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‘चूहे’ की गिरफ्तारी पर मैक्सिको में इतना बड़ा तांडव क्यों हो गया?

सिनालोआ और सिनालोआ कार्टेल की पूरी कहानी क्या है?

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सिनालोआ और सिनालोआ कार्टेल की पूरी कहानी क्या है?

05 जनवरी 2023 को पुलिस ने एक ‘चूहे’ को अरेस्ट किया और एक पूरा शहर जलने लगा.

ये कहानी मेक्सिको के सिनालोआ राज्य की है. पिछले 36 घंटों से सिनालोआ में भयानक गोलीबारी चल रही है. इतनी गोलियां चली हैं कि हवाओं का रूप-रंग बिगड़ चुका है. सड़कों पर कार और ट्रक जल रहे हैं. दुकानें बंद हैं. लोग घरों में दुबके तांडव रुकने का इंतज़ार कर रहे हैं. एयरपोर्ट्स पर ताला लगा दिया गया है. सरकार को सेना उतारनी पड़ी है. आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि, एक चूहे की गिरफ़्तारी ने इतना बवाल कैसे खड़ा कर दिया?

दरअसल, वो शक्ल-सूरत से कोई चूहा नहीं है. वो एक इंसान है. बुरा इंसान. उसका नाम ओविदियो गुज़मान लोपेज़ है. शातिराना करतूतों की वजह से उसे ‘अल रैटोन’ या ‘द माउस’ भी कहा जाता है. वो ड्रग किंग अल चापो का बेटा है. अल चापो फिलहाल अमेरिका की जेल में बंद है. उसकी बाकी ज़िंदगी सलाखों के अंदर ही गुजरेगी. 

आज हमारा फ़ोकस उसके बेटे अल रैटोन पर रहेगा. 05 जनवरी को मेक्सिको पुलिस और नेशनल गार्ड ने मिलकर अल रैटोन को गिरफ़्तार कर लिया. गिरफ़्तारी के तुरंत बाद सिनालोआ कार्टेल के हमलावरों ने पूरे शहर में बैरिकेडिंग कर दी. उन्होंने सड़कों पर आग लगा दी. ट्रक्स लगाकर रोड ब्लॉक कर दिया. वे किसी भी कीमत पर अपने सरगना को शहर में रखने पर आमादा थे. सिनालोआ से मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी की दूरी लगभग 13 सौ किलोमीटर है. जब लगने लगा कि अल रैटोन को सड़क से ले जाना मुश्किल होगा, तब एयरफ़ोर्स बुलाई गई. फिर अल रैटोन को हवाई रास्ते से उठाकर ले जाया गया.

हालांकि, इससे हिंसा नहीं रुकी. सिनालोआ कार्टेल का ख़ूनखराबा जारी है. अभी तक की मुठभेड़ में तीन सैनिकों की मौत हो चुकी है. 18 घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. उनकी इकलौती मांग है, अल रैटोन को रिहा करो. सिनालोआ में हिंसा कोई नई या दुर्लभ घटना नहीं है. मगर इस बार बर्बरता का ग्राफ़ काफ़ी ऊपर पहुंच गया है.

तो, आज हम जानेंगे,

- सिनालोआ और सिनालोआ कार्टेल की पूरी कहानी क्या है?

- और, अल रैटोन की गिरफ़्तारी का असली मकसद क्या है?

ये नक़्शा देखिए. 

credit- Google map

नॉर्थ अमेरिकी महाद्वीप के दक्षिण में एक पूंछ जैसी आकृति दिखती है. जहां से यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका की दक्षिणी सीमा खत्म होती है, वहां से मेक्सिको शुरू हो जाता है. ये बॉर्डर अमेरिका में आप्रवासियों की अवैध एंट्री का एक बड़ा ज़रिया है. इसी बॉर्डर पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दीवार बनवाने की शुरुआत की थी. सिर्फ मेक्सिको ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोग इस रास्ते से घुसने की कोशिश करते हैं. कुछ सफ़ल होते हैं, कुछ को बॉर्डर पुलिस पकड़ कर डिटेंशन सेंटर में बंद कर देती है. कुछ को वापस लौटा दिया जाता है. ये एक सतत प्रक्रिया है. ये अमेरिका की पॉलिटिक्स का अभिन्न हिस्सा बन चुका है.

खैर, मेक्सिको के उत्तर में तो अमेरिका है. उसके साउथ की सीमा से दो छोटे-छोटे देश लगे हैं. बेलिज़ और ग्वाटेमाला. पूरब की तरफ़ मेक्सिको की खाड़ी है, जबकि पश्चिम में कैलिफ़ोर्निया की खाड़ी और उत्तरी अटलांटिक सागर हैं.

