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अग्निवीर की नौकरी पर बवाल मच रहा, यहां 50 हजार जवानों ने नौकरी छोड़ दी

654 ने किया सुसाइड, पैरामिल्ट्री के जवानों का हाल जानकर दया आ जाएगी

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श्रीनगर में तिरंगा फहराते CRPF के जवान (फोटो-PTI)

इंडियन आर्मी में अग्निवीर भर्ती के लिए इसी महीने आवेदन किए गए हैं. जब इस योजना की घोषणा हुई तो देश में कई जगह बवाल मचा था. युवाओं में आर्मी की नौकरी के लिए जबरदस्त दीवानगी है, इसी का नतीजा था वो बवाल. लेकिन, देश की रक्षा करने वाले कुछ जवान बेहद परेशान हैं, इतना कि नौकरी छोड़ रहे हैं, सुसाइड तक कर रहे हैं.

CRPF में असिस्टेंट कमांडेंट पद पर रह चुके सर्वेश त्रिपाठी ने पिछले साल जुलाई में नौकरी छोड़ दी. अब दोबारा इस क्षेत्र में नौकरी नहीं करना चाहते. सर्वेश बताते हैं कि सशस्त्र बलों के जवान कठिन परिस्थितियों में 16-16 घंटे काम करते हैं और जॉब सिक्योरिटी बिल्कुल नहीं है. सरकार ने 100 दिनों की छुट्टी देने का वादा किया था, लेकिन आज तक पूरा नहीं हुआ है. सर्वेश ने अपना ये अनुभव हमसे तब साझा किया, जब ये रिपोर्ट सामने आई है कि पिछले पांच सालों में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) के 50 हजार से ज्यादा जवानों ने नौकरी छोड़ दी. इन पांच सालों में सबसे ज्यादा 2022 में 11,884 जवानों ने नौकरी छोड़ दी.

जवानों पर ज्यादा काम का दबाव"

नौकरी छोड़ने वाले जवानों की सबसे ज्यादा संख्या सीमा सुरक्षा बल (BSF) में है. अंग्रेजी अखबार द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, जवानों के नौकरी छोड़ने की जानकारी गृह मंत्रालय ने एक संसदीय समिति को दी है. गृह मंत्रालय ने ये भी बताया कि पिछले 5 सालों (साल 2018 और 2022 के बीच) में 654 जवानों ने आत्महत्या की है. समिति ने कहा है कि इस तरह जवानों के नौकरी छोड़ने से CAPF में काम की स्थिति प्रभावित हो सकती है. समिति ने सिफारिश की है कि जवानों को फोर्स में रोकने के लिए काम की स्थिति में तुरंत सुधार करने की जरूरत है.

समिति ने सरकार से ये भी सिफारिश की है कि जवानों की तैनाती में रोटेशन पॉलिसी को लागू किया जा सकता है ताकि उन्हें एक ही कठिन और दुर्गम इलाके में लंबे समय तक रहना ना पड़े. कमिटी ने कहा कि इससे पसंदीदा जगहों पर ट्रांसफर मांगने की प्रवृत्ति भी कम होगी और कुछ हद तक नौकरी छोड़ने की समस्या भी दूर हो सकती है.

सर्वेश साल 2014 में CRPF से जुड़े थे. उनकी पहली पोस्टिंग गढ़चिरौली में थी. इसके बाद उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में हो गई. आठ साल नौकरी करने के बाद उन्होंने CRPF को छोड़ दिया. सर्वेश बताते हैं कि जवानों को परिवार के साथ रहने नहीं दिया जाता है. ऐसे जवानों की संख्या बहुत कम होगी जो परिवार के साथ रहते हों. सर्वेश के मुताबिक, 

"इन बलों में वर्कफोर्स की काफी कमी है. इसके कारण जवानों पर ज्यादा काम का दबाव है. इसके अलावा उन्हें टाइम पर छुट्टी तक नहीं मिलती. हमें छोटी-छोटी सुविधाओं को पाने के लिए कोर्ट में जाना पड़ता है. फ़ोर्स में प्रोमोशन बहुत धीमा है. एक अधिकारी को प्रोमोशन पाने के लिए 13-14 साल का इंतजार करना पड़ता है."

