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असम और मिजोरम के बीच हो रहे विवाद का इतिहास क्या है?

जानिए इस विवाद से जुड़ी हर बात.

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मिजोरम से सीएम (लेफ्ट) और असम के सीएम (दाएं). फोटो- आजतक
आपने आखिरी बार कब सुना था कि दो सूबों की पुलिस के बीच भारी गोलीबारी हुई और 5 जवानों की जान चली गई? भारत में दो राज्यों के बीच किसी इलाके या सीमा को लेकर झगड़ा नई बात नहीं है. और न ही इन विवादों को लेकर हिंसा की बात नई है. बावजूद इसके, 26 जुलाई को असम-मिज़ोरम विवाद ने इस समझ को कटघरे में खड़ा कर दिया. दो मुख्यमंत्रियों के बीच सार्वजनिक छींटाकशी हुई, केंद्रीय गृह मंत्रालय के दखल के बाद जाकर तनाव कम होने के संकेत मिले. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आला अधिकारियों की मौजूदगी में राज्यों की सीमा पर एक पुलिस बल द्वारा दूसरे पुलिस बल पर लाइट मशीन गन समेत तमाम ऑटोमैटिक हथियारों का इस्तेमाल हुआ.
आज हम असम-मिज़ोरम के बीच इस खूनी संघर्ष की जड़ तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. समझेंगे कि कैसे ये झगड़ा सिर्फ ज़मीन का नहीं है. सांस्कृतिक पहचान और रोज़गार का भी है. और कौन लोग हैं, जो इस विवाद को हवा दे रहे हैं. 'कमांडो बटालियन होगी तैनात' आप जानते ही हैं कि असम और मिज़ोरम पुलिस के बीच सीमा विवाद को लेकर 26 जुलाई के रोज़ भारी गोलीबारी हुई, जिसमें असम पुलिस के पांच जवान वीरगति को प्राप्त हुए. कई जवान घायल भी हैं. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा आज सिलचर पहुंचे. वहां उन्होंने SP कार्यलय में दिवंगत जवानों को श्रद्धांजलि दी और फिर सिलचर मेडिकल कॉलेज का दौरा किया, जहां घायलों का इलाज चल रहा है. इसके बाद सरमा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कहा कि करीमगंज, कछार और हाइलाकांडी ज़िलों में सीमा की सुरक्षा के लिए अब कमांडो बटालियन तैनात की जाएंगी.
ऑटोमैटिक हथियारों का निशाना बनकर 5 जवान खोने वाले असम ने कमांडो बटालियन तैनात करने की बात कर दी, तो टिप्पणीकारों ने पूछ दिया कि गृहयुद्ध छिड़ने वाला है क्या. लेकिन इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिमंता ने ये भी कहा कि अपनी पुलिस को आम नागरिकों पर गोली चलाने का आदेश कभी नहीं देंगे. जान की कीमत पर भी असम अपनी ज़मीन की रक्षा करेगा. वो बार-बार कह रहे थे कि असम ने एक इंच ज़मीन भी नहीं खोई है. फायरिंग से आजिज़ आया असम, अब मिज़ोरम को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने वाला है. और ये जांच भी की जाएगी कि आम लोगों के पास हथियार कैसे आए.
अगर पूर्वोत्तर से नावाकिफ हों, तो कई लोगों को बिस्वा सरमा की बात में अतिरेक नज़र आएगा. जैसे वो किसी देश के प्रधानमंत्री हों तो पड़ोसी देश ने हमला कर दिया हो. लेकिन जैसे-जैसे हम उस इलाके और इस विवाद को लेकर समझ पैदा करते हैं, हमें हिमंता की बात का अर्थ और कारण, दोनों समझ आने लगते हैं.
