लेफ़्टिनेंट जनरल VK नायर अपनी आत्मकथा, ‘फ्रौम फटीग्स टू सिवीज’ में एक क़िस्सा बताते हैं,
जून 1984 की बात है. नायर कार में घर लौट रहे थे. कार में उनका एक साथी भी था. दोनों दिन भर ऑपरेशन रूम में थे. गोल्डन टेम्पल से उग्रवादियों का सफ़ाया करने के लिए ऑपरेशन की तैयारी पूरी हो चुकी थी. सिर्फ़ एक चीज़ बाक़ी थी. ऑपरेशन का नाम तय नहीं हुआ था. तभी रास्ते में नायर की नज़र एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर पड़ी. दुकान में एक फ्रिज रखा था. जिसपे एक नाम चस्पा था-ब्लू स्टार. ये देखकर नायर ने तय किया, ऑपरेशन का नाम ब्लू स्टार होगा. ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़े कई पहलू हम तारीख़ में कवर कर चुके हैं. आज बात करेंगे भारतीय आर्मी के उस पूर्व जनरल की जो ऑपरेशन ब्लू स्टार में उग्रवादियों की तरफ़ से लड़ रहा था. जिसने कभी पाकिस्तानी फ़ौज के दांत खट्टे किए थे लेकिन बाद में पाक प्रोपगेंडा का एक टूल बन गया.