''मैं इकॉनमी में मौजूद 500 और 1000 के नोट बंद करने के सरकार के फैसले का स्वागत करता हूं. ये एक साहसी और क्रांतिकारी कदम है. देश में चल रही पैरलल इकॉनमी पर ये करारा प्रहार होगा. इस कदम से पिछले दो साल से कालेधन पर लगाम लगाने के सरकार की तरफ से किए जा रहे प्रयास मजबूत होंगे. एक मास्टरस्ट्रोक में सरकार ने तीन बुराइयों को खत्म करने की कोशिश की है, जो देश को खाए जा रही हैं- एक पैरलल इकॉनमी, दूसरी नकली नोट और तीसरी टेरर फाइनेंसिंग.''ये शब्द हैं राणा कपूर के. यस बैंक के को-फाउंडर, पूर्व MD और CEO. नोटबंदी के अलावा जीएसटी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था कि भारत अब ऊंची विकास दर की तरफ बढ़ रहा है. आज यस बैंक की हालत ख़राब है. यस बैंक के नॉन परफॉर्मेंस एसेट्स (NPA) बढ़े हुए हैं. बैंक के शेयर लगातार लुढ़कते जा रहे हैं. रिज़र्व बैंक (RBI) रेस्क्यू के लिए आगे आया है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को तैनात किया गया है कि बचाओ इसे. महीने में 50 हजार रुपए निकासी की सीमा तय की है. राणा कपूर ने मामले से 'उचित दूरी' बनाते हुए कहा,'मैं बैंक से पिछले 13 महीने से नहीं जुड़ा हूं. तो मुझे इसके बारे में कोई क्लू नहीं है.' भयंकर प्रॉफिट में चल रहा एक बैंक दलदल में कैसे फंस गया? इसके लिए बैंक के कर्ता-धर्ता राणा कपूर पर भी नज़र डालनी चाहिए.
9 नवंबर को यस बैंक की तरफ से जारी किया गया राणा कपूर का बयान. फोटो: फेसबुक
कौन हैं राणा कपूर?
राणा कपूर ज्वैलर्स के खानदान से आते हैं. इकॉनमिक सर्कल में राणा कपूर की छवि ऐसी है कि उन्होंने कभी किसी लोन को मना नहीं किया. उनके लेनदारों में DHFL, IL&FS, अनिल अंबानी की रिलायंस, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, एसेल ग्रुप, इंडियाबुल्स, कैफे कॉफी डे जैसी कंपनियां हैं. ये सारी कंपनियां लोन डिफॉल्टर हैं. इनका असर यस बैंक पर पड़ना ही था. पड़ा. जैसा कि अंग्रेज़ी में कहा जाता है- He had it coming. 'गंगाजल' के डीएसपी भूरेलाल वाले अंदाज़ में कहें तो, 'ई तो साला होना ही था.'
इंटर्नशिप से लेकर खुद के बैंक तक का सफर
राणा कपूर दिल्ली में पैदा हुए. 1977 में श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (SRCC) से इकॉनमिक्स में बैचलर्स की डिग्री ली. 1980 में अमेरिका के न्यू जर्सी की रटगर्स यूनिवर्सिटी से MBA किया. उन्होंने अपना बैंकिंग करियर सिटीबैंक, न्यूयॉर्क से इंटर्न की तरह शुरू किया. 1980 में उन्होंने बतौर मैनेजमेंट ट्रेनी बैंक ऑफ अमेरिका (BoA) जॉइन किया. एशिया में इसकी होलसेल बैंकिंग को उन्होंने लीड किया. उन्हें बैंक के चेयरमैन की तरफ से अवॉर्ड भी मिला. यहां उन्होंने 1996 तक 16 साल काम किया. 1996 में उन्होंने ANZ Grindlays's investment bank (ANZIB) जॉइन किया. यहां वो जनरल मैनेजर और कंट्री हेड बने. अगले दो साल तक वो यहां रहे. 1998 में StanChart ने इस बैंक को टेकओवर कर लिया.
