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ट्रंप की पॉलिसी को बंद करने के लिए जज ने बाइडन को क्या चेतावनी दे दी?

टाइटल 42 की पूरी कहानी क्या है?

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टाइटल 42 की पूरी कहानी क्या है?

अमेरिका में एक ज़िला जज ने राष्ट्रपति जो बाइडन को पांच हफ़्ते की मोहलत दी है. किसलिए? प्रवासियों से जुड़े एक विवादित पॉलिसी को खत्म करने के लिए. इसका नाम है, टाइटल 42. इस पॉलिसी के तहत, अमेरिकी अधिकारियों को ज़मीनी सीमा से अमेरिका में घुसने वाले अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का असीमित अधिकार मिला था. टाइटल 42 को कोरोना महामारी की शुरुआत में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने लागू किया था. उनका कहना था कि इसके ज़रिए कोरोना के फैलाव को रोका जाएगा. लेकिन समय-समय पर इसकी डेडलाइन बढ़ाई जाती रही. ट्रंप सरकार ने टाइटल 42 का इस्तेमाल अपनी प्रवासी-विरोधी नीति को थोपने के लिए किया. ट्रंप के बाद जो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति बने. उन्हें प्रवासियों की नीति पर उदार माना जा रहा था. लेकिन बाइडन सरकार ने भी इस पॉलिसी को रोकने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. अब जाकर एक डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज ने फ़ुल एंड फ़ाइनल का आदेश दे दिया है.

तो, आज हम समझेंगे,

- टाइटल 42 की पूरी कहानी क्या है?
- इस पॉलिसी को विवादित क्यों माना जाता है?
- और, अदालत ने बाइडन सरकार को पांच हफ़्ते की मोहलत क्यों दी है?

20 मार्च 2020 को अमेरिका की सेंटर्स फ़ॉर डिजिजेज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन (CDC) ने एक पब्लिक हेल्थ ऑर्डर जारी किया. उस समय पूरी दुनिया में कोरोना वायरस तेज़ी से फैल रहा था. दुनियाभर में कोविड लॉकडाउन की शुरुआत हो चुकी थी. हवाई यात्राओं पर बैन लगा दिया गया. इंटरनैशनल ट्रैवल रोक दिया गया. फिर ये आशंका जताई गई कि लोग अवैध तरीके से अमेरिका में घुस सकते हैं. अमेरिका की दक्षिणी सीमा से अवैध प्रवासियों के घुसने का इतिहास दशकों पुराना है. उधर मेक्सिको और साउथ अमेरिका के दूसरे देशों से लोग अमेरिका आने की कोशिश करते रहे हैं. इसके लिए वे हरसंभव उपाय अपनाते हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद अमेरिका इसपर लगाम नहीं लगा पाया है. इसी वजह से चिंता ये जताई गई कि अवैध प्रवासी सारा खेल बिगाड़ सकते हैं. इसलिए, सरकार ने टाइटल 42 की पॉलिसी लागू कर दी. इससे बॉर्डर पर मौजूद अधिकारियों को ये अधिकार मिला कि वे प्रवासियों को बिना कारण बताए तुरंत वापस भेज सकते हैं.

जिस समय ये पॉलिसी लागू की गई, उस समय डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति के तौर पर काम कर रहे थे. प्रवासियों को लेकर ट्रंप की सोच जगजाहिर है. ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी मेक्सिको बॉर्डर पर दीवार खड़ी करने के पक्ष में रहे हैं. अमेरिका का इतिहास प्रवासियों का इतिहास रहा है. इसके बावजूद रिपब्लिकन पार्टी नए लोगों को अपने यहां आने देने के ख़िलाफ़ रही है.

