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सचिन पायलट ने 2020 में क्या किया था, जिसको लेकर विधायक अब चिट्टा लगा रहे हैं?

जब सचिन पायलट ने बगावत कर दी थी, और विधायकों को लेकर दिल्ली चले आए थे!

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सचिन पायलट और अशोक गहलोत. (फोटो- इनहाउस)

कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अब एक महीने से भी कम का समय बचा है. लेकिन राजस्थान में पार्टी अपने सबसे बड़े संकट से जूझ रही है. ये कहना भी गलत नहीं होगा कि जिन्हें संकट से उबारने का जिम्मा दिया जा रहा था उन्होंने ही पार्टी की फजीहत कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस पूरे सियासी ड्रामे के केंद्र में हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. मौजूदा हालात तो कहते हैं कि गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान से ही बगावत कर दी है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में गहलोत की सियासी बंदूक का मुंह है सचिन पायलट की तरफ. और अशोक गहलोत और सचिन पायलट की राजनीतिक लड़ाई की कहानी अब किसी से छुपी नहीं है. ये लड़ाई साल 2020 में तब भी खुलकर सामने आ गई थी कि सचिन पायलट रूठकर अपने गुट के विधायकों के साथ मानेसर के रिज़ॉर्ट चले गए थे. गहलोत समर्थक विधायकों ने आलाकमान के सामने जिस 2020 की बगावत का जिक्र किया है वो यही थी. गहलोत के समर्थकों ने कहा कि अगर वो मुख्यमंत्री पद से हटते हैं तो उनमें से किसी को कुर्सी नहीं मिलनी चाहिए जिन्होंने साल 2020 में बगावत की थी.

क्या हुआ था जुलाई 2020 में?

वैसे तो अशोक गहलोत Vs सचिन पायलट साल 2018 में राजस्थान में कांग्रेस सरकार के शपथग्रहण से पहले ही शुरू हो गया था, लेकिन जुलाई आते-आते स्थिति बगावत तक पहुंच गई. साल 2020. जून का महीना चल रहा था. उसी साल मार्च में सचिन पायलट के दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी का दामन थाम चुके थे. जून में राजस्थान में 3 राज्यसभा सीटों का चुनाव था. अशोक गहलोत को डर था कि कहीं सचिन पायलट खेमा दगाबाजी ना कर जाए. इसलिए 19 जून के चुनाव से पहले 11 जून को ही विधायकों की बाड़ेबंदी कर दी थी. इसमें चुनाव में सब कुछ गहलोत के मुताबिक ही रहा लेकिन अंदरखाने उन्होंने पायलट पर निशाना साधना शुरू कर दिया था. ये झगड़ा जुलाई आते-आते गुप्त रखने की सीमाएं लांघ गया. इसकी वजह है विधायकों की खरीद-फरोख्त मामले में राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी SOG का नोटिस. ये नोटिस कई निर्दलीय विधायकों के साथ ही डिप्टी सीएम सचिन पायलट को भी भेजा गया. बाद में सीएम अशोक गहलोत को भी भेजा गया. पायलट और उनके साथी विधायक शिकायत लेकर दिल्ली पहुंच गए.

अंदरखाने से खबर उड़ी कि अशोक गहलोत के इशारों पर सचिन पायलट को नोटिस भेजा गया है. पायलट ने इसी नोटिस को वजह बताकर बगावत कर दी. जयपुर छोड़कर दिल्ली पहुंच गए. इसके बाद पायलट विधायकों के साथ मानेसर के रिज़ॉर्ट में शिफ्ट हो गए.  बताया जा रहा था कि तब इनके साथ 25 विधायक थे. 12 जुलाई को पायलट ने अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आ जाने का ऐलान कर दिया. सरकार को गिराने के संकेत देने लगे. पायलट गुस्से में थे और अशोक गहलोत को सबक सिखाना चाहते थे. इंडिया टुडे के साथ एक बातचीत में कह भी दिया था कि चुनाव उन्होंने जीता, लेकिन अशोक गहलोत बिना किसी काम के मुख्यमंत्री बनने का दावा लेकर आ गए. यहां तक कहा जाने लगा कि सचिन पायलट अशोक गहलोत की सरकार गिराएंगे और बीजेपी के साथ मिलकर मुख्यमंत्री बनेंगे.

