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जब पहली बार समुद्री लुटेरों का सामना भारतीय नौसेना से हुआ!

1 फरवरी 1977 के दिन भारतीय तटरक्षक बल यानी इंडियन कोस्ट गार्ड की स्थापना हुई थी. हर साल इस दिन को इंडियन कोस्ट गार्ड डे के रूप में मनाया जाता है.

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ऑपेरशन अलोंद्रा रेनबो में भारतीय तटरक्षक बल ने एक जापानी जहाज़ को लुटेरों से आजाद कराया था (तस्वीर-wikimedia commons)

अपनी किताब, A Prime Minister to Remember: Memories of a Military Chief'' में एडमिरल सुशील कुमार एक किस्से का जिक्र करते हैं. साल 1999 की बात है. जसवंत सिंह तब विदेश मंत्री हुआ करते थे. और एडमिरल सुशील कुमार कुछ समय पहले ही चीफ ऑफ़ नेवल स्टाफ नियुक्त हुए थे. दोनों घुड़सवारी और पोलो खेलने के शौक़ीन थे. इस चक्कर में लगभग हर हफ्ते पोलो के मैदान में दोनों की मुलाकात होती थी. दोनों के बीच पोलो की ये जुगलबंदी लगभग 4 दशक पुरानी थी. 50 के दशक में दोनों साथ में नेशनल डिफेन्स अकादमी से ऑफिसर बनकर पास आउट हुए थे. जसवंत सिंह सेना में बतौर कैवेलरी ऑफिसर नियुक्त हुए. वहीं सुशील कुमार नेवी में कमीशन हुए.

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बहरहाल अक्टूबर 1999 की उस शाम पर लौटते हैं, जब दोनों मैदान में घुड़सवारी के लिए इकठ्ठा हुए. यहां विदेश मंत्री ने एडमिरल के साथ एक खबर साझा की. एडमिरल लिखते हैं कि बातों की बातों में जसवंत सिंह ने एक नाम का जिक्र किया. अलोंद्रा रेनबो (Alondra Rainbow). जो कि एक जापानी समुद्री जहाज का नाम था. 7000 टन के इस जहाज को समुद्री डाकुओं यानी पाइरेट्स ने इंडोनिशया में हाईजैक कर लिया था. और अब वो उसे अरब सागर की तरफ ले जा रहे थे. भारतीय कोस्ट गार्ड्स इस शिप पर लगातार नजर बनाए हुए थे. लेकिन चूंकि मामला इंटरनेशनल था, इसलिए कोई भी एक्शन लेने से पहले ऊपर से परमिशन मिलनी जरूरी थी.

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परमिशन कैसे मिली? कैसे इंडियन नेवी ने इस जहाज की पहचान की.  और कैसे पहली बार भारत में पकड़े गए समुद्री लुटेरे?

Indian Coast Guard was formally established on 1 February
इंडियन कोस्ट गार्ड का स्थापना दिवस एक फरवरी को मनाया जाता है (तस्वीर-joinindiancoastguard.gov.in)

भारतीय कोस्ट गार्ड का इतिहास 

शुरुआत 1 फरवरी से. क्या हुआ था इस रोज़? साल 1977 में इसी दिन भारतीय तटरक्षक बल यानी इंडियन कोस्ट गार्ड (Indian Coast Gurad Day) की स्थापना हुई थी. कोस्ट गार्ड का विचार पहली बार 1960 के दौर में उपजा. सख्त आयात नियमों के चलते मुंबई जो तब बॉम्बे हुआ करता था, उसके तटों पर स्मगलिंग काफी बढ़ गयी थी. जिसके चलते कस्टम डिपार्टमेंट को बार-बार पेट्रोलिंग के लिए नेवी की मदद लेनी पड़ती थी. 1971 में इस समस्या के हल के लिए नागचौधरी कमिटी का गठन किया गया. कमिटी की सिफारिशों के तहत नेवी से कुछ लोगों को रिक्रूट कर इस काम में लगाया गया. हालांकि ये तरीका ज्यादा दिन चल नहीं पाया क्योंकि इस काम का रिलेशन स्मगलिंग आदि कानूनों से था. जबकि नेवी लॉ एनफोर्समेंट से जुड़े मुद्दों पर सीधे तौर पर सम्मिलित नहीं हो सकती थी. इसलिए तब चीफ ऑफ नेवल स्टाफ एडमिरल सुरेंद्र नाथ कोहली ने डिफेन्स सेक्रेटरी को एक सुझाव भेजा.

