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जब CIA के शिकंजे में फंस गया RAW एजेंट!

साल 1987 में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी RA&W का एक एजेंट CIA के हनी ट्रैप में फंस गया था.

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साल 1987 में भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी RA&W के एजेंट को अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी ने हनी ट्रैप मामले में फंसा लिया था, जिसका श्रीलंका में भारतीय ऑपरेशन काफी असर पड़ा था (तस्वीर: Getty)

साल 1986 की बात है. मोर्डेकाई वानुनु नाम का शख्स एक ब्रिटिश अखबार के ऑफिस में इंटर होता है. और दावा करता है कि उसके पास इजरायल के परमाणु कार्यक्रम से जुडी ख़ुफ़िया जानकारी है. उसका कहना था कि वो बतौर टेक्नीशियन एक परमाणु फैसिलिटी में काम कर चुका था. और उसके पास इस बात को प्रूव करने के लिए साक्ष्य भी हैं. ये बड़ी खबर थी. क्योंकि इजरायल ने हमेशा अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम के बारे में कोई खुलासा करने से बचता आया था. न वो ये दावा करता कि उसने परमाणु हथियार बना लिए हैं, न कभी इस बात से इंकार करता.

अखबार के हेड सोच रहे थे कि इस खबर को कैसे पेश किया जाए. संभव था कि ये कोई सिरफिरा व्यक्ति हो. इसलिए उसकी स्टोरी को वेरीफाई करना जरूरी था. इस बीच तय हुआ कि मोर्डेकाई को एक सेफ लोकेशन में रखा जाए. क्योंकि अगर उसकी बात सच थी, तो उसकी जान को खतरा था. मोर्डेकाई को लन्दन के एक सीक्रेट ठिकाने में भेज दिया गया. और अखबार अपनी खोजबीन में लग गया. (Mossad)

मोसाद का खेल 

कई दिन कमरे में अकेले रहते हुए मोर्डेकाई को बेचैनी हो रही थी. उसने बाहर जाने की इजाजत मांगी. और उसे ये इजाजत मिल भी गई. कुछ दिनों बाद उसने अखबार के एडिटर को बताया कि लन्दन में घूमने के दौरान उसकी मुलाक़ात एक खास लड़की से हो गई है. और वो दोनों कुछ दिनों के लिए रोम जाना चाहते हैं. 

 साल 1976 से 1985 के बीच मोर्डेकाई वानुनु  इजराइल के डिमोना परमाणु प्लांट में बतौर टेक्निशियन काम करते थे, जहां वो परमाणु बम बनाने के लिए प्लूटोनियम बनाते थे. (तस्वीर: amnesty.org)

मोर्डेकाई को इसकी इजाजत भी दे दी गई. लेकिन ये एक बड़ी गलती थी. कुछ रोज़ बाद पता चला कि मोर्डेकाई को रोम में इजरायल की ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद(Mossad) ने किडनैप कर लिया है. उसे इटली से शिप के जरिए इजरायल भेज दिया गया. जहां मोर्डेकाई पर देशद्रोह का केस चला और उसे 18 साल जेल की सजा हुई. मोर्डेकाई को जिस महिला ने अपने झांसे में फंसाया था. उसका नाम था शेरिल बेन टोव. ये महिला मोसाद की ख़ुफ़िया एजेंट थी. मोसाद ने इस ऑपरेशन में जिस तरीके को अपनाया था, जासूसी की दुनिया में उसे हनी ट्रैप (Honey Trap) कहा जाता है. हनी यानी शहद और ट्रैप यानी जाल.

जिस प्रकार शहद का लालच देकर कीड़ों और जानवरों को फंसाया जाता है, उसी प्रकार हनी ट्रैप में सेक्स का आकर्षण लालच का कारण बनता है. साल 1986 में मोसाद ने इसका इस्तेमाल अपने हित में किया. लेकिन इत्तेफाक से उसी साल हनी ट्रैप भारत की ख़ुफ़िया संस्था, R&AW के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया. R&AW के एक अफसर को हनी ट्रैप में फंसा कर भारत की ख़ुफ़िया जानकारी हासिल की गई. इस काम के पीछे थी अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA. कैसे हुआ था ये सब. R&AW का अफसर कैसे इस जाल में फंसा?
और इस पूरे षड्यंत्र का खुलासा कैसे हुआ? 

