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Airtel, Idea, Jio, BSNL जैसी कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों हचक के हड़काया?

तबसे झूमा झटकी चल रही थी, अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाथ जोड़ लिए.

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सुप्रीम कोर्ट फ़ैसले पर फैसला देती रही और कंपनियां याचिका पर याचिका लगाती रहीं. इस बार कोर्ट ने भी कह दिया कि बस बहुत हुआ (तस्वीर ANI)

देश में क़ानून का राज है या नहीं?

क्या सुप्रीम कोर्ट बंद कर देना चाहिए?

क्या सरकारी डेस्क अफ़सर सुप्रीम कोर्ट से बढ़कर है?

ये सारे सवाल सुप्रीम कोर्ट में 13 फरवरी, 2020 को उठे. जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने बेहद नाराज़ होते हुए ये सवाल उठाए? क्यों? वजह थी टेलीकॉम कंपनियां. और उनका बकाया AGR. यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू. आपके मोबाइल की तक़रीबन सभी सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां इस AGR के मसले पर महीनों से दौड़-धूप में लगी हैं. पईसा बकाया है, और वो भी हज़ारों करोड़. एयरटेल. वोडाफोन, रिलायंस जैसी दिग्गज कंपनियां इसके लपेटे में हैं. AGR की रक़म जमा कराने की आख़िरी तारीख़ थी 14 फरवरी. शुक्रवार. लेकिन कोर्ट के दर्जनों बार कहने के बावजूद कंपनियों को सरकार और मंत्रालय से राहत मिल रही थी. इसी पर सुप्रीम कोर्ट भन्ना गया कि भईया सुप्रीम कोर्ट को कुछ समझते मानते हो कि बंद कर दें?


अगर इस AGR के चक्कर में कंपनियां फंसी रह गईं तो कई दुकानें बंद होने का भी अंदेशा है (तस्वीर ANI)
अगर इस AGR के चक्कर में कंपनियां फंसी रह गईं तो कई दुकानें बंद होने का भी अंदेशा है (तस्वीर ANI)

# कम्पनियों की झोला झपटी और सुप्रीम कोर्ट

16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में याचिका पड़ी थी पुनर्विचार के लिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया. पहले ही सुप्रीम कोर्ट AGR चुकाने के आदेश दे चुका था. कंपनियां लगातार याचिका पर याचिका डाले दे रही थीं. इसी पर कोर्ट गुस्साया.

पईसे थोड़े मोड़े हैं नहीं. लमसम 92 हज़ार करोड़ रुपया है बकाया.


अब मामले में ताज़ा अपडेट ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने हचक के हड़काया तो इनमें से एक कंपनी भारती एयरटेल की बुद्धि खुल गई. बकाये में से 10 हज़ार करोड़ रुपया सोमवार 17 फरवरी को जमा करवा दिया. बाक़ी का बोले जल्दी करा देंगे. कोई अखबार होता तो हेडिंग लगाता 'ख़बर का असर'. लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट का है. इत्ता असर तो होना ही था. अब ये समझ लीजिए कि ये AGR आख़िर बला क्या है? जिसके चक्कर में भारत की हर बड़ी सर्विस प्रोवाइडर कंपनी घनचक्कर हुए जा रही है.

पहले आपको बताते हैं कि किस कंपनी को कितने पैसे देने होंगे-

एयरटेल 21,682 करोड़ रुपये वोडाफोन 19,823 करोड़ रुपये आइडिया 8,485 करोड़ रुपये टाटा टेली 9,987 करोड़ रुपये आरकॉम 16,456 करोड़ रुपये एयरसेल 7,852 करोड़ रुपये टेलीनॉर इंडिया 1,950 करोड़ रुपये बीएसएनएल 2,098 करोड़ रुपये एमटीएनएल 2,537 करोड़ रुपये वीडियोकॉन 1,032 करोड़ रुपये रिलायंस जियो 13 करोड़ रुपये


# सबसे ज़रूरी सवाल, क्यों देने पड़ रहे हैं पैसे?

देश की किसी भी दूर संचार कंपनी को सरकार को हर साल कुछ पैसे देने पड़ते हैं. जिस प्रकिया के तहत दूर संचार कंपनियां सरकार को पैसे देती हैं उसे कहते हैं AGR यानी एडजस्टेड ग्रास रेवेन्यू. दूर संचार मंत्रालय का कहना है कि एजीआर में फोन सेवाओं से की गई आमदनी के अलावा कंपनियों की ओर से जमा संपत्ति पर ब्याज और बेची गई संपत्ति से हुई आमदनी भी शामिल है. कंपनियों को अपने एजीआर का तीन फीसदी स्पेक्ट्रम फीस और आठ फीसदी लाइसेंस फीस के तौर पर देना होता है. लेकिन साल 2005 से ही टेलीकॉम सेक्टर की बड़ी कंपनियों जैसे एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया ने दूर संचार मंत्रालय के इस फैसले पर विवाद खड़ा कर दिया. इन कंपनियों का कहना था कि एजीआर में फोन सेवाओं से हुई आमदनी को तो रखना ठीक है, लेकिन जमा पैसे के ब्याज पर हुई आमदनी, संपत्तियों को बेचकर हुई आमदमी और अपनी किसी संपत्ति को किराए पर देने से हुई आमदनी को एजीआर में शामिल करना ठीक नहीं है.


