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सम्मेद शिखर पर मोदी सरकार ने क्या फैसला कर दिया? जैन समुदाय के लोगों की स्पष्ट मांग क्या है?

2019 और 2022 में ऐसा क्या हुआ कि जैन समुदाय प्रदर्शन कर रहा है?

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सांकेतिक फोटो (सभार: पीटीआई)

बीते कुछ दिनों से पूरे देश में लगातार जैन समुदाय के लोग लंबे लंबे मार्च निकाल रहे हैं. उनकी मांग स्पष्ट है. वो अपने धर्मस्थलों की गरिमा से समझौता नहीं चाहते. 2023 में हो रहे इन प्रदर्शनों की वजह? 2019 और 2022 की दो घटनाएं. जैन समुदाय में ज़्यादा नाराज़गी झारखंड के सम्मेद शिखर मामले को लेकर है. और नाराज़गी को समझने के लिए पहले सम्मेद शिखर और जैन धर्म में उसके स्थान को समझना होगा. 

जैन धर्म में समय के दो प्रवाह माने गए हैं. उत्सर्पिणी काल और अवसर्पिणी काल. उत्सर्पिणी काल में आयु, शरीर की ऊंचाई, बुद्धि, वैभव आदि का विस्तार होता जाता है. और अवसर्पिणी काल में इनका क्षय होता है. बारी-बारी से दोनों कालचक्र चलते हैं. हर कालचक्र में 24 तीर्थंकर होते हैं. फिलहाल अवसर्पिणी काल चल रहा है, जिसमें 24 तीर्थंकर हो चुके हैं. तीर्थंकर का अर्थ हुआ तीर्थ की स्थापना करने वाला. लेकिन जैन आस्था में तीर्थंकर का स्थान भगवान का स्थान है. और यहां तक पहुंचने के लिए लंबी साधना और तप लगता है. चार घनघाती कर्म -
मोह, क्रोध, गर्व और लोभ पर विजय करने वाले कहलाते हैं - अरिहंत. जब अरिहंत ''केवलज्ञान'' की प्राप्ति कर लेते हैं, तब वो तीर्थंकर हो जाते हैं. केवल ज्ञान माने शुद्ध और असीम ज्ञान. इसके बाद वो धर्म का मार्ग बताते हैं. जिन 24 तीर्थंकरों का हमने ज़िक्र किया, उनमें से पहले थे ऋषभदेव या आदिनाथ. इनके साथ शुरू हुआ सिलसिला 24 वें तीर्थंकर माने महावीर स्वामी तक जाता है.

तीर्थंकरों के इसी सिलसिले के केंद्र में है झारखंड के गिरिडीह ज़िले में पड़ने वाला पारसनाथ पर्वत. 4 हज़ार 430 फीट ऊंचे इस पहाड़ पर सम्मेद शिखर है. जिसे जैन समुदाय शिखरजी कहता है. मान्यता है कि 24 में से 20 तीरथंकरों को मोक्ष यहीं प्राप्त हुआ. इनके अलावा जैन धर्म के अनेक महत्वपूर्ण मुनि एवं साधु भी यहीं रहे. इसीलिए जैनों के लिए शिखरजी तीर्थराज है. माने तीर्थों का राजा. इसीलिए हर साल भारत और दुनिया के तमाम देशों से लाखों जैन श्रद्धालु शिखरजी के दर्शन के लिए आते हैं. दर्शन के अलावा यहां परिक्रमा भी होती है. जैन मानते हैं कि ये सिलसिला हज़ारों साल से चल रहा है.

शिखरजी आने वालों में सिर्फ जैन ही नहीं होते. दूसरे धर्मों के लोग भी यहां आते हैं. यहां पर्यटन का स्कोप देखते हुए फरवरी 2019 में झारखंड की रघुबर दास सरकार पारसनाथ को एक ''relegious tourist spot'' बनाने का प्रस्ताव दिया. धार्मिक पर्यटन स्थलों के विकास के इस प्रस्ताव में  पारसनाथ के साथ-साथ देवघर के बैद्यनाथ धाम, रामगढ़ के रजरप्पा और दुमका के वासुकीनाथ समेत अन्य जगहों का नाम शामिल था. इसी साल के अगस्त महीने में 2 तारीख को केंद्र की मोदी सरकार ने गजट नोटिफिकेश के ज़रिए पारसनाथ एवं तोपचांची वाइल्डलाइफ सैंचुरी के लिए ईको सेंसिटिव ज़ोन को अधिसूचित किया. अब इसका मतलब क्या हुआ?

दरअसल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के नियम कहते हैं कि हर वन्यजीव अभ्यारण्य के इर्द गिर्द एक इलाका हो, जहां पर्यावरण को नुकसान से बचाने लिए ज़्यादा सख्त नियम लागू होते हैं. इसे कहा जाता है ईको सेंसिटिव ज़ोन. इस ज़ोन के तहत किसी भी तरह के नए निर्माण को एक बेहद लंबी और जटिल कानूनी प्रकिया के बाद ही किया जा सकता है. यहां खदानों और फैक्ट्रियों जैसे काम की मनाही होती है.