एक जासूस पकड़ा गया, दूसरे की खोज  

शुरुआत एक पुराने किस्से से. साल 1985 में कुमार नारायण नाम का एक जासूस दिल्ली में पुलिस द्वारा धरा गया था. केस था प्रधानमंत्री कार्यालय से ख़ुफ़िया दस्तावेजों की चोरी का. कुमार ने करीब 20 साल तक ये खेल चलाया था, और महज 100 रूपये और एक ब्लैक लेबल की बोतल देकर वो सरकारी बाबुओं से दस्तावेज़ कॉपी कर लिया करता था. यहां से ये दस्तावेज़ दुनिया भर में भेजे जाते. जिसकी कुमार को मुंह मांगी कीमत मिलती थी. 

रॉ के संस्थापक रामेश्वर नाथ काओ (तस्वीर: Wikimedia Commons)

कुमार के खरीदारों में से एक अमेरिका एजेंसी CIA भी थी. कुमार की गिरफ्तारी के बाद CIA का एक महत्वपूर्ण सोर्स ख़त्म हो गया था. अब उन्हें एक नए मुखबिर की तलाश थी. और यहीं से शुरू होती है ये वाली कहानी. (1987 Honey Trap Case)

केरल से आने वाले 1962 बैच के एक IPS अधिकारी हुआ करते थे. नाम था KV उन्नीकृष्णन. 1981 के आसपास उनकी R&AW में नियुक्ति हुई. और उन्हें श्रीलंका में पोस्टिंग के लिए भेजा दिया गया. श्रीलंका इस दौर में गृह युद्ध की चपेट में था. तमिलों पर हो रहे दमन के चलते भारत सरकार पर भी दबाव पड़ रहा था. इसलिए श्रीलंका में चल रहे घटनाक्रम पर R&AW अपने पैनी नजर बनाए हुए थी. यहां पोस्टिंग के दौरान उन्नीकृष्णन की मुलाकात अमेरिकी दूतावास के एक शख्स से होती है. दोनों में अच्छी दोस्ती कायम हो जाती है. दोनों साथ-साथ औरतों के पास जाते और पैसे देकर संबंध बनाते. 

CIA का जाल 

1985 में उन्नीकृष्णन दिल्ली आए. यहां R&AW द्वारा उन्हें एक खास ऑपरेशन की जिम्मेदारी देकर मद्रास भेजा गया. प्रधानमंत्री राजीव गांधी श्रीलंका में शांति सेना भेजने की ठान चुके थे. उन्नीकृष्णन को मद्रास में रहकर इस ऑपरेशन को कोआर्डिनेट करना था. मद्रास में पोस्टिंग के दौरान उनके पास एक कॉल आता है. ये कॉल बॉम्बे से किया गया था. फोन पर एक लड़की उन्नीकृष्णन को बताती है कि वो पैन अमेरिकन एयरवेज में एयरहोस्टेस का काम करती है. उन्नीकृष्णन पूछते हैं कि उसे ये नंबर कहां से मिला?

CIA की स्थापना साल 1947 में हुआ था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

लड़की जवाब देती है कि ये नंबर उसे उन्नीकृष्णन के अमेरिकी दूतावास वाले दोस्त ने दिया था. और कहा था कि अगर वो अकेला महसूस करे तो इस नंबर पर कॉल कर सकती है.
बातों की बातों में दोनों की दोस्ती होती है और कुछ दिन बाद उन्नीकृष्णन एक फ्लाइट पकड़ कर मद्रास से बॉम्बे पहुंच जाते हैं. यहां दोनों एक होटल में साथ वक्त गुजारते हैं. और दोनों के बीच रिश्ते की शुरुआत हो जाती है.

इसके कुछ समय बाद वो लड़की उन्नीकृष्णन को फोन कर एक ऑफर देती है. सिंगापोर की फ्लाइट का मुफ्त टिकट, रहने का इंतज़ाम और उसका साथ. दोनों सिंगापोर में काफी दिन छुट्टी मनाते हैं. और फिर उन्नीकृष्णन भारत वापस लौट आते हैं. यहां तक सब कुछ ठीक था. लेकिन फिर कुछ महीने बाद एक और फोन कॉल आता है. दिल्ली स्थित अमरीकी दूतावास से. एक मीटिंग तय होती है. जहां उन्नीकृष्णन को अहसास होता है कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई है. एक अमेरिकी अधिकारी उनके आगे कुछ फोटोज पेश करता है. ये फोटोज सिंगापोर में ली गई थीं. और इनमें उन्नीकृष्णन और वो एयरहोस्टेस साथ में दिखाई दे रहे थे. 

