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जब पाकिस्तान के पायलट ने गुजरात के CM को मार डाला!

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता को एक पाकिस्तानी एयरफोर्स पायलट ने मार गिराया था.

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1963 को बलवंतराय मेहता गुजरात के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे (तस्वीर: Wikimedia Commons)
पाकिस्तानी पायलट को भारत की याद क्यों आई? 

1965 यानी भारत पाकिस्तान जंग का साल (India Pakistan war 1965). 20 सितम्बर के रोज़ संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया. भारत पाकिस्तान को बेशर्त तत्काल युद्ध रोकने की अपील की गई. भारत ने तत्काल इस मांग को स्वीकार कर लिया. उधर पाकिस्तान में अगले दो दिन तक ड्रामा चलता रहा. जिसके बाद विदेश मंत्री ज़ुल्फ़िकार भुट्टों ने एक बयान जारी करते हुए कहा, “पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र को कश्मीर मसले को सुलझाने के लिए एक आख़िरी मौका देते हुए अभी के लिए युद्ध रोक रहा है”. 

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पास्किस्तान की तरफ से युद्धविराम के लिए 23 सितम्बर की तारीख दी गई. ठीक इसी वक्त पाकिस्तानी एयरफोर्स के फ्लाइंग अफसर कैस हुसैन अपने F-86 मनें सवाल आसमान में गोते खा रहे थे. भारतीय सेना के हमले से उनका विमान बुरी तरह डैमेज हो गया था. किसी तरह इमरजेंसी लैंडिंग कर उनकी जान बच पाई. 1966 में कैस का कार एक्सीडेंट हुआ और उन्हें उड़ान के लिए अनफिट घोषित कर दिया. हुसैन ने रिटायरमेंट ले लिया. और प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने लगे. खूब पैसा बनाया. 3 बच्चे हुए. और 2002 में एक अमेरिकी कम्पनी से रिटायर होकर सुकून से जिंदगी गुजारने लगे. ऐसे ही दिन गुजर रहे थे कि साल 2011 में हुसैन ने पाकिस्तानी डिफेन्स जर्नल के एक आर्टिकल में अपना नाम पड़ा. आर्टिकल पढ़ते ही हुसैन ने अपने एक दोस्त को फोन किया. उन्हें भारत में किसी का पता चाहिए था.

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क़ैस हुसैन (तस्वीर: द डॉन अखबार)

इधर मुंबई में फरीदा सिंह लैपटॉप में अपना काम कर रही थीं, जब अचानक उनके पास एक ईमेल आया. तारीख थी 5 अगस्त, 2011. ईमेल के सब्जेक्ट में लिखा था कंडोलेंस, यानी शोक संवेदना. फरीदा का कुछ समझ न आया. शोक की कोई बात न थी, और उनकी जिंदगी में ऐसी कोई घटना भी नहीं हुई थी. फरीदा ने पूरा ईमेल पढ़ा. ईमेल पाकिस्तान से था. कैस हुसैन ने लिखा था. आख़िरी लाइन ख़त्म होने तक फरीदा की आंख में आंसू थे. अचानक उनके दिमाग में 46 साल पहले की एक तारीख दस्तक देने लगी. क्या था उस रोज़?

गुजरात के मुख्यमंत्री ने उड़न भरी 

बलवंत राय मेहता (Balwant Rai Mehta) गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. आजादी के आंदोलन में भाग लेने के अलावा उन्हें पंचायती राज का पितामह कहा जाता था. 19 सितम्बर 1965 के रोज़ मेहता सूरज उगने से पहले उठ गए थे. आगे दिन लम्बा था. 10 बजे बलवंत राय अपने आवास से निकले. अहमदाबाद में उनकी रैली थी. देश युद्ध में था. बलवंत रात रैली में जवानों की हौंसला अफ़ज़ाई कर रहे थे. रैली के बाद दोपहर डेढ़ बजे मेहता वापिस लौटे. इसके बाद उन्हें अहमदाबाद एयरपोर्ट के लिए निकलना था. उनकी पत्नी सरोजबन, तीन असिस्टेंट और गुजरात समाचार के एक रिपोर्टर भी उनके साथ थे. जैसे ही उनकी कार टारमैक रुकी. 