सुझाव ये था कि भारत की समुद्री सीमा की देख रेख के लिए एक अलग फ़ोर्स बनाई जाए. एडमिरल कोहली की सिफारिश पर सितम्बर 1974 में कैबिनेट ने रुस्तमजी कमिटी का गठन किया गया. जिसे हेड कर रहे थे KF रुस्तमजी. रुस्तमजी इससे पहले BSF की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दे चुके थे. और पुलिस सेवा में उनका लम्बा अनुभव था. रुस्तमजी कमिटी जब एक नई फ़ोर्स के गठन पर विचार कर रही थी, उसी बीच एक और घटना घटी. बॉम्बे तट के पास समुद्र में तेल की खोज हुई, जिसकी सुरक्षा अपने आप में एक बड़ा जिम्मा था. इसके बाद 31 जुलाई 1975 को रुस्तमजी कमीटी ने रक्षा मंत्रालय को अपनी सिफारिशें सौंपी. जिनमें निहित था कि तटीय सीमा की सुरक्षा के लिए इंडियन कोस्ट गार्ड की स्थापना की जाए.

इसके बाद 1 फरवरी 1977 को अंतरिम भारतीय तटरक्षक बल का गठन किया गया. शुरुआत में इसके गठन के लिए नेवी की तरफ से दो छोटे कार्वेट और पांच पेट्रोल बोट्स दी गईं. कोस्ट गार्ड क्या काम करेगी, इसके क्या अधिकार होंगे, इस सब का निर्धारण कोस्ट गार्ड एक्ट में दिया गया है, जिसे 18 अगस्त 1978 को संसद द्वारा पास किया गया. वाईस एडमिरल VA कामथ इंडियन कोस्ट गार्ड के पहले डायरेक्टर जनरल बने. इस बीच एक मुद्दा ये भी था कि नई फ़ोर्स किसके तहत काम करेगी. कैबिनेट सेक्रेटरी चाहते थे कि कोस्ट गार्ड को गृह मंत्रालय के अंतर्गत लाया जाए. वहीं रूस्तजी कमिटी का कहना था कि इसे रक्षा मंत्रालय के अंडर बनाया जाना चाहिए. अंत में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमिटी की सिफारिशों को मानते हुए तय किया कि कोस्ट गार्ड रक्षा मंत्रालय के अंडर काम करेंगे.

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इंडियन कोस्ट गार्ड के पहले डायरेक्टर जनरल VA कामथ (तस्वीर-Wikimedia commons)

ऑपरेशन अलोंद्रा रेनबो 

इंडियन कोस्ट गार्ड का संक्षिप्त इतिहास जानने के बाद अब उस ऑपरेशन पर चलते हैं, जिसने इंडियन कोस्ट गार्ड को पहली बार अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलवाई. और जिसकी बदौलत 100 साल में पहली बार भारतीय उपमहाद्वीप के आसपास समुद्री लुटेरों को पकड़ा गया और उन्हें सजा दी गई. अक्टूबर 1998 में इंडियन कोस्ट गार्ड्स को पहली बार एक जापानी जहाज के हाईजैक किए जाने की टिप मिली. ये जहाज इंडोनेशिया से जापान की ओर रवाना हुआ था. तारीख थी 22 अक्टूबर. तट छोड़ने के कुछ ही घंटों बाद नकाबपोश लुटेरे जहाज पर चढ़े और उसे अपने कब्ज़े में ले लिया. 29 अक्टूबर के रोज़ लुटेरों ने जहाज का पुराना नाम अलोंद्रा रेनबो मिटाकर उस पर ‘मेगा रामा’ लिख दिया. और जहाज को क्रू पर एक राफ्ट में बीच समंदर में छोड़ दिया. 8 नवम्बर के रोज़ क्रू को थाईलैंड के तट पर रेस्क्यू किया गया. इस बीच समंदर जब श्री लंका के पास से गुजर रहा था, उसे भारतीय कोस्ट गार्ड्स ने स्पॉट कर लिया.