मेक्सिको के पश्चिमी बॉर्डर पर ही सिनालोआ भी बसा है. ये मेक्सिको के 31 राज्यों में से एक है. इसकी राजधानी है, कुलियाकन. सिनालोआ का वेस्टर्न हिस्सा कैलिफ़ोर्निया की खाड़ी से लगा है. एक तरफ़ अटलांटिक महासागर भी है. पूरे समंदर पर हर सेकेंड निगरानी रख पाना बेहद मुश्किल है. इसलिए, मेक्सिको के ड्रग तस्करों के लिए अमेरिका में हेरोइन, गांजा, मेथ, फ़ेंटेनील जैसे ख़तरनाक नशीले पदार्थ पहुंचाना आसान होता है. हालांकि, ड्रग तस्करों का धंधा समंदर तक ही सीमित नहीं है. वे ज़मीन और हवा के रास्ते भी ड्रग्स की तस्करी करते हैं. उनके लिए अमेरिका एक बड़ा और मुनाफ़े वाला मार्केट है.

अमेरिका की ब्यूरो ऑफ़ इकॉनमिक एनालिसिस (BEA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में अमेरिका में अवैध ड्रग्स पर लोगों ने लगभग 15 लाख करोड़ रुपये खर्च किए. आसान भाषा में समझिए कि, इतने पैसों से एक करोड़ लोगों को 15-15 लाख रुपये दिए जा सकते थे. इनमें से अधिकतर पैसा मेक्सिको के ड्रग्स कार्टेल की जेबों में गया था. पैसों के अलावा, अमेरिका को इंसानी जान का नुकसान भी उठाना पड़ता है. सेंटर फ़ॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन (CDC) की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले 2021 में 1 लाख 6 हज़ार लोग ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से मारे गए. इनमें से 72 हज़ार मौतें फ़ेंटेनील की वजह से हुईं. फ़ेंटेनील एक सिंथेटिक ड्रग है. ये केमिकल्स से बनता है. 

मेक्सिको के ड्रग कार्टेल फ़ेंटेनील के सबसे बड़े उत्पादक हैं. इन्हीं वजहों से अमेरिका, मेक्सिको में चल रहे ड्रग्स के कारोबार में इतनी दिलचस्पी लेता है. वो पैसा, ट्रेनिंग, टेक्नोलॉजी और दूसरे रास्तों से मेक्सिको की मदद करता रहा है. अमेरिकी एजेंसियां लंबे समय से मेक्सिको के अंदर ऑपरेट करती रहीं है. उन्होंने कुछ बड़े तस्करों को पकड़ा भी है. उन्हें सज़ा भी हुई है. लेकिन पीछे चल रहा ड्रग्स का बिजनेस बदस्तूर जारी रहा.

अब सवाल ये आता है कि, मेक्सिको में ड्रग कार्टेल इतना फले-फूले कैसे?

ये समझने के लिए हमें 19वीं सदी में चलना होगा. उस दौर में किसी भी तरह के नशीली चीजों के इस्तेमाल पर कोई तय नियम-कानून नहीं था. कुछ शहरों में अफीम पर पाबंदी ज़रूर थी, लेकिन उसका ठीक से पालन नहीं होता था. नतीजा ये हुआ कि नशेड़ियों की संख्या बढ़ती चली गई. 20वीं सदी की शुरुआत तक अमेरिका में तीन लाख से अधिक ड्रग एडिक्ट्स हो चुके थे.

इससे सरकार को चिंता हुई. फिर दिसंबर 1914 में अमेरिकी संसद ने हैरिसन नारकोटिक्स ऐक्ट को मंजूरी दी. इस ऐक्ट के तहत, अफीम और कोकीन बनाने, आयात करने, बेचने, जमा करने, किसी को बांटने जैसे कामों को रेगुलेट किया गया. इस पर स्पेशल टैक्स भी लगाया गया. जब इससे भी काम नहीं बना तो 1924 में सरकार ने हेरोइन को पूरी तरह बैन कर दिया.

