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नेहरू को मिला सेंगोल वाकई सत्ता का हस्तांतरण था? मोदी सरकार के दावे में कितना दम?

पुराने दस्तावेजों में हैरान करने वाली बातें मिलीं.

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नेहरू सेंगोल के साथ. (तस्वीर: इंडिया टूडे)

नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज, 28 मई को करने जा रहे हैं. इस बात पर पहले ही विवाद था. अब संसद में सेंगोल को रखने पर भी बहस छिड़ गई है. गृह मंत्री अमित शाह ने 24 मई को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जानकारी दी थी कि सेंगोल को नई संसद भवन में स्थापित किया जाएगा. उन्होंने सेंगोल को अंग्रेजों से “सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक” बताया था. अमित शाह ने दावा किया था कि आजादी के समय तमिलनाडु के कांग्रेसी नेता सी गोपालाचारी की सलाह पर जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल को तमिलनाडु से मंगवाया था.

अमित शाह की प्रेस कॉन्फ्रेंस के एक दिन बाद 25 मई को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने चेन्नई में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सेंगोल को संसद में रखा जाना तमिलनाडु के लिए गर्व का विषय है. तमिलनाडु से सेंगोल के जुड़ाव के बारे में सीतारमण ने बताया कि नेहरू को दिया गया सेंगोल थिरुवदुथुरै अधीनम ने बनवाया था. इसे प्रधानमंत्री नेहरू को देने के लिए अधीनम मठ से प्रतिनिधि मंडल दिल्ली भेजा गया था.

इसके बाद शुक्रवार, 26 मई को कांग्रेस महासचिव जयराम नरेश ने ट्वीट करके सेंगोल को लेकर किए जा रहे मोदी सरकार के दावों को ‘बोगस’ करार दिया. जयराम रमेश ने लिखा,

इस बात का कोई दस्तावेज़ी प्रमाण नहीं हैं कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी गोपालाचारी और जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल को अंग्रेंजों से “सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक” माना था. इस विषय में जितने दावे किए जा रहे हैं- सतही और झूठे हैं.  

जयराम नरेश ने आरोप लगाया कि सेंगोल के विषय में किए जा रहे दावे तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किए जा रहे हैं. अपने ट्वीट में जयराम नरेश ने यह भी कहा कि क्या इस बात पर कोई आश्चर्य है कि नई संसद को "वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी" पर फैली झूठी कहानियों से पवित्र किया जा रहा है?

बाद में गृह मंत्री अमित शाह ने जयराम रमेश को जवाब में ट्वीट करते हुए कहा,

अब, कांग्रेस ने फिर एक बार शर्मनाक अपमान किया है. पवित्र शैव मठ, थिरुवदुथुरै अधीनम ने स्वयं भारत की स्वतंत्रता के समय सेंगोल के महत्व के बारे में बताया है. कांग्रेस अधीनम के इतिहास को झूठा बता रही है! कांग्रेस को अपने व्यवहार पर विचार करने की जरूरत है.

इससे पहले भाजपा प्रवक्ता अमित मालवीय ने ट्वीट करते हुए कहा था कि आजादी की पूर्व संध्या पर नेहरू का सेंगोल हाथ में लेना अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण का सटीक पल था. मालवीय ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने सेंगोल को उसका स्थान और गौरव नहीं दिया. उसे नेहरू को उपहार में दी गई सोने की छड़ी बताते हुए आंनद भवन में रख दिया गया. ये हिंदूओं के रीति-रिवाजों का अपमान है. 

सच क्या है?

सेंगोल के विषय में किया जा रहा सरकार का दावा विवाद में है. क्या वाकई सेंगोल को अधिकारिक तौर पर "सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक" के तौर पर इस्तेमाल किया गया था. या प्रधानमंत्री नेहरू को यह उपहार में दी गई एक सोने की छड़ी भर थी, जिसे नेहरू ने आनंद भवन में रखवा दिया था. उस समय सत्ता के हस्तांतरण के लिए क्या ये तरीका आधिकारिक तौर पर चुना गया था. इसके लिए क्या रीति-रीवाज़ अपनाए गए थे. इस विषय में दस्तावेज़ी सबूत पब्लिक डोमेन में नहीं हैं. मीडिया रिपोर्ट्स और किताबों के आधार पर दावे के पक्ष में सबूत दिए जा रहे हैं. 

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक 25 मई को जब निर्मला सीतारमण से सरकार के दावों में पक्ष में दस्तावेज़ी सबूत मांगे गए तो उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में पत्रकारों को एक संदर्भ-सूची दी. इस सूची में किताबों के लेख, मीडिया रिपोर्ट्स, यहां तक की व्यक्तिगत सोशल मीडिया पोस्ट और ब्लॉग भी शामिल थे.

