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जब आर्मी का अपना जनरल ही बन गया मुसीबत!

1971 वॉर का हीरो आर्मी का दुश्मन क्यों बन गया?

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1971 युद्ध में भारतीय सेना के हीरो रहे शाबेग सिंह, सेना से बर्खास्ती और सरकार से मिले अपमान के बाद, भिंडरावाले के साथ जुड़ गए. ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान जनरल शाबेग सिंह भारतीय सेना के खिलाफ खड़े थे. (तस्वीर- Getty/wikimedia commons)

लेफ़्टिनेंट जनरल VK नायर अपनी आत्मकथा, ‘फ्रौम फटीग्स टू सिवीज’ में एक क़िस्सा बताते हैं, जून 1984 की बात है. नायर कार में घर लौट रहे थे. कार में उनका एक साथी भी था. दोनों दिन भर ऑपरेशन रूम में थे. गोल्डन टेम्पल से उग्रवादियों का सफ़ाया करने के लिए ऑपरेशन की तैयारी पूरी हो चुकी थी. सिर्फ़ एक चीज़ बाक़ी थी. ऑपरेशन का नाम तय नहीं हुआ था. तभी रास्ते में नायर की नज़र एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर पड़ी. दुकान में एक फ्रिज रखा था. जिसपे  एक नाम चस्पा था-ब्लू स्टार. ये देखकर नायर ने तय किया, ऑपरेशन का नाम ब्लू स्टार होगा. (Operation Blue Star)

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आगे पढ़िए कहानी भारतीय आर्मी के उस पूर्व जनरल की जो ऑपरेशन ब्लू स्टार में उग्रवादियों की तरफ़ से लड़ रहा था. जिसने कभी पाकिस्तानी फ़ौज के दांत खट्टे किए थे लेकिन बाद में पाक प्रोपगेंडा का एक टूल बन गया. साल 2019. भारत पाकिस्तान के बीच एक रेयर अच्छा काम हुआ. सीमा पर सिख श्रद्धालुओं की आवाजाही के लिए करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ. इस तरफ़ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया तो उस तरफ़ पाकिस्तान के PM इमरान खान से. (General Shabeg Singh)

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Shabeg Singh 1971 war
1971 में बांग्लादेश के संघर्ष के दौरान शाबेग सिंह को जनरल सैम मानेक शॉ ने मुक्ति वाहिनी को ट्रेनिंग देने की ज़िम्मेदारी सौंपी थी (तस्वीर- wikibharat.org)

इस मौक़े पर पाकिस्तानी सरकार की तरफ़ से एक गाना भी लॉन्च किया गया. यहां तक तो कोई दिक़्क़त नहीं थी. लेकिन जब गाने का विडियो सामने आया, एक नया विवाद शुरू हो गया. विडियो एक हिस्से में जरनैल सिंह भिंडरावाले(Jarnail Singh Bhindranwale), अमरीक सिंह खालसा और शाबेग सिंह(Shabeg Singh) के पोस्टर दिख रहे थे. यानी वो तीन लोग जिन्होंने पंजाब में अलगाववाद की हवा भड़काई. और ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए.

देश के लिए सिख फौजी ने केश काट लिए 

इन तीनों में शाबेग सिंह की कहानी बड़ी दिलचस्प है. क्योंकि इन्हीं शाबेग ने 1948, 1965 और 1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जंग लड़ी थी(Indo-Pakistani War of 1971). शाबेग तब मेजर जनरल शाबेग हुआ करते थे. 1971 की एक शाम फ़ील्ड मार्शल मानेकशॉ(Sam Manekshaw) ने शाबेग को अपने कमरे में बुलाया और उन्हें एक बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी. शाबेग को मुक्ति बाहिनी को ट्रेनिंग देनी थी. शाबेग बांग्लादेश गए. अंडरकवर. बल्कि इस दौरान पहचान बदलने के लिए उन्होंने अपने केश भी कटवा लिए थे. एक सिख के लिए ये कितनी बड़ी बात है, आप समझ सकते हैं. लेकिन शाबेग देशभक्ति के जज़्बे में इसके लिए भी तैयार हो गए थे. शाबेग के बेटे प्रबपाल सिंह BBC से बात करते हुए एक क़िस्सा बताते हैं.