टाइटल 42 दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अस्तित्व में आया था. इसमें कहा गया था कि किसी भी संक्रामक बीमारी को रोकने के लिए कोई भी आपातकालीन कदम उठा सकती है. कोविड महामारी से पहले इसके इस्तेमाल का कोई उदाहरण नहीं मिलता. ट्रंप सरकार ने आपदा को अवसर बनाकर अपनी प्रवासी-विरोधी नीति को बढ़ावा दिया. अगस्त 2022 की CBS News की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप के कार्यकाल में टाइटल 42 के ज़रिए 03 लाख 80 हज़ार प्रवासियों को बॉर्डर से लौटाया गया. जो बाइडन के कार्यकाल में ये संख्या बढ़ी है. अगस्त 2022 तक लगभग 30 लाख अवैध प्रवासियों को अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर गिरफ़्तार किया गया. इनमें से आधे लोगों को वापस लौटा दिया गया.

अब समझते हैं कि टाइटल 42 को विवादित क्यों माना जाता है?

- CDC ने टाइटल 42 को मार्च 2020 में एक महीने के लिए लागू किया. अप्रैल में इसकी डेडलाइन एक महीने के लिए बढ़ाई गई. फिर मई में इसे अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया. औपचारिक तौर पर मई 2022 में ये पॉलिसी खत्म हो जाने वाली थी. बाइडन सरकार इसके लिए राज़ी भी थी. लेकिन अमेरिका के लगभग आधे राज्यों ने इसका विरोध किया. तब एक डिस्ट्रिक्ट जज ने बाइडन सरकार की कोशिश को ब्लॉक कर दिया.

- टाइटल 42 की आलोचना की वजह को समझने के लिए एक आंकड़ा सुन लीजिए. प्यूएंते की रिपोर्ट के अनुसार, जून 2020 में 1650 नाबालिग बच्चे अमेरिका की दक्षिणी सीमा से अंदर घुसे. इनमें से सिर्फ 59 बच्चों को रेफ़्यूजी सेटलमेंट के दफ़्तर में भेजा गया. बाकी बच्चों को टाइटल 42 के तहत बाहर निकाल दिया गया. रिपोर्ट्स हैं कि कई बच्चों को बॉर्डर के पास होटलों में रखा गया. उन्हें कोई वकील नहीं दिया गया. बाहर निकाले गए कई बच्चों का पता आज तक नहीं चल सका है.

- टाइटल 42 के तहत, बॉर्डर में घुसने के कुछ घंटे के अंदर ही प्रवासियों को निकालने की व्यवस्था है. उनके पास शरण लेने के लिए कानूनी रास्ता लेने का समय तक नहीं होता. ये अमेरिका के इमिग्रेशन कानून के ख़िलाफ़ है. किसी भी रास्ते से अमेरिका आने वाले प्रवासियों के पास शरण के लिए अपील करने का अधिकार है. बहुत से प्रवासी अपनी जान की सुरक्षा के लिए अमेरिका आते हैं. ऐसे लोगों को भी सेम केटेगरी में रखकर बाहर निकाल दिया गया.

हम आज इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं?

अप्रैल 2022 में CDC के डायरेक्टर रशेल वेलेन्स्की ने कहा कि उनकी एजेंसी टाइटल 24 को और आगे नहीं बढ़ाएगी. उनका कहना था कि अमेरिका में अधिकतर लोगों को वैक्सीन लग चुकी है. कोविड के मामलों में कमी आई है और संक्रमित लोगों के हॉस्पिटलाइजे़शन की दर भी कम हुई है. इसलिए, टाइटल 42 के नाम पर प्रवासियों को भगाने की ज़रूरत नहीं बची.

CDC के आदेश के बाद 23 मई से टाइटल 42 खत्म हो जाता. लेकिन उसी समय रिपब्लिकन पार्टी के नियंत्रण वाले राज्यों ने एक याचिका दायर की. कहा कि पॉलिसी को आनन-फानन में खत्म किया जा रहा है. मई 2022 में लूइजियाना की एक अदालत ने टाइटल 42 को जारी रखने का आदेश सुना दिया.

कट टू नवंबर 2022.

