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जिस LTTE आतंकी प्रभाकरण की मौत का दुनिया ने जश्न मनाया, वो अभी भी ज़िंदा घूम रहा है?

कैसे गोली मारी गई थी प्रभाकरण को? इस दावे में कितना सच है?

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पाझा नेदुमारन (बाएं) और LTTE लीडर प्रभाकरण | फोटो: ANI/आजतक

लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल इलम (LTTE) प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण जिंदा हैं. ऐसा दावा किया है पाझा नेदुमारन ने. नेदुमारन वर्ल्ड तमिल फेडरेशन के अध्यक्ष हैं. न्यूज़ एजेंसी ANI के मुताबिक उन्होंने सोमवार, 13 फरवरी को मीडिया से बात करते हुए कहा,

'मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हमारे तमिल नेता प्रभाकरण जिंदा हैं और वह ठीक हैं. वो अपने परिवार के संपर्क में हैं और जल्द ही, सही समय आने पर प्रभाकरण दुनिया के सामने आएंगे. मुझे उम्मीद है कि इस खबर से उन अटकलों पर विराम लगेगा, जो लिट्टे प्रमुख के बारे में फैलाई गई हैं.'

नेदुमारन ने आगे कहा कि प्रभाकरण जल्द ही तमिल जाति की मुक्ति के लिए एक योजना की घोषणा करने वाले हैं. दुनिया के सभी तमिल लोगों को मिलकर उनका समर्थन करना चाहिए.

#कौन था LTTE लीडर प्रभाकरण?

वेलुपिल्लई प्रभाकरण. आधी दुनिया आतंकवादी बताती है. करोड़ों लोग भगवान मानते हैं. कई अखबारों और पत्रिकाओं ने हत्यारा बताया, तो 'न्यूज़ वीक' जैसी प्रतिष्ठित मैगज़ीन ने उनकी तुलना महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा से की थी. प्रभाकरण जिसने अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर ओसामा बिन लादेन के हमला करने से चार साल पहले कोलंबो के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में उसी कैलीबर का आतंकी हमला करवा दिया था.

प्रभाकरण से मिलने वाले पत्रकार उन्हें दूरदर्शी और बहुत ही काबिल व्यक्ति बताते थे. वहीं उसे बेहद खतरनाक और क्रूर बताने वालों की गिनती भी कम नहीं थी. प्रभाकरण की जीवनी लिखने वाले पत्रकार बतलाते हैं कि प्रभाकरण किताबों और फ़िल्मों से निशानेबाज़ी सीखा करते थे. उन्हें अमेरिकन वेस्टर्न फ़िल्में, जिसमें काऊबॉयज़ पलक झपकते ही बंदूक निकाल गोली मार देते हैं, देखना बहुत पसंद था. कहते हैं प्रभाकरण घंटों ऐसी ही वेस्टर्न स्टाइल में गोली मारने की प्रैक्टिस भी किया करते थे.

प्रभाकरण का जन्म 26 नवंबर 1954 में श्रीलंका के जाफ़ना जिले के शहर वाल्वेटिथुरई में हुआ था. सीलोन सरकार में जिला भूमि अधिकारी थिरुवेंकदम वेलुपिल्लई की प्रभाकरण चौथी और अंतिम संतान थे. प्रभाकरण के पिता संपन्न परिवार से थे. उनके परिवार ने वाल्वेटिथुरई में कई मंदिर बनवा रखे थे. किताबों में खोये रहने वाले प्रभाकरण को पढ़ना तो अच्छा लगता था, लेकिन स्कूल रास नहीं आता था. लिहाज़ा 15 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया. अब दिन भर गुलेल लिए बंदरों, चिड़ियों और गिलहरियों पर निशाना साधा करते थे.

जैसे-जैसे प्रभाकरण बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उन्हें अपने और अपने आसपास के तमिलों के साथ श्रीलंकन सरकार द्वारा किए जाने वाले अत्याचार और भेदभाव बुरी तरह कचोटने लगे थे.
किशोर अवस्था में प्रभाकरण ने TNF (तमिल यूथ फ्रंट) नाम के स्टूडेंट ग्रुप को जॉइन कर लिया. कुछ वक़्त इस ग्रुप का हिस्सा बने रहने के बाद 17 साल की उम्र में प्रभाकरण ने TNT (तमिल न्यू टाइगर्स) नाम से ग्रुप बनाया. धीरे-धीरे प्रभाकरण तमिलों को इस ग्रुप में जोड़ता रहा और संगठन को मजबूत बनाता रहा. संगठन को मजबूत होता देख प्रभाकरण के मन में जो अपराध के प्रति छटांक भर भय था, वो भी मिट गया.