असम के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज की तकरीबन 165 किलोमीटर लंबी सीमा मिज़ोरम के तीन ज़िलों से लगती है – कोलासिब, आईज़ॉल और मामित. दोनों सूबों के बीच सीमा पर जहां-जहां तनाव है, वहां एक पैटर्न देखने को मिलता है. नक्शे पर सहमति है. लेकिन नक्शे वाली सीमा ज़मीन पर कहां से गुज़रती है, इसे लेकर विवाद है. कभी किसी नाले को सीमा बता दिया जाता है, तो कभी किसी पहाड़ को. विवाद दोनों सूबों के लोगों के बीच होता है, जिसमें असल मुद्दा होता है ज़मीन का. मिसाल के लिए कृषि भूमि.
Assam 2 असम और मिजोरम सीमा पर तनाव की एक तस्वीर. फोटो- आजतक
पुराना है विवाद इस विवाद में दोनों पक्षों को समर्थन मिलता है अपने यहां के प्रशासन और पुलिस का. इसी के साथ, समय-समय पर एक सूबे का प्रशासन जिस इलाके को अपना मानता है, उसे दूसरे पक्ष के लोगों से खाली कराता रहता है. जब असम चुनाव यात्रा 2021 के लिए दी लल्लनटॉप की टीम ने पूरे सूबे का दौरा किया, तो हमने जोरहाट और हाइलाकांडी में ये होते हुए देखा. जोरहाट में असम-नागा सीमा विवाद है और हाइलाकांडी में असम-मिज़ोरम सीमा विवाद. हाइलाकांडी में इस साल फरवरी के महीने में मिज़ो पक्ष के लोगों ने कुछ बांग्ला भाषियों के घर भी जला दिए थे.
26 जुलाई की घटना का ताल्लुक लैलापुर-वैरेंग्ते सीमा से है. लैलापुर असम की सीमा में कछार ज़िले में पड़ता है और वैरेंग्ते मिज़ोरम के कोलासिब ज़िले में पड़ता है. ये नाम और जगहें याद रखिएगा. जिस इलाके को लेकर गोली चली, उसे असम अपने रिकॉर्ड में दर्ज बताता है. लेकिन वहां बरसों से मिज़ो जनजाति के लोग खेती कर रहे हैं. 29 जून को असम की तरफ से ज़िला कलेक्टर और एसपी ऐतलांग ह्नार नाम की जगह पर दल-बल के साथ पहुंचे. ऐतलांग एक नदी का नाम है. ह्नार मतलब होता है उद्गम.
असम प्रशासन का कहना था कि वो अपने इलाके को अतिक्रमणकारियों से खाली कराना चाहता है. जब मिज़ोरम में कोलासिब प्रशासन को ये खबर मिली, तो वो अपने अमले के साथ मौके पर पहुंच गया. और ये दावा किया कि इलाका मिज़ोरम का है और यहां मिज़ो पुरखों के समय से रहते आए हैं. चूंकि असम प्रशासन मौके पर कैंप किए हुए था, वहां वैरेंग्ते से लोग जुटने लगे. हालात को बिगड़ने से रोकने के लिए इन्हें वापस भेजा गया. 10 जुलाई को IED से हुआ हमला इंडिया टुडे में छपी हेमंत कुमार नाथ की रिपोर्ट बताती है कि हालिया विवाद तब गंभीर हुआ जब असम की पुलिस ने अपना इलाका खाली कराने के लिए कुछ लोगों को खदेड़ दिया. इस दौरान सीमा के दौरे पर गई असम सरकार की टीम पर 10 जुलाई के रोज़ एक आईईडी बम भी फेंका गया. 11 जुलाई की सुबह सीमा के पास एक के बाद एक दो धमाकों की आवाज़ आई.
विवाद बढ़ता देख नई दिल्ली ने दखल दिया. दोनों सूबों के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशकों को दिल्ली बुलाकर एक बैठक करवाई गई. लेकिन गतिरोध तब और बढ़ गया जब कोलासिब ज़िले के डिप्टी कमिश्नर (कलेक्टर) एच लालथ्लांगलिआना ने असम में कछार ज़िला प्रशासन को एक खत भेजकर 10 जुलाई के रोज़ असम प्रशासन द्वारा मिज़ो लोगों पर कार्रवाई के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगा दिया.
