The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

'ऑपरेशन त्रिशूल' का बड़ा खेल, CBI के हाथ ये भगौड़ा लग गया

कौन है हरचंद सिंह गिल?

post-main-image
पर्ल ग्रुप फ्रॉड केस का आरोपी हरचंद सिंह गिल (फोटो: सोशल मीडिया)

एक सवाल खुद से पूछिएगा. अगर कोई अपराधी देश के पांच करोड़ लोगों के पैसे हड़पकर बैठ जाएं, तो न्याय की मशीनरी कितनी तेज़ी से अपना काम करेगी? मामला पकड़ में आने से लेकर पैसा वापिस लेने में और फिर अंततः दोषियों को सज़ा देने के लिए कितनी मोहलत काफी है? 1 साल? 3 साल? 5 साल? याद रखिए, हम 5 करोड़ लोगों के साथ ठगी करने वालों की बात कर रहे हैं. तय वक्त न भी बता पाएं, तब भी आप इतना तो कहेंगे ही जब पांच करोड़ लोग प्रभावित हैं, तो जल्द से जल्द कानून को अपना काम करना चाहिए. अब अपने इस खयाल के बरअक्स एक मामले को रखिए. 2014 में Securities and Exchange Board of India सेबी ने पर्ल्स ग्रुप को अपने 5 करोड़ निवेशकों को तकरीबन 50 हज़ार करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया था.

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद CBI और ED जैसी एजेंसियां हरकत में आई थीं. लेकिन सिस्टम की चक्की इतना महीन पीसती है, कि 2023 के मार्च का पहला हफ्ता बीत गया और अभी तक सारे आरोपियों को देश में लाने का ही काम चल रहा है. 7 मार्च को CBI ने ऐलान किया कि पर्ल ग्रुप के एक निदेशक हरचंद सिंह गिल को फिजी से गिरफ्तार कर लिया गया है. इन साहब को अब अदालत में पेश किया जाएगा. ये एजेंसी को मिली सफलता भी है और इस बात का जीता-जागता सबूत भी कि पांच करोड़ लोगों के साथ ठगी हुई, लेकिन तकरीबन एक दशक बीतने के बावजूद केस अपने अंजाम तक नहीं पहुंचा. 

आज तक के लिए ये रिपोर्ट साल 2014 में अभिषेक कुमार, शरत कुमार, उमेश कुमार और अक्षय सिंह ने की थी. इतनी बड़ी टीम इसीलिए, क्योंकि पर्ल्स ग्रुप का ठगी का कारोबार पूरे देश में पसरा हुआ था. तभी तो एक रिपोर्टर जयपुर से लगा, एक पटना से, एक दिल्ली से और एक चैनल के मुख्यालय से. तब जाकर पूरी पिक्चर सामने आई. पर्ल्स के 5 करोड़ निवेशकों में से ज़्यादातर के साथ वही हुआ. ये एक पोंज़ी स्कीम का शिकार बने थे. छोटी छोटी बचत पर भी बेहिसाब ब्याज़ का वादा. सुनने वाले को लगता कि पैसा देखते देखते दोगुना हो जाएगा. इसीलिए करोड़पति लखपतियों से कहीं ज़्यादा आम लोग इनकी ज़द में आते हैं. जिनके पास निवेश के आकर्षक मौके नहीं होते, क्योंकि पूंजी ही बहुत कम होती है.

ठगी का ये कोई नया तरीका नहीं था. इटैलियन ठग चाल्स पोंज़ी ने सबसे पहले इस तरीके को मशहूर किया. कैनडा और अमेरिका में 20 वीं सदी का सबसे बड़ा ठग चार्ल्स पोंज़ी बस एक चीज़ में माहिर था - इसकी टोपी उसके सिर. पोंज़ी नई-नई जगह जाकर वादा करता कि अगर लोग उसे अपना पैसा देंगे, तो वो भारी ब्याज देगा. मिसाल के लिए 12 % ले लेते हैं. 12% इंटरेस्ट सुनकर आप पोंज़ी के पास पैसा जमा कर आए. शुरुआती महीनों में आपको 12 % ब्याज मिलने भी लगा. अब जैसे ही आपको ब्याज मिला, आपने अपने दोस्तों को बताया. बात फैलती गई. और आखिर में पोंज़ी के पास ढेर सारे इन्वेस्टर हो गए.