युद्ध के बाद कुछ पाकिस्तानी फ़ौजियों को जबलपुर में रखा गया था. इस कैम्प के इंचार्ज शाबेग सिंह थे. प्रबपाल बताते हैं इस कैम्प में पाकिस्तानी फ़ौज के कई बड़े अधिकारियों को भी रखा गया था. इनमें से एक थे, मेजर जनरल राव फ़रमान अली. एक रोज़ जब प्रबपाल अपने पिता के साथ कैम्प में मौजूद थे, एक दूसरे पाक जनरल ने शाबेग की ओर इशारा किया और फ़रमान अली से पूछा,

'इसे पहचाना?'. फ़रमान अली ने जवाब दिया, 'शायद कहीं देखा है'. शाबेग ने ये सुनकर अपनी पगड़ी उतार दी. फ़रमान अली तुरंत बोले 'यू आर मिस्टर बेग'. इस पर शाबेग ने अपनी पगड़ी पहन कर कहा, 'आई एम जनरल शाबेग सिंह'.

Shabeg Singh
शाबेग सिंह का जन्म 1925 में पंजाब के खियाला गांव में हुआ था.1942 में अंग्रेज़ी अफ़सरों ने उन्हें भारतीय सेना के लिए चुन लिया (तस्वीर- ichowk.in)

प्रबपाल सिंह को ये घटनाक्रम कुछ समझ नहीं आया. उन्होंने खुद फ़रमान अली से पूछा. तब फ़रमान अली ने उन्हें बताया कि बांग्लादेश में उनके पिता पर 10 लाख रुपए का इनाम रखा हुआ था. क्योंकि शाबेग के ट्रेन किए मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों ने पाकिस्तानी फ़ौज के नाक में दम कर दिया था. ये एक क़िस्सा है. और जनरल शाबेग का करियर बहादुरी के ऐसे कई क़िस्सों से भरा था. अमृतसर में जन्म हुआ. 20 साल की उम्र में किंग्स कमीशन मिला. 1942 में ब्रिटिश आर्मी में अफ़सर बने. बर्मा, सिंगपोर और मलेशिया में युद्ध किया. आज़ादी के बाद 1948 के युद्ध में हिस्सा लिया. 1962 में चीन से युद्ध किया और 1965 में दोबारा पाकिस्तान से. इसके बाद 1971 युद्ध के दौरान उनके कारनामे आप पढ़ चुके हैं. 1971 युद्ध में अपने योगदान के लिए उन्हें परम विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया. अति विशिष्ट सेवा मेडल इससे पहले ही उन्हें मिल चुका था.

देश का हीरो दुश्मन क्यों बन गया? 

बहरहाल सवाल उठता है कि देश को सेवाएं देने वाला ये फ़ौजी कुछ ही सालों में पंजाब अलगाववादी आंदोलन में शामिल कैसे हो गया? दरअसल बांग्लादेश युद्ध के बाद शाबेग का ट्रांसफ़र हो गया और वो बरेली चले गए. यहां अपने करियर के आख़िरी दिनों में उन पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगा. आरोप में ये भी शामिल था कि उन्होंने 9 लाख रुपए का घर बनाया था, जो आय से अधिक सम्पत्ति का मामला बनता था. शाबेग ने इन आरोपों के ख़िलाफ़ लड़ने की कोशिश की. लेकिन उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. शाबेग के भाई बेअंत सिंह टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए बताते हैं जिस रोज़ शाबेग की बरखास्तगी का ख़त पहुंचा, वो अपने एक रिश्तेदार के यहां भोज पर गए थे.

Operation Blue Star
ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान जनरल शाबेग सिंह की घेराबंदी की वजह से ही भारतीय सेना को मंदिर में छिपे आतंकियों को निकालने के लिए 6 से ज़्यादा टैंकों का सहारा लेना पड़ा था (तस्वीर- Getty )