16 नवंबर को एक ज़िला जज एमेट सलिवन ने टाइटल 42 को आधारहीन और मनमाना करार दिया. सलिवन ने अपने आदेश में कहा कि ये संघीय कानून का उल्लंघन करता है. अदालत तुरंत इस पॉलिसी को खत्म करना चाहती थी. लेकिन सरकारी वकीलों के आग्रह पर पांच हफ़्ते की मोहलत दी गई है. सरकार की तरफ से पेश हुए वकीलों ने कहा था कि डिपार्टमेंट ऑफ़ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) को बदलाव लाने के लिए कुछ समय चाहिए. DHS ने पांच हफ़्ते का समय मांगा था. जज ने कहा कि मुझे ये मोहलत देते हुए बहुत दुख हो रहा है, लेकिन इस अपील को दरकिनार नहीं किया जा सकता.

अब टाइटल 42 वाली पॉलिसी हटाने के लिए 21 दिसंबर की डेडलाइन निर्धारित हुई है. अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, पूरी पॉलिसी के दौरान लगभग 24 लाख प्रवासियों को अमेरिका से बाहर भेजा गया. बीबीसी की अक्टूबर 2022 की एक रिपोर्ट कहती है कि अकेले 2022 में 16 हज़ार से अधिक भारतीय भी वापस लौटाए गए. जिन भारतीयों को सीधा वीजा नहीं मिलता, वे अमेरिका की दक्षिणी सीमा के रास्ते अवैध तरीके से अंदर घुसने की कोशिश करते हैं. वे अपना सबकुछ छोड़कर नई ज़िंदगी शुरू करना चाहते हैं, लेकिन उनमें से अधिकतर गैंग्स और अपराधियों के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाते हैं. बहुतों का तो कभी कोई रेकॉर्ड भी दर्ज़ नहीं होता. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि ये अमानवीय है. क्या बाइडन सरकार इस अमानवीयता को रोक पाने में कामयाब होगी, ये देखने वाली बात होगी.

टाइटल 42 के चैप्टर को यहीं पर विराम देते हैं.

अब चलते हैं अपडेट्स की तरफ़. पिछले कुछ दिनों में दुनिया में कई बड़ी घटनाएं देखने को मिलीं. आज जान लेते हैं कि इन मामलों में नया क्या हुआ?

- पहली अपडेट अमेरिका से ही आई. हमने 09 नवंबर के दुनियादारी में अमेरिका के मिड-टर्म इलेक्शन के बारे में बताया था. अमेरिका में हर दो साल पर संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ रेप्रेजेंटेटिव्स का चुनाव होता है. इसके अलावा, हर दो बरस में ऊपरी सदन यानी सेनेट की एक-तिहाई सीटों पर भी वोटिंग कराई जाती है. 

इसमें ताज़ा ख़बर ये है कि डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने निचले सदन में बहुमत हासिल कर लिया है. अमेरिकी संसद के निचले सदन में कुल 435 सीटें हैं. रिपब्लिकन पार्टी ने बहुमत के लिए ज़रूरी 218 सीटें जीत ली हैं. कुछ सीटों पर गिनती अभी भी जारी है. ऊपरी सदन यानी सेनेट में इस बार की 35 सीटों को मिलाकर कुल 99 सीटों का नतीजा आ चुका है. जो बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने 50 सीटों पर जीत दर्ज़ की है. उनके पास सेनेट का कंट्रोल रहेगा.

इससे पहले, 15 नवंबर को डोनाल्ड ट्रंप ने 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में खड़े होने की आधिकारिक घोषणा की. इससे पहले उन्हें रिपब्लकिन पार्टी के अंदर दावेदारी जीतनी होगी. मीडिया रपटों के अनुसार, लगभग सभी पोल्स में ट्रंप आगे चल रहे हैं. उन्हें पार्टी के अंदर सबसे बड़ी चुनौती फ़्लोरिडा के गवर्नर रॉन डिसेंटिज से मिल रही है. हालांकि, अभी तक रॉन ने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का आधिकारिक ऐलान नहीं किया है.

- अगली अपडेट ईरान से है. पुलिस हिरासत में महसा अमीनी की मौत के बाद से ईरान में ज़बरदस्त प्रोटेस्ट चल रहे हैं. महसा को धार्मिक पुलिस ने हिजाब ठीक से ना पहनने के लिए गिरफ़्तार किया था. महसा के घरवालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने हिरासत में उनकी बच्ची को टॉर्चर किया. जिसके कारण उसकी मौत हुई. इसके बाद ईरान के कई शहरों में प्रोटेस्ट होने लगे. महिलाओं ने हिजाब उतारकर और अपने बाल काटकर कट्टर धार्मिक कानूनों का विरोध दर्ज़ कराया. 