27 जुलाई 1973 को 19 साल की उम्र में प्रभाकरण ने अपने जीवन का पहला कत्ल किया. जाफ़ना के मेयर अल्फ्रेड दुरैअप्पा का. प्रभाकरण ने दुरैअप्पा की हत्या उसकी छोटी बेटी के सामने सीधे माथे के बीचोंबीच पॉइंट ब्लेंक रेंज में गोली मार कर की, जब दुरैअप्पा मंदिर में दाखिल हो रहे थे.

# फॉर्मेशन ऑफ़ LTTE

1976 तक TNT (तमिल न्यू टाइगर्स) में इतने लोग शामिल हो चुके थे कि खुद एक प्राइवेट गवर्मेंट की तरह काम करने लगे थे. LTTE का एक डिपार्टमेंट ऑफ़ एजुकेशन भी बन गया था. जो स्कूल चला रहा था. इस स्तर का समर्थन पा कर प्रभाकरण ने तमिलों के लिए एक नए राज्य/देश 'तमिल ईलम' की मांग सरकार के सामने उठा दी. और TNT (तमिल न्यू टाइगर्स) का नाम तब्दील करके लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) रख दिया. जिसका मकसद किसी भी हालत में तमिलों के लिए एक अलग देश बनाना था. LTTE के सैनिकों को वहां के लोकल 'तमिल टाइगर' बुलाते थे.

मगर ऐसा भी नहीं था कि सारे तमिल टाइगर अपनी मर्ज़ी से इस LTTE के जंगल को जॉइन करते थे. कईयों को समाज से निकाले जाने या मारे जाने के डर से मजबूरन LTTE में अपने बच्चों को भेजना पड़ता था. कई लोग तो बच्चों को LTTE ना जॉइन करने के लिए पैसा देते थे. तो वहीं कुछ अपने बच्चों को बचाने के लिए विदेश भेज देते थे.

# एंड ऑफ़ LTTE

वहीं श्रीलंका में LTTE का आतंक बदस्तूर जारी रहा. LTTE ने श्रीलंका के दो प्रेसिडेंट्स को मारने की कोशिश की. जिसमें एक बार वो कामयाब भी हुए. भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की भी हत्या करवाई. लेकिन, आपसी फूट और बाकी वजहों से गुजरते सालों में LTTE की ताकत कमज़ोर पड़ने लगी थी. अब श्रीलंकन सरकार उन पर हावी होती जा रही थी. राजीव गांधी की हत्या का बदला लेने के लिए इस काम में भारत भी श्रीलंका सरकार की मदद कर रहा था.

भारत ने श्रीलंका को आधुनिक हथियारों, M-17 हेलीकाप्टर समेत कई अन्य मिलिट्री इक्विपमेंट भी उपलब्ध कराए. जिसकी बदौलत 2009 में श्रीलंका ने LTTE को हरा दिया और LTTE चीफ़ प्रभाकरण को गोली मार के खत्म कर दिया गया. हालांकि इस सिविल वॉर को जीतने के लिए श्रीलंकन सरकार ने भी अमानवीयता की कोई कसर नहीं छोड़ी थी. मानव अधिकारों को तार -तार करते हुए सेना ने बच्चों, बूढों और औरतों किसी को नहीं बख्शा. यहां तक की प्रभाकरण के 12 साल के बच्चे को भी गोली से भून दिया.

कई पत्रकार ये भी दावा करते हैं कि प्रभाकरण को ज़िंदा पकड़ कर सेना उसे एक गुप्त जगह ले गई थी. जहां उसे थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया. और बाद में गोली मार कर फेंक दिया. साफ़ है कि श्रीलंकन सरकार ऐसे किसी भी दावों को सिरे से नकार देती है.

वीडियो: तारीख़: कैसे पकड़ा गया था भारत का मोस्ट वांटेड आतंकवादी