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1965 में लाहौर तक कैसे पहुंची भारतीय सेना?

20 से 22 सितंबर के बीच भारत-पाकिस्तान के बीच डोगराई की लड़ाई हुई थी. डोगराई लाहौर से चंद किलोमीटर की दूरी पर है.

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भारतीय सेना के 4 सिख रेजिमेंट के अधिकारियों ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के लाहौर में एक पुलिस स्टेशन पर कब्जा कर लिया था. बाद में भारत और पाकिस्तान के नेताओं द्वारा ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय सेना द्वारा इसे छोड़ा गया (तस्वीर: Wikimedia/GODL-India)

होश आया तो ख़ज़ान सिंह मैदान में औंधे पड़े थे. लेकिन अगले कुछ सेकेण्ड तक उन्हें याद न आया कि वो कहां हैं. तभी सर से बाएं तरफ दर्द उठा. अब सब याद आने लगा था. कुछ देर पहले चली गोली सीधे खजान सिंह के सर पर लगी लेकिन हेलमेट ने उनकी जान बचा ली. उन्होंने नजर उठाकर देखा, मकसद सामने था. इच्छोगिल नहर का पुल. खजान सिंह के दिमाग में भारत-पाकिस्तान बॉर्डर का पूरा नक्शा उभर आया. 3 जाट बटालियन (3 Jat) के उनके साथी एक मशीन गन से लहूलुहान हो रहे थे. जिसके पीछे पाकिस्तानी फौज का एक कमांडर निशाना लगाए हुए था. ख़ज़ान सिंह ने अपनी बन्दूक निकाली और उसे वहीं ढेर कर दिया.

लड़ाई यूं ही चलती रही. बात गोलियों से हाथपाई तक आ चुकी थी. ख़ज़ान सिंह उलझ गए. एक और बार गिरे लेकिन इस बार जब उठे, तब तक इच्छोगिल पर भारत का कब्ज़ा हो चुका था. लाहौर (Lahore) सामने था. पाकिस्तान की हालत पतली थी. उसने एयरफ़ोर्स की पूरी ताकत इस सेक्टर में झोंक दी. मजबूरत खजान सिंह और उनके साथियों को पीछे हटना पड़ा. इसके 14 दिन बाद, 20 सितम्बर, 1965 (India Pakistan War) को भारत ने युद्धविराम की घोषणा कर दी. लेकिन लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई थी. 

पाकिस्तान ने दो युद्ध विराम की घोषणा में दो और दिन का वक्त लिया. और इन दो दिनों में हुई भारतीय सेना के इतिहास की सबसे भीषण और खूनी लड़ाई. लड़ाई जो पहले बम और बंदूकों से, फिर संगीन से और आखिर में हाथ पैरों से लड़ी गई. जिसे आज भी सामरिक रूप से भारत की सबसे बड़ी जीत और सबसे बड़ी गलती माना जाता है. कौन सी जंग थी ये? चलिए जानते हैं पूरी कहानी.

डोगराई पर पहली जीत और फिर हार 

लाहौर से सिर्फ कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसा डोगराई (Dograi) पाकिस्तान के लिए बड़ा सामरिक महत्व रखता है. कारण कि यहां से होकर गुजरती है GT ट्रंक रोड. जो दिल्ली-अमृतसर से होते हुए लाहौर तक जाती है. डोगराई में इस रोड पर एक नहर पड़ती है. इच्छोगिल नाम की इस नहर का निर्माण 1950 में पाकिस्तानी सेना ने किया था. ताकि इधर से लाहौर जाने वाले रस्ते को ब्लॉक किया जा सके.

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1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लाहौर के बाहरी इलाके में डोगराई की लड़ाई (फ़ोटो क्रेडिट: Saniksamachar.nic.in)

1965 युद्ध के बीचों-बीच जब पाकिस्तान ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम (Operation Grand Slam) की शुरुआत की. तो भारत ने जवाब में पंजाब  मोर्चा खोलते हुए डोगराई (Battle of Dograi) पर कब्ज़ा कर लिया. तारीख थी 6 सितम्बर. इस ऑपरेशन को 3 जाट बटालियन ने अन्जाम दिया था. भारत लाहौर पर सीधा अटैक करने की पोजीशन में था. इसलिए पाकिस्तान की तरफ से एयरफोर्स ने अपनी पूरी ताकत लगा दी. यहां पर भारत ने एक बड़ी रणनीतिक गलती की.

