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आज क्रांति का सबसे बड़ा दिन है, जिनकी कहानियां पढ़कर नसों में गरम खून दौड़ने लगता है

भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, अवतार सिंह संधू उर्फ ‘पाश’ और राममनोहर लोहिया...

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भगत सिंह, अवतार सिंह संधू उर्फ ‘पाश’ और राममनोहर लोहिया (फोटो - विकी)

आज क्रांति का सबसे बड़ा दिन है. चार गुनी क्रांति का दिन. क्योंकि 23 मार्च को ही शहीद दिवस होता है. आज के दिन ही भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी. 23 मार्च ही वो दिन था, जब इंकलाबी पंजाबी कवि अवतार सिंह संधू उर्फ ‘पाश’ को खालिस्तानी उग्रवादियों ने गोली मार दी थी. और यही वो दिन है, जब राममनोहर लोहिया का जन्म हुआ था. आज इस मौके पर इनके बारे में ढेर सारा पढ़िए. जो हम खास आज के दिन के लिए आपके लिए लेकर आए हैं. इस आर्टिकल के जरिये वो सारे किस्से, सारी बातें और सारे वीडियोज आप तक पहुंचाने की कोशिश है.

भगत सिंह का जिक्र सब करते हैं. तमाम पंथ वाले. अपने हिसाब से. किसी को विचार दिखते हैं, कोई उनके हाथ में बंदूक बस देख पाता है. धर्म के नाम पर भरे बैठे भी भगत सिंह को अपना आदर्श बताते हैं. ये जाने बिना कि वो हाथ में बंदूक लेने के अलावा भी बहुत कुछ कह गए हैं. ये जाने बिना कि वो नास्तिक थे. नास्तिक आपके धर्म के खिलाफ नहीं होते. नास्तिकता क्या है, आप यहां से जान सकते हैं. ये एक प्रतिनिधि पत्र है, जिससे आपको नास्तिकता का मोटा-मोटी हिसाब लग जाता है. जैसे ये हिस्सा जिसमें वो लिखते हैं,

"मैं यह समझने में पूरी तरह से असफल रहा हूं कि अनुचित गर्व या वृथाभिमान किस तरह किसी व्यक्ति के ईश्वर में विश्वास करने के रास्ते में रोड़ा बन सकता है? किसी वास्तव में महान व्यक्ति की महानता को मैं मान्यता न दूं, यह तभी हो सकता है, जब मुझे भी थोड़ा ऐसा यश प्राप्त हो गया हो जिसके या तो मैं योग्य नहीं हूं या मेरे अन्दर वे गुण नहीं हैं, जो इसके लिये आवश्यक हैं. यहां तक तो समझ में आता है. लेकिन यह कैसे हो सकता है कि एक व्यक्ति, जो ईश्वर में विश्वास रखता हो, सहसा अपने व्यक्तिगत अहंकार के कारण उसमें विश्वास करना बन्द कर दे? दो ही रास्ते सम्भव हैं. या तो मनुष्य अपने को ईश्वर का प्रतिद्वन्द्वी समझने लगे या वह स्वयं को ही ईश्वर मानना शुरू कर दे."

शहीद भगत सिंह बम फेंककर क्रांतिकारी नहीं बने. अपने विचारों से बने. उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी खासियत उनके विचार हैं. 23 की उम्र में वह जो कुछ लिख गए, वह उन्हें आजादी के दूसरे सिपाहियों से बिल्कुल अलग खड़ा करता है.

उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग 
किसी दृश्य की तरह बचे 
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झाँकी की 
देश सारा बच रहा बाक़ी

उसके चले जाने के बाद 
उसकी शहादत के बाद 
अपने भीतर खुलती खिडकी में 
लोगों की आवाज़ें जम गयीं

उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने 
अपने चेहरे से आँसू नहीं, नाक पोंछी 
गला साफ़ कर बोलने की 
बोलते ही जाने की मशक की

उससे संबंधित अपनी उस शहादत के बाद 
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया

शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था

भगत सिंह पर ये कविता लिखी थी पाश ने. पाश और भगत सिंह में एक चीज साझी है. दोनों को 23 मार्च के दिन मार दिया गया. भगत सिंह पर कब्जा जमा रखा है पॉलिटिकल पार्टियों ने. दक्षिणपंथी हो चाहे वामपंथी. भगत सिंह इसीलिए हमेशा लाइमलाइट में रहे. लेकिन बाकी दो क्रांतिकारियों की उतनी बात नहीं होती. कोई बात नहीं. सबको अपना अपना हीरो चुनने का हक है. इससे उनके बलिदान की कीमत कम नहीं होती. खैर पॉलिटिक्स जाए किसी और का घर बसाए. हमको अपने शहीदों को याद करेंगे. अपने तरीके से. आपको भी याद करवाएंगे.

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वैसे आज जन्मदिन भी है. राम मनोहर लोहिया का. लोहिया जो कहते थे, सत्ता को चुनौती देनी है तो सबसे पहले उसकी जड़ों में मट्ठा डालना चाहिए. राम मनोहर लोहिया के किस्से बहुत सारे हैं. हमने उनके कई क़िस्से लिखे हैं. यहां पढ़िए - 

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