चूंकि देखने में जापानी जहाज, अलोंद्रा रेनबो की तरह दिखाई देता था. कोस्ट गार्ड के एक एयरक्राफ्ट ने जहाज का पीछा कर उसकी कुछ तस्वीरें खींची. और इंटरनेशनल संस्थाओं के साथ साझा की. कुछ रोज़ बाद जब जहाज भारतीय समुद्री सीमा में घुसा, कोस्ट गार्ड्स बोट्स ने उसके रुकने की चेतावनी जारी की. लेकिन जहाज पर कोई असर न हुआ और वो अपनी गति से समुद्र में बढ़ता रहा. चूंकि मामला इंटरनेशनल समुद्री इलाके का था, इसलिए बल प्रयोग करने से पहले ये सुनिश्चित करना जरूरी था कि ये वही जहाज है, जिसे लुटेरों ने हाईजैक किया है.

तब वेस्टर्न नेवल कमांड के कमांडर इन चीफ हुआ करते थे, एडमिरल माधवेन्द्र सिंह. नवम्बर के शुरुआती दिनों में उन्हें नेवल हेडक्वार्टर्स से एक ऑपरेशन की तैयारी करने को कहा गया. ऑपरेशन के तहत मेगा रामा नाम के इस जहाज को रोककर पूछताछ की जानी थी. United Nations Convention on the Law of the Sea (UNCLOS) के क्लॉज़ थ्री के तहत भारतीय नेवी को आजादी थी कि वो किसी भी संदेहास्पद वेसेल को रोककर पूछताछ कर सकें. निर्देश मिलते ही नेवी की वेस्टर्न फ्लीट को एक मिसाइल डिस्ट्रॉयर के साथ जहाज के पीछे लगा दिया गया. लुटेरों का जहाज अरब सागर के होते हुए सऊदी अरब की ओर तेज़ी से बढ़ रहा था. जिसका मतलब था कि उसे पकड़ने के लिए तेज़ी से पीछा किया जाना था. मामला अंतरराष्ट्रीय वाटर्स का था, इसलिए सरकार की मंजूरी जरूरी थी.

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देश की समुद्री सीमाओं की सुरक्षा का जिम्मा भारतीय तटरक्षक बल संभालता है (तस्वीर-joinindiancoastguard.gov.in)

रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय के बीच कई मीटिंग्स के बाद गेंद आकर गिरी विदेश मंत्री जसवंत सिंह के पाले में. चीफ ऑफ नेवी स्टाफ एडमिरल सुशील कुमार ने इस मामले में जसवंत सिंह से बात की. जसवंत सिंह ने उनसे प्रधानमंत्री से मिलने के लिए कहा. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पूरे घटनाक्रम से वाकिफ थे. चंद मिनट की मीटिंग के बाद वाजपेयी अपने चिर परिचित लहजे में बोले,

“अगर तुम्हें पूरा यकीक है तो बेशक अपना मिशन पूरा करो”

