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औरतों की आंखों में मिर्च डालकर उल्टा लटका देते थे!

300 साल पहले किसी को डायन बताने का मतलब होता था निश्चित मौत.

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डायन बताकर मार दी जाने वालों में अधिकतर बूढ़ी औरतें होती थीं, जिनकी जायदाद हड़पने के लिए अक्सर ऐसा किया जाता था (तस्वीर: Wikimedia Commons)
इब्न बतूता और कफ़्तार 

साल 1334. इब्न बतूता (Ibn Batutta) भारत प्रवास पर थे. सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने उन्हें दिल्ली से सटे एक एक सूबे का मेयर नियुक्त किया. एक रोज़ बतूता के पास कुछ गांव वाले आए. उनके साथ में एक औरत थी, जिसे रस्सी से बांधा हुआ था. गांव वालों ने बताया कि इस औरत के पास खड़े एक लड़के को अचानक चक्कर आया, वो गिरकर वहीं मर गया. उनके अनुसार लड़के का दिल गायब था.

बतूता को कुछ समझ न आया तो वो पहुंचे अपने से ऊंची पदवी वाले अधिकारी के पास. बतूता ने देखा कि औरत को पानी भरे बर्तन से बांधकर यमुना में डाल दिया गया. पानी वाला बर्तन साथ बंधा था, तो औरत तैरने लगी. उसे नदी से निकाला गया और फिर जिन्दा जला गया. तब इब्न बतूता को पता चला कि ये औरत कफ़्तार थी. फारसी भाषा के इस शब्द का अर्थ यूं तो लकड़बग्घा होता था. लेकिन यहां इसका मतलब था ‘काला जादू करने वाली औरत’ (Witchcraft In India) .कफ़्तार जादू से बच्चों का दिल निकाल कर उन्हें मार डालती थी. ऐसी औरतों को पहचानने का तरीका था, उन्हें पानी में डालना. अगर औरत डूब गई तो वो सामान्य है, और तैरने लगी तो डायन. 

कुछ डीटेल्स बदल दें तो इतिहास में दुनियाभर में औरतों के लिए ऐसी कहानियां पाई जाती हैं. अंग्रेज़ी में जिसे विच कहा जाता है, भारत में उसके लिए डायन, डाकन, चुड़ैल जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता रहा है. दुनिया के इतिहास में विच हंटिंग (Witch Hunting) का सबसे फेमस केस है सेलम विच ट्रॉयल्स. जब अमेरिका के एक शहर में अचानक डायनों और चुड़ैलों की अफवाह फ़ैली और एक साल के अंदर कई औरतों को फांसी दे दी गयी. क्या था ये केस? 

सेलम विच ट्रायल्स 

(Salem Witch Trials) साल 1689 की बात है. फ़्रांस और इंग्लैंड के बीच युद्ध अमेरिका तक पहुंच चुका था. नतीजा हुआ कि अमेरिका के तटीय इलाकों से भागकर लोग अंदरूनी इलाकों की ओर जाने लगे. ऐसा ही एक इलाका था सेलम. जो दो हिस्सों में बंटा था. सेलम शहर और गांव. गांव मे 500 लोग रहते थे. अचानक बाहर से लोग आए तो तनाव बढ़ने लगा. सेलम में तब दो परिवारों के बीच पुरानी दुश्मनी थी. पोर्टर और पटनम परिवार. पोर्टर परिवार के सेलम शहर के व्यापारियों से अच्छे ताल्लुकात थे. इसलिए वो शहर के साथ रिश्ते मजबूत करना चाहते थे. वहीं पटनम परिवार चाहता था कि गांव को अपने मामले सुलझाने में ज्यादा हक़ मिले. 

सेलम विच ट्रायल्स का एक चित्रण जिसमें एक महिला शक्ति से जादू कर रही है और एक पुरुष फर्श पर गिर गया है (तस्वीर: Alarmy)

दिक्कत शुरू हुई जब पटनम परिवार गांव के चर्च में एक नए पादरी को ले आया. नाम था सैमुअल पेरिस. इसके कुछ ही दिनों बाद अचानक कुछ लड़कियों को दौरा पड़ने लगा. इनमें पादरी की अपनी बेटी और भतीजी भी थी. वो अचानक चीखने चिल्लाने लगती और पूछने पर कहती कि कोई ऊपरी ताकत उनसे ये सब करा रही है. 

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उन्हें स्थानीय डॉक्टर के पास ले जाया गया. और जब वो कारण का पता न लगा पाया तो उसने इसे डायन का प्रकोप बता दिया. बीमार लड़कियों ने तीन औरतों पर इल्जाम लगाया. इनमें से एक पादरी की गुलाम नौकर थी. दूसरी महिला गरीब थी और तीसरी एक बुजुर्ग महिला थी. तीनों औरतों पर मुकदमा चला. गुलाम महिला ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए कहा कि शैतान ने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया. बाक़ी दोनों महिलाएं खुद को बेगुनाह बताती रहीं. 