जब अमेरिका में किल्लत हुई तो पड़ोसी मेक्सिको को एक मौका दिखा. मेक्सिको के किसानों ने ड्रग्स बनाकर अमेरिका में बेचना शुरू कर दिया. उन्हें अच्छा-खासा फायदा हुआ. फिर उनकी संख्या बढ़ने लगी. धीरे-धीरे ये संगठित व्यापार में बदल गया. 1929 में मेक्सिको में इंस्टिट्यूशनल रेवॉल्युशनरी पार्टी (PRI) की सरकार बनी. इस पार्टी ने मेक्सिको पर 71 बरस शासन किया. PRI के शासन में सत्ता की शक्ति शीर्ष तक सिमटी रही. सरकार हिंसा के सहारे विरोध को कुचल देती थी. भ्रष्टाचार और अराजकता चरम पर थी. मगर पार्टी चुनाव में धांधली करके सरकार में कायम रही. PRI के शासन में ही ड्रग्स कार्टेल खूब सक्रिय हुए. उन्हें भ्रष्ट अफ़सरों और नेताओं का संरक्षण मिला. वे पैसे खिलाकर अपना धंधा फैलाते रहे.

ड्रग (सांकेतिक फोटो)

दूसरी तरफ़, 1980 के दशक में अमेरिका में क्रैक कोकीन की मांग अचानक से बढ़ने लगी थी. ये बाकी ड्रग्स की तुलना में सस्ता होता था और हर गली के नुक्कड़ पर आसानी से उपलब्ध था. 1982 से 1985 के बीच अमेरिका में कोकीन लेने वालों की संख्या लगभग 16 लाख थी. इसकी सप्लाई कोलोंबिया से हो रही थी. इस धंधे में मेडलिन कार्टेल का नाम सामने आया. उसका सरगना था, पाब्लो एस्कोबार. दिसंबर 1993 में एस्कोबार मारा गया. उसके बाद मेडलिन कार्टेल बिखर गया. कोलोंबिया के ड्रग्स गिरोह पीछे छूटने लगे.

तब इस खाली जगह को मेक्सिकन ड्रग कार्टेल ने भरना शुरू किया. इस खेल का सबसे बड़ा खिलाड़ी अल चापो था. ड्रग्स के धंधे में उन दिनों एक कहावत चलती थी, अल चापो की इजाज़त के बिना कोई भी चीज़ मेक्सिको से बाहर नहीं जा सकती.

अल चापो की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. वो 1957 में सिनालोआ में ही पैदा हुआ था. पिता किसानी और चरवाही करते थे. लड़का छोटे घर और ग़रीबी से परेशान था. उसने अमीरी को अपनी ज़िंदगी का इकलौता मकसद बना लिया. 15 साल की उम्र में उसने पहली बार भांग की खेती की.बढ़िया कमाई हुई तो उसने इसी को अपना कैरियर बनाने की प्लानिंग की. इसके लिए वो आठ सौ किलोमीटर दूर गुआदलहारा चला गया. उस समय गुआदलहारा कार्टेल सबसे बड़ा था. वहां अल चापो को कॉन्ट्रैक्ट किलिंग का काम मिला. वो गज़ब का चालाक था. उसने कार्टेल का काम और मुनाफ़ा दोनों बढ़ा दिया था. फिर एक दिन उसको सुपरबॉस से मिलवाया गया. उसका नाम था, अल बेदरीनो. इसका शाब्दिक अर्थ होता है, गॉडफ़ादर. कहा जाता है कि मेक्सिको के इतिहास में उससे बड़ा ड्रग्स तस्कर कोई नहीं हुआ.

इसके बाद अल चापो का कद अचानक से बढ़ गया. वो अल बेदरीनो का सबसे ख़ास आदमी बन चुका था. फिर 1989 में खेल हो गया. एक मर्डर के केस में अल बेदरीनो पकड़ा गया. उसे 37 साल की सज़ा हुई. अल बेदरीनो के जाते ही गुआदलहारा कार्टेल बिखर गया. अलग-अलग गुट बन गए. इसमें से एक गुट की कमान आई अल चापो के हाथ में. इसका नाम रखा गया सिनालोआ कार्टेल.

बाकी गैंग तो पुलिस के हाथों पकड़े गए या मार गिराए गए. लेकिन सिनालोआ कार्टेल का दायरा बढ़ता गया. इसकी सबसे बड़ी वजह अल चापो था. उसकी सफलता की चार बड़ी वजहें थीं.

- नंबर एक. रॉबिनहुड छवि. उसने सिनालोआ में बहुत सारे घर बनवाए. वो ग़रीब लोगों को पैसे बांटता था. अपने इलाके की जनता के लिए वो किसी देवदूत से कम नहीं था.

- दूसरी वजह उसकी क्रूरता थी. अल चापो अपने काम के प्रति क्रूर था. किसी भी किस्म की नाफ़रमानी उसे बर्दाश्त नहीं थी. वो किसी को नहीं बख्शता था.