लालथ्लांगलिआना ने लिखा कि 10 जुलाई को असम ने बिना सूचना बुआरचेप तक सड़क बना दी. इसमें मिज़ो जनजातियों के खेतों को भी बर्बाद किया गया. इस खत की एक-एक प्रति राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भी भेजी गई थीं. तब असम पुलिस के विशेष महानिदेशक जीपी सिंह ने कहा था, "मुख्य मुद्दा अतिक्रमण है. दो सूबों के बीच संविधान के तहत एक सीमा है और मिज़ोरम ने अतिक्रमण किया है. उन्हें इसपर काम करना होगा." बार-बार होता है सीमा विवाद इस गतिरोध को समझना है तो हमें ये जानना होगा कि असम-मिज़ोरम के बीच सीमा विवाद समय-समय पर सिर उठाते रहते हैं. और एक ही जगह को लेकर बार-बार झगड़ा होता रहता है. 2020 के अक्टूबर में लैलापुर (असम) के कुछ लोगों ने मिज़ोरम पुलिस पर पत्थर चलाए थे. इस वक्त कुछ आम मिज़ो नागरिक भी मौजूद थे. बाद में मिज़ो लोगों ने एक भीड़ इकट्ठा की और पत्थरबाज़ों का पीछा किया. ये भीड़ आई थी वैरेंग्ते से.
इसीलिए इस विवाद की असल वजह समझने के लिए हमें वक्त में थोड़ा पीछे जाना होगा. एक थिंक टैंक है सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज़ – CLAWS. ये एक जर्नल निकालता है. इसके अप्रैल 2021 के अंक में जेसन वाहलांग का एक लेख छपा है. इसका शीर्षक है – Internal Border Conflicts of the North East Region: Special Focus on Assam and its Bordering States. इस लेख में वाहलांग बताते हैं कि आज़ादी के वक्त अलग-अलग सांस्कृतिक पहचानों को एक ही सूबे में बांध दिया गया था. इसने विवाद पैदा किए और 1963 में मेघालय के इलाके को अलग करना पड़ा, और 1972 के साल में मेघालय और मिज़ोरम नाम से दो राज्य बनाने पड़े. लेकिन ज़मीन पर सीमाएं स्पष्ट नहीं हो पाईं और विवाद खत्म नहीं हुए.
असम का सीमाओं को लेकर नागालैंड और मिज़ोरम से भी झगड़ा चल रहा है. असम-मिज़ोरम का झगड़ा इन दो की तुलना में अपेक्षाकृत कम हिंसक रहा है. आज जिस इलाके को हम मिज़ोरम कहते हैं, वो 1972 में एक संघ शासित राज्य बना और 1987 में पूर्ण राज्य. लेकिन दो पुरानी अधिसूचनाओं (नोटिफिकेशन) को लेकर विवाद सुलझाया नहीं जा सका. ये हैं –
- 1875 की अधिसूचना, जो कछार हिल्स और लुशाई हिल्स के बीच सीमा निर्धारित करती है.
- 1933 की अधिसूचना, जो लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच सीमा निर्धारित करती है.
कछार आज असम का हिस्सा है और लुशाई हिल्स का इलाका आधुनिक मिज़ोरम है. जब 1972 में सीमा निर्धारित की जा रही थी, तभी कछार, हैलाकांडी और करीमगंज की सीमाओं पर छिटपुट हिंसा की घटनाएं हुईं. क्योंकि दोनों राज्य अलग अलग अधिसूचनाओं को मानते हैं. असम चाहता है कि सीमा 1933 की अधिसूचना से तय हो और मिज़ोरम चाहता है कि सीमा 1875 की अधिसूचना से तय हो. विशेषज्ञ क्या कहते हैं इस पेच को समझने के लिए हमने एल साइलो से बात की. साइलो मिज़ोरम की पीपल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी के अध्यक्ष हैं. उनके पिता ब्रिगेडियर टी साइलो मिज़ोरम के दूसरे सीएम थे. साइलो ने दी लल्लनटॉप से कहा कि 1875 की अधिसूचना आई थी बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन एक्ट 1873 के तहत. इसे जारी करते वक्त मिज़ो जनजाति के नेताओं को भरोसे में लिया गया था. लेकिन ऐसा 1933 की अधिसूचना को जारी करते वक्त नहीं किया गया. इसीलिए न ये अधिसूचना कभी स्वीकार की गई, और न इसके तहत बनी सीमा.