श्रीलंका से जुड़े ख़ुफ़िया दस्तावेज़ लीक होना शुरू हुए 

यहां से जासूसी का खेल शुरू हुआ. फोटोज को सार्वजानिक न करने के एवज में अमेरिका अधिकारी ख़ुफ़िया जानकारी की मांग करता है. इसके बाद लगातार मुलाकातों का दौर चलता है. हर बाद उन्नीकृष्णन अमेरिकी अधिकारी को श्रीलंका में भारतीय ऑपरेशन से जुड़ी जानकारी मुहैया कराते हैं. इसमें तमिल टाइगर्स की ट्रेनिंग, हथियार मुहैया करवाने से लेकर भारत की शांति सेना के ऑपरेशन के संवेदनशील दस्तावेज शामिल थे. इसके अलावा उन्होंने श्रीलंका सरकार के साथ भारत की शांतिवार्ता के लिए तय होने वाले रुझानों के संबंध में भी सूचनाएं लीक कीं. ये सब लगभग एक साल तक चलता रहा. इस खेल का खुलासा कैसे हुआ?

इंडिया टुडे में छपा आर्टिकल जिसमें रॉ के हनी ट्रैप केस की पूरी कहानी बताई गई थी (तस्वीर: इंडिया टुडे)

भारत और श्रीलंका के बीच शांति को लेकर लगातार वार्ताएं हो रही थीं. हर बार जब श्री लंका के अधिकारी आते, उन्हें पहले से भारतीय ऑपरेशन की जानकारी पता होती. इसके चलते R&AW को अंदेशा होने लगा कि कोई न कोई ख़ुफ़िया जानकारी लीक कर रहा है. मामला संवेदनशील था. सरकार ने इस लीक पर नकेल डालने की कोशिश करनी शुरू की. पूरी मद्रास पुलिस फ़ोर्स शक के घेरे में थी. महीनों तक R&AW और IB के द्वारा उन पर नजर रखी गई. अधिकारियों के फोन टैप किए गए. अंत में उन्नीकृष्णन पकड़ लिए गए. और पूछताछ में उन्होंने पूरी कहानी उगल दी. उस अमेरिकी अधिकारी का क्या हुआ, जो CIA के लिए काम कर रहा था?

पहले भी फंसा था एक R&AW एजेंट 

सरकार द्वारा अमेरिकी एम्बसी में इस बाबत शिकायत दर्ज़ की गई. लेकिन वो अधिकारी तब तक देश छोड़कर जा चुका था. जब उन्नीकृष्णन पहले से तय एक मुलाक़ात पर नहीं पहुंच पाए, उस अधिकारी को अंदेशा हो गया कि कुछ गड़बड़ है. और वो समय रहते देश छोड़कर चला गया. जहां तक उन्नीकृष्णन की बात है, उन्हें एक साल तक तिहाड़ में रखा गया. लेकिन चूंकि उन पर केस चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे. इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया. साथ ही नौकरी से भी सस्पेंड कर दिया गया. 

उनकी इस धोखाधड़ी को भारत के श्रीलंका मिशन की नाकामयाबी की बड़ी वजह माना जाता है. उस समय R&AW के इतिहास में वो पहले अफसर थे, जो हनी ट्रैप में फंस कर अपनी एजेंसी के लिए इतने नुकसानदेह साबित हुए थे. हालांकि ऐसा नहीं था कि किसी भारतीय एजेंट को हनी ट्रैप करने की ये पहली कोशिश थी. इससे पहले 70 के दशक में, पोलैंड की राजधानी वॉरसॉ में इसी प्रकार एक R&AW एजेंट को फंसाने की कोशिश हुई थी. वो अफसर एक मीटिंग में गया था. जहां उसकी ड्रिंक में बेहोशी की दवा डाल दी गई. और एक औरत के साथ उसकी आपत्तिजनक तस्वीरें खींच ली गई.

इसके बाद उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश हुई. लेकिन उस अससर ने सीधे R&AW के चीफ RN काओ को कॉल किया और पूरी कहानी सुना दी. काओ ने उसे भारत वापिस बुला लिया. इस प्रकरण के चलते R&AW का एक नियम बना दिया गया कि सिर्फ शादीशुदा अफसरों को देश से बाहर तैनानी मिलेगी. हालंकि R&AW की काउंटर टेररिज्म डिवीज़न के हेड बी रमन इस नियम के एकमात्र अपवाद रहे. 

वीडियो: तारीख: जब एक बाल की चोरी से जब भारत पाक में दंगे हो गए थे