उनकी हत्या हुई है. फिर कभी पाकिस्तानी पत्रकार मेहेर तरार का भारत आना होता और वो कहतीं कि इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.
आखिरकार मई 2018 में दिल्ली पुलिस ने मामले में चार्जशीट दाखिल की और शशि थरूर को नामज़द किया. थरूर को अदालत में समन भी किया गया. थरूर ने दलील दी कि सुनंदा की मृत्यु का कारण आज तक न तो हत्या के रूप में स्थापित हो पाया, और न ही आत्महत्या के रूप में. किसी गवाह ने दहेज या प्रताड़ना की बात भी नहीं की.
आखिरकार थरूर पर आरोप तय नहीं हो पाए और आज उन्हें इस मामले में बरी कर दिया गया.
आखिरी सुर्खी का ताल्लुक भी सुप्रीम कोर्ट से ही है. सुप्रीम कोर्ट ने आज नेशनल डिफेंस अकैडमी और नेवल अकैडमी के दरवाज़े लड़कियों के लिए भी खोल दिए. अंतरिम आदेश में कोर्ट ने सेना को फटकार लगाते हुए कहा कि जब पिछले एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन देने का आदेश दे चुका है, तब भी सेना ने अपना माइंडसेट क्यों नहीं बदला. एनडीए और नेवल अकैडमी की परीक्षा के नतीजे अदालत के अंतिम आदेश के बाद जारी किए जाएंगे. अब ये तय है कि लड़कियां भी सेना के उच्च पदों तक पहुंच पाएंगी, जिनकी पहली सीढ़ी एनडीए होता है.
अब बात बड़ी ख़बर की. पिछले चार पांच दिन से अफगानिस्तान और वहां तालिबान के कब्जे पर खूब बात हो रही है. इसलिए हमारा ज्यादा ध्यान नहीं गया, कि देश के ही भीतर ही एक राज्य में क्या हो रहा है. 15 अगस्त को जब हम आज़ादी के 75 साल मना रहे थे, कश्मीर में राष्ट्रगान गाते बच्चों के वीडियो देखकर खुश हो रहे थे. तब मेघालय (Meghalaya) में कुछ और ही चल रहा था. वहां 15 अगस्त को ब्लैक फ्लैग डे मनाया गया. काले झंडे लहराए गए. भारत विरोधी नारेबाज़ी हुई. पुलिस की गाड़ियां लूटी जा रही थी. हथियार लूटे जा रहे थे. सरकारी वाहनों को आग लगाई जा रही थी. पथराव हो रहा था. मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा के घर पर बम फेंके जा रहे थे. राज्यपाल सत्यपाल मलिक के काफिले पर हमला हो रहा था. राजधानी शिलांग किसी युद्ध की ज़मीन बन गई थी.
Meghalay Protest
मेघालय ने चल रहे विरोध की तस्वीर.

और ये सब क्यों हो रहा था. उस आदमी की मौत के विरोध में जो जिंदगीभर मिज़ोरम को भारत से अलग करने की कोशिश में लगा रहा. जिसे अखवारों में उग्रवादी लिखा जाता है. मेघालय के पूर्व उग्रवादी चेरिस्टरफील्ड थांगख्यू की पुलिसिया एनकाउंटर में मौत पर इतना बवाल. ये बिल्कुल वैसा ही मामला है जैसा कश्मीर में हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद हुआ था. बुरहान की मौत के बाद भी खूब प्रदर्शन हुए थे, पत्थरबाज़ी हुई थी. . लेकिन हमने कश्मीर जैसी घटनाएं या उस तरह के सेंटीमेंट्स मेघालय में नहीं सुने. चरमपंथी घटनाओं की खबरें वहां से नहीं आती हैं. तो फिर ऐसा क्या हुआ कि मेघालय में 15 अगस्त को ब्लैक फ्लैग डे मनाया गया.