केंद्र की अधिसूचना में ईको सेंसिटिव ज़ोन का एक नक्शा भी था. इसमें ईको सेंसिटिव ज़ोन की सीमा पूरे पारसनाथ अभ्यारण्य को अपने भीतर समेटे हुए है. अब जो पारसनाथ पर्वत है, वो पारसनाथ अभ्यारण्य के अंदर है. सामान्य समझ यही कहती है, कि इस अधिसूचना के बाद सम्मेद शिखर हमेशा के लिए सुरक्षित हो गया. लेकिन इसी अधिसूचना के एक हिस्से से जैन समुदाय आहत है. वो हिस्सा, जिसमें पारसनाथ एवं तोपचांची वाइल्डलाइफ सैंचुरी में ''tremendous potential to support eco-tourism'' होने की बात कही गई है. जैन समुदाय की मुख्य शिकायत यही है कि अगर यहां टूरिज़म होने लगा, तो सम्मेद शिखर की गरिमा बरकरार नहीं रह पाएगी.

देश भर में हुए प्रदर्शनों में जैन समाज की ओर से शिकायत की गई, कि अगर सरकार ईको-टूरिज़म बढ़ाने पर काम करती है, तो यहां धड़ाधड़ होटल और रिज़ॉर्ट खुलने लगेंगे. और तब यहां मांस और शराब आदि का सेवन होगा, जिसकी जैन धर्म में मनाही है. फिर जैन धर्मावलंबी सम्मेद शिखर तक नंगे पैर जाते हैं. उन्हें भय है कि पर्यटन को बढ़ावा मिला, तो यहां आने वाले लोग ऐसी प्रथाओं का सम्मान नहीं करेंगे. दी लल्लनटॉप ने सम्मेद शिखर पर तपस्या करने वाले जैन मुनी प्रसन्नसागर महाराज से जानना चाहा कि केंद्र की अधिसूचना के पहले और बाद सम्मेद शिखर में क्या बदलाव आया. मुनी मौन साधना में हैं. इसीलिए उत्तर उनके प्रतिनिधि ने दिया. प्रतिनिधिअशोक जैन का कहना ही कि देशभर में आंदोलन चल रहे हैं लेकिन शिखर जी में सब कुछ सामान्य है. श्रद्धालु पहले की तरह ही दर्शन करने के लिए आ रहे हैं. यहां कोई तनाव की स्थिति नहीं है.

झारखंड एक ड्राय स्टेट नहीं है. माने यहां शराब की बिक्री और उसका सेवन वैध है. लेकिन झारखंड में पारसनाथ पर्वत के अलग से नियम हैं. यहां शराब और मांस न खरीदा-बेचा जा सकता है, न ही खाया जा सकता है. रही बात धार्मिक पर्यटन की, तो फिलहाल किसी भी जगह को धार्मिक पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के लिए अलग से प्रावधान नहीं है. और जैसा कि हमने पहले बताया, ईको सेंसिटिव ज़ोन या अभ्यारण्य में एक नई ईंट रखने से पहले हज़ार तरह की अनुमतियों की ज़रूरत पड़ती है. फिर जैन समाज में 2019 की अधिसूचना को लेकर अब इतना विरोध कैसे पनपा.

इसका एक कारण तो केंद्र की अधिसूचना की भाषा ही है, जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं. दूसरा कारण है कुछ तस्वीरें और वीडियो, जिनमें कुछ लोग पारसनाथ पर्वत के नीचे पिकनिक मना रहे थे और यहां उन्होंने चिकन बनाया. इन्हें लेकर दी लल्लनटॉप ने गिरिडीह के डिप्टी कमिश्नर नमन प्रियेश लकड़ा से बात की. डिप्टी कमिश्नर का कहना है कि पारसनाथ ने लगभग 35 जैन समितियां हैं. प्रशासन ने सभी से बात की. सरकार की योजना के बारे में भी उनसे चर्चा की है. कुछ समितियों की ओर से जवाब भी आया है.

इन तस्वीरों के अलावा दिसंबर 2022 की एक और घटना है, जिसके तार बीते दिनों के प्रदर्शनों से जोड़े जा रहे हैं. क्रिसमस के दिन कुछ युवा सम्मेद शिखर पर जा रहे थे, जिन्हें बाहर से आए कुछ जैन तीर्थयात्रियों ने रोका. इसके बाद विवाद हो गया.

कारण चाहे जो हो, जैन समुदाय पूरे देश में प्रदर्शन कर तो रहा है. और इसी के साथ बन रहा है दबाव. हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा नीत महागठबंधन सरकार पहले ही हेमंत सोरेन की योग्यता वाले सवाल से उठे तूफान से जूझ रही थी. ऐसे में झारखंड सरकार के लिए ये प्रदर्शन परेशानी का सबब बनने लगे. तब झामुमो प्रवक्ताओं ने गेंद भाजपा के पाले में डाल दी, कि अधिसूचना का प्रस्ताव भाजपा के समय आया और अधिसूचना जारी केंद्र ने की. भाजपा इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. बीजेपी का कहना है कि उनकी सरकार में पारसनाथ में मांस और शराब की बिक्री नहीं होती थी. लेकिन हेमंत सोरेन  की सरकार में फिर से मांस और शराब बिकना शुरू हो गया है.

झामुमो भले कहे कि इस विषय से उसका लेना-देना नहीं है. लेकिन ये तो तथ्य है कि झारखंड में सरकार उन्हीं की है. फिर जैन समुदाय जैसे आर्थिक-राजनैतिक रूप से सशक्त समाज को कोई नाराज़ भी नहीं करना चाहता. इसीलिए 5 जनवरी के रोज़ हेमंत सोरेन ने केंद्रीय पर्यावरण, वन, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को एक चिट्ठी लिखकर मांग कर दी, कि केंद्र जैन धर्मावलंबियों की चिंताओं के आलोक में अगस्त 2019 की अधिसूचना पर समुचित फैसला ले. 

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: सम्मेद शिखर पर मोदी सरकार ने आज बड़ा फैसला कर दिया