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जिन्ना ने बलूचिस्तान पर कब्ज़ा कैसे किया था?

1948 में ऑल इंडिया रेडियो पर हुए एक प्रसारण ने जिन्ना को बलूचिस्तान हड़पने का मौका दे दिया. बंटवारे के बाद लगभग 255 दिनों के लिए बलूचिस्तान आजाद रहा था.

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बलूचिस्तान आर्थिक और सामाजिक पैमानों पर पाकिस्तान के सबसे पिछड़े हुए राज्यों में से एक है (तस्वीर- Wikimedia commons)

पाकिस्तान के ऐन बीचोंबीच एक ऐसा हिस्सा भी है जिसे आज़ाद रखने की वकालत कभी ख़ुद मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी. ये इलाक़ा है कलात. समझने के लिए आइए, एक नज़र डालते हैं कुछ पुरानी तारीख़ों पर. 27 मार्च 1948. कलात के एक महल में खान मीर अहमद खान आराम फरमा रहे थे. सुबह का वक्त. ठीक 9 बजे ऑल इंडिया रेडियो पर न्यूज़ का प्रसारण हुआ. अनमने ढंग से लेटे हुए खान अपना एक कान रेडियो पर लगाए हुए थे कि तभी उनके पैरों तले जमीन खिसकने लगी. रेडियो पर न्यूज़ प्रसारित हो रही थी कि भारत ने उनकी रियासत के विलय का प्रस्ताव ठुकरा दिया है. खान चौंके. मुद्दा ये नहीं था कि भारत ने प्रस्ताव ठुकरा दिया. बड़ी दिक्कत ये थी कि अब पकिस्तान को रेडियो के ज़रिए इसकी खबर लग चुकी है. अगले ही रोज़ पाकिस्तानी फौज ने खान की रियासत पर धावा बोल दिया. कलात को आजाद रखने का सपना धूल में मिल गया. (History of Balochistan)

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कलात, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त की एक रियासत होती थी. बंटवारे के वक्त यहां की खान सल्तनत ने खुद को आजाद घोषित कर दिया था. बाद में पकिस्तान ने उसे अपने में शामिल कर लिया. बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा कैसे बना? साथ ही जानेंगे उस रेडियो प्रसारण की कहानी, जिसे लेकर कहा जाता है कि अगर वो न होता तो संभवतः भारत बलूचिस्तान में खेल कर सकता था. हर साल 2 मार्च की तारीख को पाकिस्तान में बलोच संस्कृति दिवस के रूप में मनाया जाता है. बलोच संस्कृति बचाने की मुहिम चलती है. लेकिन सवाल ये कि बलोच संस्कृति है क्या? क्या ये पाकिस्तान की संस्कृति से अलग है? (How Balochistan became a part of Pakistan)

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Baluchistan Agency map
बलूचिस्तान एजेंसी का नक्शा (तस्वीर-Wikimedia commons)

बलूचिस्तान आजाद होना चाहता था 

जिसे हम बलोचिस्तान के नाम से जानते हैं, एक वक्त पर वो चार रियासतें हुआ करती थीं. कलात, खारान, लॉस बुला, मकरान. 1870 में अंग्रेज़ों ने कलात की ख़ान सल्तनत से एक संधि की. जिससे ये रियासतें अंग्रेज़ों के अधीन आ गईं. इसके बावजूद ब्रिटिश सरकार का इन पर सीधा कंट्रोल नहीं था. इन रियासतों की हालत कुछ-कुछ भूटान जैसी थी. रूस के आक्रमण से निपटने के लिए ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी यहां तैनात रहती थी. लेकिन अंग्रेज़ यहां के प्रशासन में सीधा दखल नहीं देते थे. जब बंटवारे का वक्त आया, अंग्रेज़ों ने कलात को सिक्किम और भूटान वाली कैटेगरी में रखा. बलूचिस्तान की बाकी तीन रियासतों ने बंटवारे के वक्त पाकिस्तान को चुना. लेकिन कलात पाकिस्तान के साथ जाने को तैयार नहीं था. कलात के खान, मीर अहमद ख़ान आजादी की मंशा रखते थे.

1946 से ही उन्होंने इसकी कोशिशें शुरू भी कर दी थी. 1946 में जब कैबिनेट मिशन भारत आया, मीर अहमद ने अपना एक वकील पैरवी के लिए कैबिनेट मिशन के पास भेजा. ये वकील थे मुहम्मद अली जिन्ना(Muhammad Ali Jinnah). जिन्ना और मीर अहमद की काफी गहरी दोस्ती थी. मीर अहमद ने मुस्लिम लीग को ढेर सारा पैसा दिया था. और जिन्ना की मदद को हरदम तैयार रहते थे. जिन्ना ने भी दोस्ती का फ़र्ज़ निभाया और 1946 में कलात की पैरवी के लिए कैबिनेट मिशन से मिले. जिन्ना ने मीर अहमद का पक्ष रखते हुए कैबिनेट मिशन से कहा,

“बंटवारे की शर्तों में कलात को आजाद डिक्लेयर किया जाना चाहिए क्योंकि कलात की संधि ब्रिटिश इंडिया सरकार ने नहीं बल्कि सीधे ब्रिटिश क्राउन से हुई थी”.

