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जिन्हें हीरो समझ रहा था पाकिस्तान, वो RAW के एजेंट निकले!

30 जनवरी 1971 को हाशिम क़ुरैशी और अशरफ़ क़ुरैशी ने एक भारतीय विमान नकली पिस्तौल के दम पर हाईजैक कर लिया और उसे लाहौर ले गए. घटना के एक साल बाद पाकिस्तान में उनपर भारतीय एजेंट होने के आरोप लगे.

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1971 में मक़बूल बट के साथी हाशिम कुरैशी ने भारतीय विमान 'गंगा' हाईजैक कर लिया

18 जून 1969 की तारीख. रावलपिंडी स्थित एक घर में खाने की मेज पर चार लोग बैठे थे. अचानक रेडियो पर एक खबर प्रसारित हुई. कराची एयरपोर्ट पर लैंड हुए एक प्लेन पर तीन लोगों ने ग्रेनेड और बम से हमला कर दिया था. प्लेन पूर्वी अफ्रीका के एक देश इथियोपिया का था. और हमला करने वाले तीन लोग इरिट्रिया के थे. 1993 में एक अलग मुल्क बनने से पहले इरिट्रिया इथियोपिया का हिस्सा हुआ करता था. और लम्बे वक्त तक इरिट्रिया को अलग देश बनाने की मांग को लेकर गृह युद्ध चला था.

बहरहाल रेडियो पर खबर आते ही खाने की मेज़ पर बैठे एक शख्स के दिमाग में कुछ खनका, यूरेका. आजाद कश्मीर की मांग को दुनिया के सामने लाने का इससे बढ़िया आईडिया नहीं हो सकता था. तुरंत एक प्लेन हाईजैक(Ganga Plane Hijack) की प्लानिंग हुई. लगभग  एक साल तैयारी के बाद 30 जनवरी, 1971 को वो दिन आया. प्लेन हाईजैक हुआ और कश्मीर से पाकिस्तान लाया गया. पाकिस्तान  में जश्न का माहौल था. हाईजैकर्स को देखने के लिए लोगों का तांता लग गया. इतना ही नहीं जुल्फिकार अली भुट्टो(Zulfikar Ali Bhutto) खुद एयरपोर्ट पहुंचे. और दोनों हाईजैकर्स से मुलाक़ात की. प्लेन हाईजैक करने वाले दोनों लोग रातों-रात पाकिस्तान में हीरो बन गए.

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फिर वक्त ने करवट ली. इस घटना के एक साल बाद दोनों कठघरे में खड़े थे. और पाकिस्तान हाई कोर्ट में उन पर जासूसी का केस चल रहा था. पाकिस्तान जिन्हें हीरो समझ रहा था. वो मुल्क के दो टुकड़े करवाने वाले थे. शतरंज के इस खेल में जब पता चला कि असली बाज़ी कौन चलने वाला है, पाकिस्तानी हुक्मरानों के पैरों से जमीन खिसक गई. एक रूपक के तौर पर और असल में भी. 1971 में पाकिस्तान के बंटवारे में अहम् भूमिका निभाने वाले इस इस प्लेन हाईजैक की क्या थी कहानी? चलिए जानते हैं.

मकबूल बट सुरंग खोदकर फरार हुआ

इस कहानी की शुरुआत होती है 1950 से. क्या हुआ था इस साल?
जम्मू कश्मीर प्लेबिसाइट फ्रंट नाम के एक संगठन की शुरुआत हुई थी. वो गुट जो जम्मू-कश्मीर में जनमत-संग्रह कराना चाहता था. कश्मीर के कई युवा इस संगठन से जुड़े. इनमें से एक का नाम था मकबूल बट. 1959 में पुलिस से बचने के लिए मकबूल बट(Maqbool Bhat) पाकिस्तान गया और पेशावर यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. यहां उर्दू भाषा में मास्टर्स करने के बाद 1961 में उसने पाकिस्तान में एक लोकल इलेक्शन लड़ा और जीता भी. इस दौरान वो लगातार कश्मीर की आजादी के लिए मांग उठा रहा था. हालांकि उसका कहना था कि कश्मीर, भारत या पाकिस्तान, किसी का हिस्सा न होकर एक अलग आजाद मुल्क होना चाहिए. 1965 में उसने अपने कुछ सहयोगियों के साथ एक नया गुट बनाया, नेशनल लिबरेशन फ्रंट (NLF).

