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मिस्र में मिली 4300 साल पुरानी ममी! जानिए हजारों साल तक कैसे सलामत रही?

मौत के बाद शरीर बचाने की अनोखी तरकीब.

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मिस्र में 2000 साल से ज़्यादा चली ममी बनाने के परंपरा (फोटो- रॉयटर्स)

मिस्र में सबसे पुरानी ममी को खोजने का दावा किया गया है. पुरातत्व विशेषज्ञों के मुताबिक यह ममी 4300 साल पुरानी है. यह ममी एक पुरुष की है और इसका नाम हेकाशेप्स बताया जा रहा है. अब पुरातत्वविद और एक्सपर्ट इसकी रिसर्च में जुट गए हैं. मिस्र में सालों पुरानी ममी का मिलना नया नहीं है. क्या होती है ममी और यह सालों तक सुरक्षित कैसे रहती है. दी लल्लनटॉप के पुराने साथी आयुष ने अगस्त 2020 में इसे विस्तार से समझाया था.

राजस्थान का सबसे पुराना संग्रहालय जयपुर में है. 133 साल पहले खुला अल्बर्ट हॉल म्यूज़ियम. 14 अगस्त, 2020 को बहुत तेज़ बारिश हुई. म्यूज़ियम के बेसमेंट में पानी भर गया. यहां रखी कई एंटीक चीज़ें, नक़्शे और दस्तावेज़ ख़राब हो गए. लेकिन म्यूज़ियम की सबसे क़ीमती चीज़ वहां से सुरक्षित निकाल ली गई- 2400 साल पुरानी एक ममी.

आपने The Mummy Returns देखी होगी. या दूसरी किसी फिल्म में ममी के दर्शन मिले होंगे. सफेद पट्टियों में लिपटी एक डेडबॉडी. लेकिन ममी सिर्फ यही नहीं होती.

कोई भी ऐसा मनुष्य या जानवर, जिसका शरीर मरने के बाद लंबे वक्त तक बचा रहता है, उसको ममी कहते हैं.

जयपुर के म्यूज़ियम में रखी ये ममी 130 साल पहले मिस्र के काहिरा शहर से भारत लाई गई थी. 130 साल में पहली बार इसे बक्से से बाहर निकाला गया, ताकि सदियों से संरक्षित ये मृत शरीर बरबाद न हो. लेकिन ये ममी 2400 साल तक कैसे बची रही?

जयपुर के म्यूज़ियम में रखी ममी वहां के राजा को गिफ्ट में मिली थी. ( सोर्स - विकीमीडिया)
मौत के बाद शरीर का क्या होता है?

मौत के बाद शरीर गलने और सड़ने लगता है. वैज्ञानिक इसे डीकंपोज़िशन या विघटन कहते हैं. जब हम ज़िंदा होते हैं, तो हमारे अंदर डाइजेस्टिव एंज़ाइम्स होते हैं. ये एंज़ाइम्स खाने को तोड़ते हैं, जिससे पाचन में मदद मिलती है. मौत के बाद ये डाइजेस्टिव एंज़ाइम्स फुर्सत हो जाते हैं, तो ये हमारे शरीर के अंदर तोड़-फोड़ मचाने लगते हैं.

इसके बाद बैक्टीरिया अपना खेल शुरू करते हैं. हर ज़िंदा व्यक्ति के पेट में बहुत सारे बैक्टीरिया होते हैं. हमारा इम्यून सिस्टम इन्हें क़ायदे में रखता है. लेकिन मौत के बाद इन्हें कोई रोकने वाला नहीं. ये खूब लूट-मार मचाते हैं. खूब फैलते हैं. कुछ दिनों में ये पेट से पूरे शरीर में फैल जाते हैं और हमें बढ़िया से साफ़ कर देते हैं. अगर मौत के बाद किसी शरीर को ऐसे ही छोड़ दिया जाए, तो कुछ महीनों बाद सिर्फ़ हड्डियां ही बचेंगी. और कुछ दशकों बाद कुछ भी नहीं बचेगा.

मरने के कुछ महीनों बाद एक सुअर का हाल. (विकीमीडिया)

डीकंपोज़िशन में लगने वाला वक़्त बहुत सारी चीज़ों पर डिपेंड करता है. तापमान, नमी, हवा, मिट्टी, कीड़े-मकोड़ों की मौजूदगी आदि. एक बेसिक सा रूल है. बैक्टीरिया को फलने-फूलने के लिए गर्मी और पानी चाहिए.

