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आर्मी चीफ़ ने किसके गले का फंदा कसने की धमकी दी?

लाहौर में 07 जून की रात हुई ‘नॉट-सो सीक्रेट’ पार्टी में क्या हुआ?

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आर्मी चीफ़ ने बिना इमरान का नाम लिए कड़ी चेतावनी दी. बोले, अब आकाओं को ठिकाने लगाने का समय आ गया है.

पाकिस्तान में इन कई दिनों राजनीतिक घमासान चल रहे है.  पिछले दिनों क्या-क्या बीता?

- एक वक़ील के क़त्ल का इल्ज़ाम पूर्व प्रधानमंत्री पर लगा.
- आर्मी चीफ़ ने 9 मई को हुई हिंसा के लोगों के गले फंदा कसने की धमकी दी.
- लाहौर में 7 जून की रात हुई ‘नॉट-सो सीक्रेट’ पार्टी हुई 

- पूर्व आर्मी चीफ़ की नवासी को जेल में क्यों बंद किया गया?

आज इन सवालों के जवाब विस्तार से जानेंगे.

सबसे पहले एक वकील के कत्ल की बात कर लेते हैं-

6 जून को सीनियर वकील अब्दुल रज़्ज़ाक शार क़्वेटा हाईकोर्ट की तरफ़ जा रहे थे. कुछ बाइकसवारों ने उन्हें रास्ते में रोक लिया. फिर गोलीबारी कर दी. शार को 15 गोलियां लगीं. उन्हें समय पर अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की गई. लेकिन उससे पहले ही वो दम तोड़ चुके थे. हमलावरों का कहीं कोई अता-पता नहीं था. पुलिस भी अंधेरे में थी. इस बीच नेताओं ने शोक प्रकट करने की औपचारिकता पूरी की. बलोचिस्तान में वकीलों ने अदालत का बायकॉट किया. शार के करीबियों ने कहा, पारिवारिक विवाद में हत्या हुई. धीरे-धीरे मसला ठंडा होने लगा था. लेकिन शाम होते ही पूरा मजमून बदल गया. जल्दी ही ये केस नेशनल लेवल पर चर्चा में आ गया.

इमरान ख़ान की पार्टी पाकिस्तान तहरीके इंसाफ़ (PTI) ने कहा, इस हत्या के सूत्रधार प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह हैं. दोनों को फौरन इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
फिर शहबाज़ शरीफ़ के सलाहकार अब्दुल्लाह तरार की प्रेस कॉन्फ़्रेंस हुई. तरार ने आरोप लगाया, हत्या इमरान ख़ान के इशारे पर हुई है. वो राजद्रोह के आरोप से बचने के लिए साज़िश कर रहे हैं.

ये राजद्रोह वाला केस क्या है?

अप्रैल 2022 में इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग की तैयारी चल रही थी. लेकिन इमरान के इशारे पर नेशनल असेंबली के स्पीकर इसे बार-बार टाल रहे थे. 03 अप्रैल को डिप्टी स्पीकर क़ासिम सूरी ने अविश्वास प्रस्ताव को ‘विदेशी साज़िश’ बताकर खारिज कर दिया. इसके कुछ मिनट बाद राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ने इमरान की सिफ़ारिश पर नेशनल असेंबली भंग कर दी. विपक्षी पार्टियां इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. 08 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर के फ़ैसले को अवैध करार दिया. नेशनल असेंबली बहाल कर दी. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग कराने का आदेश भी दिया. 09 और 10 अप्रैल की दरम्यानी रात वोटिंग हुई. इमरान सरकार गिर गई. उन्हें बड़ा झटका लगा था. लेकिन ये इकलौता नहीं था.
वोटिंग से पहले नेशनल असेंबली भंग करने को लेकर उनके ऊपर राजद्रोह के आरोप लग रहे थे. तभी अब्दुल रज़्ज़ाक़ शार ने बलोचिस्तान हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी. इसमें इमरान और क़ासिम सूरी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने की सिफ़ारिश की गई थी. इस याचिका पर 07 जून 2023 को सुनवाई होने वाली थी. लेकिन उससे एक दिन पहले ही उनकी हत्या हो गई. इसी को आधार बनाकर अब्दुल्लाह तरार ने शार की हत्या का आरोप इमरान पर लगाया था.

