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लव कुश की कहानी क्यों नहीं बताना चाहते थे रामानंद सागर!

रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण साल 1987 में पहली बार प्रसारित हुआ था. इसे जनता द्वारा इतना पसंद किया गया कि ये भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री का सबसे मशहूर शो बन गया.

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'रामायण' का प्रसारण भारत समेत 55 देशों में होता था, इस शो की व्‍यूअरश‍िप रिकॉर्ड 650 मिलियन थी (तस्वीर-Indiatoday/Wikimedia commons)

घड़ी जैसी एक शय होती है. जिसमें तीन कांटे होते हैं. सबसे छोटा कांटा जब एक चक्कर पूरा कर लेता है, उसे समय में एक घंटा माना जाता है. ऐसी ही 24 घंटों से दिन बनता है और दिनों से हफ्ते, महीने, साल. यही नियम है. लेकिन कई बार कुछ ऐसे भी घंटे होते हैं जो तमाम नियमों को ताक पर रख देते हैं.

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80 और 90 के दशक में में भारत में एक ऐसा ही घंटा हुआ करता था. उस एक घंटे के दौरान, भारत के सबसे बड़े सूबे, उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री कोई भी फोन कॉल रिसीव करने से इंकार कर देता था.  मंत्री अपने ही शपथ समारोह में देरी से पहुंचते थे और एक दुल्हन शादी के मंडप में आने से इंकार कर देती थी. अब तक आप समझ गए होंगे, हम किस किस घंटे की बात कर रहे हैं. रविवार की सुबह का वो घंटा, जब रामायण(Ramayan) का प्रसारण हुआ करता था. इस सीरियल के निर्माता, रामानंद सागर का जन्म साल 1917 में 29 दिसंबर के दिन हुआ था. इस मौके पर चलिए जानते हैं, रामानन्द सागर(Ramanand Sagar) और रामायण के कुछ रोचक किस्से.

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रामायण सीरियल बनाने का आईडिया

रामायण बनाने से पहले रामानंद सागर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी धाक जमा चुके थे. पृथ्वी थियेटर में स्टेज मैनेजर से शुरुआत कर अगले कुछ दशकों में उन्होंने घूंघट, आरजू, प्रेम बंधन जैसी हिट फिल्मों का निर्देशन किया. साल 1976 में वो चरस नाम की एक फिल्म की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए थे. एक शाम काम निपटने के बाद रामानंद सागर अपने चारों बेटों के साथ एक कैफे में बैठे थे. सबने रेड वाइन आर्डर की. वाइन से साथ एक बक्सा भी आया. बक्से के सामने की तरफ दो लकड़ी के पाले लगे हुए थे.वेटर ने पाले खिसकाए और बक्से में लगा स्विच ऑन कर दिया. परदे पर फिल्म चलने लगी. यूं तो टीवी भारत में आ चुका था, लेकिन रामानंद सागर के लिए हैरत की बात ये थी कि उस टीवी में रंग भी दिखाई पड़ रहे थे.

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सबसे ज्‍यादा देखे गए धार्मिक सीरीज के तौर पर ‘रामायण’ का नाम लिम्‍का बुक ऑफ वर्ल्‍ड रिकॉर्ड्स में दर्ज है(तस्वीर-Indiatoday)

रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर, अपने पिता की बायोग्राफी, ‘एन एपिक लाइफ : रामानंद सागर' में बताते हैं कि ठीक यही वो पल था जब रामानंद सागर ने फिल्म छोड़ टीवी की दुनिया में उतरने का फैसला कर लिया. हाथ में वाइन का गिलास पकड़े कई देर तक वो टीवी को निहारते रहे. कुछ देर बाद बोले,

“मैं सिनेमा छोड़ रहा हूं... मैं टेलीविजन (इंडस्ट्री) में आ रहा हूं. मेरी जिंदगी का मिशन मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोलह गुणों वाले श्री कृष्ण और आखिर में मां दुर्गा की कहानी लोगों के सामने लाना है”.

