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जब राष्ट्रपति के डॉक्टर पर हत्या का केस चला!

1973 में राष्ट्रपति वीवी गिरी के डॉक्टर नरेंद्र सिंह जैन पर उनकी पत्नी की हत्या का केस चला.

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1973 का दिव्या जैन मर्डर केस भारतीय ज्यूडिशियल हिस्ट्री का एक लैंडमार्क जजमेंट माना जाता है (तस्वीर: Wikimedia Commons)

तारीख थी 4 दिसंबर 1973. दिल्ली की उस सर्द शाम डॉक्टर नरेंद्र सिंह जैन चांदनी चौक स्थित अपनी क्लिनिक पर ताला लागते हैं और घर लौट जाते हैं. घर दिल्ली के पॉश इलाके, डिफेन्स कॉलोनी में था. घर पहुंचकर डॉक्टर जैन अपनी पत्नी विद्या से कहते हैं, “चलो, दीदी के यहां हो आते हैं”. उसी कॉलोनी में डॉक्टर जैन की बहन रहा करती थीं. डॉक्टर जैन और उनकी पत्नी घर से बाहर निकलते हैं. शाम के सवा सात बजे थे. अंधेरा हो चुका था. दोनों कार की तरफ बढ़ते हैं. डॉक्टर जैन ड्राइविंग वाली साइड की तरफ से बैठते हैं और उनकी पत्नी दूसरी तरफ से. लेकिन जैसे ही डॉक्टर जैन ड्राइविंग सीट पर पहुंचते हैं, देखते हैं कि उनकी पत्नी वहां नहीं है. उन्हें बगल के नाले से कुछ आवाज सुनाई देती है. वो गाड़ी से बाहर निकलकर नाले की तरफ बढ़ते हैं. नाले में उन्हें एक धुंधली सी आकृति मुंह के बल लेटी हुई दिखाई देती है.

डॉक्टर जैन मदद के लिए जोर से आवाज लगाते हैं. आवाज सुनकर डॉक्टर जैन के घर में मौजूद दो गेस्ट और उनके नौकर बाहर आते हैं. इसी बीच नाले से एक आदमी कूदकर बाहर आता है. डॉक्टर जैन उससे हाथापाई की कोशिश करते हैं, तभी सामने वाला आदमी एक पिस्तौल निकालकर उनकी तरफ करता है और फिर भाग जाता है. विद्या जैन नाले में कराह रही थीं. दो नौकर, कुंदन सिंह और गंगा सिंह वहां आते हैं. सब मिलकर नाले से विद्या को निकालते हैं. और गाड़ी में बिठाते हैं. इसी बीच डॉक्टर जैन को दिखाई देता है कि ऑफ वाइट धोती और शर्त पहने दो लोग वहां से भाग रहे थे. वो अपनी पत्नी को अपने के दोस्त के क्लिनिक पर ले जाते हैं. लेकिन तब तक विद्या जैन की मौत हो चुकी थी.

इस बीच पुलिस को इत्तिला की जाती है. विद्या जैन को 16 बार चाकू से गोदा गया था. पुलिस अनजान लोगों के खिलाफ मर्डर का केस दर्ज़ कर अपनी तहकीकात शुरू कर देती है. 
डॉक्टर जैन बताते हैं कि जिन दो लोगों को उन्होंने भागते हुए देखा, उन्होंने ही विद्या की हत्या की है. लेकिन पुलिस के लिए कौन से भी बड़ा सवाल था क्यों?

आखिर क्यों हुई विद्या जैन की हत्या?
किसने की?

पहले ये समझिए कि आज इसके बारे में आपको क्यों बता रहे हैं. दरअसल 1973 में हुआ ये हत्याकाण्ड कोई मामूली घटना नहीं थी. डॉक्टर नरेंद्र जैन तब दिल्ली ही नहीं, देश के सबसे बड़े ऑय सर्जन्स में से एक थे. और इसके अलावा उनकी खास पहचान थी कि वो देश के राष्ट्रपति वी वी गिरी के पर्सनल आय सर्जन हुआ करते थे. क्या थी इस हाई प्रोफ़ाइल केस की कहानी और क्यों ये केस भारतीय न्याय व्यवस्था के इतिहास का एक लैंडमार्क केस माना जाता है, आइये जानते हैं.

