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अमृतपाल सिंह को 48 घंटे चले ऑपरेशन के बाद पुलिस या NIA, किसने पकड़ा? सच ये रहा

कड़ी प्लानिंग के बाद भी पुलिस से कैसे बच गया अमृतपाल सिंह?

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पुलिस अमृतपाल की तलाशी कर रही है (फोटो- ट्विटर)

पंजाब के अमृतसर जिले का जल्लूपुर खेड़ा गांव. देखने में हरियाली से पसरा एक सामान्य गांव. 18 मार्च की सुबह पंजाब पुलिस जब इस गांव में घुसती है, तो गुरुद्वारे के सामने बने ट्यूबेल की दीवार पर लगी तस्वीरें इसके अलग होने का एहसास करा देती हैं. दीवार पर एक बड़ा सा पोस्टर है, जरनैल सिंह भिंडरांवाले, दीप सिद्धू और अमृतपाल सिंह की बड़ी फोटो सी लगी है. भिंडरांवाले के नाम के आगे संत और अमृतपाल के नाम के आगे गुरुमुखी में भाई लिखा है. बीते दो दशकों में पंजाब पुलिस का सबसे बड़ा ऑपरेशन इसी गांव में शुरू होने जा रहा था. पंजाब के सभी 23 जिलों को एलर्ट पर रखा गया, कई इलाकों में धारा 144 लगा दी गई और 24 घंटे के लिए इंटरनेट बंद का ऐलान भी कर दिया गया.

केंद्रीय सुरक्षा बल के जवान सड़कों पर मार्च कर रहे थे, अमृतसर के आस-पास और पंजाब के बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट में पुलिस का सायरन आसानी से सुनाई दे रहा था. भारी भरकम मूवमेंट से अमृतपाल सिंह के समर्थकों को भी पता चल चुका था कि इस बार पुलिस अमृतपाल को गिरफ्तार करने आ रही है. फोन की घंटियां बजने लगीं, कोई खेतों में भागा, कोई सड़क के रास्ते भागने की कोशिश करता है. पीछे पुलिस भी भागी और इस भागदौड़ में 100 से ज्यादा लोग पकड़े गए. किसी जिले में कोई समर्थन में आया तो उसे भी नहीं छोड़ा गया. मगर एक व्यक्ति जिसे पकड़ने के लिए इतना बड़ा ऑपरेशन चलाया गया, बड़े-बड़े अधिकारी रात-रात जागकर प्लानिंग करते रहे, वो नहीं पकड़ा जा सका. अमृतसर पुलिस के हाथ खाली थे, तभी एक CCTV फुटेज पर पुलिस की नजर पड़ी.

वारिस पंजाब दे यानी WPD का प्रमुख अमृतपाल पुलिस के चकमा देकर गांव से निकल चुका था, CCTV फुटेज में सफेद रंग की मर्सडीज गाड़ी नजर आती है, उसके पीछे 4 गाड़ियां तेज रफ्तार से निकलती हैं. 18 मार्च को सुबह के 11 बजकर 55 मिनट हो रहे थे, तस्वीरें जालंधर के बाजके नाम के गांव के पास दर्ज हुईं. बताया गया कि वो जालंधर के ही महतपुर की तरफ भागा है. अब पुलिस के सर्च ऑपरेशन का केंद्र अमृतसर से हटकर जालंधर हो गया.

जालंधर में ही 19 फरवरी की देर रात अमृतपाल की मर्सिडीज बरामद कर ली गई. इसी कार्रवाई के दौरान उसके चाचा और एक साथी को हिरासत में ले लिया गया. अमृतपाल फिर भी नहीं मिला, बताया गया कि वो अबकी बार मोटरसाइकिल से फरार हुआ.

पत्रकारों ने पुलिस से पूछा, तब जालंधर के पुलिस कमिश्नर कुलदीप सिंह चहल ने बताया कि-  हमने अमृतपाल की गाड़ी का 20 से 25 किलोमीटर तक पीछा किया. वो सामने बैठा था. संकरी गलियां थीं और किसी तरह वो अपनी गाड़ी बदलकर वहां से भागने में कामयाब रहा. उन्होंने कहा, ये चोर-सिपाही का खेल है. कभी-कभी अपराधी भागने में कामयाब हो जाते हैं.
पुलिस कह रही है जल्द गिरफ्तार कर लेंगे, तो क्या ये मान लिया जाए कि पुलिस के हाथ अब भी अमृतपाल सिंह नहीं आया है? क्योंकि बीते 3 दिन में इंटरनेट पर कई बार दावे किए गए. कभी कहा गया, उसे हिरासत में ले लिया गया है, कभी कहा गया गिरफ्तारी हो गई है. फिर बीच-बीच में खंडन भी आता रहा. पुलिस ने आधिकारिक तौर पर उसकी गिरफ्तारी की बात एक बार भी नहीं कही. जबकि अमृतपाल के पिता ने दावा किया, उनके बेटे को गिरफ्तार कर लिया है. पुलिस एनकाउंटर करना चाहती है.