बार-बार सिर उठाने वाले विवादों के स्थायी निवारण के लिए 1995-96 में दोनों सूबों के मुख्य सचिवों के बीच बातचीत शुरु हुई. लेकिन तब से अब तक कोई हल निकल नहीं पाया. हर बार एक ही बात दोहरा दी जाती है – यथास्थिति बनी रहे, शांतिपूर्ण माहौल में बात-चीत हो. 26 जुलाई की घटना से पहले असम मिज़ोरम सीमा पर एक बड़ा विवाद हुआ था मार्च 2018 में. तब हैलाकांडी-कोलासिब सीमा पर मिज़ोरम की प्रभावशाली छात्र यूनियन मिज़ो ज़िरलाई पॉल के छात्रों ने एक गेस्ट हाउस बनाने की ठानी.
इनका कहना था कि ज़मीन मिज़ोरम के पहले मुख्यमंत्री छ छुंगा की पत्नी ने दान में दी है. लेकिन जहां ये गेस्ट हाउस बनना था, उस इलाके को असम ने अपना बताया. जब छात्र यूनियन के नेताओं ने गेस्ट हाउस बनाने के लिए लोग इकट्ठा किए तो असम पुलिस और छात्रों के बीच संघर्ष हो गया. मिज़ोरम पुलिस ने कहा कि इस दौरान गोली भी चली, जिसमें एक छात्र घायल हुआ. इसके बाद मिज़ोरम की राजधानी में मिज़ोरम सीएम लाल थनवाला के खिलाफ ही प्रदर्शन हो गए थे. ये कहते हुए कि मिज़ो इलाकों में असम घुसा आ रहा है और सीएम सो रहे हैं. तब लाल थनवाला ने तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह को खत लिखकर हस्तक्षेप की मांग की थी.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 24 जुलाई को दो दिनों के पूर्वोत्तर दौरे के लिए पहुंचे थे. 25 जुलाई को शिलॉन्ग में एक बैठक हुई जिसमें गृह मंत्री के साथ पूर्वोत्तर के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए. इस बैठक में भी सीमा विवाद का मुद्दा उछला और जोरमथंगा ने कह दिया कि नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिज़ोरम जैसे राज्यों को बनाते वक्त अंग्रेज़ों के ज़माने से चले आ रहे भूमि विवादों को सुलझाया नहीं गया.
जोरमथंगा ने असम का नाम लेकर कहा कि जिस इलाके को वह अपनी सीमा में बता रहा है, उससे तकरीबन 100 सालों से मिज़ो लोग जुड़े हुए हैं. वो यहां वनोपज इकट्ठा करते हैं, स्थायी और अस्थायी रूप से खेती करते हैं. असम ने इन इलाकों पर अपना दावा करना हाल ही में शुरू किया है, जबसे बराक वैली में बड़े पैमाने पर बाहर से प्रवासी आने लगे.
ज़ोरमथंगा पूर्वी पाकिस्तान और बाद में बांग्लादेश से आए प्रवासियों की तरफ इशारा कर रहे थे. माने ये मुद्दा सिर्फ भूमि विवाद भर का नहीं है. भूमि पर रहने या कब्ज़ा करने वाले की सांस्कृतिक पहचान क्या है, उसका भी है. मिज़ोरम में असम सीमा से सटे इलाकों में कथित ”बांग्लादेशियों” की घुसपैठ को लेकर शिकायत आम चर्चा का हिस्सा है.