लेकिन सचिन पायलट के खतरे को भांपते हुए गहलोत अपनी रणनीति को पक्का करने में जुट गए थे. जितने विधायकों के साथ पायलट ने बगावत की थी उससे गहलोत की सरकार के संकट की स्थिति बनना तय था. लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी इस पूरे घटनाक्रम में कभी भी बैकफुट पर नजर नहीं आए. पहले गांधी परिवार को भरोसे में लिया और उसके बाद विधायकों को एकजुट करने की कवायद शुरू की. इस बीच गहलोत लगातार मीडिया के सामने आते रहे और सचिन पायलट को खुली चुनौती देते हुए खरीखोटी सुनाते रहे. यहां तक की गहलोत ने मीडिया से बात करते हुए पायलट को 'निकम्मा' तक कह दिया था.

गहलोत ने तब कैसे बचाई थी सरकार?

राजस्थान में अभी नंबरगेम वाली कश्मकश सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच चल रही थी. किसके साथ कितने विधायक हैं, 13 जुलाई, 2020 को इसी की आजमाइश हुई. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायक दल की बैठक बुलाई. बैठक सीएम आवास पर थी. बैठक का मकसद गहलोत खेमे के विधायकों को एकजुट करने का था. बैठक के दौरान थोड़ी देर के लिए मीडिया को बुलाकर ये भी दिखाया गया कि गहलोत कितने मजबूत हैं. इस दौरान गहलोत खेमे के विधायकों की गितनी 100 से 105 बताई गई. ये गिनती पत्रकारों द्वारा की हुई थी. कांग्रेस नेताओं ने तो बैठक के बाद कहा कि 115 विधायक आए थे. यानी इस बात को साबित करने की कोशिश की गई कि विधानसभा में बहुमत के लिए जितने विधायकों की जरूरत है उससे कहीं ज्यादा विधायक गहलोत के साथ हैं.

राजस्थान में विधानसभा की कुल सीटें हैं 200. बहुमत के लिए चाहिए 101. सचिन पायलट वाली बगावत से पहले कांग्रेस के पास इतने विधायक थे. इसके अलावा 6 बीएसपी के विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे तो कुल विधायक हुए 107. 13 जुलाई, 2020 वाली बैठक में करीब 15-20 कांग्रेस विधायक नहीं आए. लेकिन उसके बाद भी गहलोत गिनती 100 से ऊपर ले गए. कैसे? छोटूभाई वसावा की भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक गहलोत कैंप में पहुंच गए. सीपीएम विधायक बलवान पूनिया बैठक में पहुंचे और आरएलडी के सुभाष गर्ग भी गहलोत के साथ आ गए. इसके अलावा कुछ निर्दलीय विधायकों का भी गहलोत को समर्थन मिला. यानी गहलोत रेगिस्तान के धोहरों में मजबूती से टिके रहेंगे. सूत्रों ने जानकारी दी कि गहलोत खेमे में की बैठक में 106 विधायक शामिल हुए थे. बाद में तीन और विधायकों के समर्थन की बात कही गई. तो गहलोत खेमा 109 विधायकों का दम भर रहा था.

खैर, गहलोत ने सारे सियासी तिकड़मों को साधते हुए सरकार बचा ली. बाद में सचिन पायलट को भी कांग्रेस आलाकमान मनाने में कामयाब हो गया. 

वीडियो: सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच ऐसे सुलझ सकता है मुख्यमंत्री की कुर्सी का पेेंच?