साल 1930. लंदन में पहले गोलमेज सम्मेलन के मंच पर डॉ भीम राव आंबेडकर ने ये बात कही थी. समझने वाले समझ गए थे डॉ आंबेडकर का आगे का इरादा क्या है? ये इरादा था दलितों को सत्ता तक पहुंचाने का. रास्ता उन्होंने ढूंढ लिया था. जल्द ही उन्होंने सिफारिशों का एक लम्बा-चौड़ा दस्तावेज तैयार किया और ब्रिटिश हुकूमत को भेज दिया. 17 अगस्त, 1932 को अंग्रेजों ने आंबेडकर की कुछ सिफारिशों को हरी झंडी भी दिखा दी. इनमें सबसे बड़ी बात दलितों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल बनाने की थी. जो केंद्रीय विधायिका और प्रांतीय विधानमंडलों के लिए अपने सदस्य चुने. आंबेडकर के कहने पर दलित व्यक्ति को दो वोट देने का अधिकार दिया गया. एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि और दूसरे वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनते. इस प्रकार दलित प्रतिनिधि केवल दलितों के ही वोट से चुना जाना था. देखिए वीडियो.
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