इधर जल्लुपुर खेड़ा गांव में सन्नाटा पसरा है. बीते दिनों इंडिया टुडे के संवाददाता विनय सुल्तान रिपोर्ट के लिए उसके गांव गए थे, वो बताते हैं कि गांव में बने गुरद्वारे और जाजम पर बैठे लोगों के दरम्यान प्लास्टिक शीट का एक सात फीट ऊंचा वी अकार का तंबू तना हुआ था. उसके दरवाजे पर चार राइफलधारी जवान मुस्तैदी से खड़े थे. सामने एक मजबूत कद-काठी का निहंग सिख हाथ में बरछा लिए कुर्सी पर बैठा मिलता. यहीं बीच में बैठकर अमृतपाल गांव के लोगों की समस्या सुनता था. एक तरह से वो खुद को स्वयंभू ओहदेदार घोषित कर चुका था. लेकिन अब पुलिस की कार्रवाई हुई तो भागा-भागा फिर रहा है. गुरुद्वारे में भी इक्का-दुक्का लोग ही हैं. बीते 48 घंटे में क्या-क्या कार्रवाई हुई, ये भी बताते हैं.  

>> पुलिस ने अमृतपाल सिंह पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट यानी NSA लगा दिया गया है.
>> उसे भगौड़ा घोषित कर दिया गया है, जल्द ही ईनाम रखा जा सकता है.
>> अमृतपाल पर अजनाला पुलिस स्टेशन पर उपद्रव के मामले में भी आम्स एक्ट में केस दर्ज कर लिया है.
>> पुलिस ने अब तक अमृतपाल से जुड़े 114 लोगों को गिरफ्तार किया है.
>> गिरफ्तार किए गए आरोपियों को पंजाब से बाहर असम की डिब्रूगढ़ जेल में रखा गया है.
>> अमृतपाल से जुड़े मामले में फॉरेन फंडिंग की भी जांच की जा रही है.
>> उसके साथियों के पास मिली महंगी गाड़ियां, सोर्स ऑफ़ इनकम से मैच नहीं खाती.

पंजाब पुलिस ने पहली बार अमृतपाल के केस में ISI का नाम लिया है, जालंधर रेंज के IG स्वपन शर्मा ने भी दावा किया कि अमृतपाल सिंह ISI के बनाए खालिस्तान मॉड्यूल का हिस्सा है. पुलिस सूत्रों का दावा है कि

>> अमृतपाल को खालसा इंटरनेशनल की सरपरस्ती मिल रही है.
>> अमृतपाल को दुबई से मिशन K2 यानी 'खालिस्तान 2' के ऊपर काम करने की जिम्मेदार सौंपी गई.  
>> 10 साल दुबई में रहने के बाद बब्बर खालसा इंटरनेशनल का हैंडलर बन कर 2022 में पंजाब लौटा है.

पंजाब लौटने पर अमृतपाल अपने एक बयान में कहता है,

"500 साल से हमारे पूर्वजों ने इस धरती पर अपना खून बहाया है. कुर्बानी देने वाले इतने लोग हैं कि हम उंगलियों पर गिना नहीं सकते. इस धरती के दावेदार हम हैं. इस दावे से हमें कोई पीछे नहीं हटा सकता. न इंदिरा हटा सकी थी और न ही मोदी या अमित शाह हटा सकता है. दुनिया भर की फौजें आ जाएं, हम मरते मर जाएंगे, लेकिन अपना दावा नहीं छोड़ेंगे"