- नंबर तीन. सुरंग के ज़रिए तस्करी. अल चापो ने ड्रग्स की तस्करी में एक नया ईजाद किया. उसने बॉर्डर के नीचे से सुरंग खोदकर ड्रग्स की सप्लाई शुरू की. अल चापो बहुत कम माल ज़मीन, पानी या हवा के रास्ते भेजता था. वहां पुलिस और ड्रग्स एजेंसी का पहरा होता था. बाकी के गिरोह यहीं पर मात खा जाते थे. अल चापो ने अमेरिका, यूरोप, एशिया और ऑस्ट्रेलिया में अपना नेटवर्क तैयार किया था. उसने सिनालोआ कार्टेल के बिजनेस को कई गुणा बढ़ा दिया. कहा जाता है कि वो एक साल में 25 हज़ार करोड़ रुपये तक का कारोबार कर लेता था.

- और नंबर चार. अल चापो पैसे खर्च करना जानता था. बाकी के गिरोह महंगे हथियारों और गाड़ियों पर पैसे लुटाते थे. अल चापो उन्हीं पैसों से नेताओं और अफ़सरों को खरीद लेता था. उसके पास सत्ता का सपोर्ट था. इसी वजह से पुलिस उस पर हाथ नहीं डालती थी.

फिर आया 2000 का साल. मेक्सिको में सरकार चला रही PRI चुनाव हार गई. नई सरकार ने ड्रग कार्टेल के ऊपर शिकंजा कसना शुरू किया. तब सिनालोआ कार्टेल ने हिंसा का रास्ता लिया. सैकड़ों बेगुनाह मारे गए. फिर 2006 में मेक्सिको सरकार ने ड्रग कार्टेल के ख़िलाफ़ फ़ाइनल जंग छेड़ने का ऐलान किया. इसमें अमेरिका ने मेक्सिको का साथ दिया. अल चापो उनका दुश्मन नंबर एक था.

उसे एक बार 1993 में भी गिरफ़्तार किया गया था. लेकिन वो जेल के अधिकारियों को घूस देकर फरार हो गया था. फ़रवरी 2014 में उसे दूसरी बार गिरफ़्तार किया गया. इस बार उसको मेक्सिको की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक आल्टीपानो में रखा गया. मगर यहां भी वो बहुत दिनों तक नहीं रहा. जुलाई 2015 में वो बैरक के नीचे से सुरंग बनाकर फरार हो चुका था.

इसके बाद मेक्सिको के इतिहास का सबसे बड़ा मैनहंट शुरू किया गया. मेक्सिको के उस समय के राष्ट्रपति एनरिक़ पेना निएतो बेहद नाराज़ हुए. उन्होंने अपनी टीम से साफ़-साफ़ कहा, अगर अल चापो को नहीं पकड़ पाए तो वापस मत आना. फिर छह महीने बाद ख़बर आई कि मेक्सिकन मरीन्स के एक ऑपरेशन में अल चापो पकड़ा गया. छापेमारी के बाद वो कमरे की सुरंग से भाग निकला. लेकिन कार में भागते हुए उसे दबोच लिया गया. पकड़े जाने के बाद भी उसकी अकड़ कम नहीं हुई थी. उसने मरीन्स को धमकी दी, 

‘तुममें से कोई भी ज़िंदा नहीं बचेगा.’

2017 में अल चापो को अमेरिका में प्रत्यर्पित कर दिया गया. न्यू यॉर्क की अदालत में उसके ऊपर मुकदमा शुरू हुआ. जुलाई 2019 में अदालत ने अल चापो को आजीवन क़ैद के अलावा तीस साल की सज़ा सुनाई. अगर वो जेल से नहीं भाग सका तो वो वहीं मरेगा.

मेक्सिको और अमेरिका को लगा था कि, अल चापो के पकड़े जाने के बाद सिनालोआ कार्टेल टूट जाएगा. वे अल चापो के अरेस्ट की तुलना पाब्लो एस्कोबार की मौत से कर रहे थे. मगर ये सब भरम साबित हुआ. अल चापो कार्टेल का सबसे बड़ा लीडर तो था, लेकिन रिंगमास्टर कोई और था. उसका नाम था, अल मायो. अल मायो पब्लिक में बहुत कम दिखता है. उसके बारे में जांच एजेंसियों को कम ही जानकारी है. उसे कार्टेल में अल सेनोर यानी सीनियर के नाम से बुलाया जाता है. बस, उसके आदेश जारी होते हैं और पूरा गैंग उसका पालन करता है. गैंग में उसका असली नाम लेना भी मना है.

