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पहला पाकिस्तानी 1300 साल पहले पैदा हुआ था?

मुहम्मद बिन कासिम को पाकिस्तान के कुछ लोग क्यों पहला पाकिस्तानी कहते हैं? सिंध के आख़िरी हिन्दू राजा दाहिर और कासिम के बीच युद्ध में क्या हुआ था?

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राजा दाहिर आठवीं सदी ईस्वी में सिंध के शासक थे. वो राजा चच के सबसे छोटे बेटे और ब्राह्मण वंश के आख़िरी शासक थे. (तस्वीर : Wikimedia Commons)

पहला पाकिस्तानी कौन था? लाजिम तौर पर हम कह सकते हैं. मुहम्मद अली जिन्ना. क्योंकि पाकिस्तान बनाया तो जिन्ना ने ही. लेकिन जिन्ना का अपना देश पाकिस्तान ऐसा नहीं मानता. 1997 में पाकिस्तान के बनने की 50 वीं वर्षगांठ पर एक छपी एक पत्रिका, ‘Fifty Years of Pakistan’ में लिखा था,

“मुहम्मद बिन कासिम पहले पाकिस्तानी थे”. 

अब सवाल ये कि मुहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) कौन थे? ये नाम था एक अरब कमांडर का, जिसने 7 वीं सदी में सिंध पर हमला किया था. आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि तब पाकिस्तान जैसे किसी देश का अस्तित्व तो था नहीं. फिर कासिम पहले पाकिस्तानी कैसे हो सकते हैं. चौंकिए मत. कट्टर राष्ट्रवाद की लैबोरेटरी के अक्सर ऐसे नगीने पैदा हो जाते है. दरसअल 1971 में जब पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए, तो पाकिस्तानी सरमायदारों ने इस तोहमत से बचने के लिए एक नया इतिहास गढ़ना शुरू किया. और कहने लगे कि सिंधु नदी के पश्चिम का जो इलाका है वो सदा से पाकिस्तान था. इस तरह उन्होंने लॉजिक दिया कि बांग्लादेश तो कभी असली पाकिस्तान था ही नहीं.

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सिंध का नक्शा, साल 700 (तस्वीर: Wikimedia Commons)

जिया उल हक़ के जमाने में ये थियोरी एक कदम और आगे बड़ी. उस दौर में ये नरेटिव शुरू हुआ कि पाकिस्तान की जड़ें असल में अरब से निकली हैं. धीरे-धीरे मुहम्मद गौरी, ग़ज़नवी और कासिम जैसे लोग पाकिस्तान के हीरो बन गए. और पीछे छूट गई उनकी कहानी, जिन्होंने असल में पाकिस्तान को आक्रमणकारियों से बचाया था. इनमें से एक नाम है राजा दाहिर का. साल 2020 में राजा दाहिर (KIng Dahir) का नाम पाकिस्तान में खूब उछला. लाहौर में महराजा रणजीत सिंह की मूर्ति लगाने के बाद सिंध प्रांत के कुछ सहाफियों ने राजा दाहिर को सिंध का हीरो करार देने की मांग शुरू कर दी. दरम ख़ान नाम के एक शख़्स ने फ़ेसबुक पर लिखा कि अब वक़्त आ गया है कि पाकिस्तान में बसने वाली तमाम क़ौमों के बच्चों को स्कूलों में सच बताया जाए और उन्हें अरब और मुग़ल इतिहास के बजाय अपना इतिहास पढ़ाया जाए. (History of Sindh)

दाहिर कैसे बने सिंध के राजा? 

पकिस्तान का सिंध प्रांत. राजस्थान और गुजरात से लगा हुआ ये इलाका बंटवारे के बाद पाकिस्तान के हिस्से चला गया था. एक वक्त में ये मौर्य वंश के अधिकार में था. 489 ईस्वीं से लेकर 632 ईस्वीं तक सिंध पर राय वंश का शासन रहा. राय वंश की कहानी सिंध के उस दौर के इतिहास की इकलौती किताब चचनामा से पता चलती है. राय वंश के आख़िरी राजा का नाम था साहसी राय. आख़िरी दिनों में उनके राज्य की बागडोर एक युवा ब्राह्मण के हाथ आ गई थी. इस व्यक्ति का नाम चच था. चच के बारे में कहा जाता है कि राजा साहसी राय की पत्नी सुहानादी उन्हें दिल दे बैठी थी. चूंकि उनकी कोई संतान नहीं थी. इसलिए राजा साहस राय की मौत के बाद उन्होंने चच को शादी का प्रस्ताव दिया और दोनों ने शादी कर ली. इस तरह चच सिंध के पहले ब्राह्मण राजा बने. उनकी मृत्यु के बाद गद्दी संभाली उनके बेटे दाहिर ने.

