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डी विलियर्स के लिए उड़ी अफवाहें इस खिलाड़ी की सच्ची कहानी है

हैदराबाद का रेनबो मैन, सैयद मुहम्मद हुसैन जिन्होंने ओलिम्पिक खेला, विंबलडन भी और रणजी का पहला शतक भी मारा

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सैयद मुहम्मद हुसैन को हैदराबाद का रेनबो मैन कहा जाता है. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

साल 1934. तारीख- 23 नवम्बर, शुक्रवार का दिन. सिकंदराबाद में क्रिकेट का एक मैच खेला जाना है. दाव पर है एक ट्रॉफी, नाम- क्रिकेट चैंपियनशिप ऑफ़ इंडिया. मैच की मेजबान टीम है हैदराबाद और सामने है मद्रास की टीम, जिसके कप्तान हैं, एम. वेंकटारमनजुलु.

सिक्का उछलता है, और गिरता है हैदराबाद के हक़ में. टीम पहले बैटिंग चुनती है. टीम की शुरुआत अच्छी हुई थी. ओपनर 80 रन बनाकर पिच पर डटे थे कि तभी मद्रास की तरफ से बॉल उछलती है और गिरती है राम सिंह के हाथों में. राम सिंह 88 रन देकर पांच विकेट लेते हैं. पहली इनिंग ख़त्म होते-होते, स्कोरबोर्ड पर स्कोर छपता है, 256 ऑल आउट.

अब बारी मद्रास की थी. बैटिंग में भी राम सिंह कमाल करते हैं. और 74 रन बनाकर अपनी टीम का स्कोर 301 पर पहुंचा देते हैं. पहली पारी के आधार पर मद्रास को 45 रन की बढ़त मिल चुकी थी. हैदराबाद अपनी दूसरी इनिंग शुरू करती है और कुछ ही देर में स्कोर हो जाता है, 12 रन और तीन विकेट. हैदराबाद की हार निश्चित दिख रही थी. तभी मैदान में इंटर होता है एक खिलाड़ी, जिसका टूर्नामेंट में ये पहला मैच था. राम सिंह की गेंदें दूसरी पारी में भी आग उगल रही थी, और इस पारी में भी उन्होंने 8 विकेट लिए. हैदराबाद दूसरी पारी में भी 227 पर गड्डी हो गई थी. लेकिन विकेट की टैली में एक नाम शामिल नहीं था. सैयद मुहम्मद हुसैन हदी (SM Hussain Hadi) 132 रन बनाकर नॉट आउट वापिस पहुंचे थे. 

हुसैन की पारी की बदौलत हैदराबाद को 182 रनों की बढ़त मिली थी. मद्रास अपनी दूसरी पारी में सिर्फ 169 रन बना पाई और हैदराबाद ने 13 रनों से ये मैच जीत लिया. इस मैच में दो बातें ख़ास थी. पहला- ये मैच रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) का उद्धघाटन टूर्नामेंट था. और इसी मैच में रणजी का पहला शतक जड़ा गया था. पहला शतक मारने वाला ये शख्स आगे जाकर ‘रेनबो मैन ऑफ हैदराबाद’ के नाम से फेमस हुआ. हुसैन की कहानी पर आने से पहले बात एक और क्रिकेटर की.

AB डी विलियर्स के बारे में उड़ी अफवाहें 

अब्राहम बेंजामिन डी विलियर्स- नाम को इंट्रोडक्शन की जरुरत नहीं. क्रिकेट के खेल में आकंठ डूबा हुआ खिलाड़ी, जिसके फैंस की संख्या शायद उसके अपने देश दक्षिण अफ्रीका से ज्यादा भारत में है. जब खाना बहुत स्वादिष्ट हो तो लोग रेसिपी का गुड़गोबर कर देते हैं. डी विलियर्स के क्रिकेट में जो चटखारा मिलता था, लोगों ने उनमें तमाम खेलों का मसाला मिलाना शुरू कर दिया. 

दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी AB दी विलियर्स जिनके नाम पर इंटरनेट में कई तरह की अफवाहें चलती थीं (तस्वीर: AFP)

कुछ साल पहले तक इंटरनेट पर एक शिगूफा तैरा करता था. शायद अब भी किसी के व्हाट्सऐप तक पहुंच रहा हो. इसमें कहा गया कि डी विलियर्स दक्षिण अफ्रीकी अंडर-19 बैडमिंटन के चैम्पियन हुआ करते थे. इसके अलावा ये भी कि वो साउथ अफ्रीका की जूनियर हॉकी टीम का हिस्सा थे. इतना ही नहीं रग्बी, फुटबॉल जैसे तमाम खेलों में उनके माहिर होने की किवदंतियां चलने लगी.