रिपोर्ट में बीए वसंत लिखते हैं कि संदर्भ सूची के दस्तावेजों को देखने पर सरकार का दावा सिद्ध नहीं होता. उस समय के अखबारों में इस बात का जिक्र तो मिलता है कि सेंगोल प्रधानमंत्री नेहरू को दिया गया. पर किसी भी मीडिया रिपोर्ट में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि इसे "सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक" के तौर पर दिया गया था. इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि इसे नेहरू ने स. गोपालाचारी की सलाह पर मंगवाया था. 

इस विषय में द हिंदू में 11 अगस्त 1947 में छपी एक रिपोर्ट है. इसमें एक डेलिगेशन के सेंगोल के साथ चेन्नई रेलवे स्टेशन से दिल्ली के लिए रवाना होने का जिक्र है. लेकिन सरकार का दावा है कि मठ से डेलिगेशन विशेष विमान से दिल्ली बुलाया गया था. इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र नहीं है कि बुलावा नेहरू या राजगोपालाचारी की तरफ से था या हिंदू संतों का समूह अपनी इच्छा से दिल्ली जा रहा था. 

25 अगस्त, 1947 को टाइम्स मैगज़ीन में छपा एक लेख भी है, जो 14 अगस्त 1947 के घटनाक्रम का जिक्र करता है. इसमें बताया गया है कि दक्षिण भारत के तंजौर से श्री अम्बालावन देसीगर (थिरुवदुथुरै अधीनम के प्रमुख) के दो दूत आए. श्री अम्बालावन ने सोचा कि नेहरू को भारत-सरकार के पहले भारतीय प्रमुख होने के नाते प्राचीन हिंदू राजाओं की तरह संतों से शक्ति और अधिकार का प्रतीक प्राप्त करना चाहिए. 

टाइम्स की इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र तो है कि अधीनम के प्रमुख की क्या सोच थी, लेकिन इस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं है कि क्या नेहरू इस विचार से सहमत थे. उन्हें इस विचार के बारे में मालूम था और क्या वे सेंगोल को "सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक" के तौर पर स्वीकार कर रहे थे. यहां ये बात उल्लेखनीय है कि आर्शीवाद लेना और उपहार लेना साधारण बात है, इससे किसी निष्कर्ष पर पहुंच जाना जल्दबाजी साबित हो सकती है. 

डॉ. भीमराव आंबेडकर की किताब Ambedkar’s Thoughts on Linguistic States), पेरी एंड्रेसन की किताब The Indian Ideology और यास्मीन खान की किताब Great Partition: The Making of India and Pakistan के कुछ हिस्से सबूत के तौर पर दिए गए हैं. इनमें किसी धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए नेहरू की आलोचना की गई है. लेकिन यहां भी यह साफ-साफ नहीं कहा गया है कि नेहरू ने सेंगोल को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक माना और धार्मिक आयोजन कोई आधिकारिक आयोजन था. 

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक इस बात का कोई सबूत सीतारमण ने नहीं पेश किया कि सेंगोल को पहले लॉर्ड माउंट बेटन को दिया गया, फिर नेहरू को ये "सत्ता-हस्तांतरण के प्रतीक" के तौर पर मिला. साल 2021 में तमिल पत्रिका ‘तुगलक’ में इसके संपादक एस गुरुमूर्ती का एक लेख इसका अपवाद है. इस लेख में वह सब कुछ है जिसका दावा सरकार कर रही है. कांची कामकोटि पीठ के प्रमुख श्री चंद्रशेखर ने अपने शिष्य को 1978 में स्मृति के आधार पर जो बातें बताई थीं, ये लेख उन्हीं बातों पर आधारित है. 

निर्मला सीतारमण ने जो संदर्भ सूची दी थी उसमें तमिल लेखक जयमोहन का एक ब्लॉग पोस्ट भी शामिल था. इस पोस्ट का शीर्षक था, "वॉट्सऐप हिस्ट्री." विडम्बना यह है कि इस पोस्ट में जयमोहन ने सोशल मीडिया पर प्रसारित सेंगोल से जुड़ी घटनाओं के संस्करण का मजाक उड़ाया था. उन्होंने इस लेख में दावा किया था कि आजादी के समय पूरे देश से नेहरू को उपहार भेजे जा रहे थे. सेंगोल भी उसी उपहार का हिस्सा था. यह सत्ता-हस्तांतरण का प्रतीक नहीं, बल्कि लोगों का प्रेम था. यह तमिल लोगों के लिए गर्व का विषय था कि तमिलनाडु के सैवित मठ का यह सेंगोल अधिगम से नेहरू के पास पहुंचा.

(ये स्टोरी हमारे साथी अनुराग अनंत ने की है.)

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