07 जून को शार के बेटे ने हत्या का केस दर्ज़ कराया. उसने भी इमरान को ही आरोपी बनाया है. FIR में बताया, मेरे पिता को धमकियां मिल रहीं थी. उन पर राजद्रोह वाला केस वापस लेने का दबाव बनाया जा रहा था. उन्हें इमरान ख़ान के इशारे पर मारा गया है. इमरान के ख़िलाफ़ ज़रूरी कार्रवाई की जाए.

इस मामले पर PTI का भी जवाब आया. पार्टी बोली, हमारे नेता को जान-बूझकर फंसाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर ऐक्शन लेना चाहिए.

ऐक्शन की बात आई तो एक मीटिंग की याद आ गई.

07 जून को पाक फ़ौज़ के फ़ॉर्मेशन कमांडर्स की सालाना कॉन्फ़्रेंस खत्म हुई. रावलपिंडी के जनरल हेडक़्वार्टर्स (GHQ) में. इसमें पाक आर्मी के सभी बड़े अफ़सर इकट्ठा हुए थे.
तीन मुख्य मुद्दों पर चर्चा हुई,

- मुल्क की मौजूदा स्थिति क्या है?

- अंदर और बाहर क्या चुनौतियां हैं?

- और, जंग की स्थिति में पाक आर्मी कितनी तैयार है?

इस बार की कॉन्फ़्रेंस दो वजहों से चर्चा में रही,

- नंबर एक. टाइमिंग.

पाकिस्तान बड़े राजनैतिक संकट से जूझ रहा है. इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी के बाद सेना को सीधे तौर पर निशाना बनाया गया. यूं तो पाकिस्तान की राजनीति में सेना का दखल हमेशा से रहा है. लेकिन पिछले कुछ समय से वो परदे के पीछे रही है. इमरान ने उन्हें खुलकर ललकारा. 09 मई के बाद से लड़ाई आमने-सामने की हो चुकी है.
एक और बात, इस बार की कॉन्फ़्रेंस चार दिनों तक चली. इतनी लंबी मीटिंग्स बरसों पहले वॉर ऑन टेरर के दौर में हुआ करती थीं.

- नंबर दो. आर्मी चीफ़ आसिम मुनीर का बयान.

“देश-विरोधी ताकतें और उनके आका फ़ेक न्यूज़ और प्रोपेगैंडा के ज़रिए समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी सभी ताकतों से सख़्ती से निपटा जाएगा.”

इस बयान की व्याख्या कुछ इस तरह की जा रही है कि इस चेतावनी का इशारा इमरान ख़ान की तरफ़ था. 09 मई की हिंसा के बाद PTI के लगभग सभी बड़े नेताओं को गिरफ़्तार किया गया. लेकिन इमरान को दोबारा से अरेस्ट नहीं किया गया है. जानकारों का कहना है कि एस्टैब्लिशमेंट पहले नींव को कमज़ोर करना चाहती थी. उसके बाद वो ऊपर की तरफ़ बढ़ेगी. अभी ये साफ़ नहीं है कि इमरान पर किस तरह की कार्रवाई होगी. लेकिन इतना तो तय है कि पाकिस्तान की राजनीति में बड़ी हलचल मचने वाली है.
इसका बानगी वक़ील अब्दुल रज़्ज़ाक़ शार की हत्या के बाद दर्ज मुकदमे में साफ़-साफ़ दिख रही है. दावा किया जा रहा है कि एस्टैब्लिशमेंट के दबाव में इमरान को आरोपी बनाया गया है.

वैसे दबाव तो पाकिस्तान सरकार पर भी बढ़ रहा है.

पाकिस्तान के राजनैतिक संकट में अमेरिका की एंट्री हो चुकी है. 07 जून को अमेरिका के विदेश मंत्रालय से PTI समर्थक खदीजा शाह को लेकर सवाल पूछा गया. खदीजा 23 मई से जेल में बंद हैं. उन पर जिन्ना हाउस में हमला कराने का आरोप था. 23 मई को उन्होंने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया. सरेंडर से पहले उनका एक ऑडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. उन्होंने कहा कि मैंने कोई गुनाह नहीं किया है. फिर भी मेरे परिवार को परेशान किया जा रहा है.

खदीजा के पास पाकिस्तान और अमेरिका, दोनों देशों की नागरिकता है. इसलिए, उनकी गिरफ़्तारी पर अमेरिका की नज़र भी बनी हुई है. विदेश मंत्रालय के डिप्टी स्पोक्सपर्सन वेदांत पटेल ने कहा कि हमने कॉन्सुलर एक्सेस की दरख़्वास्त की है. हमें उम्मीद है कि गिरफ़्तार लोगों पर न्यायसंगत कार्यवाही की जाएगी.