बेअंत सिंह के अनुसार इस फ़ैसले से उनके भाई को ज़बरदस्त धक्का पहुंचा.उनकी मां ने जब उनसे पूछा कि देश के लिए लड़ने के बाद भी उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा था, उन्हें बहुत शर्म महसूस हुई. दिक्कतें यहां से बढ़ती गईं. उनकी पेंशन रुक गई. उन्होंने कोर्ट के चक्कर लगाए. इस बीच पत्नी की भी मौत हो गई. लेकिन कहीं से कोई राहत न मिली. इस तमाम घटनाक्रम का असर हुआ कि शाबेग के मन में सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा बढ़ता गया. इसी दौरान वो जरनैल सिंह भिंडरांवाले के संपर्क में आए और उनके साथ जुड़ गए. ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान शाबेग का अनुभव उग्रवादियों के बहुत काम आया. लेफ़्टिनेंट जनरल के एस बराड़ अपनी किताब "ऑपरेशन ब्लू स्टार का सच" में लिखते हैं,

‘हमारे मुस्तैद संतरियों ने देखा कि भिंडरावाला पूरा समय अकाल तख्त की पहली मंजिल पर रहा. उसे अपने सैनिक सलाहकार जनरल शाबेग सिंह से सलाह-मशविरा करते देखा गया’

बराड़ आगे लिखते हैं,

‘जिस तरीके से हरमंदिर परिसर की मोरचाबंदी कर उसे एक किले में तब्दील कर दिया गया था, इसमें शाबेग के मिलिट्री टैक्टिक्स और उसका अनुभव साफ़ झलक रहा था’

केंद्रीय मंत्री और रिटायर्ड जनरल वीके सिंह अपनी किताब करेज एंड कन्विक्शन में बताते हैं,

‘हथियारों को जमीन से कुछ इंच ऊपर रखा गया था. ताकि गोली सीधी भारतीय फ़ौज के जवानों के पैर में लगे. रेंगकर आगे बढ़ने का भी विकल्प नहीं था. क्योंकि तब गोली सिर में लगती. यही वजह थी कि ऑपरेशन की शुरुआत में फ़ौज के काफ़ी सैनिक ज़ख़्मी हुए.’

Jarnail Singh Bhindranwale
भारतीय सेना से बर्खास्तगी के बाद शाबेग सिंह भिंडरावाले के करीबी लोगों में शुमार हो गए. शाबेग सिंह ने भिंडरावाले से जुड़े लोगों को सैन्य प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया. हथियार जुटाने में शाबेग सिंह ने बड़ी भूमिका निभाई (तस्वीर- Getty)

बराड़ अपनी किताब में लिखते हैं कि शाबेग का इस ऑपरेशन को लंबा खींचने का प्लान था. कुछ समय पूर्व फिरोजपुर के निकट मोगा में एक ऐसी ही घटना हुई थी. जब कुछ उग्रवादियों ने स्थानीय गुरुद्वारों में शरण ली थी. अर्द्धसैनिक बलों ने इन गुरुद्वारों को घेर लिया. लेकिन जब कुछ धार्मिक नेताओं ने धमकी दी कि यदि घेरा न हटाया गया तो वे एक जत्था लेकर मोगा की ओर कूच करेंगे. तुरंत ही सरकार पीछे हट गई और घेरा हटा लिया गया. शाबेग इस घटना से वाक़िफ़ थे. इसलिए उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान इस रणनीति को अपनाया. उनका प्लान था कि ऑपरेशन बस इतना लम्बा खिंचे जितनी देर में सिख जनता बदला लेने के लिए हिंसक हो जाए और अमृतसर की तरफ कूच कर दे.

हालांकि ये रणनीति सफल नहीं हुई. इससे पहले कि जनता विद्रोह करती, सेना गोल्डन टेम्पल में घुसी और 24 घंटे में ऑपरेशन पूरा कर लिया गया. लेफ़्टिनेंट जनरल बराड़ ने अपनी किताब में लिखा है कि ऑपरेशन के बाद स्वर्ण मंदिर के तहखाने में शाबेग सिंह का शव पड़ा था. उनके एक हाथ में कारबाइन थी और दूसरे हाथ के पास ही वॉकी-टॉकी पड़ा था. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद चीजें जितनी ख़राब हुई, जिस तरह इंदिरा की हत्या हुई, सिखों का नरसंहार हुआ, वो सब अपने आप में एक त्रासदी है. लेकिन इस त्रासदी का एक पहलू ये भी है कि पंजाब के तब के हालात ने एक ऐसे फ़ौजी को, जिसे शायद देश का हीरो समझा जाता, उसके नाम के आगे देशद्रोही जोड़ दिया.

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