Assam 3 हिंसा की एक तस्वीर. फोटो- आजतक
सीएम हिमंता ने क्या कहा? आज प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए हिमंता बिस्व सरमा ने इस बात को खारिज किया, उन्होंने कहा कि ये बेकार की बात है. अगर बराक घाटी के लोगों को बांग्लादेशी कहा जाए, तो पलटकर वो भी कह सकते हैं मिज़ोरम में म्यांमार से लोग आए हैं. लेकिन इसका कोई तुक नहीं बनता.
अब आते हैं 26 जुलाई की घटना पर. लैलापुर वैरेंग्ते सीमा पर तनाव था. असम और मिज़ोरम के मुख्यमंत्री एक के बाद एक ट्वीट करके केंद्रीय गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यलय से दखल की मांग कर रहे थे. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोनों पक्षों को शांत कराया. दोनों मुख्यमंत्रियों ने अपने तेवर भी कम किए. लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी. कुछ ही देर बाद सीमा पर गोलियां बरसने लगीं. वास्तव में क्या हुआ, इसे लेकर दोनों पक्षों की कहानी अलग अलग है.
मिज़ोरम ने असम की जिस सड़क को लेकर शिकायत की थी, उसके बारे में हम आपको बता चुके हैं. मिज़ोरम के गृहमंत्री लालचामलियाना का कहना है कि 26 जुलाई के रोज़ असम पुलिस की दो कंपनियां आला अधिकारियों और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर मिज़ोरम के अंदर पड़ने वाले वैरेंग्ते ऑटो रिक्शा स्टैंड पर पहुंची और हमला कर दिया. इस दौरान उन्होंने मिज़ोरम पुलिस और सीआरपीएफ तक को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. मिज़ोरम पुलिस पर पत्थरबाज़ी हुई और गोलियां चलाई गईं. मजबूरन मिज़ोरम पुलिस को जवाबी फायरिंग करनी पड़ी. मिज़ोरम पुलिस का कहना है कि उसके जवानों को भी चोट पहुंची है.
अब आते हैं इसी घटना को लेकर असम सरकार की कहानी पर. 26 जुलाई की देर रात आए असम सरकार के बयान में फिर एक सड़क की कहानी मिलती है. असम सरकार का कहना है कि मिज़ोरम सरकार ने बिना सूचना असम में रेंगती बस्ती की ओर की एक सड़क बनानी शुरू कर दी, जिससे लैलापुर इलाके में ''इनर लाइन फॉरेस्ट एरिया'' को नुकसान पहुंचा. मिज़ोरम ने एक पहाड़ी पर कैंप भी बना लिया. इसके बाद 26 जुलाई को असम की तरफ से पुलिस, कछार प्रशासन और वन विभाग के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे. वहां ये दल मिज़ो पक्ष की ओर से जुटे बलवाइयों से घिर गया, जिन्हें मिज़ोरम पुलिस का समर्थन मिला हुआ था. भीड़ ने पत्थर चलाए, जिसमें कछार डिप्टी कमिश्नर की गाड़ी को नुकसान पहुंचा.
बयान में आगे लिखा है कि कोलासिब के पुलिस अधीक्षक बात करने तो आए, लेकिन उनका कहना था कि वो अपने इलाके में भीड़ को काबू नहीं कर पा रहे हैं. बातचीत चल ही रही थी कि ऊंचाई से मिज़ोरम पुलिस ने मशीन गन समेत ऑटोमैटिक हथियारों से गोलियां दाग दीं. पांच जवानों की जान चली गई और कछार के पुलिस अधीक्षक वैभव नंबियार तक घायल हुए, जिन्हें इलाज के लिए आईसीयू में भर्ती करवाना पड़ा.
