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कैसे एक चिट्ठी से पकड़ा गया 167 IQ वाला जीनियस आतंकी?

8 करोड़ इनाम, IQ-167, कहानी एक आतंकी के जीनियस बनने की.

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युनाबॉम्बर को पकड़ने के लिए FBI का अभियान अब तक का सबसे लंबा और सबसे महंगा अभियान था (तस्वीर: Wikimedia Commons)

(Unabomber) जीनियस की श्रेणी में आने वाला शख्स, सब कुछ छोड़छाड़ कर एक रोज़ वीराने में जा बसता है. और फिर शुरू होती हैं चिट्ठियों वाले बमों की बारिश. बम चूंकि जीनियस ने बनाए थे, लिहाजा दुनिया की सबसे ताकतवर पुलिस के लिए भी उसका सुराग नहीं लगा पाई. फिर एक रोज़ एक लेटर आया. लिखा था, 

‘मेरा मैनिफेस्टो इस खत के साथ नत्थी है, अगर छाप दोगे तो बमों का हमला रुक जाएगा’. 

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35 हजार शब्दों के इस मैनिफेस्टो का लब्बो लुआब कुछ यूं था -

“टेक्नोलॉजी इस दुनिया को बर्बाद कर रही है. इस चक्कर में लोग अपनी आजादी खोने के लिए तैयार हो गए हैं”.

Ted Kaczynski
16 की उम्र में टेड कजिंस्की को हावर्ड में दाखिला मिल गया था (तस्वीर- wikimedia commons)

(Ted Kaczynski) सोशल मीडिया के दौर से एक दशक पहले तकनीकी के खतरे से आगाह करने वाले इस शख्स का नाम था -टेड कजिंस्की उर्फ़ युनाबॉम्बर. एक आतंकी जिसे पकड़ने में FBI को 20 साल से ज्यादा का समय लग गया. कजिंस्की, युनाबॉम्बर कैसे बना, और कैसे पकड़ा गया?

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16 साल की उम्र में हावर्ड पहुंचा 

टेड कजिंस्की की पैदाइश साल 1942 में अमेरिका के शिकागो शहर में हुई थी. ज़बरदस्त प्रतिभा का धनी टेड एक सर्टिफ़ाइड जीनियस था. IQ टेस्ट में उसका स्कोर 167 था. इस बात के क्या मायने थे, एक उदाहरण से समझिए, बिग बैंग थियोरी नाम का एक सिटकॉम है. जिसमें शेल्डन कूपर नाम का एक किरदार है. एकदम जीनियस आदमी. एक रोज़ शेल्डन की बहन उसकी तारीफ करते हुए कहती है,

‘मैं अपने दोस्तों को गर्व से बताती हूं, मेरा भाई रॉकेट साइंटिस्ट है”. 

ग़ुस्से में शेल्डन चिल्लाता है,

“तुम उन्हें ये क्यों नहीं कह देती कि मैं टोल जमा करने वाला एक कर्मचारी हूं”.

शेल्डन के ग़ुस्से का कारण ये था कि वो एक थियोरिटिकल फ़िज़िसस्ट था, और रॉकेट साइंटिस्ट से तुलना को अपनी तौहीन मानता था. आम व्यक्ति के लिए मेधा के ये दोनों स्तर बराबर हैं. लेकिन बुद्धि सूचकांक, जिसे अंग्रेज़ी IQ स्कोर कहते हैं, ऐसा नहीं मानता. 130 के IQ पर आप अत्यंत मेधावी हो सकते हैं, लेकिन 160 तक पहुंचते ही आप आइंस्टीन के लेवल पर पहुंच जाते हैं.

यानी बुद्धि के मामले में कजिंस्की आइंस्टीन के स्तर पर था. शायद उससे भी आगे. मात्र 16 साल की उम्र में उसे हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से स्कालर्शिप मिल गई थी. यहां से बैचलर्स करने के बाद उसने मिशिगन यूनिवर्सिटी में दाख़िला लिया. यहां गणित में मास्टर्स और PHD हासिल की. इस दौरान उसे हर परीक्षा में अव्वल स्थान मिलता था. लेकिन इस बात से खुश होने के बजाय वो दुखी था. ये सोचकर कि मिशिगन में परीक्षाएं उसकी बौद्धिक क्षमता के हिसाब से बहुत आसान थी. इस दौरान उसने एक ऐसा रिसर्च पेपर लिख़ा, जिसे उसके एडवाइज़र के अनुसार, पूरे अमेरिका में महज़ 10 या 12 लोग समझ सकते थे.

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कजिंस्की को 16 साल की उम्र में उसे हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से स्कालर्शिप के साथ दाखिला मिला था (तस्वीर- wikimedia commons)

सब छोड़कर जंगल की ओर 

PHD पूरी करने के बाद कजिंस्की कैलिफ़ोर्निया गया. यहां उसे बर्कले यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली. तब उसकी उम्र महज 25 साल थी. उसका करियर एकदम ठीक दिशा में जा रहा था कि एक रोज़ अचानक उसने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया. 1971 में उसने मोंटेना राज्य के लिंकन शहर के एक सुदूर वीराने में झोपड़ी बनाई और उसी में रहने लगा. ये जगह इतनी रिमोट थी कि यहां बिजली-पानी की व्यवस्था भी नहीं थी. उसने ऐसा क्यों किया, ये उसके परिवार की समझ से परे था. कजिंस्की हमेशा से शांत स्वभाव था और लोगों से कटा-कटा रहता था. लेकिन अचानक इतना बड़ा कदम उठाने की क्या वजह थी, ये उसने किसी को नहीं बताया.