केंद्रीय सशस्त्र बल के जवान देश के भीतर और सीमा पर सुरक्षा में लगे हुए हैं. इसके तहत CRPF, CISF, ITBP, SSB, NSG और असम राइफल्स के जवान आते हैं. इन सभी बलों में करीब 10 लाख जवान हैं. हाल में गृह मंत्रालय ने संसद में बताया था कि सशस्त्र बलों में 83 हजार से ज्यादा पद खाली हैं. सरकार ने वादा किया कि इस साल ही खाली पदों को भरा जाएगा.

जवानों को दी जा रही खराब सुविधाएं- संसदीय कमिटी

दिसंबर 2018 में, गृह मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने भी CRPF के जवानों के लंबे काम के घंटे को लेकर चिंता जाहिर की थी. तब इस समिति के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम थे. समिति ने कहा था कि राज्य सरकारों द्वारा जवानों को दी जा रही सुविधाएं 'काफी खराब' हैं, जिससे जवानों के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है. राज्यसभा में सौंपी गई रिपोर्ट में कमिटी ने चौंकाने वाली बात कही थी. कमिटी ने कहा था,

"CRPF जवानों के एक दिन में 12-14 घंटों की लंबी ड्यूटी से कमिटी निराश है. और 80 फीसदी से ज्यादा CRPF जवान अपने वीक ऑफ और छुट्टियां नहीं ले पाते हैं. कमिटी जानती है कि सशस्त्र बलों का काम ऐसा है कि उन्हें 24 घंटे सातों दिन तैयार रहना होता है. हालांकि 12-14 घंटों के काम और कोई छुट्टी नहीं होने के कारण उनका मानसिक और शारीरिक रूप से नुकसान होता है. और इससे उनका काम भी प्रभावित होता है."

इसके ठीक एक साल बाद, यानी दिसंबर 2019 में संसदीय समिति ने राज्यसभा में फिर बताया था कि CRPF के जवान लगातार कॉन्फ्लिक्ट क्षेत्रों में तैनाती के कारण काफी ज्यादा तनाव का सामना करते हैं. इन क्षेत्रों में वे ज्यादातर समय दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर होते हैं.

श्रीनगर में सर्च ऑपरेशन के दौरान CRPF के जवान (फाइल फोटो- PTI)

सशस्त्र बलों के भीतर आत्महत्या के आंकड़े भी पिछले कुछ सालों में बढ़े हैं. पिछले साल मार्च में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि बीते 10 सालों में (2012 से 2021 के बीच) 1205 जवानों ने आत्महत्या की. जवानों की आत्महत्या के पीछे सरकार घरेलू समस्याओं, बीमारी और वित्तीय समस्याओं को वजह मानती है. हालांकि गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति इन आत्महत्याओं के पीछे मानसिक और भावनात्मक तनाव को भी वजह मानती है.

इसे समझने के लिए हमने पिछले साल भी CRPF में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर तैनात एक जवान से बात की थी. तब जवान ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया था कि ऑपरेशन के इलाकों में ज्यादातर समय छुट्टी या काम के घंटों का कोई कॉन्सेप्ट नहीं होता है. उन्होंने कहा था, 

"कश्मीर में CRPF के जवानों को लॉ एंड ऑर्डर के लिए रोज नाका लगाना पड़ता है. इसके साथ-साथ कैंप की भी सुरक्षा उन्हीं को करनी पड़ती हैं. फोर्स में ये चीजें रहेंगी ही. लेकिन समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब आप फोर्स की क्षमता पूरी करेंगे."

तनाव घटाने के लिए सरकार ने क्या किया?

सरकार ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि जवानों के मानसिक तनाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि CAPF में आत्महत्याओं को रोकने के लिए अक्टूबर, 2021 में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. सरकार ने कहा कि ये टास्क फोर्स रिस्क फैक्टर्स को पहचानने की कोशिश करेंगे और आत्महत्या को रोकने के लिए जरूरी सुझाव देंगे. इस टास्क फोर्स में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (NIMHANS) जैसे संगठनों के एक्सपर्ट्स भी शामिल हैं. केंद्र सरकार ने जवानों के बीच आत्महत्या को रोकने के लिए जिन कदमों का जिक्र किया है, उनमें CAPF के लिए 'आर्ट ऑफ लिविंग' कोर्से कराए जाने की बात भी कही गई थी. सरकार का कहना है कि इससे जवानों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

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