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सरबत खालसा क्या है, जिसे बुलाकर भगोड़ा अमृतपाल आंदोलन खड़ा करना चाह रहा है?

ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद हुई थी तो क्या हुआ था?

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भगोड़े अमृतपाल सिंह ने सरबत खालसा बुलाने की मांग की है. (फोटो: आज तक और PTI)

खालिस्तान की मांग करने वाला 'वारिस पंजाब दे' नाम के संगठन का मुखिया भगोड़ा अमृतपाल सिंह अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है. उसके दिल्ली, पंजाब और नेपाल और न जाने कहां-कहां होने की खबरें आ रही हैं. पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियां हलकान हैं. इस बीच अमृतपाल सिंह ने एक वीडियो और उसके 24 घंटे बाद एक ऑडियो जारी किया है और अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को चुनौती दी है. वो ज्ञानी हरप्रीत सिंह से उनके जत्थेदार होने का सुबूत मांग रहा है और बैसाखी के दिन यानी आने वाली 14 अप्रैल को सरबत खालसा बुलाने की मांग कर रहा है.

वीडियो में अमृतपाल सिंह कह रहा है,

"सरबत खालसा बुलाकर जत्थेदार होने का सबूत दो. अगर हमें आज भी वही सियासत करनी है तो फिर आगे जत्थेदारी करके क्या करना है. हमें आज ये बात समझ लेनी चाहिए. आज वक़्त है. कौम को एकजुट होना चाहिए. एकजुट हो जाओ, अपनी हौंद (अस्तित्व) का सुबूत देने की जरूरत है. सरकार जुर्म कर रही है. कल किसी और की भी बारी आ सकती है."

अमृतपाल सिंह ने बैसाखी के दिन साबो की तलवंडी में दमदमा साहिब पर सरबत खालसा बुलाने की मांग की है. ये सरबत खालसा क्या है, इस आर्टिकल में यही समझेंगे.

सरबत का अर्थ होता है- ‘सभी’. और खालसा, शब्द खालिस से बना है. खालिस के मायने होते हैं- ‘शुद्ध’. जैसे जब हम खालिस देशी घी कहते हैं तो उसका अर्थ होता है- शुद्ध देशी घी. 'खालिस' शब्द के अर्थ लेते हुए आप खालसा पंथ और खालिस्तान का भी शाब्दिक अर्थ समझ सकते हैं. खालिस्तान और खालसा पंथ पर हमने पहले भी विस्तार से रिपोर्ट की है. सरबत खालसा इससे अलग है. ये सिखों के सभी गुटों की एक सभा है. जो 18वीं सदी से बुलाई जाती रही है.

सरबत खालसा का इतिहास

सरबत खालसा के इतिहास के लिए खालसा पंथ के इतिहास पर नजर डालनी होगी. पंद्रहवीं सदी के आखिर में गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना की. इस परंपरा में सिखों के कुल दस गुरु हुए. इस सिलसिले के आख़िरी गुरु गोबिंद सिंह थे. गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की शुरुआत कर सिख धर्म को एक औपचारिक रूप दिया और इस धर्म के नियम कायदे तय हुए. यग दौर उथल-पुथल का था. युद्ध होते रहते थे. ऐसे में गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा फौज की शुरुआत की.

गुरु गोबिंद सिंह के अवसान के बाद सिख समुदाय की सभी मिलिट्री यूनिट्स, जो दूसरे शासकों के खिलाफ संघर्ष कर रहीं थी, उन्होंने आपस में चर्चा करने के लिए सभा बुलानी शुरू की. साल में दो बार, दिवाली और बैसाखी के मौके पर. ये सभा राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर चर्चा करती थी. सभा सभी सिखों के लिए निर्देश जारी कर सकती थी, जो सभी के लिए मान्य भी होते थे.

वापस खालसा फौज पर आते हैं.

गुरु गोबिंद सिंह ने बंदा सिंह बहादुर को खालसा फ़ौज का लीडर बनाया. साल 1716 में मुग़लों ने बाबा बंदा सिंह बहादुर को मार दिया. उनकी मौत के बाद सिखों ने मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया. इससे मुगल शासन को बड़ा नुकसान हुआ. साल 1733 में मुगलों ने सिखों के साथ संधि की कोशिश की और उन्हें नवाब की उपाधि देने की पेशकश की. इंडियन एक्सप्रेस अखबार लिखता है कि मुग़ल सूबेदार जकारिया खान की ये पेशकश सिखों को मंजूर नहीं थी. आपस में विरोध भी हुआ और सरबत खालसा सभा बुलाई गई. जिसमें लम्बी चर्चा के बाद तय हुआ कि उपाधि ली जाएगी लेकिन कोई बड़ा नेता ये उपाधि नहीं लेगा. सिख, जकारिया खान को ये संदेश देना चाहते थे कि नवाब की उपाधि उनके लिए बड़े मायने नहीं रखती है. इसके बाद कपूर सिंह नाम के एक व्यक्ति को नवाब की उपाधि लेने को कहा गया. नवाब कपूर सिंह बाद में सिख समुदाय के बड़े नेता साबित हुए.