यहां से ये कहानी एक मोड़ लेती है. और उसके लिए हमें चलना होगा, 25 मई 1978 की तारीख पर. बकले क्रिस्ट, इलेनॉय राज्य की नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में मटेरियल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफ़ेसर थे. एक रोज़ पोस्टल विभाग का एक शख्स उनके पास एक पैकेज लेकर आया. पैकेज किसी ने भेजा नहीं था. बल्कि पोस्टल अधिकारी के अनुसार वो यूनिवर्सिटी के पार्किंग लॉट में यूं ही रखा हुआ पाया गया था. उस पर रिटर्न ऐड्रेस की जगह क्रिस्ट का पता लिखा हुआ था. क्रिस्ट को शक हुआ क्योंकि उन्होंने ऐसा कोई पैकेज नहीं भेजा था. इसलिए उन्होंने सीधे पुलिस को इत्तिला कर दी. पुलिस के एक ऑफ़िसर ने जैसे ही पैकेज खोला, उसमें एक धमाका हो गया. क़िस्मत से ऑफ़िसर को ज़्यादा चोट नहीं आई. क्योंकि पैकेज के अंदर रखा बम ज़्यादा उन्नत तकनीक का नहीं था.

इसके ठीक एक साल बाद यूनिवर्सिटी में ऐसे ही पेकेज में एक और बम भेजा गया. इस बार विस्फोट में एक छात्र को चोट आई. इसके अगले साल एक ऐसी घटना हुई, जिसने FBI को इस केस में दख़ल देने के लिए मजबूर कर दिया. अमेरिकल ऐरलाइंस की एक फ़्लाइट शिकागो से वाशिंगटन जा रही थी. बीच फ्लाइट में अचानक बैगेज एरिया से धुआं निकलने लगा. आनन-फानन में इमरजेंसी लैंडिंग हुई. पता चला कि प्लेन में बम रखा था, जो गड़बड़ी के चलते फूटा नहीं. अगर फूटा होता तो सैकड़ों लोगों की जान जा सकती थी. इसके कुछ रोज़ बाद यूनाइटेड एयरलाइंस के मालिक पर्सी वुड को एक पैकेज में बम मिला जिसमें उन्हें गंभीर चोट आई.

FBI की तहकीकात 

FBI ने इन सारे केसों को जोड़ते हुए एक टास्क फ़ोर्स बनाई और मामले की छानबीन शुरू कर दी. शुरुआत में उनके हाथ कोई खास सुराग नहीं लगा. बमों को बनाने में ऐसी चीजों का इस्तेमाल हुआ था, जो कूड़े में मिल जाती थीं. कई बार बमों के साथ कुछ नोट मिलते, लेकिन उनकी छानबीन से भी यही पता चलता था कि घटनाओं को अंजाम देने वाला शख्स उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रहा है. साल 1985 तक और भी कई बम भेजे गए. अधिकतर मामलों में लोगों को चोट आई थी लेकिन एक मामले में एक कम्प्यूटर स्टोर वाला मारा गया था.

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मोंटेना राज्य के लिंकन शहर में इसी घर में युनाबॉम्बर रहा करता था (तस्वीर- wikimedia commons)

1987 में FBI के हाथ पहला सुराग लगा. बम रखते हुए एक शख्स की फोटो CCTV पर कैद हो गई थी. इसकी मदद से FBI ने एक स्केच बनवाकर हर तरफ फैलाया लेकिन चूंकि उस रोज़ हमलावर ने एक हुड और काला चश्मा पहन रखा था, उसकी पहचान होना मुश्किल था. 1987 से 1993 तक बमों का सिलसिला रुका लेकिन एक बार फिर उनकी शुरुआत हुई. और इस बार बम हमले के बाद अखबारों को कुछ खत भी भेजे गए. 1994 में एक वकील को पैकेज में बम मिला और उसकी मौत हो गई. हमलावर ने खत लिखकर कहा कि वो वकील Exxon नाम की तेल कम्पनी के लिए काम करता था, इसलिए उस पर हमला हुआ. 1995 में लकड़ी उद्योग के एक मालिक को बम मिला और उसकी भी मौत हो गई. बम हमलों के इस सिलसिले को अब तक 17 साल हो चुके थे. लेकिन FBI को अब तक कुछ पता नहीं चल पा रहा था कि इसके पीछे कौन शख्स है.