Maqbool Bhatt
मकबूल बट को 1966 में भारत में गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन वो जेल से फरार हो गया(तस्वीर-kashmirlife.net)

NLF एक आतंकी संगठन था. वापिस कश्मीर आया 1966 में मकबूल और उसके साथियों ने एक CID इंस्पेकटर अमर चंद को अगवा कर लिया. अमर चंद ने भागने की कोशिश की तो उसे गोली मार दी गई. पुलिस ने दबिश देते हुए मकबूल बट को गिरफ्तार कर लिया. वहीं उसका एक साथी औरंगज़ेब मुठभेड़ में मारा गया. साल 1968 में श्रीनगर कोर्ट ने इस मामले में मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई लेकिन वो जेल से सुरंग खोदकर फरार हो गया. उसने एक बार दुबारा अपना संगठन खड़ा करने की कोशिश की. लेकिन पाकिस्तानी इंटेलिजेंस उसके फरार होने की कहानी को पचा नहीं पा रही थी. उन्हें शक तक कि बट डबल एजेंट हो सकता है. इसके अलावा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI कश्मीर में अपने कोवर्ट ऑपरेशन चला रही थी. और वो नहीं चाहते थे कि NLF के नौसिखिया उनका काम बिगाड़े.

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इस बीच उसी साल मकबूल की मुलाक़ात दो लड़कों से हुई जो कश्मीर से पाकिस्तान पहुंचे थे. 17 साल का हाशिम कुरैशी और 19 साल का अशरफ कुरैशी. रोचक बात ये है इन हाशिम की पाकिस्तान पहुंचाने में मदद एक BSF अधिकारी ने की थी. बदले में उसे मकबूल बट के खिलाफ इनफार्मेशन इकठ्ठा करनी थी. हाशिम और अशरफ मकबूल से मिले और NLF में शामिल हो गए. इसके बाद शुरू हुई हाईजैकिंग की कहानी.

राजीव गांधी का प्लेन हाईजैक होने वाला था.

18 जून 1969 को मकबूल ने हाशिम को एक काम की जिम्मेदारी दी. उसे भारत में एक प्लेन हाईजैक करना था. ताकि कश्मीर समस्या को अंतराष्ट्रीय मंच पर पब्लिशिटी मिले. पाकिस्तान में ही हाशिम को हाईजैकिंग की ट्रेनिंग मिली. उसे पिस्तौल चलाने और बम बनाना भी सिखाया गया. इसके बाद एक पिस्तौल और एक हेंड ग्रेनेड देकर उसे श्रीनगर भेजा गया. लेकिन इस दौरान हाशिम को BSF ने पकड़ लिया. पूछताछ में उसने पूरी कहानी उगल दी कि कैसे मकबूल ने उसे प्लेन हाईजैक की जिम्मेदारी दी है.साथ ही उसने BSF को बताया कि दो और लोग उसके साथ इस काम को अंजाम देने वाले हैं. हाशिम के अनुसार ऐसा करने के लिए उसे खुद मकबूल बट ने कहा था. ताकि सहयोग के नाम पर BSF उस पर नरमी बरते. ऐसा ही हुआ भी.

Qureshi Brothers
हाईजैकिंग में शामिल हाशिम कुरैशी और अशरफ कुरैशी (तस्वीर-thisday.app)

BSF ने हाशिम को अपने साथ काम करने का न्योता दिया. साथ ही उसे सब इन्स्पेक्टर की पोजीशन देकर श्रीनगर हवाई अड्डे पर तैनात भी कर दिया गया गया. ताकि वो NLF के बाकी सदस्यों की पहचान कर सके. सब इन्स्पेक्टर रहते हुए भी हाशिम अपने प्लान में लगा रहा. उसने श्रीनगर एयरपोर्ट की रेकी कर पूरी जानकारी अपने साथी अशरफ तक पहुंचाई. दिसंबर 1970 तक पूरी प्लानिंग हो चुकी थी. सिर्फ एक समस्या सामने थी. हाशिम जो ग्रेनेड और पिस्तौल लाया था, उसे BSF ने अपने कब्ज़े में ले लिया था. इस मुश्किल का हल ढूंढते हुए दोनों ने तय किया कि एक नकली पिस्तौल ख़रीदेंगे. इसके बाद ग्रेनेड बनाने के लिए एक कारपेंटर ढूंढा गया, जिसने लकड़ी का एक ग्रेनेड बनाया, जो पेंट करने बिलकुल असली ग्रेनेड जैसा दिखने लगा था.

हाईजैकिंग के लिए 30 जनवरी 1971 की तारीख चुनी गई. इस तारीख को चुनने का खास कारण था. दरअसल इस दिन राजीव गांधी के श्रीनगर आने का प्लान था. ठीक ऐन मौके पर दोनों एयरपोर्ट पहुंचे. तब पता चला कि राजीव का प्लान कैंसिल हो गया है. इसके बाद दोनों ने तय किया कि एक दूसरे विमान को हाईजैक करेंगे. जो प्लेन चुना गया उसका नाम था, गंगा. ये काफी पुराना प्लेन था और काफी पहले ही रिटायर किया जा चुका था. लेकिन हाईजैकिंग से ठीक पहले आश्चर्यजनक ढंग से इसे दुबारा इंडियन एयरलाइंस में शामिल कर लिया गया. क्यों? ये आगे की कहानी से आपको समझ आएगा.