राष्ट्रपति का पर्सनल डॉक्टर 

अब चलते हैं अपनी आज की स्टोरी पर. कहानी शुरू होती है डॉक्टर नरेंद्र सिंह जैन से. 6 बहनों के इकलौते भाई, डॉक्टर जैन के पिता बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हुआ करते थे. स्कॉलरशिप से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की. और 1960’s में दिल्ली के सबसे मशहूर ऑय सर्जन के तौर पे उभरने लगे. बोलने में सौम्य और उर्दू शायरी के शौक़ीन डॉक्टर जैन की अपने पेशंट्स से खूब बनती थी.

डॉक्टर नरेंद्र सिंह जैन (तस्वीर: friendslibrary.in)

1969 का साल उनके करियर के लिए बड़ा पड़ाव साबित हुआ, जब आज ही के दिन यानी 24 अगस्त 1969 को वी वी गिरी देश के चौथे राष्ट्रपति बने. वी वी गिरी को आंख की दिक्कत थी, इसके लिए डॉक्टर जैन को राष्ट्रपति का पर्सनल डॉक्टर चुना गया. हालांकि साथ-साथ वो अपनी पर्सनल प्रैक्टिस भी चलाते रहे.

दिसंबर की उस शाम जब जब उनकी पत्नी की हत्या हुई तो कुछ सवाल खड़े हुए. पुलिस ने तहकीकात में पाया कि डॉक्टर जैन की किसी से दुश्मनी नहीं थी. एक दूसरा एंगल था डकैती का. लेकिन पुलिस ने पाया कि विद्या जैन के जेवर सही सलामत थे, इसलिए डकैती वाला एंगल भी खारिज हो गया. एक सवाल ये भी था कि हमले में डॉक्टर जैन को कोई चोट क्यों नहीं आई?

पुलिस ने घर के नौकरों और विद्या के परिवार से पूछताछ की. तब सामने आया एक नाम, चंद्रेश शर्मा. चंद्रेश शर्मा कभी डॉक्टर जैन की सेक्रेटरी हुआ करती थीं लेकिन फिर बाद में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था. पुलिस ने तलाशी ली तो चंद्रेश के पास से पुलिस को कुछ तस्वीरें मिलीं. इन तस्वीरों से जो कहानी सामने आई वो कुछ इस प्रकार थी.

शादी और तलाक 

चंद्रेश शर्मा की पहली शादी 1960 में हुई थी लेकिन जल्द ही उनके पति की मौत हो गई. फिर 1964 में चंद्रेश ने एक आर्मी कैप्टन से शादी की. लेकिन ये शादी भी ज्यादा दिन नहीं चली और 1967 में दोनों का तलाक हो गया. उसी साल चंद्रेश ने डॉक्टर जैन के यहां बतौर सेक्रेटरी काम करना शुरू किया. और देखते-देखते दोनों में अफ़ेयर हो गया. डॉक्टर जैन की पत्नी विद्या को इसकी भनक लगी तो उन्होंने चंद्रेश को नौकरी से निकलवा दिया. हालांकि इसके बाद भी अफेयर जारी रहा. 