अल मायो का एक बेटा था, अल विन्सेंटिलो. 2009 में उसने अमेरिकी एजेंसियों के साथ एक सीक्रेट मीटिंग की. इसमें वो सिनालोआ कार्टेल की जानकारियां शेयर करने के लिए तैयार था. लेकिन मीटिंग के तुरंत बाद अल विन्सेंटिलो को अरेस्ट कर लिया गया. फिर उसे अमेरिका लाया गया. दो बरस तक मेंटल टॉर्चर झेलने के बाद वो सिनालोआ कार्टेल से जुड़ी सारी बातें बताने के लिए तैयार हो गया. शर्त यही थी कि अल मायो को कोई नहीं छुएगा. और, उसको रिहा कर दिया जाएगा. अल विन्सेंटिलो की जानकारी के आधार पर अल चापो और गैंग के कई बड़े लीडर्स को पकड़ा गया. मगर उसकी रिहा नहीं किया गया. अल विन्सेंटिलो को 15 बरस की जेल हुई. सज़ा खत्म होने के बाद वो अमेरिकी सरकार की निगरानी में रहेगा.

अल चापो की कुर्बानी देने के बाद अल मायो ने उसके बेटों का भार अपने कंधों पर उठाया. उसने उन्हें अपना संरक्षण दिया. अल चापो के बेटे भी ड्रग्स के धंधे में उतरे. उसके कम से कम नौ बेटे हैं. इनमें से चार ड्रग्स का बिजनेस करते हैं. इसमें सबसे कुख्यात ओविदियो गुज़मान लोपेज़ उर्फ अल रैटोन है. जिसकी गिरफ़्तारी ने सिनालोआ में तबाही मचा दी है.

El Chapo (फोटो-AFP)

अल रैटोन को एक बार अक्टूबर 2019 में अरेस्ट किया गया था. उस समय अल मायो के आदेश पर पूरा कुलियाकन में भयानक कत्लेआम हुआ. हिंसा तब तक जारी रही, जब तक कि राष्ट्रपति आंद्रेस मैनुएल लोपेज़ ओब्रोडोर ने सेना को अल रैटोन को छोड़ने का आदेश नहीं दे दिया. ओब्रोडोर ने भरी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि अल रैटोन को पकड़ना बड़ी ग़लती थी. ये मेरी जानकारी में नहीं था.

ओब्रोडोर 2018 में मेक्सिको के राष्ट्रपति बने. उनसे पहले की सरकारों के शासन में वॉर ऑन ड्रग्स के नाम पर ख़ूब तबाही हुई. काउंसिल फ़ॉर फ़ॉरेन रिलेशंस (CFR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, मेक्सिको में 2006 से 2022 के बीच वॉर ऑन ड्रग्स में साढ़े तीन लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. लगभग 80 हज़ार लोग घायल हो चुके हैं. इनमें सैकड़ों पत्रकार भी हैं.

जब ओब्रोडोर राष्ट्रपति बने, तब उन्होंने इस पॉलिसी में बदलाव का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि हम गोलिया भेजने की बजाय गले मिलना पसंद करेंगे. उनका इशारा बातचीत की तरफ़ था. हालांकि, वो इसमें सफल नहीं हो सके. मेक्सिको में गैंगवॉर और बेगुनाह नागरिकों की हत्या बढ़ती गई. अकेले 2022 में 15 पत्रकारों की हत्या हुई. इसके चलते ओब्रोडोर सरकार को सख्त होने पर मजबूर होना पड़ा है. उन्होंने भी वॉर ऑन ड्रग्स में सेना के इस्तेमाल पर हामी भर दी.

अल रैटोन की गिरफ़्तारी के पीछे एक और वजह बताई जा रही है. 08 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन मेक्सिको के दौरे पर जा रहे हैं. वे ओब्राडोर से भी मुलाक़ात करेंगे. कहा जा रहा है कि इस बैठक में ड्रग तस्करी का मुद्दा छाया रहेगा.

मीडिया रपटों के अनुसार, इस समय अल मायो बीमार चल रहा है. उसकी गैर-मौजूदगी में अल रैटोन ही सिनालोआ कार्टेल का सबसे बड़ा लीडर है. उसकी गिरफ़्तारी के जरिए मेक्सिको सरकार ने सख़्त संदेश देने की कोशिश की है. हालांकि, इस कोशिश के चलते सिनालोआ में जो तबाही शुरू हुई है, वो काबू से बाहर होती जा रही है. हमेशा की तरह इस बेकाबू नुकसान के केंद्र में आम नागरिक ही हैं

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