दाहिर के राजा बनने की कहानी भी काफी रोचक है. चचनामा के अनुसार दाहिर ज्योतिष विद्या पर खासा भरोसा करते थे. एक रोज़ एक ज्योतिष ने उनकी बहन की कुंडली देखकर बताया कि जो उससे शादी करेगा, वही सिंध पर राज करेगा. ये सुनकर दाहिर ने अपने साथियों से मंत्रणा की और तय किया कि वो उसके साथ शादी कर लेंगे. कुछ इतिहासकार मानते हैं कि ये सिर्फ नाम की शादी थी. जिसके बाद दाहिर सिंध के राजा बन गए. राजा दाहिर के शासन काल में सिंध खूब फैला फूला. नकी हुकूमत पश्चिम में मकरन तक, दक्षिण में अरब सागर और गुजरात तक, पूर्व में मौजूदा मालवा के केंद्र और राजपूताने तक और उत्तर में मुल्तान से गुज़रकर दक्षिणी पंजाब तक फैली हुई थी. सिंध से ज़मीनी और समुद्री व्यापार भी होता था. सिंध के वैभव को देखते हुए ये आक्रमणकारियों के निशाने पर भी आया. ये आक्रमण अरब देशों की तरफ से होते थे.

9 वीं सदी के मुस्लिम इतिहासकार अल-बालाधुरी ने सिंध पर अरब आक्रमण का ब्यौरा दिया है. उसके अनुसार मुसलमानों के दूसरे खलीफा उमर के वक्त में ठाणे और दीबल बंदरगाह तक अरब नौसैनिक अभियान चलाए गए थे. लेकिन इन्हें वापिस लौटना पड़ा. हालांकि इस दौरान वो कुछ समय तक बलूचिस्तान के मकरन इलाके पर कब्ज़ा करने में सफल रहे थे. कुल मिलाकर अरब की तरफ से सिंध पर 14 बार आक्रमण की कोशिश हुई. लेकिन 14 बार वो असफल रहे.  पन्द्रवीं कोशिश में जिस अरब कमांडर को सफलता मिली, उसका नाम था, मुहम्मद बिन कासिम. कासिम ने सिंध पर हमला क्यों किया. इसके लिए थोड़ा तब की परिस्थियों को समझ लेते हैं.

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मुहम्मद बिन कासिम (तस्वीर: Wikimedia Commons)

अरबों ने सिंध पर आक्रमण क्यों  किया? 

हुआ ये कि 661 ईस्वीं में चौथे खलीफा अली की मौत की बाद सीरिया में उमय्यद खिलाफत की नींव पड़ी. उमय्यद खलीफा मुआविया प्रथम ने 680 ईस्वीं तक शासन किया. अपनी मौत के वक्त उन्होंने अपने बेटे यजीद बिन मुआविया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया. लेकिन तीसरे खलीफा अली के बेटे हुसैन और एक पैगम्बर मुहम्मद के साथी रहे अब्दुल्ला इब्न ज़ुबैर ने यज़ीद को खलीफा मानने से इंकार कर दिया. इसके चलते अरब में दूसरे फितना यानी मुस्लिम गृहयुद्ध की शुरुआत हुई. और इस लड़ाई में करबला में हुसैन और उनके कई रिश्तेदार शहीद हो गए. इस गृहयुद्ध का एक असर ये भी हुआ कि इस दौर में कई मुसलमानों ने सिंध में शरण लेनी शुरू कर दी.

उमय्यदों के काल में बग़दाद के एक गवर्नर हुआ करते थे हुज्जाज बिन यूसुफ़. एक बगावत के चक्कर में उन्होंने माविया बिन हारिस अलाफ़ी और मोहम्मद बिन हारिस अलाफ़ी नाम के दो भाइयों को मारने का हुक्म दिया. चचनामा के अनुसार हुज्जाज से बचने के लिए अलाफ़ी भाई पहले मकरन और फिर वहां से राज दाहिर के दरबार में पहुंचे. गवर्नर ने दाहिर को पत्र लिखकर मांग की कि अलाफियों को उन्हें सौंप दें. लेकिन राजा दाहिर ने इससे इंकार कर दिया. यानी ये घटना राजा दाहिर और अरब देशों के बीच दुश्मनी की एक वजह बनी.

एक दूसरी वजह भी थी. चचनामा के अनुसार एक बार श्रीलंका के एक राजा ने गवर्नर हुज्जाज बिन यूसुफ़ के पास एक जहाज में कुछ तोहफे भिजवाए. लेकिन इस जहाज को दीबल बंदरगाह के पास लूट लिया गया. इस जहाज में कुछ औरतें भी मौजूद थीं. उन्होंने हमलावरों की कैद से फरार होकर गवर्नर हुज्जाज को लेटर लिखा और मदद मांगी. इसके बाद गवर्नर ने राजा दाहिर को एक और खत लिखा और उनसे लूटा हुआ माल और औरतें वापिस मांगी. इस बार भी राजा दाहिर ने ये कहते हुए इंकार कर दिया कि ये लूटमार उनके इलाके में नहीं हुई है. इन दोनों घटनाओं से खफा होकर गवर्नर ने अपने भतीजे मुहम्मद बिन कासिम को सिंध पर आक्रमण करने का आदेश दिया. 6 हजार की फौज लेकर मुहम्मद बिन कासिम सिंध की ओर रवाना हुआ. जैसे ही राजा दाहिर को कासिम के आने की खबर मिली, उनके वजीर ने उन्हें सलाह दी कि वो अपने किसी दोस्त के यहां पनाह लेने के लिए चले जाएं. इस पर राजा दाहिर ने जवाब दिया,