समाचार एजेंसी एएनआई का दावा है कि मौके पर सीआरपीएफ की दो कंपनियां पहले से मौजूद थीं, लेकिन इन्होंने हिंसा में भाग नहीं लिया. शाम 4 बजे के करीब सीआरपीएफ को इलाके पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के आदेश दिए गए. सीआरपीएफ ने इसके बाद लाउड स्पीकर पर दोनों पक्षों से लौटने को कहा. असम पुलिस इलाके से लौट गई, लेकिन मिज़ोरम पुलिस की तरफ से कोलासिब पुलिस अधीक्षक और कुछ जवान देर रात तक डटे रहे. सीआरपीएफ ने घटना को लेकर गृह सचिव को सूचना दी. फिर गृह सचिव ने इस बाबत केंद्रीय गृह मंत्री को भी सूचित किया. 50 लाख का मुआवजा आज असम सरकार ने वीरगति को प्राप्त पुलिस जवानों के परिजनों के लिए 50 लाख प्रति परिवार मुआवज़े का ऐलान किया. चूंकि असम में भाजपा की सरकार है और मिज़ोरम में भाजपा सरकार का हिस्सा है, ये सवाल खूब पूछा जा रहा था कि NDA के पूर्वोत्तर संस्करण NEDA का क्या हुआ. इसके जवाब में बिस्वा सरमा ने कहा कि विवाद पुराना है, जब दोनों सूबों में भाजपा नहीं थी, तब भी यही स्थिति थी.
हिमंता ने ये भी कहा कि असम को ज़मीन नहीं चाहिए. लेकिन अगर कोई रिज़र्व फॉरेस्ट में बसना चाहे, तो इसे सही कैसे ठहराया जा सकता है. यहां ये समझना ज़रूरी है कि ये इनर लाइन रिज़र्व फॉरेस्ट का पेच है क्या, जिसके चलते असम का तकरीबन हर पड़ोसी सूबे से झगड़ा चल रहा है. और ये भी, कि क्या ये मुद्दा पूरी तरह ज़मीन का ही है?
समाधान क्या होगा, इसे लेकर हमने एल साइलो से भी सवाल किया था. उनका कहना है कि दोनों पक्ष अपने दावे पर अड़े रहकर समाधान खोज नहीं पाएंगे. लेकिन दिक्कत ये भी है कि अगर कोई पक्ष थोड़ा भी समझौता करते दिखा, तो उसे अपने यहां की जनता का आक्रोश झेलना होगा. मिज़ो गुट अभी से आखिरी दम तक ज़मीन की रक्षा की बात करने लगे हैं.
इस पूरे मसले पर केंद्र बहुत फूंक फूंक कर पांव रख रहा है. क्योंकि पूर्वोत्तर सरकार और सरकार चला रही पार्टी दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. आज केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लोकसभा को लिखित जानकारी देकर बताया कि असम-मिज़ोरम सहित 6 और राज्यों में सीमा विवाद चल रहा है और हिंसा की खबरें भी मिली हैं. केन्द्र सरकार का दृष्टिकोण है कि राज्यों का विवाद केवल संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से सुलझ सके, और विवाद का समाधान परस्पर समझ और भावना से हो. केंद्र इसमें सहायक की भूमिका में होगा. वैसे केंद्र ने दोनों सूबों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को दिल्ली तलब कर लिया है.
पांच जवानों की मौत ने असम-मिज़ोरम सीमा विवाद में एक नया अध्याय जोड़ दिया है. अब असम अपने दावे और ज़्यादा गंभीरता से लेगा. लेकिन इस बात का मतलब ये कतई नहीं है कि मिज़ोरम या मिज़ोरम के लोग अपने दावे से ज़रा भी पीछे हटेंगे. क्योंकि ये मामला दो सूबों के बीच सीमा को लेकर समझ में अंतर का भर नहीं है. ज़मीन को लेकर लोगों का दावा सरकारी कागज़ात से ज़्यादा उनकी सांस्कृतिक पहचान और रोज़गार से जुड़ा हुआ है. आगे बढ़ना मुश्किल है. लेकिन पीछे हटना भी किसी के लिए आसान नहीं है.