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जहांगीर इंजीनियर ने उन्हें आगे बढ़कर सलाम किया. फरीदा सिंह के पिता थे जहांगीर. पहले एयरफोर्स में थे और अब राज्य सरकार के चीफ पायलट के तौर पर काम कर रहे थे. मुख्यमंत्री ने जहांगीर से हाथ मिलाया और सब लोग विमान की ओर बढ़ गए. बीचक्राफ्ट मॉडल 18 नाम के इस प्लेन अमेरिका से मिला था. इसमें दो इंजन थे और ये आठ सीटर विमान था. 

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जहांगीर इंजीनियर और कैस हुसैन 2011 में (तस्वीर: bharatrakshak.com और द डॉन अखबार)

इंजीनियर कॉकपिट में घुसे और डायल चेक किया. सब ठीक देखकर उन्होंने अपने को-पायलट को उड़ान की सहमति दे दी. मिनटों के अंदर विमान हवा में था. डेस्टिनेशन था मीठापुर, कच्छ की खाड़ी के दक्षिण में बना एक छोटा सा एयरपोर्ट. द्वारका के पास. दूरी थी 400 किलोमीटर. और पहुंचने का नियत वक्त था 3 बजे. ठीक इसी वक्त सरहद के उस पार कुछ हरकतें होने लगी थीं, जिससे इंजीनियर पूरी तरह अनजान थे.

पाकिस्तानी पायलट ने सिविलियन विमान पर किया हमला 

पाकिस्तानी समय अनुसार 3 बजकर 30 मिनट पर कराची के मौरीपुर एयरबेस से फ्लाइट लेफ्टिनेंट बुखारी और फ्लाइंग अफसर क़ैस हुसैन एक साथ फ्लाइट भरते हैं. ग्रांउड कंट्रोल को भुज के पास कोई विमान पाकिस्तानी सीमा में आता नजर आ रहा था. दोनों अपने ऍफ़ -18 सेबर जहाज में सवार थे. बुखारी आगे और कैसे पीछे. तीन पैंतालीस पर बुखारी के प्लेन में कुछ दिक्कतें आने लगी. वो वापिस लौट गए. इधर हुसैन सीमा के नजदीक पहुंच चुके थे.

 20 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर ग्राउंड कंट्रोल ने उनसे 3 हजार फ़ीट तक आने को कहा. यहां से लेफ्ट टर्न लेते ही हुसैन के सामने भारतीय विमान था. हुसैन ने विमान पर VT लिखा हुआ देखा और ग्राउंड कंट्रोल को इसकी सूचना दी. ग्राउंड कंट्रोल से उन्हें हमले की इजाजत दे दी. हुसैन भारतीय विमान के ठीक पीछे थे. विमान ऊंचाई की तरह जाते हुए अपने पंख फड़फड़ा रहा था. ये सिम्बल था, दया मांगने का. लेकिन हुसैन ने आर्डर फॉलो करते हुए 1000 फ़ीट से पहला हमला किया. 

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बलवंत राय मेहता (तस्वीर: Wikimedia Commons)

गोलियों से भारतीय विमान के बाएं पंख का एक हिस्सा टूटकर उड़ गया. इसके बाद हुसैन ने दाएं पंख पर निशाना लगाया. जल्द ही प्लेन के दाएं इंजन में आग लग गयी. वो 90 डिग्री का कोण बनाते हुए सीधे जमीन पर जा गिरा. गिरते ही उसमें जोर का धमाका हुआ. इधर हुसैन का फ्यूल भी खत्म होने को था. ग्राउंड कंट्रोल से उन्हें सन्देश मिला कि जामनगर से कुछ प्लेन उनकी तरफ आ रहे हैं. हुसैन सीधे मौरीपुर लौट गए. उतरते ही वो ग्रांउड कंट्रोल के पास पहुंचे. और उनसे सवाल किया कि एक सिविलियन एयरक्राफ्ट को मार गिराने का आदेश क्यों दिया गया. उधर से जवाब आया कि प्लेन बॉर्डर के बहुत नजदीक उड़ रहा था. उन्हें शक था कि भारतीय सेना सिविलियन प्लेन का यूज़ रेकी के लिए कर रही थी. पाकिस्तानी सेना को शक था कि भारत एक दूसरा फ्रंट खोलने की कोशिश कर रहा है. ये सुनकर हुसैन को खुद पर गर्व हुआ कि उन्होंने अकेले भारतीय आर्मी के प्लान को फेल कर दिया है. 