पुलिस को इसका पता चला उन पैसों से, जो डॉक्टर जैन ने चंद्रेश के अकाउंट में जमा कराए थे. 1972 में चंद्रेश अम्बाला शिफ्ट हो गई लेकिन डॉक्टर जैन उन्हें पैसा भेजते रहे. डॉक्टर जैन चंद्रेश से शादी करना चाहते थे लेकिन इसके लिए उनकी वर्तमान शादी आड़े आ रही थी. डॉक्टर जैन राष्ट्रपति के डॉक्टर थे, ऊंचे सर्कल्स में उनका उठना-बैठना था. इसलिए उन्हें डर था कि तलाक दिया तो बात फ़ैल जाएगी और समाज में उनकी बड़ी बदनामी होगी. इसलिए चंद्रेश और डॉक्टर जैन ने तय किया कि विद्या को रास्ते से हटाना होगा. अब देखिए हत्या की प्लानिंग कैसे हुई?

हत्या की प्लानिंग 

चंद्रेश का एक दोस्त हुआ करता था. 25 साल का राकेश कौशिक, जो दिल्ली कैंटोनमेंट में हवलदार की नौकरी करता था. चंद्रेश ने राकेश को बताया कि वो डॉक्टर की पत्नी को रास्ते से हटाना चाहती है, इसके लिए उसे मदद चाहिए. राकेश पास में रहने वाले करण सिंह नाम के आदमी से मिला. राकेश ने उसे 20 हजार की पेशकश दी. 10 हजार काम से पहले और 10 हजार काम के बाद. करण सिंह तैयार हो गया और 10 हजार ले लिए. अगले तीन महीने तक राकेश उससे पूछता रहा कि काम कब होगा लेकिन करण सिंह टालता रहा और आखिर में उसने 10 हजार हड़प लिए.

चंद्रेश शर्मा जेल जाते हुए (तस्वीर: ट्विटर/indianhistorypics)

इसके बाद नवम्बर महीने में राकेश ने अपनी पत्नी की बीमारी का बहाना बनाया और छुट्टी लेकर अपने गांव चला गया. उसका गांव हरियाणा के चरखी दादरी में पड़ता था. वहां राकेश ने 20 साल के राम किशन को अपने साथ दिल्ली आने का न्योता दिया. राम किशन मोटर मेकेनिक था. काम के लालच में राम किशन दिल्ली आ गया. दिल्ली आकर राकेश ने राम किशन को धमकी दी कि उसे डॉक्टर की हत्या करनी होगी वरना वो भी जान से जाएगा.

राम किशन ने नाटक किया मानो वो तैयार हो गया है. वो गाज़ियाबाद से एक चाकू भी खरीद लाया. इसके बाद कई हफ़्तों तक राकेश और राम प्रकाश एक टैक्सी में विद्या जैन का पीछा करते रहे. लेकिन राम किशन हर बार कोई न कोई बहाना बनाता और विद्या बच जाती. इसके बाद 1 दिसंबर 1973 को राम किशन ने राकेश को साफ़-साफ़ कह दिया कि वो हत्या नहीं करेगा. इसके बदले उसने राकेश को कल्याण नाम के एक आदमी के बारे में बताया, जो इस तरह के काम कर सकता था. 

इसके बाद राकेश कल्याण से मिला और उसने उसे हत्या के प्लान के बारे में बताया. कल्याण का एक उस्ताद था, भागीरथ. भागीरथ ने दो और लोगों को इस काम के लिए तैयार किया. ये दोनों लोग थे, उजागर सिंह और करतार सिंह. करतार और उजागर ने इस काम के लिए 25 हजार मांगे और राकेश देने के लिए तैयार हो गया.

प्लान में गलती 

इसके बाद 4 दिसंबर को शाम साढ़े चार बजे चांदनी चौक के एक रेस्त्रां में सब लोगों की मीटिंग हुई. डॉक्टर जैन भी इस मीटिंग में शामिल होते हैं और सबको बताते हैं कि काम आज ही होना है. करतार और उजागर को अब तक सिर्फ 500 रूपये मिले थे. डॉक्टर जैन उनसे कहते हैं कि बाकी पैसे काम पूरा होने के बाद मिलेंगे. और वहां से चले जाते हैं. इसके बाद चंद्रेश कहती है कि साढ़े 6 बजे वो भी डॉक्टर जैन के घर पहुंचेगी. प्लान था कि जैसे ही डॉक्टर जैन और विद्या बाहर निकलेंगे, करतार और उजागर विद्या को दबोच कर उसकी हत्या कर देंगे. साथ-साथ चंद्रेश दोनों से कहती है कि डॉक्टर जैन को कोई चोट नहीं आनी चाहिए.