चेरिस्टरफील्ड की मौत और उसके बाद जो हुआ, उसे समझने के लिए हमें थोड़ा इतिहास में झांकना पड़ेगा. 1970 का दशक. तब भारत के पूर्वी हिस्से में कई बड़े घटनाक्रम हो रहे थे. 1971 में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश वजूद में आया. इसके चंद महीने बाद ही भारत की सरकार ने बांग्लादेश से लगते असम के दो ज़िलों को काटकर अलग राज्य बना दिया- मेघालय. 1972 तक असम की राजधानी रहा शिलॉन्ग अब मेघालय की राजधानी बन गया था. मेघालय में तीन पहाड़ियों का इलाका आता है- खासी, जैनथिया और गारो. इन हिल्स के नाम पर ही यहां खासी, जैनथिया और गारो जनजाति हैं, जो मेघालय की आबादी का लगभग 80 फीसदी हिस्सा हैं. अब इस 80 फीसदी आबादी को दिक्कत थी बाकी के 20 फीसदी से. 20 फीसदी में आते हैं - बंगाली, नेपाली, मारवाड़ी जैसे कुछ छोटे समुदाय. बांग्लादेश के लिबरेशन वॉर के वक्त और उसके बाद भी बंगाली मूल के लोग मेघालय में आ रहे थे. जनजातियों में इसको लेकर रोष था. 1978 में खासी स्टूडेंट्स यूनियन बना जिसने बांग्लादेशियों की घुसपैठ का मुद्दा उठाना शुरू किया था. जनजातीय लोग बाहरियों को दखार कहते थे. दखार के विरोध में अब हिंसा शुरू होने लगी थी. 1979 में बंगाली मूल के लोगों को निशाना बनाया गया.
80 के दशक में बाहरी वर्सेज स्थानीय वाले झगड़े ने बड़ा रूप अख्तियार किया. 80 के दशक में देश के कई हिस्सों में उग्रवाद पनप रहा था. पंजाब में खालिस्तानियों का मुवमेंट चल रहा था. कश्मीर में इस्लामिक उग्रवादी हथियार उठा रहे थे. मेघालय में भी चरमपंथ पनपा. एक सगंठन बना. इसका नाम था - हाइनीवट्रेप अचिक लिबरेशन काउंसिल. शॉर्ट में HALC. इस नाम में हाइनीवट्रेप शब्द खासी और जयंतिया जनजाति के लिए है, अचिक का इस्तेमाल गारो समुदाय के लिए है.
हालांकि 1992 के आसपास इस संगठन में दरार पड़ गई . HALC से टूटकर हाइनीवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल यानी HNLC और अचीक लिबरेशन आर्मी नाम के दो संगठन बन गए. HNLC के संस्थापकों में से एक था चेरिस्टरफील्ड थांगख्यू. वही आदमी जिसकी मौत पर अब मेघालय सुलग रहा है. इस संगठन का मकसद था भारत से आज़ादी. खासी और जयंतिया जनजाति के लिए अलग देश बनाना. दोनों समुदायों से संगठन में आज़ादी दिलाने के नाम पर लड़कों की भर्ती की गई. ट्रेनिंग होती थी बांग्लादेश में. इस संगठन ने जनजातीय अस्मिता का प्रतीक बनकर खूब लोकप्रियता हासिल की. इस संगठन के कहने पर मेघालय में हड़ताल होती थी, भारत विरोध घटनाएं होती थी. हिंसा करवाई जाती थी. कश्मीर में हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों की तरह ही मेघालय में HNLC काम कर रहा था. इसके समानांतर गारो समुदाय के भी कई हथियारबंद गुट चल रहे थे- जैसे लबरेशन ऑफ अचीक एलिट फोर्स. ये 2005 में बना था. 2009 में गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी नाम का संगठन बना था. हालांकि ये ज्यादा लंबे नहीं चले. इनके नेताओं की गिरफ्तारी होती रही और ये बंद होते गए. 2000 के बाद HNLC की भी कमर तोड़ दी गई थी. जूलियस डोरफांग जैसे शीर्ष के नेता सरेंडर कर चुके थे. संगठन की उग्रवादी गतिविधियां लगभग बंद ही हो गई थी. चरमपंथ मेघालय से खत्म ही माना जा रहा था. मेघालय की छवि एक शांत प्रदेश की बन गई थी. अक्टूबर 2018 में आकर HNLC के महासचिव चेरिस्टरफील्ड थांगख्यू ने भी इस्तीफा दे दिया. इससे पहले तक ये आदमी अंडरग्राउंड था. सरकार कह रही थी कि इसने सरेंडर किया था. जबकि उसका कहना था कि स्वास्थ्य कारणों से रिटायरमेंट ले लिया है. उग्रवादी संगठन छोड़ने के बाद चेरिस्टरफील्ड राजधानी शिलांग में रहने लगा था.
Meghalay Protest 1
मेघालय ने चल रहे विरोध की तस्वीर.