ईरान सरकार ने प्रोटेस्ट को विदेशी साज़िश बताकर कुचलने की कोशिश भी की. अभी तक लगभग 15 हज़ार लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. एक को फांसी की सज़ा भी दी गई. ओस्लो से चलने वाले ईरान ह्यूमन राइट्स (IHR) का दावा है कि ईरानी आर्मी ने कम से कम तीन सौ प्रदर्शनकारियों की हत्या की है. इन सबके बावजूद विरोध रुक नहीं रहा है. 16 नवंबर को ट्विटर पर ईरान की राजधानी तेहरान का एक वीडियो वायरल हुआ. इसमें पुलिसवाले एक मेट्रो स्टेशन पर अंधाधुन फ़ायरिंग करते नज़र आ रहे हैं. एक वीडियो में पुलिसवाले महिलाओं पर लाठियां बरसाते भी दिखते हैं. मानवाधिकार संगठनों ने इस घटना की निंदा की है. हालांकि, इस निंदा का ईरान सरकार पर कोई असर पड़ेगा, ये दावे से नहीं कहा जा सकता.

अगली अपडेट पोलैंड से है.

 15 नवंबर को पोलैंड के एक गांव में मिसाइल से हमला हुआ. इसमें दो लोगों की मौत हो गई. मिसाइल रूस में बनी हुई थी. लेकिन ये साफ़-साफ़ नहीं पता चला कि मिसाइल दागी किसने थी? पोलैंड नेटो का सदस्य है. नेटो का आर्टिकल फ़ाइव साझा सुरक्षा की बात करता है. अगर ये हमला रूस ने जान-बूझकर किया होता, तब सभी नेटो देशों को रूस के ख़िलाफ़ लड़ाई करना पड़ सकता था. इसी को लेकर 16 नवंबर को कई आपातकालीन बैठकें हुईं. जब ये सब घट रहा था तब इंडोनेशिया के बाली G20 सम्मलेन चल रहा था. वहां से भी कई बयान आए.

अब जानिए मामले से जुड़े अपडेट्स -

- पोलैंड पर मिसाइल हमले के बाद एक थ्योरी ये बताई जा रही थी कि हो सकता है कि ये मिसाइल यूक्रेन ने चलाई हो. इसपर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा कि इतनी बात तो तय है कि ये मिसाइल यूक्रेन की नहीं थी. ये तो हुई यूक्रेन की बात. लेकिन उसके कुछ दोस्त इससे उलट बयान दे रहे हैं. नेटो और पोलैंड के नेताओं का कहना है कि बहुत संभावना है कि ये मिसाइल यूक्रेन की ही हो.

पोलैंड के राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, इस बात कि बहुत संभावना है कि पोलैंड में गिरी ये मिसाइल यूक्रेन के एयर डिफेंस सिस्टम की हो. जो रूस के हमले से बचते समय दागी गई हो, लेकिन ग़लती से वो पोलैंड में आ गिरी हो. आपको बता दें कि रूस और यूक्रेन ने युद्ध के दौरान रूस में बने सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल किया है. इसमें S-300 भी शामिल हैं.

नेटो के सेक्रेटरी-जनरल जेन स्टोलेनबर्ग ने कहा कि इस बात का कोई संकेत नहीं है कि ये हमला जान-बूझकर किया गया हो. शुरुआती जांच में ये सामने आया है कि जब रूस के मिसाइल हमलों के जवाब में यूक्रेन ने डिफ़ेंस मिसाइल चलाई, तब ये दुर्घटना हुई. उन्होंने आगे कहा, मैं स्पष्ट कर दूं, ये यूक्रेन की गलती नहीं है. रूस ही यहां ज़िम्मेदार है क्योंकि उसी ने अब तक युद्ध जारी रखा हुआ है.

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