रामानंद सागर के फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने का एक और पहलू भी था. ये वो दौर था जब दुबई के माफियाओं की फिल्म इंडस्ट्री में दखलअंदाजी बढ़ती जा रही थी. फिरोज़ खान की फिल्म 'कुर्बानी' के ओवरसीज राइट्स का निपटारा माफिया ने ही करवाया था. प्रेम सागर लिखते हैं कि उनके पिता समेत तमाम दिग्गज फिल्म मेकर्स को अंडरवर्ल्ड का डर सताने लगा था. उन्हें लगने लगा कि बॉलीवुड का भविष्य अंधकार में है क्योंकि दुबई में बैठे आका लगातार फिल्म बिजनेस को अपने कंट्रोल में करते जा रहे थे.

टेलीविजन में रामानंद सागर की शुरुआत हुई ‘दादा दादी की कहानियां’ नाम के एक सीरियल से, जो 13 एपिसोड तक चला. इसके बाद उन्होंने रामायण की तैयारियां करनी शुरू कर दी. इस प्रोजेक्ट के लिए काफी पैसों की जरुरत थी. इसलिए उन्होंने कुछ पर्चे छपवाए और अपने बेटों को देश-विदेश के दौरे पर भेजा. विदेशों में उनके कई दोस्त थे. लेकिन कोई भी इस प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए तैयार नहीं हुआ. प्रेम सागर लिखते हैं,

‘पापा ने मेरे दुनियाभर की टिकट खरीदी. विदेशों में बसे उनके अमीर इंडियन फ्रेंड्स की कॉन्टेक्ट लिस्ट पकड़ाई और अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए बिजनेस ट्रिप पर भेज दिया. उनके दोस्तों में से कई लोग इस प्रोजेक्ट को लेकर श्योर नहीं थे. कुछ ने अपने सेक्रेटरी को इशारा करके मुझे विनम्रता से ऑफिस से बाहर करा दिया. पापाजी के एक करीबी दोस्त ने मुझे सलाह दी कि पापा को थोड़ा समझाओ कि क्या करने जा रहे हैं. एक महीने यहां से वहां घूमने के बाद मैं खाली हाथ वापस लौट आया. रामानंद सागर के नज़रिये से 'रामायण' को खरीदने वाला कोई नहीं था.’

रामानंद सागर के शब्दों में,

“कोई भी मूछ-मुकुट वाले सीरियल में इन्वेस्ट करने को तैयार नहीं था”

इसके बाद रामानंद सागर ने तय किया कि वो एक दूसरा शो बनाएंगे, जिसमें मुकुट भी होगा और मूछें भी. शरद जोशी उन दिनों नवभारत टाइम्स में एक कॉलम लिखा करते थे. रामानंद ने शरद जोशी से मुलाकात कर एक सीरियल का प्रस्ताव रखा. तय हुआ कि सोमदेव भट्ट की लिखी किताब बेताल पच्चीसी की 25 कहानियों पर एक शो बनेगा. विक्रम और बेताल काफी हिट रहा. ये पहला शो था जिसमें टीवी पर स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया था.

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25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 तक इसे दूरदर्शन पर टेलीकास्‍ट किया गया था (तस्वीर-google)

विक्रम और बेताल ने न सिर्फ प्रूव किया कि मूंछ और मुकुट वाले शो चल सकते हैं बल्कि इस शो ने रामायण को कई सारे पात्र भी दिए. विक्रम और बेताल(Vikram Aur Betaal) में विक्रम बने अरुण गोविल(Arun Govil) को राजा राम के किरदार में फाइनल किया गया. सुनील लाहरी को 'लक्ष्मण' और दारा सिंह को 'हनुमान' का रोल मिला. कई एपिसोड्स में रानी के किरदार में नजर आई दीपिका चिखालिया 'सीता' बन गईं. और तांत्रिक का किरदार निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी रावण के रोल में फिट हुए.