इसके अलावा मीर अहमद ने समद खान नाम के एक बलोच नेता को भी दिल्ली भेजा. समद खान ने जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) से मुलाक़ात की. लेकिन नेहरू ने कलात को आजाद मानने से इंकार कर दिया. कुछ महीने बाद कलात का एक और डेलिगेशन दिल्ली पहुंचा. इस बार कलात स्टेट नेशनल पार्टी के अध्यक्ष ग़ौस बक्श ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से मुलाकात की. आजाद ने ये तो माना कि कलात भारत का हिस्सा नहीं रहा. लेकिन साथ ही उनका ये भी मानना था कि भारत और पाकिस्तान के बीच कलात आजाद नहीं रह पाएगा. उसे अपनी सुरक्षा की जरुरत पड़ेगी. ये सुरक्षा सिर्फ ब्रिटिश फौज ही दे सकती थी. लेकिन अगर ब्रिटिश फौज कलात में रहती तो उनकी आजादी का मतलब ही क्या रह जाता.

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बलूचिस्तान को पहले कलात के नाम से जाना जाता था. ऐतिहासिक तौर पर कलात की क़ानूनी स्थिति भारत के दूसरे रजवाड़ों से भिन्न थी (तस्वीर- Wikimedia commons)

जिन्ना खुद बलूचिस्तान की आजादी की वकालत कर रहे थे 

इन सब कोशिशों का जब कोई नतीजा न निकला तो कलात के खान खुद दिल्ली आए. 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में राउंड टेबल मीटिंग थी. इस मीटिंग में लार्ड माउंटबेटन और जिन्ना भी मौजूद थे. जिन्ना अब भी कलात की आजादी की पैरवी कर रहे थे. इस मीटिंग में तय हुआ कि कलात एक आजाद देश होगा और खारान और लॉस बुला का भी उसमें विलय कराया जाएगा. इसके एक हफ्ते बाद 11 अगस्त 1947 को मुस्लिम लीग और कलात के बीच एक साझा घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर हुए. जिसमें माना गया कि कलात की अपनी अलग पहचान है और मुस्लिम लीग कलात की स्वतंत्रता का सम्मान करती है.

15 अगस्त को भारत आजाद हुआ. इसके अगले ही रोज़ कलात ने खुद को आजाद घोषित कर दिया. मीर अहमद ने तुरंत कलात में संसद का गठन किया. इस संसद में दो सदन थे. उच्च सदन का नाम था दारुल उमराह और निचले सदन का नाम दारुल आवाम. दोनों सदनों में हुई बैठक में कलात की आजादी का प्रस्ताव पास किया गया. कलात ने घोषणा की कि पाकिस्तान से उसके दोस्ताना रिश्ते होंगे. पाकिस्तान भी नया-नया बना था. जिन्ना वहां बिजी हो गए थे. यहां तक तो सब ठीक था. लेकिन फिर 21 अगस्त 1947 को हुई एक घटना ने स्थितियों को और जटिल कर दिया.

बलूचिस्तान में चार रियासतें थीं. इनमें से एक खारान के शासक, मीर मुहम्मद हबीबुल्ला ने जिन्ना के नाम एक खत लिखा. इसमें लिखा था,

“मेरी सल्तनत कभी कलात के काबू में नहीं आएगी और हम उनका भरपूर विरोध करेंगे”.

जाहिर तौर पर ये खारान की तरफ से पाकिस्तान में विलय का संकेत था. जिन्ना ने हालांकि, पुरानी दोस्ती देखते हुए, इस वक्त इस मुद्दे को यूं ही छोड़ दिया. लेकिन धीरे-धीर लॉस बुला, मकरान ने भी पाकिस्तान में विलय की ख्वाहिश जतानी शुरू कर दी. कलात पर दबाव बढ़ता जा रहा था. अक्टूबर महीने में जिन्ना ने खुलकर कलात से पाकिस्तान में विलय की मांग रख दी. तब दारुल आवाम ने सदन में जिन्ना को जवाब देते हुए कहा,

“अफ़ग़ानिस्तान और ईरान की तरह हमारी संस्कृति भी पाकिस्तान से अलग है. महज मुसलमान होने से हम पाकिस्तानी नहीं हो जाते. अगर ऐसा है तो फिर तो ईरान और अफ़ग़ानिस्तान को भी पाकिस्तान में विलय कर लेना चाहिए”

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कलात के अंतिम शासक मीर अहमद खान के साथ जिन्ना (तस्वीर- IANS)