रिलायंस जियो की कहानी इस AGR के लफड़े में बिल्कुल सटीक चल रही है. क्योंकि जब AGR आया तब Jio थी ही नहीं. नन्हा सा बकाया बचा है Jio पर (तस्वीर ANI)
रिलायंस जियो की कहानी इस AGR के लफड़े में बिल्कुल सटीक चल रही है. क्योंकि जब AGR आया तब Jio थी ही नहीं. नन्हा सा बकाया बचा है Jio पर (तस्वीर ANI)

जब सरकार और कंपनियों के बीच विवाद बढ़ा तो मामला पहुंचा अपीलीय ट्रिब्यूनल टीडीसैट यानी कि Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal में. साल 2015 में ट्रिब्यूनल का फैसला आया. तारीख थी 23 अप्रैल. फैसला सरकार के पक्ष में था. ट्रिब्यूनल ने कहा कि सरकार ने AGR के लिए जो नियम तय किए हैं, वो ठीक हैं. इस बीच कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया यानी सीएजी की एक रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में दावा किया गया कि टेलीकॉम कंपनियां अपना मुनाफा छुपा रही हैं और उन्होंने अपने मुनाफे में से तकरीबन 61,064.5 करोड़ रुपये कम करके बताए हैं. इस बीच दूर संचार मंत्रालय पहुंच गया सुप्रीम कोर्ट. कहा कि टेलीकॉम कंपनियां बकाया पैसे नहीं दे रही हैं. दूर संचार मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कंपनियों को बकाए पैसे पर ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज देना होगा, जो कुल मिलाकर बन रहा है 92,641 करोड़ रुपये. मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि असली बकाया तो बस 23,189 करोड़ रुपये का ही है. लेकिन इसका ब्याज हो गया है 41,650 करोड़ रुपये. जुर्माना है 10,923 करोड़ रुपये और जुर्माने पर ब्याज है 16,878 करोड़ रुपये.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल और जस्टिस एमआर शाह के सामने इस मामले की सुनवाई हुई. कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना और फिर 24 अक्टूबर को अपना फैसला दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में दूर संचार मंत्रालय की ओर से तय किए गए AGR के फॉर्म्यूले को बरकरार रखा और बकाए पैसे के भुगतान का आदेश दे दिया.


सभी सर्विस प्रोवाइडर इस दोह्मच में पड़े हैं कि जमा करें कि ना करें. लेकिन अब जब बकाए की लाठी कोर्ट से चली है तो सब धमाचौकड़ी ठंडी पड़ रही है (तस्वीर ANI)
सभी सर्विस प्रोवाइडर इस दोह्मच में पड़े हैं कि जमा करें कि ना करें. लेकिन अब जब बकाए की लाठी कोर्ट से चली है तो सब धमाचौकड़ी ठंडी पड़ रही है (तस्वीर ANI)

# कंपनियों पर क्या होगा असर?

साल 2016 में रिलायंस जियो के टेलिकॉम सेक्टर में आने के साथ ही दूसरी बड़ी कंपनियों का कारोबार मंदा पड़ गया है. ऊपर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें भारी भरकम रकम चुकानी पड़ रही है.

Vodafone पर असर : सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर वोडाफोन पर पड़ने वाला है. वोडाफोन ही वो कंपनी है, जो रिलायंस जियो को सबसे करीबी टक्कर दे रही है. वोडाफोन और आइडिया ने 20 मार्च, 2017 को अपने विलय की घोषणा की थी. इस ऐलान के बाद से ही वोडाफोन अभी तक मुनाफा नहीं कमा पाया है. ऐसे में वोडाफोन-आइडिया को चार बिलियन डॉलर यानी करीब 28,388 करोड़ देने पड़ेंगे. अगर वोडाफोन ने सारे पैसे एक साथ चुका दिए तो अगले तीन साल तक कंपनी के पास इतने पैसे नहीं होंगे कि वो 5जी का स्पेक्ट्रम खरीद सके. इसके अलावा कंपनी के पास अपने रखरखाव और सेवाओं पर किए जाने वाले खर्च के लिए भी पैसे नहीं बचेंगे.

Airtel पर असर : एयरटेल के साथ भी ऐसा ही कुछ होने वाला है. उसके पास भी इतने पैसे नहीं बचेंगे कि वो 5जी स्पेक्ट्रम खरीद सके. रिलायंस जिओ और वोडाफोन-आइडिया के बाद एयरटेल तीसरे नंबर की कंपनी है. एयरटेल को करीब 21,284 करोड़ रुपये देने हैं. और कंपनी को ये पैसे उस वक्त में देने हैं, जब इस कंपनी को पहली बार इस चौथाई में नुकसान उठाना पड़ा है.

Jio पर असर : सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जियो पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है. जियो को मात्र 13 करोड़ रुपये ही देने हैं. पूरे देश में अपना नेटवर्क खड़ा करने के लिए जियो ने 35,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा खर्च किये हैं. और अब एयरटेल और वोडाफोन से ग्राहकों को छीनने के बाद ये कंपनी मुनाफा भी कमा रही है. हालांकि जब से टेलीकॉम कंपनियों और सरकार के बीच विवाद चल रहा था, जियो को पैसे नहीं देने पड़ रहे थे. लेकिन अब विवाद सुलझने के बाद जियो को भी एजीआर के तहत पैसे देने होंगे और इसके लिए जियो को अपनी आमदनी बढ़ानी ही होगी.

एक ज़रूरी बात और. 92,000 करोड़ रुपये की रकम सिर्फ वो रकम है, जो लाइसेंस फीस, ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर लगे ब्याज का पुराना बकाया है. इसके अलावा कंपनियों ने स्पेक्ट्रम का तो इस्तेमाल किया ही है और अब भी कर रही हैं, ऐसे में कंपनियों को इसके भी पैसे देने होंगे.




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