साल 2016 में डी विलियर्स ने अपनी आत्मकथा के जरिए बताया कि ये सब सच नहीं है. वो कभी अपने देश की हॉकी टीम या रग्बी टीम का हिस्सा नहीं रहे. अब आप सोचेंगे कि बात हुसैन की हो रही थी फिर ये डी विलियर्स की बात क्यों. बात इसलिए क्योंकि डी विलियर्स के बारे में इंटनेट पर जो झूठ फैलाया गया. हुसैन के कहानी में वो सब सब सच हो जाता है. हमने बताया कि हुसैन को रेनबो मैन ऑफ हैदराबाद कहा जाता है. यूं ही नहीं. उनकी इल्मारी में सात कोट टंगे रहते थे. यूं तो सबका रंग नीला था, लेकिन फिर भी वो एक इंद्रधनुष बनाते थे. खेलों का इंद्रधनुष. 

हुसैन हदी के नाम सिर्फ ये रिकॉर्ड नहीं है कि वो रणजी में पहल शतक मारे थे. बल्कि ये रिकॉर्ड तो उन्होंने अपने करियर के अंतिम सालों में बनाया था. इससे पहले ही वो 5 बार विम्बलडन में हिस्सा ले चुके थे. 2 बार डेविस कप में और एक बार ओलिंपिक में भी भारत को रिप्रेसेंट कर चुके थे.

हैदराबाद से कैंब्रिज 

सैयद मुहम्मद हुसैन हदी की कहानी की शुरुआत होती है साल 1899 में जब अगस्त महीने में उनका जन्म हुआ. उनके पिता हैदराबाद के निजाम की फौज में अफसर हुआ करते थे. हुसैन दो साल के थे, जब उनके पिता की मृत्यु हो गई. तब आस्मां जाह ने उनकी परवरिश का जिम्मा लिया. आस्मां जाह हैदराबाद रियासत के प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उन्होंने अपने बेटे नवाब मोइन-उद-दौला के साथ हुसैन की पढ़ाई का इंतज़ाम किया. नवाब मोइन-उद-दौला आगे चलकर हैदराबाद में खेलों के बड़े पैरोकार बने और उनके नाम से एक क्रिकेट टूर्नामेंट की भी शुरुआत हुई.

अपने लॉन टेनिस किट के साथ SM हुसैन हदी और डेविस कप (तस्वीर: Wikimedia Commons)

मोइन-उद-दौला और हुसैन हदी, दोनों की पढ़ाई निज़ाम कॉलेज हैदराबाद में हुई. कॉलेज में हुसैन को घुड़सवारी का शौक चढ़ा और साथ ही पोलो भी खेलने लगे. पोलो के अलावा फुटबॉल, क्रिकेट और हॉकी में भी हाथ आजमाया. निजाम कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद आस्मां जाह ने हुसैन को इंग्लिस्तान भेज दिया. पढ़ाई के लिए बहुतों को भेजा जाता था, इन्हें भेजा गया ताकि खेलों में आगे बढ़ सकें.

इंग्लैंड पहुंचकर हुसैन ने कैंब्रिज में दाखिला लिया. तब कैंब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड, इन दो संस्थानों में गहरा कम्पीटीशन हुआ करता था. खासकर खेलों के लिए सालाना एक कम्पीटीशन रखा जाता था. जिसमें भाग लेने के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों की टीमें भी आती थीं.

हुसैन कैंब्रिज पहुंचे और धीरे-धीरे कॉलेज की सभी स्पोर्ट्स टीम का हिस्सा बन गए. टेबल टेनिस, फुटबॉल, क्रिकेट, पोलो, हॉकी, इन सभी टीमों का हिस्सा बने. रश्क सभी खेलों से था, लेकिन इश्क हुआ लॉन टेनिस से. अपने पहले ही साल में उन्होंने कैंब्रिज की तरफ से लॉन टेनिस में ऑक्सफ़ोर्ड को धूल चटा दी. इसके बाद क्रिकेट हॉकी, फुटबॉल आदि में भी अपना शऊर दिखाया.

विंबलडन और ओलिम्पिक्स  

यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स को कवर करने वाले पत्रकारों ने छापना शुरू किया कि एक लड़का आया है हैदराबाद से, जिसे कप्तान बनाया जाना चाहिए. लेकिन तब भारत गुलाम था, ऐसे में किसी भारतीय को कप्तान बनाया जाए, ये संभव न था.