ऑल इंडिया रेडियो की एक खबर ने खेल पलट दिया 

कुछ समय तक वाद विवाद का ये दौर चलता रहा. जिन्ना की एक नजर कश्मीर, जूनागढ़ और दक्कन के हैदराबाद पर लगी थी. मार्च 1948 तक उन्होंने मुद्दे को यूं ही टलने दिया.लेकिन फिर प्रेशर इतना बड़ा कि उन्होंने 17 मार्च, 1948 को खारान, लॉस बुला, मकरान का पाकिस्तान में विलय करवा लिया. यानी बलूचिस्तान का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े में जा चुका था. इसके बाद भी जिन्ना ने कलात पर हाथ डालने में जल्दबाज़ी नहीं की. अब यहां पर एक सवाल कि इस सबके बीच भारत कहां था? इतिहास की प्रोफ़ेसर, डॉक्टर दुश्का सय्यद साल 2006 में छपे एक रिसर्च पेपर, The accession of Kalat: Myth and Reality में बताती हैं, 

“कलात भारत और पाकिस्तान के बीच मुद्दा नहीं था. क्योंकि कलात की सीमाएं भारत से नहीं मिलती थी.. इसके अलावा कलात के साथ कश्मीर या हैदराबाद वाली समस्या भी नहीं थी कि वहां के राजा बहुसंख्यक जनता से अलग धर्म के हों.”

इसके बावजूद भारत इस कहानी का हिस्सा बना. वो कैसे? भारत की इस कहानी में एंट्री होती है उसी रेडियो प्रसारण से जिसका ज़िक्र हम शुरू में कर चुके हैं. 27 मार्च 1928 को ऑल इंडिया रेडियो के प्रसारण में एक प्रेस कांफ्रेस का जिक्र हुआ. जिसके अनुसार केंद्रीय सचिव वीपी मेनन ने कहा था कि कलात के खान पाकिस्तान की बजाय भारत में विलय की मांग कर रहे हैं. मेनन के हवाले से कहा गया कि भारत का इस मुद्दे से कुछ लेना-देना नहीं है. चूंकि मेनन अब सरदार पटेल के साथ रियासतों के विलय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. इसलिए उनके इस कथित बयान के गहरे मायने थे. हंगामा होना तय था. जो हुआ.

कलात के खान ने जब ये भाषण सुना तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई. इन्हें समझ आ गया था कि पाकिस्तान इस खबर पर चुप नहीं बैठेगा. उधर भारत में भी इस खबर के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे थे. अगले रोज़ संविधान सभा में नेहरू ने आग को ठंडा करने की कोशिश की. और कहा कि ऐसा कोई बयान नहीं दिया गया. ऑल इंडिया रेडियो की खबर गलत थी. लेकिन अब तक जो नुकसान होना था, हो चुका था. 28 मार्च के रोज़ जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को कलात पर चढ़ाई का आदेश दे दिया. कमांडिंग अफसर,मेजर जनरल अकबर खान की अगुवाई में 7 बलोच रेजिमेंट ने अगले ही रोज़ कलात पर धावा बोल दिया. कलात के खान को अगुवा कर कराची ले जाया गया. जहां उनसे जबरदस्ती विलय पत्र पर दस्तखत करवा लिए गए.

अगला बांग्लादेश 

इस तरह 225 दिन की आजादी के बाद कलात का पाकिस्तान में विलय हो गया. चूंकि ये विलय फ़ौज के बल पर करवाया गया इसलिए बलूचिस्तान के कुछ संगठन लगातार आजादी की मांग करते रहे हैं. गाहे बगाहे ये चिंगारियां सुलगती रहती हैं. और पाकिस्तान इसका दोष भारत पर मढ़ देता है. क्षेत्रफल के हिसाब से बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त है. यूं समझिए कि पाकिस्तान का 44% एरिया बलोचिस्तान ही है. हालांकि आबादी के नाम पर यहां पाक आबादी का महज 5% हिस्सा ही रहता है. बलोचिस्तान में तांबा, सोना और यूरेनियम का भंडार है. पाकिस्तान के तीन नौसैनिक अड्डे बलोचिस्तान में है. यहीं स्थित चगाई से परमाणु परिक्षण कर पाकिस्तान परमाणु ताकत बना था. इस कदर महत्व होने के बावजूद ये इलाका गर्दिश की गिरफ्त में रहता है. आम लोगों का जीना हमेशा से दूभर रहा. हद दर्ज़े की गरीबी. उस पर तुर्रा ये कि हुकूमत ने बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह चीन को सौंप दिया.

अब यहां से कमाई जाने वाली 91% रकम चीन ले जाता है. और बलूच बंदों के हाथ में महज कुछ टुकड़े आते हैं. पाकिस्तानी सेना इस इलाके को डंडे से कंट्रोल करती है. जिससे लोहा लेते हैं, बलोच राष्ट्रवादी. आए दिन हिंसक झड़पें होती हैं. कभी जिन्ना की मूर्ति उड़ा दी जाती है. तो कभी सेना के हेलीकॉटर पर हमला होता है. हालात यहाँ तक बिगड़ चुके हैं कि आम लोग बलूचिस्तान को अगला बांग्लादेश कहने लगे हैं.

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