अब दिसंबर 2020 में आते हैं. यहां से मेघालय में बम धमाकों का नया दौर शुरू होता है. ईस्ट जयंतिया हिल्स ज़िले में IED धमाका होता है. इसमें दो लोग घायल हुए थे. जिम्मेदारी ली HNLC संगठन ने. पुलिस इसकी जांच में जुटी थी. कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई. फिर इस महीने एक और धमाका हुआ. शिलॉन्ग के लाइटूमखराह बाज़ार में. जांच में पुलिस को धमाकों के पीछे चेरिस्टरफील्ड की भूमिका मालूम पड़ी. 13 अगस्त को पुलिस दबिश देने चेरिस्टरफील्ड के घर गई. 14 अगस्त शनिवार को खबर आती है कि पुलिस एनकाउंटर में चेरिस्टरफील्ड मारा गया.
खबर बाहर आते ही खासी जनजाति के लोगों ने बवाल शुरू कर दिया. सैकड़ों लोग सकड़ों पर निकल पड़े. पथराव, आगजनी, तोड़फोड़ ये सब चल रहा था. चार ज़िलों में दो दिन तक कर्फ्यू लगाना पड़ा. प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने जानबूझकर चेरिस्टरफील्ड को मारा है. पुलिस की सफाई भी आई. पुलिस ने कहा कि बम धमाकों में जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, और जो सबूत मिले, उनके मुताबिक चेरिस्टरफ़ील्ड धमाकों की साजिश में शामिल था. उसकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस उसके घर गई तो उसने चाकू से हमला किया. आत्मरक्षा के लिए पुलिस ने गोली चलाई तो चेरिस्टरफ़ील्ड जख्मी हो गया और अस्पताल के रास्ते में उसकी मौत हो गई. पुलिस ने ये भी कहा है कि उसके घर से पिस्तौल जैसी आपत्तिजनक सामग्री भी बरामद हुई है.
पुलिस की सफाई के बाद भी प्रदर्शन नहीं रुके. सरकार को झुकना पड़ा. राज्य के गृह मंत्री लखमेन रिंबुइ ने 15 अगस्त को अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. हालांकि मुख्यमंत्री कार्यालय ने अभी तक उनके इस्तीफ़े को स्वीकार करने की पुष्टि नहीं की है. सरकार ने इस घटना की मजिस्ट्रेट से जांच कराने के आदेश भी दे दिए हैं. इन सब के बीच घटना के 5 दिन बाद ये मामला थोड़ा ठंडा पड़ा है. कर्फ्यू में भी डील दी गई है.
अब सवाल ये है कि एक पूर्व उग्रवादी की मौत पर इतना गुस्सा क्यों भड़का? क्या ये मेघालय में फिर से उग्रवाद पनपने के संकेत हैं. टिप्पणीकारों की राय है कि इसमें उग्रवाद के समर्थन का एंगल नहीं है. हालांकि चेरिस्टरफील्ड खासी जनजाति से आता है, और इस समुदाय के लोग इसे अपना हीरो मानते थे. इसलिए मौत पर समाज के लोग उबल पड़े. स्थानीय जनजाति और बाहरी के झगड़े को भी हाल में नया ईंधन मिला. सीएए कानून आने के बाद मेघालय में प्रदर्शन हुए थे. इनर लाइन परमिट की मांग को लेकर जनजातीय संगठनों ने प्रदर्शन किए थे. इनर लाइन परमिट यानी किसी बाहरी के आने पर परमिट की ज़रूरत हो. इन भावनाओं को भुनाने के लिए HNLC भी एक्टिव हुआ. HNLC संगठन सरकार को अपनी अहमियत जताना चाहता था. सरकार लंबे वक्त से कोशिश में थी कि HNLC के कैडर सरेंडर करें. HNLC के लोग सरकार से बात तो करना चाहते थे, लेकिन अपनी शर्तों पर. जबकि सरकार चाहती थी कि सारे लीडर्स हथियारों के साथ सरेंडर करें और उसके बाद ही सरकार बातचीत करेगी. सरकार को बैकफुट पर लाने के लिए ही HNLC ने धमाके करवाए, ऐसा माना जा रहा है.
महीने भर के भीतर ये दूसरी बार है कि उत्तर पूर्व के किसी हिस्से में इतनी बड़ी तादाद में हिंसा हुई है. कुछ दिन पहले असम और मिज़ोरम में हिंसक झड़प की खबर आई थी. और इन घटनाओं को लेकर कांग्रेस पूछ रही है कि गृह मंत्री क्या कर रहे हैं.