# अगर आसपास गर्मी है और हवा में नमी बहुत है, तो ये डीकंपोज़िशन जल्दी ख़त्म होगा. 
# अगर आसपास माहौल ठंडा है और हवा सूखी है, तो डीकंपोज़िशन प्रोसेस धीमा हो जाएगा. 
# अगर पर्याप्त ऑक्सीजन न मिले, तब भी बहुत कम बैक्टीरिया ज़िंदा रह पाते हैं.

हमारा खाना बैक्टीरिया ही ख़राब करते हैं. इसलिए फ्रिज में रखने पर खाना बचा रह जाता है. लाश को भी बड़े वाले फ्रीज़र में रखकर कुछ समय तक डीकंपोज़िशन टालने की कोशिश की जाती है. लेकिन हज़ारों साल पहले फ्रिज होते नहीं थे. फिर ये ममी कैसे बची हुई हैं? इनके शरीर सड़-गल क्यों नहीं गए?

मिस्र की ममी का सीक्रेट

मिस्र के इतिहास में बहुत पहले से ममी से सबूत मिलते हैं. लेकिन शुरुआती ममी एक्सिडेंटल थीं. यानी ममी बनाने का कोई इरादा नहीं था. ये तुक्के में बन गईं. मिस्र में न के बराबर बारिश होती है. वो इलाका सूखा और अधिक तापमान वाला है. जो शरीर वहां दफन किए जाते थे, रेगिस्तान की सूखी मिट्टी और गर्म हवा उनसे काफी नमी सोख लेती थीं और वो शरीर गलने से बच जाते थे.

ममी के ऊपर लिपटा लेनिन प्राचीन मिस्त्र में पवित्र भी माना जाता था.

ये ममी देखकर प्राचीन मिस्र के लोगों को मृत शरीर बचाने का आइडिया आया. करीब 2600 ईसा पूर्व के आसपास, मिस्र के लोगों ने जान-बूझकर ममी बनाना चालू कर दिया. समय के हिसाब से ममी बनाने की विधि में बदलाव आए. हज़ार साल के बाद वो बहुत बढ़िया ममी बनाने लगे और ये प्रथा वहां पॉपुलर हो गई.

मृत शरीर को ममी में बदलने का काम मिस्र में खास पुजारी करते थे. ये पुजारी थोड़ा बहुत सर्जरी और मानव शरीर का ज्ञान भी रखते थे. कई चरणों में बंटे इस प्रोसेस में करीब 70 दिन का वक्त लगता था.

सबसे पहले डेडबॉडी को बढ़िया से धो लिया जाता था. फिर पुजारी उसके आंतरिक अंग निकालना शुरू करते थे. मौत के बाद सबसे पहले दिमाग मरता है, इसलिए शुरुआत वहीं से होती थी. एक हुक टाइप का उपकरण नाक से डाला जाता, और धीरे-धीरे दिमाग निकाल लिया जाता. ये काम बहुत संभल कर करना होता था, क्योंकि इस दौरान चेहरे को नुकसान हो सकता था.

उसके बाद पेट और छाती के भीतर मौजूद अंग निकाले जाते थे. सबसे ज़्यादा बैक्टीरिया और एंज़ाइम इसी हिस्से में होते हैं. पेट में बड़ा-सा चीरा लगाने के बाद अंदर के सारे अंग निकाल लिए जाते थे. बस दिल छोड़ देते थे. प्राचीन मिस्र के लोग दिल को आदमी का अहम हिस्सा मानते थे. उन्हें लगता था कि ये मानव का केंद्र है. दिल के अलावा दूसरे अंग निकालकर फेंकते नहीं थे, उन्हें अलग से सुरक्षित रखा जाता था. आमाशय, लिवर, फेफड़े और आंतों को अलग-अलग बरनी (कैनोपिक जार) में रखा जाता था. इन अंगों ममी के साथ दफन किया जाता था.