जब एक मुस्कराहट से रामानंद सागर को राम मिल गए

एक राम हैं, जो हमें अक्सर गाड़ियों के शीशे पर चस्पा दिखाई देते हैं. धनुष बाण लिए लंका पर चढ़ाई करने को तैयार. लेकिन एक राम वो भी है, जिनके होंठों पर एक धीमी सी मुस्कराहट दिखाई देती है. यही वो मुस्कराहट है जो राम को राम बनाती है. कम से कम रामानंद सागर को तो यही लगता था. बात तब की है जब रामायण के लिए कास्टिंग की शुरुआत हुई. अरुण गोविल बताते हैं कि कास्टिंग के पहले राउंड में वो रिजेक्ट कर दिए गए थे. लुक, मेकअप सब सही लग रहा था. लेकिन फिर भी वो ‘भगवान राम’ नहीं मालूम पड़ रहे थे. अगली बार जब गोविंग कास्टिंग के लिए पहुंचे, उन्होंने एक छोटा सा बदलाव करते हुए, अपने चेहरे पर एक मंद मुस्कराहट ओढ़ ली. गोविल बताते हैं कि इसी मुस्कराहट ने काम कर दिया, और वो राम के रोल के लिए फाइनल हो गए.

रामायण में भरत का किरदार निभाने वाले संजय जोग, पहले लक्ष्मण का किरदार करने वाले थे. लेकिन लक्ष्मण का रोल लम्बा था. और संजय जोग के पास डेट्स नहीं थी. इसलिए उन्होंने लक्ष्मण का रोल करने से इंकार कर दिया. आखिर में रामानंद सागर ने उन्हें भरत का रोल करने के लिए मना लिया क्योंकि वो कमोबेश छोटा रोल था. 
रावण का किरदार निभाने वाले अरविन्द त्रिवेदी केवट के रोल के लिए ऑडिशन देने पहुंचे थे. लेकिन रामानंद सागर ने उन्हें रावण का रोल ऑफर किया. शुरुआत में अरविन्द इस रोल के लिए हिचक रहे थे. लेकिन फिर परेश रावल ने उन्हें इस रोल के लिए मना लिया.

जल्द ही रामायण का पायलट शूट होकर तैयार भी हो गया. लेकिन टीवी में आने में इसे दो साल का वक्त लगा. क्यों? प्रेम सागर लिखते है कि तब सरकार और दूरदर्शन के अधिकारियों में इस शो को लेकर शंका थी. सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल ने आपत्ति जताई कि इस शो का पोलिटिकल उपयोग होगा. रामानंद सागर ने दो साल तक दिल्ली के दफ्तरों में अपनी चप्पल घिसी. लेकिन हर बार कोई न कोई अड़ंगा लग जाता था. मसलन पायलट एपिसोड में देवी सीता ने छोटे बाजू के कपड़े पहन रखे थे. रामानंद सागर को ये सीन दुबारा शूट करवाने पड़े. अंत में नवंबर 1986 में अजीत कुमार पंजा नए सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने और चीजें आसान हो गयी. आख़िरकार 25 जनवरी, 1987 को दूरदर्शन पर इस महाकाव्य का पहला एपिसोड शुरू हो गया.

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ऐक्टर दारा सिंह ने शो में 'हनुमान' की भूमिका निभाई थी (तस्वीर-Indiatoday)

शो को दूरदर्शन में सुबह का स्लॉट मिला था. इसके बावजूद रामायण ने आते ही तहलका काट दिया. बीबीसी के सौतिक बिस्वास याद करते हुए बताते हैं कि, रामायण आते ही सड़कें खाली हो जाती थीं. लोग दुकान बंद कर टीवी के सामने बैठ जाते थे. और शो शुरू होने से पहले टीवी को माला पहनाकर उसकी आरती की जाती है. इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल टेलीग्राफ में लिखते हैं,

“दिल्ली के सरकारी ऑफिसों में कई बार मीटिंगें रद्द करनी पड़ती थी क्योंकि लोग रामायण देखने में बिजी रहते थे”

शुरुआत में रामायण 52 एपिसोड्स का होने वाला था. बाद में इसकी लोकप्रियता देखते हुए इनकी संख्या 78 कर दी गई. आंकड़े और भी हैं. मसलन रामायण का एक एपिसोड को बनाने में 9 लाख का खर्चा आया था. वहीं दूरदर्शन को प्रति एपिसोड 40 लाख की कमाई हुई थी. लेकिन आंकड़ों से इतर कुछ किस्से सुनिए, जो तब अखबारों की सुर्खियां बने थे. 
भोपाल में दो मुसलमान भाइयों के बीच 10 सालों से रंजिश थी. रामायण में भरत मिलाप का दृश्य देखकर बड़े भाई पर इतना असर हुआ कि उसने जमीन जायदाद का अपना आधा हिस्सा छोटे भाई के घर पहुंचा दिया.