300 साल साबित हुई बेगुनाही 

जैसे ही ये घटना प्रकाश में आई, अचानक पूरे पूरे सेलम में डायन के हमलों की ख़बरें आने लगीं. जिसके चलते सेलम के गवर्नर ने डायनों से जुड़े मुकदमों के लिए एक अलग कोर्ट बना दिया. जिन लोगों पर डायन होने का आरोप लगा था, उनमें अधिकतर महिलाएं थी. जिनके पास न कोई अधिकार था. न पैसे. उन्हें अपना मुकदमा भी खुद ही लड़ना था. चूंकि मामला कोर्ट में था, इसलिए ऐसे केसेज़ में गवाह या सबूत की जरुरत थी.

सेलम, मैसाचुसेट्स में विच ट्रायल , जॉर्ज एच वॉकर द्वारा लिथोग्राफ, 1892 (तस्वीर: Wikimedia Commons)

गवाहों ने कहा कि उन्होंने भूत और आत्मा के हमले को खुद अपनी आंख से देखा है. इसके अलावा सबूत के तौर पर एक टच टेस्ट भी करवाया जाता था. जिसमें यदि कोई डायन बीमार व्यक्ति को छूती तो कुछ देर के लिए उसकी तबीयत सही हो जाती. इससे मतलब लगाया जाता कि उसी औरत ने जादू किया है. 

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2 जून 1692 को ब्रिजेट बिशप नाम की महिला को इस आरोप में पहली फांसी हुई. और अगले एक साल तक कुछ 19 लोगों को डायन बताकर फांसी पर लटका दिया गया. इस मामले में आख़िरी फांसी 21 सितम्बर 1693 को हुई थी. इसके बाद फांसियों पर रोक लग गई. वो इसलिए क्योंकि खुद गवर्नर की पत्नी पर डायन होने का आरोप लग गया था. जैसे-जैसे लोगों को होश आया उन्हें अहसास हुआ कि ये सारी फांसी गलत तरीके से हुई थीं. आने वाले सालों में फांसी पाए लोगों के परिवारों को मुआवजा दिया गया. साल 2001 में अमेरिकी अदालत ने इस मामले में सजा पाए सभी लोगों को बेगुनाह करार दिया. और इस मामले में आख़िरी केस मई 2022 में चला था जिसमें 300 साल बाद एलिज़ाबेथ जॉनसन नाम की एक महिला को बेहुनाह करार दिया गया था.

आंखों में मिर्च डालकर उल्टा लटका देते थे 

भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो 17 वीं सदी तक डायन से जुड़े मामलों के लिए कोई अदालत नहीं होती थी. ब्रिटिश लाइब्रेरी में मिले दस्तावेज़ों में 1792 का एक केस दर्ज़ है. छोटानागपुर डिवीजन का सिंहभूम जिला. यहां संथाल जनजाति के लोगों में विच हंटिंग के मामले में दो औरतों को मार डाला गया था. इसके अलावा राजस्थान, बिहार गुजरात आदि इलाकों में भी औरतों को डायन बताकर मार डालने की प्रथा थी. अकसर ऐसा तब होता जब गांव के जानवरों को बीमारी लगती या अचानक कई लोगों को कोई बीमारी पकड़ लेती. ऐसी ताकत सिर्फ एक डायन के पास है, ऐसा माना जाता था. इस तरह मरने वाले लोगों में सबसे ज्यादा औरतें होती थीं. 

कोई डायन है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए सबसे क्रूर परीक्षणों में से एक तथाकथित "तैराकी परीक्षण" थाा. आरोपियों को बांधकर पानी में फेंक दिया जाता था. जो डूब गए, उन्हें निर्दोष समझा गया, जबकि जो तैरने में कामयाब रहे, वे डायन साबित हुए (तस्वीर:  ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस)

साल 1834 में अंग्रेज़ों ने इंडियन पीनल कोड बनाया. और 1840 में इसमें काले जादू के लिए क़ानून जोड़ा. चूंकि-जादू टोना लोगों की जिंदगी का हिस्सा था, इसलिए इसे पूरी तरह बैन करना संभव न था. इसलिए क़ानून में डायन पहचाने की प्रक्रिया को गैरकानूनी बना दिया गया. पूरी प्रक्रिया कुछ इस प्रकार थी-

किसी डायन को पकड़ने का काम गांव के एक तांत्रिक का होता था. जो सबसे पहले पता लगाता था कि कोई औरत डायन है या नहीं. इसके बाद उस औरत को पकड़ कर बरगद के पेड़ के नीच लाया जाता. उसकी आंखों में मिर्च डालकर पट्टी बांध दी जाती. और फिर उसे पेड़ से उल्टा लटका दिया जाता. अगर औरत शाम तक जिन्दा रहती तो अगली सुबह दुबारा ये कार्यक्रम होता. हफ़्तों तक ये प्रक्रिया दोहराने के बाद अगर कोई बच जाता तो उसे गांव निकाला दे दिया जाता. कुछ रेयर मामलों में औरत को माफ़ कर उसे साड़ी देने का जिक्र भी मिलता है.

