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इस छोटे से देश की नेटो में एंट्री कैसे हुई?

फ़िनलैंड के साथ स्वीडन ने भी नेटो में शामिल होने के लिए अर्ज़ी लगाई हुई है.

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सैन्य अभ्यास करते टैंक (सांकेतिक तस्वीर)

दुनिया के सबसे शक्तिशाली सैन्य संगठन नेटो में एक नए देश की एंट्री होने वाली है. देश का नाम है फ़िनलैंड. दरअसल फ़िनलैंड तो लंबे वक्त से नेटो में शामिल होने की फ़िराक में था लेकिन तुर्किए इसमें अड़ंगा लगा रहा था, लेकिन अब फ़िनलैंड का रास्ता साफ़ हो चुका है क्योंकि तुर्किए ने उसे नेटो में शामिल होने की मंज़ूरी दे दी है. तुर्किए की संसद ने इसके लिए एक विधेयक पारित किया है. तुर्किए के इतर हंगरी भी नहीं चाह रहा था कि फ़िनलैंड संगठन में शामिल हो. लेकिन चंद दिनों पहले उसने भी फ़िनलैंड को हरी झंडी दिखाई थी. और अब तुर्किए ने भी ऐसा ही किया है. 

फ़िनलैंड के साथ स्वीडन ने भी नेटो में शामिल होने के लिए अर्ज़ी लगाई हुई है. लेकिन तुर्किए उसे गठबंधन में शामिल होने नहीं देना चाहता. अब सवाल पैदा होता है कि तुर्किए की इन देशों से ऐसी क्या नाराज़गी है कि वो इनकी मेम्बरशिप अप्रूव नहीं कर रहा है?

3 बड़ी वजहें हैं, एक-एक करके जान लेते हैं.

- पहली वजह एक आरोप से जुड़ी हुई है. दरअसल तुर्किए आरोप लगाता रहा है कि स्वीडन और फ़िनलैंड दोनों कुर्दिस्तान वर्किंग पार्टी (PKK) का समर्थन करते रहे हैं. PKK तुर्किए की सरकार के ख़िलाफ़ हथियारबंद संघर्ष चलाती आई है. इस संगठन पर अमेरिका और यूरोपियन यूनियन भी पाबंदी लगा चुके हैं. तुर्किए कई बार कह चुका है कि स्वीडन और फ़िनलैंड को अपने देशों में आतंकवाद का समर्थन बंद कर देना चाहिए. स्वीडन और फ़िनलैंड में कुर्द समुदाय रहता है और स्वीडन में कुछ सांसद कुर्द मूल के भी हैं. स्वीडन खुले तौर पर कुर्दों का समर्थन करता है. इसी बात से तुर्किए नहीं चाहता कि वो नेटो का सदस्य बने.

- दूसरी वजह है तख्तापलट से जुड़ी हुई है. साल 2016 में अर्दोआन सरकार के ख़िलाफ़ तख्तापलट की कोशिश हुई थी. तुर्किए कहता है कि तख्तापलट की साजिश करने वाले लोग फ़िनलैंड और स्वीडन में सुरक्षित रह रहे हैं. तुर्किए इन लोगों के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है.

- तीसरी वजह ब्यूएन कीन्स से जुड़ी हुई है. अब ये कौन हैं. ये तुर्किए के पत्रकार हैं. इनपर आरोप हैं कि 2016 वाले तख्तापलट में इनका बड़ा हाथ था. ये स्वीडन में रह रहे हैं. 19 दिसंबर को स्वीडन की सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार ब्यूएन कीन्स के प्रत्यर्पण पर रोक लगा दी. कहा कि कीन्स को तुर्किए के हवाले करना संभव नहीं है. इससे तुर्किए नाराज़ हो गया. विदेश मंत्री का बयान आया कि हमने स्वीडन से जो मांगे की थी वो उनका आधा भी नहीं कर पा रहा है. ऐसे में उसे नेटो की सदस्यता मिलना मुश्किल होगा.

ये थीं तुर्किए की नाराज़गी की वजहें. लेकिन अब समय बदल गया है. फ़िनलैंड तुर्किए को मनाने में कामियाब रहा है. इस मौके पर तुर्किए के राष्ट्रपति रिचैप तैयप अर्दोआन ने कहा है कि 

‘पिछले कुछ समय में फ़िनलैंड ने आतंकवादी समूहों पर नकेल कंसने और रक्षा निर्यात को आसान बनाने में ठोस कदम उठाए हैं.’

तुर्किए के अप्रूवल के बाद फ़िनलैंड के राष्ट्रपति ने नेटो के सभी 30 सदस्य देशों का शुक्रिया अदा किया है. उन्होंने ट्वीट कर लिखा,

‘मैं हर एक को उनके विश्वास और समर्थन के लिए शुक्रिया कहना चाहता हूं. फ़िनलैंड एक मज़बूत और सक्षम सहयोगी होगा. जो गठबंधन की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.’

नेटो प्रमुख जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने भी इस कदम का स्वागत किया है

फ़िनलैंड नेटो में क्यों शामिल होना चाहता है? 

ये नक्शा देखिए. इसमें लाल रंग की लकीर दिख रही होगी. ये फ़िनलैंड की बॉर्डर है. फ़िनलैंड रूस से लगभग 13 सौ किलोमीटर की सीमा साझा करता है. फ़रवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध ने फ़िनलैंड के मन में भी खौफ़ भर दिया है. किसी भी हमले की आशंका से पहले वो सुरक्षा का पूरा इंतेज़ाम कर लेना चाहता है. इसलिए उसने नेटो में शामिल होने का फैसला किया. 

नेटो स्वीडन और फ़िनलैंड को गठबंधन में क्यों चाहता है?

दोनों के पास मज़बूत सेनाएं हैं. फ़िनलैंड के पास ढ़ाई लाख से ज़्यादा सैनिक और 650 टैंकों क्षमता है. वहीं स्वीडन के पास एक मजबूत वायु सेना पनडुब्बी का बेड़ा है. रणनीतिक रूप से दोनों देश बाल्टिक क्षेत्र में ऐसी जगह मौजूद हैं जहां रूस के खिलाफ नेटो भारी साबित हो सकता है. 

तुर्किए के अप्रूवल के बाद तो फ़िनलैंड का नेटो में शामिल होने का रास्ता साफ़ हो गया है लेकिन क्या स्वीडन नेटो में जल्द शामिल हो पाएगा. जानकारों के मुताबिक ऐसा जल्द होना मुश्किल है. स्वीडन का PKK के लोगों का समर्थन करना. तुर्किए में तख्तापलट की कोशिश करने वाले लोगों को देश में सुरक्षा देना तो कारण है ही. इसके अलावा एक और घटना है जिसने स्वीडन और तुर्किए के रिश्ते में तल्खी पैदा की. वो है स्वीडन में कुरआन जलाए जाने की घटना. दरअसल जनवरी 2023 को रासमुस पालुदान ने स्वीडन में तुर्किएकी एंबेसी के सामने विरोध करने की इजाज़त मांगी. इजाज़त न मिलने पर उसके समर्थकों ने वहीं प्रदर्शन शुरू किया. प्रदर्शन में कुरआन की एक प्रति में आग लगा दी गई. इस बात से तुर्किए नाराज़ हुआ है और दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ी है. 

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