FBI ने इस केस को नाम दिया था, UNABOM. यानी 'यूनिवर्सिटी एण्ड एयरलाइन बॉम्बर'. मीडिया ने इसी को युनाबॉम्बर बना कर हमलावर को इसी नाम से बुलाना शुरू कर दिया. FBI ने युनाबॉम्बर की एक प्रोफ़ाइल भी तैयार की थी. जिसके अनुसार वो एक सिरफिरा लेकिन शातिर आदमी था. यूनिवर्सिटी से उसका कुछ न कुछ नाता जरूर था. कुछ साल इस प्रोफ़ाइल पर काम करने के बाद इसे त्याग दिया गया. एक नई प्रोफ़ाइल बनी जिसके अनुसार हमलावर प्लेन मेकेनिक था. इससे भी FBI को कोई खास सफलता नहीं मिली. उन्होंने पीड़ितों के बीच कनेक्शन ढूंढने की कोशिश की, लेकिन वहां भी कुछ न मिला. अंत में FBI ने युनाबॉम्बर के सिर 10 लाख डॉलर, यानी लगभग 8 करोड़ रूपये का इनाम रख दिया ताकि कहीं से कुछ सुराग मिल सके. इसके बावजूद बरसों तक ये केस यूं ही बना रहा. फिर 1995 में एक रोज़ न्यू यॉर्क टाइम्स आदि अख़बारों के पास युनाबॉम्बर का खत आया.

टेक्नॉलजी के खतरे 

खत के साथ एक मैनिफेस्टो था. और थी एक धमकी- यदि इसे छापा नहीं तो हमले जारी रहेंगे. मैनिफ़ेस्टो में क्या लिखा था?  Industrial Society and Its Future, नाम से लिखे इस घोषणापत्र में टेक्नॉलोजी के ख़तरे से आगाह किया गया था. लिखने वाले ने लिखा था, 

“औद्योगिकि क्रांति के चलते इंसान तकनीक पर निर्भर हो गया है, और उसने अपनी आजादी खो दी है. लोगों को इस ख़तरे के प्रति जगाने के लिए धमाका ज़रूरी है”

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1998 में अपने अपराध स्वीकार करने के बाद युनाबॉम्बर को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई (तस्वीर- thenationalnews.com)

FBI किसी आतंकी की मांगें स्वीकार नहीं करना चाहती थी, फिर भी तय हुआ कि मैनिफेस्टो छापा जाएगा. इस उम्मीद के साथ कि शायद मेनिफेस्टो में लिखी बातों और लेखनी के तरीके से शायद कोई उसे पहचान जाएगा. मैनिफ़ेस्टो छपा और जैसी FBI को उम्मीद किसी ने उसे पहचान भी लिया. डेविड कजिंस्की को मेनिफ़ेस्टो की भाषा से अहसास हुआ कि उनका भाई ऐसी ही बातें करता था. जिसका नाम था- टेड कजिंस्की. यानी गणित का वही जीनियस जिसने सब कुछ छोड़कर जंगल में आसरा बना लिया था, और अब वो लोगों को बम भी भेज रहा था.

डेविड कजिंस्की हालांकि सीधे FBI के पास नहीं गए. उन्होंने अपने तई एक प्राइवेट इंवेस्टिगेटर हायर किया और मामले की छानबीन की. 6 महीने में पूरी जानकारी इकट्ठा कर वो FBI के पास पहुंचे. FBI ने अपनी तरफ़ से टेड के पुराने लेखन से मैनिफ़ेस्टो का मिलान किया. अंत में जब पक्का हो गया कि टेड कजिंस्की ही युनाबॉम्बर है, उसे पकड़ने का प्लान तैयार हुआ. लेकिन इसी बीच एक न्यूज चैनल ने खबर प्रसारित कर दी कि युनाबॉम्बर पहचाना जा चुका है. और टीवी पर उसके भाई डेविड की पहचान भी उजागर कर दी गई. रातों रात पुलिस कजिंस्की के जंगल वाले ठिकाने पर पहुंची और उसे पकड़ लिया गया. उसके पास से बम बनाने का सामान और दस्तावेज़ मिले. जिससे पक्का हो गया कि वही युनाबॉम्बर है.

टेड कजिंस्की युना बॉम्बर कैसे बना?

टेड कजिंस्की के आतंकी बनने के पीछे एक कारण बताया जाता है कि जब वो हार्वर्ड में पढ़ रहा था, उसने मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में हिस्सा लिया था. इस दौरान उसे रोज़ गालियां दी जाती थीं. और बाद में चेहरे पर आने वाले हाव-भावों का वीडियो उसे दिखाया जाता था. सम्भवतः इसका उसके मन पर गहरा असर पड़ा था. जिसके चलते लोगों से मिलने, बात करने में उसे दिक्कत आती थी. सेक्स को लेकर भी उसके मन में विकार पैदा हो गया था. जिन महिलाओं को वो पसंद करता था, उनसे बात नहीं कर पाता था. और इसी के चलते उसने मन में आधुनिक समाज के प्रति घृणा पैदा हो गई थी.  युनाबॉम्बर की कहानी का अंत कैसे हुआ?

4 मई, 1998 के रोज़ टेड ने अपने सारे अपराध स्वीकार किए और रोज़ अदालत ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अभी वो भी जेल में है. और जंगल में बना उसका कैबिन FBI के म्यूजियम में रखा हुआ है.

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