मंडी रिपोर्ट 

इस मामले में 1880 में तैयार की गई मंडी रिपोर्ट, सबसे विस्तृत रिपोर्ट मानी जाती है. जिसमें 1840 से 1880 के बीच विच हंटिंग के केस दर्ज़ हैं. इन केसों को देखकर पता चलता है कि विच हंटिंग के पीछे का खेल क्या था. 1842 का एक केस है, जब एक बुजुर्ग औरत को उसके सौतेले बेटे ने जंगल में मार डाला था. जब पकड़ कर पूछताछ की गई तो उसने बताया कि उसकी सौतेली मां डायन थी. और उसने उसकी 2 भैंसों सहित गांव के 10 लोगों को खा लिया था.

ब्रिटिश लाइब्रेरी में मिले विच क्राफ्ट के दस्तावेज़ (तस्वीर: archaeofam.com)

जिस औरत की हत्या हुई, उसकी बेटी ने भी माना कि उसकी मां डायन थी और बताया कि वो लोगों को काटती थी, जिससे उनकी मौत हो जाती थी. इस मामले में जब तहकीकात हुई तो पता चला कि बुजुर्ग महिला ने अपने बेटे के चोरी-डकैती में शामिल होने की शिकायत की थी. जिसके बाद गुस्से में उसे जंगल ले जाकर मार दिया गया. 

इसके अलावा कुशालगढ़ केस नाम से दर्ज़ एक केस है, जिसमें एक 80 साल की महिला को पेड़ से लटकाकर मार डाला गया था. तहकीकात में सामने आया कि बुजुर्ग महिला के पास एक झोपड़ी और कुछ गायें थीं. इसी को हथियाने के लिए गांव के कुछ लोगों ने उसे डायन बताकर मार डाला. और सरकारी अधिकारी को घूस देकर बच निकले. दो साल तक चले इस मामले में सरकारी अधिकारी सहित 3 लोगों पर हत्या का केस चला था. और सजा भी हुई..हालांकि ऐसे मामले सिर्फ गिनती के थे जिनमें सजा होती थी. अधिकतर मामलों में मामूली जुर्माना देकर छोड़ दिया जाता था. 

1857 की क्रांति और डायनों की हत्या 

इन मामलों में एक समानता ये भी नजर आती है अधिकतर बूढ़ी औरतों को निशाना बनाया जाता था. वो भी ऐसी औरतों को जो अकेली रहती थीं या जिनके पास जमीन जायदाद थी. अर्चना मिश्रा अपनी किताब, ‘Casting the Evil Eye: Witch Trials in Tribal India’ में बताती हैं कि जायदाद और जमीन से जुड़े मामलों में अधिकतर औरतों पर डायन होने का इल्जाम लगाया जाता था. 1840 में अंग्रेज़ों ने जब विच हंटिंग के खिलाफ क़ानून बनाया तो उन्हें उम्मीद थी की इससे केसों में कमी आएगी. ऐसा हुआ भी. 1850 के दशक में विच हंटिंग के गिनती के ही मामले सामने आए. फिर साल 1857 आया. देश भर में अंग्रेज़ों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत हुई. 

संथाल हूल, 1857 की क्रांति (तस्वीर: Wikimedia Commons) 

इस दौरान एक अजीब चीज ये भी सामने आई कि अचानक विच हंटिंग के केसों में बढ़ोतरी होने लगी. बाद में तहकीकात से पता चला कि लोग अंग्रेज़ों से जुड़ी तमाम चीजों की तरह विच हंटिंग क़ानून का भी विरोध कर रहे थे. जनजाति के लोगों में खासकर ये मान्यता थी कि अंग्रेज़ों के क़ानून के चलते डायनों को आजादी मिल गई है. इसी के चलते 1857 के बाद के सालों में छोटानागपुर सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में विच हंटिंग के केसों में बढ़ोतरी देखी गई. और 21 वीं सदी में भी ये कुप्रथा बदस्तूर जारी है. भारत के आठ राज्यों में विच हंटिंग के खिलाफ विशेष क़ानून बनाए गए हैं. लेकिन इसके बाद भी नेशनल क्राइम रिकार्ड्स के एक आंकड़े के अनुसार पिछले 15 सालों में डायन बताकर मारे गए लोगों की संख्या 
2500 है.

विच हंटिंग को लेकर हुए अलग अलग शोधों में इसे जाति, पितृसत्तात्मक समाज से जोड़कर देखा गया है. लेकिन तुलनात्मक अध्ययन में ये बात सामने आती है कि जिन समाजों ने विज्ञान को जितना महत्त्व दिया है, उनमें ऐसे अन्धविश्वासी प्रथाओं में कमी आई है, या बहुत हद तक पूरी तरह ख़त्म हो गई है. मसलन 1300 से 1600 के बीच विच हंटिंग की महामारी से जूझने वाले यूरोप के देशों में अब ऐसे मामले लगभग शून्य हैं. उम्मीद है हमारे देश में भी जल्द से जल्द ये कुप्रथा समाप्त होगी. 

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