ग्रेनेड फोड़ कर दिखाता हूं

सुबह 11.30 पर प्लेन ने उड़ान भरी. श्रीनगर से जम्मू की तरफ. लगभग पौन घंटे बाद जैसे प्लेन लैंडिंग को तैयार हुआ, हाशिम प्लेन के कॉकपिट में घुस गया. उसने अपनी नकली पिस्तौल निकाली और पायलट की कनपटी पर रख दी. और पायलट से प्लेन रावलपिंडी ले चलने को कहा. इस बीच सीटिंग एरिया में अशरफ अपनी सीट से उठा और उसने नकली ग्रेनेड हाथ में ले लिया. विमान में उस रोज़ भारतीय सेना के एक कप्तान भी बैठे थे. उन्होंने अशरफ से पूछा, ये कौन सा ग्रेनेड है? अशरफ ने जवाब दिया, फोड़ कर दिखाता हूं, पता लग जाएगा कौन सा है. इधर कॉकपिट में पायलट घबराए हुए थे. उन्होंने हाशिम से कहा, प्लेन में इतना फ्यूल नहीं कि रावलपिंडी जा सके. तय हुआ कि प्लेन लाहौर ले जाया जाएगा.

Ganga Plane Hijacking 1971
भारतीय विमान 'गंगा' को श्रीनगर हवाई अड्डे से जम्मू जाते हुए हाईजैक कर लिया गया और उसे ज़बरन पाकिस्तान के शहर लाहौर  ले जाया गया (तस्वीर-defenceupdate.in)

लगभग डेढ़ बजे प्लेन लाहौर हवाई अड्डे पर उतरा. यहां हाशिम ने पाकिस्तानी अधिकारियों को अपनी पहचान और मकसद के बारे में बताया. दोनों ने मांग रखी कि उनकी मकबूल बट से बात कराई जाए. बात तो नहीं हो पाई लेकिन अशरफ और हाशिम महिलाओं और बच्चों को छोड़ने को तैयार हो गए. कुछ देर में सभी लोगों को छोड़ दिया गया. जिसके बाद पाकिस्तान अधिकारी यात्रियों को लाहौर के एक होटल में ले गए. कुछ दिनों बाद उन्हें सही सलामत भारत पहुंचा दिया गया. लगा कि मामला निपट गया लेकिन असली खेल अभी बाकी थी.

हाईजैकिंग के कुछ ही घंटों में ऑल इंडिया रेडियो ने ये खबर पूरे भारत में फैला दी थी. वहीं शाम तक पूरे पाकिस्तान को भी हाईजैकिंग का पता चल चुका था. जब लोगों को पता चला कि कश्मीर की आजादी के लिए दो लड़के प्लेन उठा लाए हैं. एयरपोर्ट पर उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जमने लगी. अशरफ और हाशिम रातों-रात में हीरो बन गए. मामला इंटरनेशनल हो चुका था. 

वहीं एक दूसरा मामला और था जो जल्द ही इंटरनेशनल होने वाला था. 1970 में पाकिस्तान में चुनाव हुए थे. जिसमें पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग ने बहुमत हासिल किया. नियमानुसार सत्ता उन्हें मिलनी चाहिए थी. लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान के गोरे पठान, सांवले बंगालियों को अपने से कमतर समझते थे. इसलिए सरकार बनने में अड़चन आ रही थी. जनवरी महीने में इस मामले में पैरवी करने के लिए जुल्फिकार भुट्टों पूर्वी पाकिस्तान पहुंचे. ताकि शेख मुजीब से मुलाक़ात कर सकें. 2 फरवरी को भुट्टो पाकिस्तान लौटे तो उन्हें हाईजैकिंग का पता चला. आनन-फानन में भुट्टो लाहौर एयरपोर्ट पहुंचे और दोनों हाईजैकर्स से मुलाक़ात की और उन्हें प्लेन से बाहर आने के लिए मनाया. इसके बाद पाकिस्तान सुरक्षाबलों ने प्लेन में आग लगा दी. हाशिम और अशरफ को एक गाड़ी में बैठाकर शहर में जुलूस निकाला गया. लाहौर के तमाम नेता एक बार उनके बगल में खड़े होना चाहते थे तो वहीं जनता उन पर फूल उछाल रही थी. अगले दो दिनों तक पाकिस्तान में जश्न का माहौल रहा. जिसमें खलल पड़ा 4 फरवरी को. उस दिन क्या हुआ?

इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के प्लेन बैन कर दिए

खबर आई कि भारत ने हाईजैकिंग के आधार पर पाकिस्तानी प्लेन्स के उसकी सीमा में घुसने पर रोक लगा दी है. अब यहां से कहानी में गज़ब ट्विस्ट आया. अंतर्राष्ट्रीय एविएशन कानूनों के हिसाब से 1947 के बाद भारत पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच एक ब्रिज की तरह काम कर रहा था. यानी पाकिस्तान के विमान सीधे भारत की एयरस्पेस से ट्रेवल कर सकते थे. भारत के इस कदम का मतलब था कि पाकिस्तानी जहाजों को अब श्रीलंका से घूमकर पूर्वी पाकिस्तान जाना पड़ता. जो पैसे और समय की बड़ी बर्बादी होती. लेकिन मामला सिर्फ पैसों का नहीं था. जल्द ही भारत के इस कदम से पाकिस्तान अपनी आधी जमीन से हाथ धोने वाला था. क्यों?

Zulfikar Ali Bhutto and Shaikh Mujibur Rehman
तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो और आवामी लीग के अध्यक्ष शैख़ मुजीबुर रेहमान (तस्वीर-विंटेज पाकिस्तान)

फरवरी 1971 के हालात देखिए. पूर्वी पाकिस्तान में दिन पर दिन तनाव बढ़ रहा था. आवामी लीग अपने नागरिकों को विद्रोह के लिए भड़का रही थी. पाकिस्तान वहां सैनिक भेजकर स्थिति कंट्रोल करने की फिराक में था. ऐसे में ऐन मौके पर भारत के इस कदम ने उसके लिए मुसीबतें बढ़ा दी. पाकिस्तान को जब तक ये अहसाह हुआ. खेल हो चुका था. ये पूरा प्लान दरअसल रॉ का था. 1968 में R&AW के गठन के बाद से ही रामेश्वर काव पूर्वी पाकिस्तान पर नजर बनाए हुए थे. जब उन्हें पूर्वी पाकिस्तान में बिगड़ते हालात का अंदाज़ा हुआ तो उन्होंने पाकिस्तान की इस स्पोर्ट लाइन को काटने का प्लान पहले से ही तैयार कर लिया था. R&AW के संस्थापक सदस्य बी रमन ने अपनी किताब, 'द काउबॉयज़ ऑफ़ रॉ’ में लिखते हैं.

“ हाइजैकिंग के कारण इंदिरा गांधी से पूर्वी पाकिस्तान से आने वाली सभी फ्लाइट्स पर पाबंदी लगा दी इसकी वजह से पाकिस्तान सही समय पर सैनिक और उपकरण नहीं पहुंचा पाया. और इसने बांग्लादेश युद्ध में उसकी हार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई”

उधर पाकिस्तान में जैसे ही ये अहसास हुआ कि पूरा गेम क्या है, उनकी सिट्टी पिट्टी गुम होने लगी. राष्ट्रपति याहया खान के इशारे पर तुरंत हाशिम, अशरफ, मकबूल बट और चंद और लोगों को हिरासत में लेकर एक इन्क्वायरी बिठा दी गई. जिसकी जांच रिपोर्ट में कहा गया कि हाशिम क़ुरैशी एक भारतीय एजेंट था और भारत ने साजिशन इस घटना को जानबूझकर अंजाम दिया था. पाकिस्तान इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस पहुंचा. लेकिन जब तक मामला निपटता, पाकिस्तानी अपनी आधी जमीन से हाथ धो बैठा था. मार्च में शेख मुजीबुर्रहमान की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्च लाइट की शुरुआत की.

भारत ने मुक्तिबाहिनी के गठन में मदद देना शुरू किया. अक्टूबर तक मुक्तिवाहिनी विद्रोहियों के सामने पाकिस्तान के पैर उखड़ने लगे. 6 अक्टूबर को हुई एक बड़ी लड़ाई में पाकिस्तान के 500 से ज्यादा सैनिक मारे गए. 3 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर भारत पाकिस्तान युद्ध की शुरुआत हुई. और 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्म समर्पण भी कर दिया.

प्लेन हाईजैकर्स का क्या हुआ?

मकबूल बट सहित बाकी लोगों को इस मामले में रिहाई मिल गई. वहीं हाशिम कुरैशी को जासूसी के जुर्म में 9 साल पाकिस्तानी जेल में रहना पड़ा. साल 2000 में कुरैशी भारत आया. जहां उसे पाकिस्तानी एजेंट होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कुरैशी का कहना है कि न तो वो पाकिस्तान का एजेंट था, न भारत का. उसने दोनों देशों का इस्तेमाल अपने मकसद के लिए किया था. मक़बूल बट 1976 में एक बार फिर कश्मीर लौटा. उसने एक बैंक लूटने की कोशिश की. लेकिन उसे फिर पकड़ लिया गया. और इस बार भी उसे फांसी की सजा सुनाई गई. और 1984 में तिहाड़ जेल में उसे फांसी दे दी गई.

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