कोलकाता के म्यूज़ियम में रखी ममी. (विकीमीडिया)

ये अंग निकालने के बाद अगला काम होता था शरीर से पूरा मॉइस्चर यानी नमी सोखना. पूरे शरीर को नैट्रॉन में दबा दिया जाता था. नैट्रॉन एक स्पेशल टाइप का सॉल्ट होता है, जिसमें नमी सोखने वाले गुण होते हैं. शरीर के अंदर से भी पूरी नमी सोख ली जाए, इसलिए अंदर अतिरिक्त नैट्रॉन के पैकेट डाले जाते हैं. कई दिनों बाद जब शरीर एकदम सूख जाता था, तब शरीर से सारा नैट्रॉन झाड़ लिया जाता था. शरीर को अच्छे से साफ कर लिया जाता था. चूंकि इसके बाद शरीर सूख कर पत्ता हो जाता था, इसलिए शरीर के सिकुड़े हुए हिस्सों को फुलाने के लिए लिनेन वगैरह भर देते थे. लिनेन एक टाइप का कपड़ा होता है, जो मिस्र में बहुत इस्तेमाल होता था.

इसके बाद खुशबू और एक्स्ट्रा सेफ्टी के लिए ऑइल और रेज़िन का एक मिक्सचर लगाया जाता था. फिर उसके ऊपर लिनेन लपेटा जाता है. लिनेन को चिपकाए रखने के लिए भी रेज़िन का इस्तेमाल करते थे. रेज़िन एक चिपचिपी गोंद टाइप की चीज़ होती है, जो आमतौर पर पेड़ से निकलती है.

रेज़िन से लेनिन की कई पट्टियां चिपकाने के बाद उसे एक मोटे लिनेन के कपड़े से ढंक दिया जाता था. फिर इस कपड़े के ऊपर दोबारा पट्टियां लगाई जाती थीं और ममी को एक ताबूत के अंदर सुरक्षित रख दिया जाता था. कई बार ममी के साथ कुत्ता, बिल्ली, चिड़िया और उनके कुछ ज़रूरी सामान भी पाए जाते हैं.

प्राचीन मिस्र के लोग मानते थे कि मौत बाद भी एक यात्रा जारी रहती है, इसी यात्रा के लिए शरीर को संभालकर रखा जाता था. और उनकी खास चीज़ें उनके साथ होती थीं, जैसे कि उनके पालतू जानवर, उनका ज़रूरी सामान और उनका दिल.

ममी और किसी तरीके से बन सकती है?

ममी मतलब सिर्फ वो डरावनी वाली सफेद पट्टियों में लिपटी बॉडी नहीं होती. ममी दो टाइप की होती हैं.

1. नैचुरल ममी. जिनके शरीर संयोग से बच गए.
मान लीजिए, कोई किसी ग्लेशियर में फंस गया. शरीर दब गया बर्फ़ में, जहां का तापमान निगेटिव में है. या कोई ऐसे बहुत गहरे किसी गड्ढे में गिर गया, जहां ऑक्सीजन ही नहीं है. या किसी का शरीर ऐसे रेगिस्तान की मिट्टी में दब गया, जहां पानी की बूंद नहीं. ऐसे केस में इनके शरीर वहीं पड़े रहेंगे. और बरसों बाद ढूंढे जाने पर ममी कहलाएंगे. ये हैं नेचुरल ममी.

2. आर्टिफिशियल ममी. जिन्हें जुगाड़ लगाकर बचाया गया.
मौत के बाद शरीर को संरक्षित करने की प्रथा कई सभ्यताओं में देखी गई है. इसे ममीफिकेशन कहते हैं. यानी मृत शरीर को ममी बना लेना. प्राचीन मिस्र, कई दक्षिण अमेरिकी सभ्यताएं, चीन, कैनेरी आइलैंड्स, गॉन्चेस ममी बनाने के लिए जाने जाते हैं. प्राचीन मिस्र और दक्षिण अमेरिका की इन्का सभ्यता इस काम के लिए फेमस हैं.

मिस्र यानी इजिप्ट तो इस ममीफिकेशन के लिए बेहद फेमस है. इतना फेमस कि ममी बोलते ही सबको पिरामिड भी याद आ जाता है. प्राचीन मिस्र के लोग बहुत कायदे से ममी बनाते थे. इसलिए आज हम ममी देखकर उनकी शक्लो-सूरत का अंदाज़ा लगा पाते हैं.

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