इसी दौरान उन्होंने अपना फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट शुरू करने के बारे में सोचा. तब उन्होंने अपने पत्नी के भाई अशोक कपूर और बैंकर हरकीरत सिंह के साथ Floating Rabo India Finance नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी शुरू की. डच मल्टीनेशनल बैंकिंग कंपनी रैबोबैंक की मदद से. इसके अलावा वो एक बैंक भी खोलना चाहते थे.
...और वो टाइम आ गया
2003 में बैंक वाला सपना पूरा करने का मौका आया. इस साल राणा कपूर और अशोक कपूर ने यस बैंक के लिए लाइसेंस लेने की कोशिश की. उनका टाइम सही था, क्योंकि इसी समय रिज़र्व बैंक (RBI) प्रोफेशनल लोगों को बैंकिंग लाइसेंस देने का प्रयोग कर रहा था. राणा कपूर ने दूसरी बार यस बैंक के लाइसेंस के लिए अप्लाई किया और वो सफल हुए.
बैंक शुरू हुआ और काफी फायदे में रहा. इसमें राणा कपूर का शेयर 26 फीसदी, अशोक कपूर का 11 फीसदी और रैबोबैंक इंटरनेशन का 20 फीसदी हिस्सा था. बैंकर हरकीरत सिंह उनसे अलग हो गए. बाद में उनकी पत्नी के भाई अशोक कपूर की 26/11 मुंबई हमले के दौरान ताज होटल में मौत हो गई.
26 नवंबर, 2008 को मुंबई में ताज होटल, ओबेरॉय ट्रायडेंट, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर हमले हुए थे. फोटो: India Today
आग से खेलने की शुरुआत
कपूर के शेयरों के प्राइस बढ़े और वो करोड़पति बन गए. देखते-देखते यस बैंक चौथा सबसे बड़ा निजी बैंक बन गया. देशभर में आज इसके 1000 से ज़्यादा ब्रांच हैं और 1800 एटीएम हैं. राणा कपूर ने एक दशक में बैंक को ज़ीरो से 3.4 लाख करोड़ रुपए के बराबर का बैंक बना दिया. 2016 तक बैंक काफी फायदे में था. लेकिन राणा कपूर ने खूब जमकर रिस्क लिए. आग से खेलने लगे. उन्होंने अनाप-शनाप लोन दिए. कई बैंकर मानते हैं कि राणा कपूर की स्थिति अच्छी होती, अगर वो अपने शेयर बेच देते और 2017 में यस बैंक से हट जाते. रिज़र्व बैंक ने राणा कपूर को उनके पद से हटा दिया, लेकिन वो अड़े रहे कि कभी अपने शेयर नहीं बेचेंगे. वो अपने शेयर को हीरा-मोती बताते थे.
2012 में वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम के दौरान राणा कपूर. फोटो: विकीमीडिया
बैकफुट पर राणा कपूर
राणा कपूर को कई झटके भी लगे. एक तो उनके सहयोगी और को-फाउंडर अशोक कपूर नहीं रहे. इसके बाद 2008 की वैश्विक मंदी आ गई. लोन पर निर्भर होने की वजह से यस बैंक का क्रेडिट सिकुड़ने लगा. राणा कपूर के शेयर गिरने लगे. हालांकि सरकार और रिज़र्व बैंक ने मदद की, जिससे बैंक संभला. इसके अलावा अशोक कपूर की पत्नी मधु कपूर से उनकी कानूनी खींचतान हुई. मधु अपनी बेटी शगुन को बैंक बोर्ड में शामिल करना चाहती थीं. इस तरह की लड़ाइयों को 'बोर्डरूम बैटल' कहते हैं. मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा. 2011 में राणा कपूर के पक्ष में फैसला आया.
सितंबर, 2018 में यस बैंक ने कहा कि उसने राणा कपूर से जनवरी, 2019 में CEO पद छोड़ने को कहा है. जुलाई, 2019 की 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2018 से सितंबर, 2018 तक यस बैंक के शेयर में 78 फीसदी की गिरावट आई. अक्टूबर, 2019 में शेयर और भी गिर गए. आज यस बैंक की नाव जो डूब रही है, इसमें छेद होने पहले से ही शुरू हो गए थे.
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