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कौन हैं शांति सिंह धारीवाल, जिन्होंने गहलोत के कहने पर अपने घर पर विधायकों को बुला लिया?

राजस्थान सरकार में नंबर-2 की हैसियत रखते हैं धारीवाल.

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शांति सिंह धारीवाल. (फोटो: आजतक)

25 सितंबर की दोपहर. जयपुर में धूप नहीं निकली थी, बादल थे. राजस्थान के मंत्रियों और कांग्रेस विधायकों की गाड़ियां धीरे-धीरे एक मंत्री के घर पहुंच रही थीं. जब उम्मीद के मुताबिक विधायक पहुंच गए, तो बैठक शुरू हुई. वो बैठक जिसने कांग्रेस विधायक दल की बैठक से पहले ही खेल कर दिया. मंत्री के घर पर बड़ी सी टेबल को मंच का रूप दिया गया. यहां बड़े नेता बैठे थे. सामने बाकी सारे विधायक. मंच पर हाफ पिंक शर्ट पहने एक मंत्री खड़े होते हैं. उम्र 78 है, लेकिन आवाज़ में पूरी ठसक. वो कहते हैं,

"आपने (कांग्रेस आलाकमान) ने कहा, गहलोत के पास दो पद हैं. उनके पास आज कौन से दो पद हैं, जो इस्तीफा मांग रहे हैं. अभी उनके पास सिर्फ मुख्यमंत्री पद है. जब दूसरा पद (पार्टी अध्यक्ष) मिल जाए, तब इस्तीफा देने की बात उठेगी. आज इस्तीफा मांगने की कौन सी बात उठती है. ये सारा षड्यंत्र था, इसी षड्यंत्र के तहत पंजाब खोया, उसी षडयंत्र के तहत राजस्थान भी खोने जा रहे हैं. अगर हम लोग संभल जाएं, तो राजस्थान बचेगा, नहीं तो नहीं बचेगा."

कांग्रेस आलाकमान पर सीधे सवाल उठाने वाले इस नेता का नाम है शांति सिंह धारीवाल. ये वही मंत्री हैं, जिनके घर कांग्रेस विधायकों की बैठक हुई और उसके बाद 80 से ज्यादा विधायकों ने इस्तीफा देने की बात कह दी. धारीवाल के तेवर इस बात को बयां कर रहे हैं कि वो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कितने करीबी हैं और बैठक उन्हीं के घर क्यों हुई.

कौन हैं शांति सिंह धारीवाल?

वैसे तो राजस्थान के कई मंत्री अपने अपने समर्थकों के सामने इस बात का दम भरते हैं कि वो सरकार में नंबर दो हैं, लेकिन सर्वमान्य तौर पर धारीवाल को ही अनौपचारिक रूप से इसका दर्जा मिला है. नॉर्थ कोटा की सीट से तीन बार के विधायक शांति सिंह धारीवाल, अशोक गहलोत के सबसे खास मंत्रियों में एक हैं. इस बात का अंदाजा आप ऐसे भी लगा सकते हैं कि गहलोत की इस सरकार में धारीवाल के पास शहरी विकास, कानून और संसदीय कार्य जैसे भारी भरकम मंत्रालय हैं.

इसे संयोग कहें या प्रयोग, लेकिन राजस्थान में जब कांग्रेस सत्ता में आती है तो धारीवाल भी MLA बनते हैं और जब कांग्रेस हारती है, वो भी चुनाव हार जाते हैं. धारीवाल पहली बार 1998 में विधायक बने, दूसरी बार 2008 और तीसरी बार 2018 में. संयोग ये भी है कि तीनों बार गहलोत ही मुख्यमंत्री भी बनते हैं. हालांकि, इससे पहले साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी की 404 सीट वाली आंधी में धारीवाल कोटा से ही सांसद भी चुने गए थे.

राजस्थान के कोटा संभाग में धारीवाल की अच्छी पकड़ मानी जाती है. इस संभाग में चार जिले आते हैं. कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां. पार्टी और राज्य में धारीवाल के रसूख का एक कारण ये भी है कि इस संभाग के अंतरगत 40 से ज्यादा विधानसभा सीटें आती हैं.

धारीवाल गहलोत के वफादार होने के साथ-साथ बड़े बिज़नेसमैन भी हैं. कई कंपनियों के मालिक धारीवाल कंस्ट्रक्शन के बड़े प्लेयर हैं. उनका बिज़नेस बाहर के देशों में भी है. कोटा के कई बड़े प्रोजेक्ट्स में धारीवाल का अच्छा शेयर बताया जाता है. गहलोत से उम्र में बड़े धारीवाल बखूबी जानते हैं कि बिज़नेस कैसे चलाना है और राजनीति में कैसे चलना है.

हालांकि, धारीवाल अपने परिवार से अकेले ही राजनीति करते हैं. उनके बच्चे राजनीति में पूरी तरह दूर बताए जाते हैं.

25 सितंबर को जिस समय धारीवाल के घर पर विधायकों की बैठक शुरू हो रही थी, उस समय अशोक गहलोत जैसलमेर के तनोट माता मंदिर में दर्शन करने गए थे. तो क्या ये माना जाए कि इस पूरी बगावत का नेतृत्व धारीवाल कर रहे थे. इस पर राजस्थान की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले और इंडिया टुडे मैग्जीन से जुड़े आनंद चौधरी कहते हैं,

इस पूरे सियासी ड्रामे की स्क्रिप्ट तो पहले ही लिखी जा चुकी थी. नाटक के रचयिता खुद गहलोत थे. धारीवाल को तो बस एक रोल मिला था. क्योंकि धारीवाल गहलोत के करीबी भी है और सरकार में नंबर दो भी, इसलिए उन्हें बड़ा किरदार दिया गया.

हालांकि, इस पूरे खेल में धारीवाल के अलावा और भी कई बड़े किरदार बताए जाते हैं. इनमें प्रताप सिंह खाचरियावास, लाल चंद कटारिया, रामलाल जाट, अमीन कागजी और महेंद्र चौधरी जैसे नेता भी बताए जाते हैं.

वीडियो: कांग्रेस आलाकमान को चेतावनी देते राजस्थान के मंत्री शांति धारीवाल ने क्या कहा?