किसकी गलती थी? 

थक कर चूर हो चुके हुसैन ने ऑफिसर्स मेस की शरण ली. 7 बजे आल इंडिया रेडफियो ने इस घटना की खबर दी. तब हुसैन को पता चला कि जिस विमान को उन्होंने गिराया वो गुजरात के मुख्यमंत्री का था. हुसैन को आम नागरिकों के मारे जाने का दुःख हुआ लेकिन उनका काम आर्डर फॉलो करना था सो उन्होंने किया. इसके 46 साल बाद साल 2011 में उन्होंने इस बाबत एक रिपोर्ट पढ़ी. जिसे पाकिस्तानी रिटायर्ड एयर कोमोडोर कैसर तुफैल ने लिखा था.

तुफैल ने इसके लिए जगन पिल्लरिसेट्टी नाम के एक भारतीय से भी मदद ली थी. जगन खुद 1965 युद्ध पर एक किताब लिख चुके थे. इसलिए उन्होंने तुफैल को कुछ पेपर क्लिपिंग भिजवाई. तुफैल ने अपने आर्टिकल में जो दावा किया वो कुछ यूं था, 
हुसैन को प्लेन पर हमले का आदेश इसलिए दिया गया था क्योंकि पाकिस्तानी समझ बैठे थे कि ये एयरफोर्स का प्लेन है. हुसैन ने प्लेन का जो ब्यौरा दिया था वो IAF के C-119 ट्रांसपोर्ट विमान से मैच खाता था.

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बीचक्राफ्ट 18 मॉडल (सांकेतिक तस्वीर: Wikimedia Commons)

तुफैल के अनुसार सारी गलती इंडियन एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स की थी. क्योंकि प्लेन वॉर ज़ोन में जा रहा था और उसे ऐसा करने से रोका जाना चाहिए था. इसके जवाब में भारत से तैयार रिपोर्ट में दावा किया गया कि पूरी गलती पाकिस्तान और खासकर कैस हुसैन की थी. 

हुसैन ने इंजीनियर की बेटी को खत लिखा 

हुसैन ने जब ये पढ़ा तो उन्हें लगा कि बात साफ़ होनी चाहिए. उन्होंने प्लेन के पायलट जहांगीर इंजीनियर के परिवार को खोजने की कोशिश की. तब जाकर उन्हें उनकी बेटी फरीदा सिंह का पता मिला. उन्होंने फरीदा को एक ईमेल लिखकर पूरी दास्तान अपने नजरिए से बयान की. और अंत में लिखा 

मिसेज़ सिंह, मैंने अपनी तरफ से पूरा ब्यौरा बताया लेकिन ये जताने के लिए नहीं कि जंग और प्यार में सब कुछ जायज है. मैं बताना चाहता था कि मैंने आपके पिता के साथ कोई जालसाजी नहीं की और युद्ध के नियमों के तहत सब कुछ किया. मुझे आपके पिता सहित उन आठ परिवारों के लिए दुःख है जिन्होंने इस घटना में अपने परिजनों को खोया”

फरीदा ने इसका जवाब देते हुए एक खत लिखा. फरीदा लिखती हैं, पिता की मौत ने मेरी जिंदगी बदल कर रख दी थी. लेकिन संघर्ष के इन सालों में मैंने कभी उस व्यक्ति के लिए मन में नफरत महसूस नहीं की, जिसकी वजह से मेरे पिता की मौत हुई. मुझे अहसाह हुआ कि असल में हम सब युद्ध के इस खेल में प्यादे थे. और ये सब परिस्थितियों का नतीजा था. ये बताता है कि युद्ध अच्छे लोगों को भी गलत काम करने पर मजबूर कर सकता है”

1965 युद्ध के दौरान ये इकलौता मौका था जब एक असैनिक विमान को निशाना बनाया गया. एक अखबार को दिए इंटरव्यू में इस बाबत जब कैस हुसैन से पूछा गया तो उन्होंने कहा, 

"मैं संवेदना महसूस करता हूं लेकिन मैं नहीं मानता ये मेरी गलती थी. उस दिन जब मैं वापिस लौटा तो एकबार के मुझे लगा कि काश मैं बिना गोली चलाए बिना लौट गया होता. लेकिन ये युद्ध था और युद्ध में एक सैनिक को आदेश मानना होता है”

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