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3 जाट को टाइम से रसद और रीइंफॉर्समेंट नहीं मिले. ना ही वक्त पर भारतीय एयरफोर्स ने मदद पहुंचाई. नतीजा हुआ कि भारत को डोगराई से वापिस हटना पड़ा. इसके बाद पाकिस्तानी फौज ने इच्छोगिल पर दुबारा कब्ज़ा कर लिया. और यहां सुरक्षा का तगड़ा इंतज़ाम जमा लिया. भारत ने अगले दो हफ़्तों तक कई बार डोगराई को कब्ज़ाने की कोशिश की. लेकिन सफलता नहीं मिली. 20 सितम्बर को भारत ने युद्धविराम की घोषणा कर दी. लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया. इस बीच 20 सितम्बर को भारत ने इच्छोगिल पर कब्ज़े का फेज़ टू शुरू किया. क्या हुआ था इस फेज़ में?

बम से, बन्दूक से, संगीन से, हाथों से  

 

“एक भी आदमी पीछे नहीं हटेगा. 
ज़िंदा या मुर्दा. मिलना डोगराई में है.”

3 जाट को कमांड कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हाइड जब ये कहते हुए बटालियन का हौंसला बढ़ा रहे थे, उन्हें स्थिति की गंभीरता का पता था. पाकिस्तान ने अपनी दो कंपनियां डोगराई में तैनात कर रखी थीं, वहीं 13 नंबर मील के पत्थर पर दो और कंपनियां मौजूद थीं. हाइड बताते हैं कि नहर के मुहाने पर हर कदम पर आठ मशीन गैन तैनात थीं. भारत के 550 आदमियों के सामने पाकिस्तान फौज की  दोगुनी संख्या थी.  LC डेसमंड हाइड ने प्लान बनाया कि दो तरफ से हमला करेंगे. सबसे पहले 1 और 13 पंजाब, 13 मील वाली पाकिस्तानी टुकड़ी को न्यूट्रिलाइज करेगी. फिर 3 जाट साढ़े साढ़े पांच किलोमीटर का डीटूर लेकर उत्तर से पाकिस्तानी पोस्ट को आउटफ़्लैंक करेगी.

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प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने डोगराई में लेफ्टिनेंट कर्नल डेसमंड हेड को बधाई देते हुए  (तस्वीर: भारतीय सेना के फेसबुक पेज के सौजन्य से)

रात 12 बजे पहला ऑपरेशन शुरू हुआ. 13 पंजाब ने पाकिस्तान की दो कंपनियों पर हमला किया लेकिन आशिंक सफलता ही मिल पाई. फेज़ 2 अधर में था. लेकिन हाइड अड़ गए कि आज रात ही मिशन पूरा करना है. अपनी किताब, स्टोरीज़ फ्रॉम द सेकेण्ड इंडो पाक वॉर में रचना बिष्ट लिखती हैं कि हाइड ने जवानों से कहा, “अगर तुम सब भाग गए तब भी मैं जंग के मैदान में अकेला खड़ा रहूंगा.” 3 जाट ने रात भर मूव करते हुए डोगराई पररियर और फ्लैंक से हमला किया. बन्दूक और बमों से शुरू होने वाली लड़ाई जल्द ही संगीन की लड़ाई और फिर हाथपाई में तब्दील हो गई. 

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1966 में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में हाइड ने बताया,
“दुश्मन खाई से लड़ रहा था. उनके पास खाई से निकलने की कोई वजह नहीं थी, और हमारे लिए जरूरी था कि ट्रेंचेस से उन्हें बाहर निकालें.”

भारत लाहौर जीत लिया होता! 

खाइयों में होने वाली लड़ाई हाथ पैरों से लड़ी गई. 3 जाट ने पाकिस्तानी फौज के कमांडर कर्नल गोलवाला, उनके बैटरी कमांडर सहित 108 लोगों को जिन्दा पकड़ लिया. इस दौरान पाकिस्तान के 308 और भारत के 86 जवान शहीद हो गए. 22 तारीख की सुबह साढ़े पांच बजे भारत ने डोगराई पर कब्ज़ा कर लिया. डोगराई बिलकुल लाहौर से नजदीक था. और कहते हैं कि अगले एक दिन तक सेना डोगराई से लाहौर पर शेलिंग करती रही.

Ichhogil Canal
जनरल जे एल चौधरी इच्छोगिल नहर के पास (तस्वीर: Twitter/Bharat Bhushan Babu@SpokespersonMoD)

 एक धक्का और लाहौर भारत के कब्ज़े में होता. हालांकि ऐसा कुछ हुआ नहीं क्योंकि अगले दिन ही भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई. और लड़ाई वहीं पर रुक गई. आगे चलकर ताशकंद समझौता हुआ और पाकिस्तान को ये पोस्ट लौटा दी गयी,

इसके बावजूद इस जंग को भारतीय इतिहास की सबसे खूनी और सबसे अदम्य साहस की लड़ाई माना जाता है. जंग के बाद डोगराई में लड़ रही बटालियन को 4 महावीर चक्र, चार वीर चक्र, चार सेना मैडल, 12 डिस्पैच और 11 COAS कमेंडेशन कार्ड्स से नवाजा गया. 

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