प्रधानमंत्री की तरफ से हरी झंडी मिलते ही ऑपेरशन अलोंद्रा रेनबो शुरू हो गया. भारतीय तट से 800 किलोमीटर की दूरी पर जापानी जहाज को इंटरसेप्ट किया गया. नेवी द्वारा घेर लिए जाने पर डाकुओं ने हड़बड़ी में जहाज में लगा इमरजेंसी अलार्म बटन दबा दिया. ये अलार्म सैटेलाइट से लिंक होता है, और आपातकाल में इस्तेमाल में लाया जाता है. अलार्म दबाने के पीछे लुटेरों का मकसद ये था कि इस बात की खबर अंतरष्ट्रीय संस्थाओं तक पहुंचे. एक निजी जहाज को इंटरनेशनल वाटर्स में रोकना, भारत के परेशानी का सबब बन सकता था. खासकर तब जब भारत के पास कोई सबूत नहीं था कि ये समुद्री लुटेरों का जहाज है.लेकिन इमरजेंसी अलार्म बटन दबाने से लुटेरों की अपनी ही पोल खुल गई. क्योंकि हर इमरजेंसी अलार्म की शुरुआत में एक कोडेड रेडियो मेसेज होता है, जिसमें जहाज का नाम भी शामिल होता है. इसलिए जैसे ही रेडियो मेसेज भेजा गया, ये पक्का हो गया कि जहाज मेगा रामा न होकर अलोंद्रा रेनबो ही है. लुटेरों ने जहाज में आग लगाने की कोशिश भी की. लेकिन जल्द ही हेलिकॉप्टर के जरिए मरीन कमांडो जहाज पर उतरे और लुटेरों को पकड़ लिया गया.

वयम् रक्षाम:

एडमिरल सुशील कुमार लिखते हैं कि जिस रोज़ ये ऑपेरशन पूरा हुआ, उसके ऑफिस में विशेष शख्स आए. ये जापान के राजदूत थे. जो कोस्ट गार्डस और इंडियन नेवी के एक्शन से खासे उत्साहित थे. सुशील कुमार लिखते हैं कि उस वक्त तक उन्हें इस ऑपरेशन की अहमियत का अंदाजा नहीं था. लेकिन इस ऑपरेशन ने भारतीय कोस्ट कार्ड्स और नेवी का पूरी दुनिया में नाम किया. क्योंकि कई दशकों में ये पहली बार हुआ था कि भारतीय समुद्री तट के पास समुद्री लुटेरों को पकड़ा गया हो.

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भारतीय तटरक्षक बल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तट रक्षक बल है (तस्वीर-joinindiancoastguard.gov.in)

इस ऑपरेशन की सफलता में कोस्ट गार्ड की अहम् भूमिका थी. इस मामले में मुम्बई सेशन कोर्ट ने 14 लुटेरों को सजा भी सुनाई लेकिन 2005 में हाई कोर्ट ने उन्हें रिहा कर दिया. इसका कारण था कि भारतीय दंड संहिता यानी IPC और CrPC भारतीय समुद्री तट से 12 नॉटिकल माइल्स यानी लगभग 22 किलोमीटर तक ही लागू होते थे. इस पेंच की भरपाई के लिए साल 2022 में संसद ने Maritime Anti-Piracy Bill 2022 पास किया. जिसके तहत भारतीय सीमा के नजदीक समुद्री डकैती में लिप्त होने पर अलग क़ानून का प्रावधान है. जहां तक इंडियन कोस्ट गार्ड की बात है. अपनी स्थापना के 47 साल के अंदर ये दुनिया की चौथी सबसे बड़ी तट रक्षक फ़ोर्स बन चुकी है.

इसका ध्येय वाक्य है - ‘वयम् रक्षाम:’ यानी हम रक्षा करते हैं. इंडियन कोस्ट गार्ड भारत के 7516.60 किलोमीटर के समुद्र तट की सुरक्षा करता है. 1977 में स्थापना के बाद कोस्ट गार्ड ने 10,000 से अधिक लोगों की जान बचाई है और लगभग 14,000 बदमाशों को पकड़ने में सफलता पाई है.  चूंकि इंडियन कोस्ट गार्ड की स्थापना 1 फरवरी को हुई थी. इसलिए हर साल इस दिन को इंडियन कोस्ट गार्ड डे के रूप में मनाया जाता है. इस अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.

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