करतार सिंह, उजागर सिंह और चंद्रेश शर्मा (तस्वीर: friendslibrary.in) 

यहीं पर प्लान में चूक हो गई. पुलिस को ये बात हजम नहीं हो रही थी कि अकेले विद्या पर हमला क्यों हुआ. इसके अलावा सवाल था कि डॉक्टर जैन ने हमलावरों का पीछा क्यों नहीं किया 
और वो चुपचाप अपनी जगह मूक दर्शक बने क्यों खड़े रहे?

इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढते ढूंढते पुलिस उजागर सिंह और करतार सिंह तक पहुंच गई. मामला कोर्ट पहुंचा. दिक्कत थी कि पुलिस के पास हत्या के लिए यूज़ किया गया चाकू नहीं था. इसलिए पूरा केस परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर तय होना था. सेशन कोर्ट ने इस मामले में त्वरित सुनवाई करते हुए डॉक्टर जैन, चंद्रेश और राकेश को उम्र कैद की सजा सुनाई. जबकि करतार और उजागर को सिर्फ 2 साल की सजा मिली, वो भी हथियार रखने के जुर्म में.

गलती किसकी थी? 

इसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा . यहां बचाव पक्ष की तरफ से दलील दी गई कि हत्या का कोई मोटिव नहीं था. विद्या को कई सालों से दोनों के अफेयर का पता था, इसलिए अचानक डॉक्टर जैन और चंद्रेश को हत्या करने की कोई जरुरत नहीं थी. इसके बाद अभियोग पक्ष में गवाहों को पेश किया गया, जिनमें करण सिंह और राम प्रकाश शामिल थे. अदालत ने माना कि डॉक्टर जैन चंद्रेश के पास हत्या का अच्छा ख़ासा मोटिव था. गवाहों के बयान को आधार बनाकर अदालत ने डॉक्टर जैन, चंद्रेश, राकेश, करतार और उगाजर को दोषी माना. अब फैसले की बारी थी.

राष्ट्रपति के डॉक्टर का केस होने के चलते तब ये केस बहुत हाई प्रोफाइल बन गया था (तस्वीर: indianexpress)

फैसला आया तो पूरा देश हैरान था. चंद्रेश, डॉक्टर जैन और राकेश को इस मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई गई. वहीं करतार और उजागर को सजा-ए-मौत दी गई. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी हाई कोर्ट का फैसला बरक़रार रहा. तब पूरे देश में इस केस का खूब हो हल्ला मचा था. दो लोग जिन्हें हत्या के सिर्फ 500 रूपये मिले थे, उन्हें फांसी की सजा मिली और जिन लोगों ने हत्या की पूरी साजिश की थी, उन्हें महज उम्र कैद मिली.

सुप्रीम कोर्ट ने तब अपने फैसले में कहा था कि हालांकि प्लानिंग डॉक्टर जैन और चंद्रेश की थी, लेकिन असली कसूर करतार और उजागर का था. दोनों अगर लालच में हत्या के लिए पैसे नहीं लेते तो विद्या की मौत नहीं होती. फैसला अजीबोगरीब था लेकिन तब ये सुपारी किलिंग के कुछ पहले केसेज़ में से एक था. बाद के सालों में अदालत सुपारी देने वाले और हत्या करने वाले को बराबर का दोषी मानती आई है.

बहरहाल इस केस में 16 साल जेल में रहने के बाद डॉक्टर जैन और चंद्रेश को अच्छे व्यवहार के चलते रिहाई मिल गई, जबकि उजागर और करतार दोनों को फांसी पर चढ़ा दिया गया.

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