इसी से उसके मंसूबों का समझा सकता है. सूत्रों के मुताबिक विदेश से लगातार अमृतपाल को फंडिंग हो रही थी. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इंग्लैंड में बैठा अवतार सिंह खंडा नाम का व्यक्ति अमृतपाल को डायरेक्ट कर रहा था. खंडा को खालिस्तानी आतंकी बब्बर खालसा के परमजीत सिंह पम्मा का खास बताया जा रहा है और खंडा ही बब्बर खालसा यूके को अपरेट करता है. सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय एजेंसियों और पंजाब की एजेंसियों के पास पुख्ता इनपुट थे कि अमृतपाल को अब पंजाब के लिए मिशन K2 पर काम शुरू करने के लिए कह दिया गया था. जिसके लिए वो अपनी टीम भी बना रहा था. टीम का नाम AKF यानी आनंदपुर खालसा फोर्स. उसके घर की दीवार पर भी AKF लिखा मिला, कई जैकेट ऐसी मिलीं, जिसपर यही नाम दर्ज है. अब इस नाम के पीछे की कहानी क्या है? और अमृतपाल के उदय की वजह क्या है ?. इस पर इंडिया टुडे से बात करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और रिसर्चर गुरशमशीर सिंह कहते हैं-

“2015 में बरगडी में हुए गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के मामले ने सिखों को अंदर तक असुक्षित कर दिया. उस समय विधानसभा चुनाव के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बेअदबी के खिलाफ कानून लाने की बात कही थी. लेकिन  इसके बाद किसान आन्दोलन के दौरान भी सिख संगठनों पर तरह-तरह के सवाल खड़े किए. उन्हें आतंकवादी और खालिस्तानी कहा गया. जबकि यह किसानों का मोर्चा था. पंजाब के मामले में आपको अतरिक्त सावधानी बरतनी होती है. यहां के लोग लंबे समय से सत्ता के खिलाफ संघर्ष करते आए हैं. इन्हें दबाया नहीं जा सकता. आखिरकार केंद्र सरकार को बिल वापिस लेने पड़े. लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था. पंजाब के लोगों का और ख़ास तौर पर सिखों का केंद्र सरकार से भरोसा उठ गया. उसकी प्रतिक्रिया में अतिवादी सोच मजबूती पकड़ने लगी.”

गुरशमशीर सिंह आगे कहते हैं

"पंजाब में 1997 के विधानसभा चुनाव को डेढ़ दशक की खाड़कू लहर के बाद शांति बहाली की शुरुआत की तरह देखा जाता है. उस समय अकाली दल सत्ता में आया था. 1997 के अकाली दल के चुनाव घोषणा पत्र में उठाई गई, कई मांगे जैसे बंदी सिंहो की रिहाई, मानवाधिकार हनन और फेक एनकाउंटर की जांच जैसे मुद्दे अब भी लंबित पड़े हैं. इससे अगर और पीछे जाते हैं तो आनंदपुर साहेब प्रस्ताव, और उसके बाद राजीव गांधी-लोंगेवाल समझौते में चंडीगढ़ को पंजाब को देने जसे वायदे भी पूरे नहीं किए गए. मतलब की पंजाब को जिस हीलिंग टच की जरुरत थी वो कभी मिला ही नहीं."

आनंदपुर साहेब प्रस्ताव में केंद्र को विदेश मामलों, मुद्रा, रक्षा और संचार सहित केवल पांच दायित्व अपने पास रखते हुए बाकी के अधिकार राज्य को देने और पंजाब को एक स्वायत्त राज्य के रूप में स्वीकारने संबंधी बातें कही गईं थीं. इस प्रस्ताव को केंद्र में रखकर 70 के दशक में खालिस्तान मूवमेंट की शुरुआत हुई थी और इसी प्रस्ताव के नाम अमृतपाल ने आनंदपुर खालसा फोर्स यानी AKF बना रहा था. तो सवाल है कि जब इतना स बकुछ हो गया, तब पुलिस क्यों जागी?

जागी तो जागी, इतनी फील्डिंग के बाद भी उसे नहीं पकड़ पाई ? पुलिस कह रही है कि बिना एक बुलेट चलाए 100 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन पुलिस ये क्यों नहीं बता रही है कि जिस मुख्य व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए ऑपरेशन चलाया, वही गिरफ्त से बाहर है. न्यू यॉर्क में रहने वाले पुनीत साहनी सिखों की पहचान खालिस्तान आतंकवाद पर शोध कर रहे हैं, हमने उनसे पूछा कि अमृतपाल देश के लिए कितना बड़ा खतरा है? लोग उसकी तुलना भिंडरावाले से कर रहे हैं. दो स्थितियां हैं या तो उसे बढ़ाचढ़ाकर बताया जा रहा है या फिर ISI और बाहर बैठे खालिस्तान सपोर्टर उसे आगे बढ़ा रहे हैं? दोनों ही स्थिति में आंख मूंद कर तो नहीं बैठा जा सकता.