“उनसे कहना, अरब और तुम्हारे बीच, मैं आख़िरी दीवार हूं. अगर ये दीवार गिर गई तो तुम्हें कोई नहीं बचा पाएगा”

सिंध पर हमला और दाहिर की बेटियों का बदला 

मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला किया. ये साल था 708. दीबल से शुरुआत कर वो एक-एक कर सिंधु नदी के पश्चिमी इलाकों को कब्जाता गया. इस युद्ध के बारे में हमें ज्यादा ब्यौरा नहीं मिलता. सिवाए इसके कि सिंधु नदी पर मुहम्मद बिन कासिम का सामना राजा दाहिर की सेना से हुआ. इस युद्ध में राजा दाहिर की मौत हो गई. और कासिम ने उनका सर काटकर गवर्नर हुज्जाज के पास बगदाद भिजवा दिया. इस दौरान सिंध से लूटा हुआ बहुत सा माल भी बगदाद भेजा गया. कासिम ने खुद गवर्नर बनकर तीन साल तक सिंध पर राज किया. कासिम की मौत कैसे हुई, इसको लेकर भी चचनामा में एक रोचक कहानी मालूम पड़ती है.

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चचनामा (तस्वीर: Amazon)

राजा दाहिर की मौत के बाद उनकी दो बेटियों सूर्यदेवी और पिरमलदेवी को गुलाम बना लिया गया. और उन्हें खिलाफत की राजधानी दमिश्क भेज दिया गया. एक रोज़ खलीफा वलीद बिन अब्दुल मलिक ने सूर्यदेवी को अपने पास बुलाया. तब सूर्यदेवी ने जवाब दिया कि आप महान हैं, लेकिन मैं गुलाम आपके लायक नहीं हूँ. खलीफा ने पूछा क्यों. तो सूर्यदेवी ने जवाब दिया कि मुहम्मद बिन कासिम ने उन्हें और उनकी बहन को तीन दिन अपने साथ रखा था. इसके बाद वो बोली कि इतने बड़े राजा के सामने हम इस्तेमाल की हुई वस्तु नहीं पेश करना चाहते. ये सुनते ही खलीफा का खून खौल उठा. उसने तुरंत एक चिट्ठी लिखी और मुहम्मद बिन कासिम के नाम एक आदेश लिखा. ये आदेश था कि कासिम जहां भी हो, चमड़े में लपेट कर उसे खलीफा के सामने पेश किया जाए.

हुक्म की तामील हुई. कासिम को एक चमड़े के लबादे में लपेट कर संदूक में डाला गया और खलीफा के पास भेजा गया. संदूक में दम घुटने से उसकी मौत हो गई. जब उसका शव दमिश्क पहुंचा तो सूर्यदेवी ने खलीफा को सच्चाई बताई कि ये कहानी उन्होंने अपने पिता का बदला लेने के लिए रची थी. ये सुनकर खलीफा ने दोनों बहनों को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया. ये मुहम्मद बिन कासिम की मौत की एक कहानी है. इतिहासकार अल बालाधुरी ने एक दूसरा ब्यौरा पेश किया है. जिसके अनुसार हुज्जाज बिन यूसुफ़ की मौत के बाद बगदाद में एक नया गवर्नर बना. और उसने हुज्जाज से दुश्मनी का बदला लेने के लिए मुहम्मद बिन कासिम को मरवा डाला.

बहरहाल इतना तय कि मुहम्मद बिन कासिम सिंध का पहला इस्लामी शासक था. और इस कहानी से आपको ये भी समझ आ गया होगा कि पाकिस्तान का धार्मिक कट्टरपंथी धड़ा क्यों कासिम को पाकिस्तान की पहचान के तौर पर देखता है. हालांकि इससे मुख्तलिफ आवाजें भी पाकिस्तान में मौजूद हैं. जो याद दिलाती रहती हैं कि राजा दाहिर सिंध की रक्षा के लिए कुरबान हुए थे. बहरहाल कहानी को पूरा करने के लिए जान लेते हैं कि राजा दाहिर और मुहम्मद बिन कासिम की मौत के बाद क्या हुआ. सिंध पर कब्ज़ा करने के बाद 725 ईस्वीं में अरबों ने बाकी भारत पर भी आक्रमण की कोशिश की. लेकिन मेवाड़ के राजा बप्पा रावल के हाथों उन्हें मुंह की खानी पड़ी. इसके अलावा अरबों ने काठियावाड़ और दक्कन पर हमले किए लेकिन दक्कन में महराजा विक्रमादित्य के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा. काठियावाड़ की हार के बाद खलीफा अल महदी के दौर में अरबों ने भारत जीतने की उम्मीद छोड़ दी.

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