अब पोंज़ी क्या करता. नए कस्टमर से जो पैसा आता उससे पुराने कस्टमर को ब्याज की रकम दे देता. अब आप पूछेंगे अगर पोंज़ी कहीं से कमा नहीं रहा तो ऐसे कब तक वो ब्याज देता रहेगा. तो इसी में छुपी है इस स्कीम की कुंजी. एक पोंजी स्कीम सिर्फ तब तक चल सकती है, जब तक उसमें नए कस्मटर जुड़ते जाएं. हालांकि अंत में पोंज़ी का डूबना तय है. लेकिन तब तक वो लाखों लोगों का पैसा डकार चुका होगा. और किस्मत ने साथ दिया तो फिजी में आराम की जिंदगी काटेगा. पर्ल ग्रुप के लोगों ने भी यही किया.

पर्ल्स ग्रुप का दावा था कि जो पैसा लोग उसके पास जमा कराते, उसके बदले ज़मीन के प्लॉट खरीदे जाते हैं. और जैसे-जैसे ज़मीन का दाम बढ़ता है, निवेश पर रिटर्न मिलता जाता है. ज़मीन का भरोसा होता, इसलिए लोग निवेश के लिए मान भी जाते. इस पूरे खेल के पीछे थीं दो कंपनियां - पर्ल्स एग्रोटेक कॉर्पोरेशन लिमिटेड PACL और पर्ल्स गोल्डन फॉरेस्ट लिमिटेड PGFL. और इन दोनों कंपनियों के पीछ सबसे बड़ा नाम था निर्मल सिंह भंगू का.  

इंडियन एक्सप्रेस के लिए चितलीन के सेठी ने एक बड़ी दिलचस्प स्टोरी की है. इसके मुताबिक भंगू एक वक्त एक छोटा सा डेयरी फार्म चलाते थे. इनकी मुलाकात हुई आरके स्याल नाम के एक शख्स से, जो चंडीगढ़ के टूरिज़म डिपार्टमेंट में असिस्टेंट मैनेजर थे. दोनों एक फाइनैंस कंपनी के लिए एजेंट का काम भी करते थे. 1983 में दोनों ने मिलकर पर्ल्स जनरल फाइनैंस लिमिटेड नाम की कंपनी शुरू की. ये कंपनी वही काम करती थी, जो हमने बताया. लोगों से पैसा इकट्ठा करती और वादा करती कि इसके बदले ज़मीन ली जा रही है.

1985 में दोनों अलग हुए आरके स्याल ने गोल्डन फॉरेस्ट्स इंडिया लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई, जिसके तहत 100 और कंपनियां थीं. इस कंपनी ने तकरीबन 10 हज़ार एकड़ ज़मीन और दूसरी प्रॉपर्टीज़ खरीदीं.

चितलीन सेठी आगे लिखती हैं, भंगू ने भी इसी बिज़नेस मॉडल पर आगे चलते हुए अपनी कंपनी का नाम कर लिया पर्ल ग्रीन फॉरेस्ट लिमिटेड. और 1997 आते-आते कंपनी का नाम हो गया PGF लिमिटेड या PGFL. और इसी साल से सेबी की नज़र PGFL और गोल्डन फॉरेस्ट पर पड़ी. लेकिन इन दोनों कंपनियों ने सेबी को ही अदालत में घसीट लिया. आखिरकार पंजाब के विजिलेंस विभाग की नज़र गोल्डन फॉरेस्ट के गोरखधंधे पर पड़ी और साल 2000 आते आते गोल्डन फॉरेस्ट बंद हो गई. स्याल परिवार जेल चला गया. 25 लाख निवेशकों का पैसा अधर में लटक गया. वैसे स्याल परिवार अब भी कहता है कि वो पैसे लौटा देगा.

गोल्डन फॉरेस्ट बंद हो गई, लेकिन भंगू की पर्ल अपनी गति से आगे बढ़ती रही. इसने धीरे-धीरे पंजाब से बाहर निवेशक जुटाए - पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश - लिस्ट बहुत लंबी है. 1998 से सेबी पर्ल्स ग्रुप पर निगरानी रखे हुए है. अगले साल दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेबी को आदेश दिया, कि ये पता किया जाए कि पर्ल्स जिन ज़मीन सौदों की बात कर रहा है, वो हुए भी हैं या नहीं. साल 2000 में सेबी की ऑडिट रिपोर्ट में गड़बड़ी का संकेत मिला. इसके बाद 13 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने CBI और सेबी को जांच के आदेश दे दिये.  अगले साल सेबी ने पर्ल्स से निवेशकों के पैसे लौटाने को कहा. और CBI ने मामला दर्ज किया. तब से निवेशकों के पैसे लौटाने की कवायद जारी है. सबको पैसा आज तक वापिस नहीं मिला.

जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती जाती, कभी 1800 एकड़ ज़मीन हरियाणा में मिलती, तो कभी दिल्ली में फार्म हाउस और ऑफिस का पता चलता. अलग-अलग छापों में सामने आई बेशकीमती ज़मीन और दीगर प्रॉपर्टी का हिसाब एक जगह देना मुश्किल है. इसका मतलब ज़मीन खरीदी तो जा रही थी. लेकिन निवेशकों के लिए नहीं. अपने स्वार्थ के लिए. बाद में CBI ने आरोप लगाया कि पर्ल्स समूह द्वारा जो भूमि आवंटन पत्र निवेशकों को दिए गए थे, उनमें अधिकांश भूमि या तो थी नहीं या तो सरकार के स्वामित्व वाली थी या उनके निजी मालिकों द्वारा बेची ही नहीं गई थी. आज तक ने तो स्टिंग ऑपरेशन चलाकर पर्ल्स के एजेंट्स को अवैध डील्स करते हुए पकड़ भी लिया था. जहां वो दो करोड़ रुपए कैश में लेकर बॉन्ड जारी करने को तैयार हो गये थे. जबकि 20 हज़ार से ऊपर की रकम चेक या ड्राफ्ट के ज़रिये देने का नियम था.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई जांच के बाद  CBI ने 19 फरवरी, 2014 को इस ग्रुप के तत्कालीन प्रमुख निर्मल सिंह भंगू, हरचंद सिंह गिल समेत ग्रुप से जुड़े प्रमुख लोगों को आरोपी बनाया. इस दौरान हरचंद सिंह गिल देश छोड़कर फरार हो गया. वो PGF लिमिटेड के निदेशक के पद पर था और साथ ही कंपनी में उसके काफी शेयर भी थे.  

इस मामले में  CBI ने जनवरी 2022 में तीन निजी कंपनियों सहित 27 अभियुक्तों के खिलाफ एक चार्जशीट दायर की. तीनों कंपनियों की पहचान पर्ल्स इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, ARSS इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स लिमिटेड और जैन इन्फ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड के रूप में हुई. इनमें से 11 आरोपियों को दिसंबर 2021 में दिल्ली, चंडीगढ़, कोलकाता, भुवनेश्वर में छापेमारी के दौरान गिरफ्तार किया जा चुका था. इससे पहले, एजेंसी ने जनवरी 2016 में मुख्य आरोपी भंगू, सुखदेव सिंह, सुब्रता भट्टाचार्य और गुरमीत सिंह को गिरफ्तार किया था और अप्रैल 2016 में उनके खिलाफ एक चार्जशीट दायर किया था. मगर गिल की तलाश अब भी बाकी थी.

और गिल पकड़ में आया सीबीआई के ऑपरेशन त्रिशूल के तहत. जिसके तहत एजेंसी विदेश में जाकर छिपे भगोड़ों को पकड़कर भारत ला रही है. अब तक 30 आरोपियों को इस तरह लाया गया है. गिल को फिजी से डिपोर्ट किया गया है. सीबीआई के अलावा इस मामले में ED भी लगी हुई है. एजेंसी ने 4 मार्च को ही कोलकाता, सिलिगुड़ी, हावड़ा और आगरा में कम से कम 15 ठिकानों पर छापा मारा था.

तो जैसा कि हमने पहले कहा, तंत्र की चक्की घूम तो रही है. पूरा न्याय कब होगा, हम बताने में असमर्थ हैं. यही कह सकते हैं कि अपनी खून पसीने की कमाई किसी ऐसी जगह लगाने से बचिए, जहां चमत्कारिक बढ़त का दावा हो. क्योंकि एक बार अब किसी स्कीम में फंस गए, तो पैसा कब वापिस मिलेगा, कोई नहीं जानता.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: नीरव मोदी तो नहीं मगर ये भगौड़ा हाथ लग गया, CBI के 'ऑपरेशन त्रिशूल' का बड़ा खेल