नवाब कपूर ने सिखों को एक करने के लिए दल खालसा की स्थापना की. और इसका नेतृत्व करने के लिए सरबत खालसा ने सरदार जस्सा सिंह अहलूवालिया को नियुक्त किया. दल खालसा को दो हिस्सों में बांटा गया था. बुड्ढा दल और तरुण दल. बुड्ढा दल में 40 की उम्र से ऊपर के अनुभवी लोग होते थे और तरुण दल में 40 की उम्र से कम के लोग. बुड्ढा दल का काम धर्म का प्रचार प्रसार करना और सिख गुरुद्वारों की रक्षा करना होता था. वहीं तरुण दल एक्टिव ड्यूटी पर तैनात रहता था.

आगे जाकर इन दोनों दलों को 12 छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा गया. हर छोटा दल अपने अपने सूबे की रक्षा करता और उसमें विस्तार भी करता. इस दौरान जीती गई जमीन का हिसाब हरमंदिर साहिब में जाकर लिखा जाता. बाकायदा दस्तावेज़ तैयार होते. आगे जाकर इन दस्तावेज़ों के आधार पर रियासतें तैयार हुईं, जिन्हें मिस्ल कहा जाने लगा. क्योंकि दल खालसा के 12 हिस्से थे. इसलिए सिखों की रियासत 12 मिस्लों के रूप में तैयार हुई. अठारहवीं सदी के अंत तक ये मिस्लें यूं ही चलती रहीं और कई बार इनमें आपसी लड़ाइयां भी हुईं. लेकिन इन मिस्लों को एकजुट रखने में सरबत खालसा की भूमिका प्रभावी रही. गुरु परंपरा अब भले नहीं रही थी. लेकिन मिस्लों में जब भी आंतरिक संघर्ष होता, सभी मिस्ल सरबत खालसा बुलाते और एक साथ बैठकर मामला हल कर लिया जाता.

सरबत खालसा की जरूरत कम कैसे हुई?

साल 1799 में रणजीत सिंह ने लाहौर जीता था और 1801 में उन्होंने खुद को पंजाब का महराजा घोषित कर दिया. उन्होंने 12 मिस्लों को एक किया या कहें कि मिस्ल ख़त्म कर, सिख साम्राज्य की शुरुआत की. मिस्ल ख़त्म हुए तो साथ ही साथ सरबत खालसा बुलाने की जरूरत भी कम हो गई. महाराजा रणजीत सिंह ने अपने राज को सरकार खालसा का नाम दिया था. और देखते ही देखते उन्होंने अगले दशकों में सिख साम्राज्य को तिब्बत और अफ़ग़ानिस्तान की सीमाओं तक पहुंचा दिया.

20 वीं सदी में गुरुद्वारों पर नियंत्रण के मसले के लिए सरबत खालसा सभा बुलाई गई थी. इसके बाद साल 1920 में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) का गठन हुआ. जिसके बाद सरबत खालसा जैसी संस्था की जरूरत और कम हो गई. अपने गठन के बाद से आज तक सिखों के मसलों पर SGPC ने निर्णय लेने का एक तंत्र बना रखा है. हालांकि, इस बीच कुछ मौकों पर सरबत खालसा सभा बुलाई गई.

-साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ. अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सेना की कार्रवाई हुई थी, जिसमें खालिस्तान की मांग करने वाला जरनैल सिंह भिंडरांवाले मारा गया था. इसके बाद कुछ लोगों ने फिर सरबत खालसा बुलाई. हालांकि, SGPC और बाकी प्रमुख सिख संगठन इस बार सरबत खालसा का हिस्सा नहीं बने.

-इसके बाद 26 जनवरी, 1986 को सरबत खालसा बुलाई गई. इसमें कुछ सिखों ने अकाल तख़्त पर कार सेवा करने को लेकर चर्चा की मांग की थी. अकाल तख़्त, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार में क्षतिग्रस्त हो गया था. इसी साल बाद में सिखों के भविष्य के संघर्ष पर चर्चा के लिए एक समिति बनाई गई. इसने भिंडरांवाले की मौत के बाद एक बार फिर खालिस्तान की मांग शरू कर दी. 

-इसके बाद साल 2015 में 10 नवंबर के रोज आख़िरी बार सरबत खालसा बुलाई गई. इसमें अकाल तख़्त, तख़्त दमदमा साहिब और तख़्त केशगढ़ के जत्थेदारों को हटाने और नई नियुक्तियां करने के प्रस्ताव पारित किए गए और अब भगोड़े अमृतपाल सिंह ने सरबत खालसा बुलाने की मांग की है.

आगे क्या होता है, हम ख़बरों के जरिए अपडेट करते रहेंगे. लेकिन इतना जरूर है कि सिखों और पंजाब के इलाके के इतिहास में सरबत खालसा की एक मजबूत भूमिका जरूर रही है.  

वीडियो: फरार अमृतपाल सिंह ने सोशल मीडिया पर लाइव वीडियो जारी किया, 14 अप्रैल को कुछ बड़ा करने का ऐलान