रांची में एक पागलखाना था. वहां रहने वाले कई मरीज अक्सर हिंसक हो जाया करते थे. और पेड़ों पर बैठे बंदरों को पत्थर मारा करते थे. रामायण आया तो पागलखाने में भी दिखाया गया. मरीजों ने जब हनुमान को श्रीराम के कई काम करते देखा, उनके मिजाज में तुरंत अंतर आया और उन्होंने बंदरों को पत्थर मारना बंद कर दिया. इतना ही नहीं वो बंदरों को खाना देने लगे और जब एक बंदर की मौत हुई तो उन्होंने पागलखाने में ही उसकी समाधि बना दी. लखनऊ के एक अस्पताल ने प्रशासन से शिकायत की कि रामायण के वक्त नर्स और डॉक्टर हॉस्पिटल से गायब हो जाते हैं. 

कई चर्चों ने रविवार को होने वाली प्रार्थना का समय बदल दिया ताकि लोग आराम से रामायण देख सकें. एक किस्सा ये है कि मद्रास में एक व्यापारी ने जब लक्ष्मण को नागपाश से मूर्छित होते हुए देखा, उसकी तबीयत खराब हो गई. डॉक्टरों ने तब रामानंद सागर से दरख्वास्त की. एक स्पेशल क्लिप काटकर मद्रास भेजी गई ताकि व्यापारी देख सके कि लक्ष्मण सही सलामत हैं. एक रविवार लखनऊ स्टेशन पर एक बारात पहुंची. बारातियों ने देखा कि कुली और रिक्शावाले सब नदारद हैं. दुल्हन के पिता रसूख वाले थे. उन्होंने स्टेशन मास्टर से शिकायत की तो पता चला वो खुद रामायण देखने में बिजी है. आखिर में दुल्हन के पिता से एक मंत्री को फोन किया. वहां से जवाब मिला, मंत्री जी रामायण देख रहे हैं. बाद में फोन करना.

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शुरुआत में 'रामायण' के सिर्फ 52 एपिसोड शूट किए गए थे लेकिन इसकी लोकप्रियता को देखकर एपिसोड्स की संख्या बढ़ाई गई (तस्वीर-Indiatoday)

रामायण सुपरहिट शो साबित हुआ. रामानंद सागर तुलसीदास की रामचरितमानस के आधार पर रामायण बना रहे थे. और उसी के हिसाब से कहानी का अंत करना चाहते थे. लेकिन दूरदर्शन चाहता था कि आगे लव कुश की कहानी भी दिखाई जाए. रामानंद सागर ने शुरुआत में बिलकुल इंकार कर दिया. प्रेम सागर बताते हैं कि उनके पिता ये हरगिज मानने को तैयार नहीं थे कि एक धोबी के कहने पर श्रीराम ने देवी सीता का त्याग कर दिया था. पूरे देश में इस बात को लेकर आवाजें उठने लगी. खासकर वाल्मिकी समाज की मांग थी कि वाल्मिकी रामायण के हिसाब से कहानी पूरी दिखाई जाए. मामला संसद तक पहुंचा और अंत में जब रामानंद सागर के पास PMO से एक कॉल आया, तब जाकर वो लव कुश की कहानी दिखाने को तैयार हुए.

1987 के बाद भी रामायण को कई दूरदर्शन और बाकी चैनलों पर दिखाया जाता रहा. 2020 में कोरोना लॉकडाउन के वक्त दूरदर्शन पर रामायण का प्रसारण किया गया. और 16 अप्रैल 2020 को प्रसारित हुए इसके एपिसोड को 7 करोड़ लोगों द्वारा देखा गया. जो अपने आप में एक रिकॉर्ड था.

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