कॉन्सुलर एक्सेस क्या होता है? इसके ज़रिए एक देश की सरकार को किसी दूसरे देश की जेल में बंद नागरिकों से राब्ता करने का अधिकार मिलता है. मान लीजिए, साउथ अफ़्रीका का कोई नागरिक भारत की जेल में बंद है. ऐसी स्थिति में साउथ अफ़्रीका सरकार को उससे मिलने या बात करने के लिए भारत की परमिशन चाहिए. इसके लिए बाकायदा एप्लीकेशन देनी होती है. फिर संबंधित देश की सरकार इस पर फ़ाइनल फ़ैसला लेती है. 8 जून को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बताया, हमें अमेरिका की एप्लीकेशन मिली है. इसे गृह मंत्रालय के पास रिव्यू के लिए भेज दिया गया है.

आपके मन में सवाल उठ रहा होगा, खदीजा शाह आख़िर हैं कौन?

खदीजा पेशे से फ़ैशन डिजाइनर हैं. उनके ब्रांड्स पाकिस्तान और पाकिस्तान से बाहर भी चलते हैं. खदीजा के पिता सलमान शाह, परवेज़ मुशर्रफ़ के आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं.
उनके नाना आसिफ़ नवाज़ जनजुआ अगस्त 1991 से जनवरी 1993 में मौत तक पाकिस्तान आर्मी के चीफ़ थे. उनकी मौत भी रहस्य बनकर रह गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके शरीर में ज़हर की पुष्टि हुई थी. पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने जनजुआ की मौत का आरोप नवाज़ शरीफ़ पर लगाया था.

खदीजा शाह PTI की सदस्य नहीं हैं. उनका कहना है कि वो बस समर्थक की हैसियत से प्रोटेस्ट में शामिल हुईं थी. जिन्ना हाउस में कोई तोड़-फोड़ नहीं की थी. और, ना ही किसी को उकसाया. खदीजा ने इमरान की गिरफ़्तारी के बाद सेना के ख़िलाफ़ कई ट्वीट्स भी किए. लेकिन जल्दी ही उन्हें डिलीट कर दिया था. माफ़ी भी मांगी थी.

आर्मी बैकग्राउंड से आने के बावजूद खदीजा पर इतनी सख़्त कार्रवाई क्यों? दरअसल, एस्टैब्लिशमेंट संदेश देना चाहती है कि कोई भी हमसे ऊपर नहीं है. जानकारों का कहना है कि इसके ज़रिए आर्मी के अंदर मौजूद इमरान के समर्थकों को भी टाइट किया जाएगा. खदीजा शाह का मामला समझ में आ गया. अब आख़िरी अंक की तरफ़ चलते हैं.

नॉट-सो सीक्रेट पार्टी.

इमरान की पार्टी से रिश्ता तोड़ने वाले नेता कहां गए? कुछ ने कहा था, राजनीति छोड़ देंगे. कुछ बोले थे, राजनीति से ब्रेक ले रहे हैं. लेकिन 07 जून को कुछ ऐसा हुआ कि सहसा याद आया, दावे हैं दावों का क्या!

ऐसा क्या हुआ? लाहौर में एक दावत हुई. किसने दी? जहांगीर ख़ान तरीन ने. इस दावत में इमरान के कई पूर्व वफ़ादारों ने हाज़िरी लगाई. जैसे, फ़वाद चौधरी, आमिर कियानी, अली ज़ैदी, इमरान इस्माइल आदि. इन सभी ने सेम पैटर्न पर 09 मई की हिंसा की आलोचना करने के बाद इमरान से दोस्ती तोड़ ली थी. कइयों ने कहा था कि अब राजनीति में नहीं आएंगे. लेकिन उन्होंने अपने कहे का मान नहीं रखा. अब वे नई पार्टी जॉइन बनाने जा रहे हैं. इसका नाम इश्तेख़ाम-ए-पाकिस्तान पार्टी बताया जा रहा है. इसके सूत्रधार जहांगीर ख़ान तरीन हैं. कुछ दिनों पहले PTI के एक और बाग़ी गुट ने ‘डेमोक्रेट्स ग्रुप’ बनाया था. उसने भी तरीन का हाथ थाम लिया है. कहा जा रहा है कि नई पार्टी PTI, PPP और PML-N का विकल्प बनेगी. इन्हें मिलिटरी एस्टैब्लिशमेंट का भी सपोर्ट है. तरीन इस नई कवायद को लीड करेंगे. दिलचस्प ये है कि तरीन एक समय तक इमरान ख़ान के सबसे ख़ास लोगों में गिने जाते थे.