7 खेलों में माहिर होने के चलते हुसैन का नाम रेनबो हदी पड़ गया था (तस्वीर : Wikimedia commons) 

हुसैन ने इसकी भरपाई की ओलिम्पिक्स में हिस्सा लेकर. 1924 पेरिस ओलिम्पिक्स में उन्होंने ब्रिटिश इंडिया की तरफ से लॉन टेनिस में हिस्सा लिया. इसके अलावा 5 बार विंबलडन के लिए भी क्वालीफाई किया. 1926 में विंबलडन के डबल्स क्वाटर फाइनल तक पहुंचे और 1925 और 1926 के डेविस कप में भी हिस्सा लिया.

लन्दन से हुसैन भारत लौटे तो यहां लॉन टेनिस खेलने के ज्यादा मौके न थे. इसलिए उन्होंने क्रिकेट में हाथ आजमाने की सोची. वक्त भी एकदम मुफीद था. भारत में तब क्रिकेट पर अंग्रेज़ों का वर्चस्व था. खेलना है तो उनकी टीम से खेलो, उनके हिसाब से खेलो. भारतीय क्रिकेट का कोई आधिकारिक प्रतिनिधित्व नहीं था. ऐसे में साल 1928, दिसंबर महीने में BCCI की स्थापना हुई.

रणजी ट्रॉफी की शुरुआत 

साल 1934 में बंबई में हुई एक मीटिंग के दौरान तय हुआ कि पूरे देश के लिए एक फर्स्ट क्लास क्रिकेट टूर्नामेंट की शुरुआत होनी चाहिए. जिसमें अलग-अलग सूबों की टीम हिस्सा लेंगी. और अंत में एक टीम नेशनल विजेता बनेगी. शुरुआत में इस चैंपियनशिप का नाम पड़ा, द क्रिकेट चैंपियनशिप ऑफ इंडिया. आज हम इसे रणजी ट्रॉफी के नाम से जानते हैं. पटियाला के महाराज भूपेंद्र सिंह क्रिकेट के प्रचार-प्रसार में खासी दिलचस्पी रखते थे, इसलिए उन्होंने इस टूर्नामेंट के लिए पहली ट्रॉफी दान में दी थी.

पटियाला के महाराज भूपिंदर सिंह खुद क्रिकेट के बहुत शौक़ीन हुआ करते थे (तस्वीर: getty)

नवंबर 1934 में रणजी ट्रॉफी के उद्धघाटन टूर्नामेंट की शुरुआत हुई. 4 नवम्बर को मद्रास और मैसूर के बीच टूर्नामेंट का पहला मैच खेला गया. जो एक ही दिन में ख़त्म हो गया था. AG राम सिंह ने इस मैच में 11 विकेट लेकर मद्रास को जीत दिलाई थी.

दूसरे मैच का भी हाल कमोबेश ऐसा ही रहा. और कोई भी बल्लेबाज कुछ खास परफॉर्म नहीं कर पाया. इसके बाद रणजी का तीसरा मैच खेला गया, 23 नवंबर को. जिसके बारे में हमने आपको शुरुआत में बताया था. इस मैच में शतक बनाकर हुसैन सैयद हदी रणजी में पहला शतक बनाने वाले खिलाड़ी बन गए. 

क्रिकेट के बाद 

अगले 10 साल तक हुसैन हदी ने हैदराबाद की तरफ से फर्स्ट क्लास क्रिकेट में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने सी के नायडू, और मुश्ताक़ अली जैसे खिलाड़ियों के साथ खेला. क्रिकेट के साथ साथ बाकी खेलों में भी माहिर होने के चलते उन्हें नाम मिला “रेनबो हदी”.

साल 1941 में क्रिकेट से सन्यास लेने के बाद उन्होंने प्रशासन का ज़िम्मा संभाला. केम्ब्रिज की डिग्री के साथ साथ उन्होंने पेंसलवेनिया यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया और भारत सरकार में शिक्षा मंत्रालय में जोईंट सेक्रेटरी के पद तक पहुंचे. इसके अलावा बॉय स्काउट्स ऑफ इंडिया के नेशनल कमिशनर भी रहे.

साथ ही उन्होंने हैदराबाद में खेलों के विकास के लिए काफी काम किए. हैदराबाद फुटबॉल एसोसिएशन, क्रिकेट एसोसिएशन, टेनिस एसोसिएशन, इन सभी के वो फ़ाउंडिंग मेंबर थे. साल 1959 में जब ऑल इंडिया काउन्सिल ऑफ स्पोर्ट्स की स्थापना हुई तो हुसैन हदी को उसका पहला सेक्रेटरी नियुक्त किया गया. साल 1971 में आज ही के दिन यानी 14 जुलाई को फेफड़े के कैंसर के चलते उनका निधन हो गया था.

वीडियो देखें- 1989 के भागलपुर दंगे जिनके बाद एक मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ गया था.