वैसे, तरीन हैं कौन?

वो पाकिस्तान के सबसे अमीर लोगों में से हैं. उनके पास हज़ारों एकड़ ज़मीन है. शराब और माइनिंग के बिजनेस में उनका नाम है. कई चीनी मिलें चलती हैं. पाकिस्तान में चीनी के कारोबार पर उनका एकाधिकार है. इसी वजह से उन्हें ‘शुगर किंग’ भी कहा जाता है.

तरीन 2002 से 2017 तक पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली के मेंबर थे. 2011 में उन्होंने PTI जॉइन कर ली. उन्हें जनरल-सेक्रेटरी बना दिया गया. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पद के अयोग्य ठहरा दिया. उन पर लंदन में अपनी प्रॉपर्टी की जानकारी छिपाने का आरोप था. दोषी साबित होने के बावजूद इमरान और तरीन का याराना बना रहा.
2018 में आम चुनाव में PTI सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन उन्हें बहुमत के लिए कुछ निर्दलीय सांसदों की दरकार थी. तब तरीन ने ही बहुमत जुटाने में मदद की थी. उन्हें पार्टी में किंगमेकर की तरह देखा जाने लगा था. मीडिया रपटों के मुताबिक, जब कभी PTI को समस्या आती थी, तरीन तारणहार बनकर सामने आते थे. एस्टैब्लिशमेंट से नजदीकी और बेशुमार पैसा, तरीन के दो हथियार थे, हैं और शायद हमेशा रहेंगे.

इमरान और तरीन के रिश्ते कैसे बिगड़े?

2020 में जहांगीर तरीन का नाम मनी-लॉन्ड्रिंग और शुगर क्राइसिस में आने लगा. उन्हें विलेन बनाकर पेश किया जाने लगा. कहा जाता है कि इसके पीछे इमरान के कुछ करीबी लोग थे. वे इमरान और तरीन के बीच दरार पैदा करना चाहते थे. दूसरी तरफ़, इमरान सेना और एलीट क्लास पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते थे. तरीन के ख़िलाफ़ जांच बिठाकर उन्होंने ख़ुद को जनता का हितैषी साबित करने की कोशिश की. लेकिन वो सफ़ल नहीं हो सके.

2022 की शुरुआत तक तरीन बुरी तरह खफ़ा हो चुके थे. फ़रवरी में वो इलाज का बहाना बनाकर प्राइवेट जेट से लंदन गए. अंदरखाने ख़बर चलती है कि तरीन ने चुपके से नवाज़ शरीफ़ से मुलाक़ात की थी. इसी मीटिंग में इमरान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का मसौदा तैयार हुआ था. लंदन से लौटने के बाद उन्होंने इमरान का फ़ोन उठाना तक बंद कर दिया. उनके खेमे में PTI के 31 सांसद थे. ये इमरान की सराकर गिराने के लिए काफ़ी थे. इन्हें तरीन ग्रुप कहा जाता था. तरीन ग्रुप ने अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करने का फ़ैसला किया. आख़िरकार, 09 अप्रैल 2022 को इमरान की सरकार ने विश्वासमत गंवा दिया.

विपक्ष में आने के बाद इमरान ने तरीन पर कई संगीन आरोप लगाए. बोले, वो मुझसे गैर-कानूनी काम कराना चाहता था. मैंने विरोध किया तो वो मेरे ख़िलाफ़ हो गया. वो मुल्क के सबसे बड़े लुटेरों का दोस्त बन गया है.

इसके बाद इमरान और तरीन के रिश्तों में सुधार की बची-खुची गुंजाइश खत्म हो चुकी थी. जून 2023 में तरीन, इमरान की पूरी पार्टी को गायब करने की मुहिम का हिस्सा बने हैं.
एक समय इमरान को सत्ता के अर्श पर पहुंचाने वाला शख़्स आज के दिन पोलिटिकल कैरियर खत्म करने पर आमादा है. यही राजनीति का अटल सत्य है.

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