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अमृतपाल सिंह पुलिस के पास या फरार? असली सच क्या? हाईकोर्ट में क्या खुलासा हुआ?

क्या अमृतपाल सिंह वाकई देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुका है?

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अमृतपाल सिंह (फोटो: सोशल मीडिया)


पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 21 मार्च को एक बयान में कहा कि बीते दिनों कुछ लोग विदेशी ताकतों के समर्थन से पंजाब का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे, कानून के खिलाफ बोल रहे थे, वो ''सब'' पकड़े गए और अब सख्त कार्रवाई की जाएगी. और आज ही के दिन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मान सरकार से पूछा-

''ऐसा कैसे हो गया, कि आपने हर किसी को गिरफ्तार कर लिया, बस अमृतपाल को छोड़कर. ये एक इंटेलिजेंस फेलियर है.''

माने जो सरकार कठोर कार्रवाई का दावा करने का भरोसा दे रही है, वही अदालत में हीलाहवाली के लिए डांट भी खा रही है. क्योंकि एक सवाल का जवाब अब तक नहीं मिला, आखिर अमृतपाल सिंह गया कहां? लेकिन ये इकलौता सवाल नहीं है. सवाल ये भी है कि एक औसत इंफ्लूएंसर अमृतपाल इतना बड़ा हुआ कैसे? क्या कुछ लोग थे, जो अपने राजनैतिक फायदे के लिए आंखे बंद किए हुए थे? क्या सिख धर्म से जुड़े भावुक पहलुओं की गलत व्याख्या को पनपने दिया गया? और उस अटकल में कितना दम है कि अमृतपाल पहले दिन से ''सुरक्षा एजेंसियों'' के पास है?

अमृतपाल सिंह को लेकर फिलवक्त दो ही बातें चल रही हैं. पहली पुलिस की तरफ से - कि वो फरार है, दूसरी परिवार और समर्थकों की तरफ से, कि उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है, बस बता नहीं रही है. इन दोनों दावों के बीच 'वारिस पंजाब दे' के कानूनी सलाहकार मामले को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ले गए . परिवार की तरफ से Habeas corpus petition यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई गई थी. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस एनएस शेखावत ने पूछा- 

वो कैसे फरार हो गया?

इस पर पंजाब सरकार के एटवोकेट जनरल यानी AG विनोद घई ने कहा, 

“हमने मामले में अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया है.”

पीठ ने आगे पूछा कि अमृतपाल सिंह को छोड़कर सभी को कैसे गिरफ्तार किया गया है? कोर्ट ने कड़ी टिप्पड़ी करते हुए पूछा, 

If he has escaped , this is intelligence failure. 

आगे कोर्ट ने पूछा, 

“आपके पास 80 हज़ार पुलिस जवान हैं. उसे कैसे गिरफ्तार नहीं किया गया? अगर वह बच गया, तो यह एक विफलता है.”

इसके जवाब में एटवोकेट जनरल ने कहा, 

“ऐसा कभी-कभी होता है. जी-20 शिखर सम्मेलन भी चल रहा था.”

एटवोकेट जनरल विनोद घई ने अदालत को ये भी बताया कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ सख्त NSA लगाया गया है. इस पर जस्टिस शेखावत ने कहा - 

''सब पकड़े गए तो वो कैसे निकल गया? हम आपकी स्टोरी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं."

विनोद घई ने जवाब दिया, 

हम सशस्त्र थे लेकिन हमने बल प्रयोग नहीं किया. कुछ मामले इतने संवेदनशील होते हैं कि अदालत में व्याख्या नहीं की जा सकती. हम उसे गिरफ्तार करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

कोर्ट में जालधंर पुलिस कमिश्नर ने बाकयदा हलफनामा देकर बताया कि वो मर्सिडीज गाड़ी में भाग रहा था, उसके साथ 3 और गाड़ियां थीं. जिसमें दो एंडेवर, और एक क्रेटा थी. उन्हें जालंधर के सलेमा गांव में सरकारी स्कूल के पास लापरवाही से गाड़ी चलाते हुए देखा गया था. अमृतपाल के पास एक .315 की राइफल थी और वो जनता में डर पैदा करने के उद्देश्य से उसे लहरा रहा था. वो और अन्य लोग कार छोड़कर मौके से भाग गए. वहां से कार, एक कृपाण, एक वॉकी-टॉकी सेट, एक राइफल, और 57 जिंदा कारतूस बरामद किए गए. हथियार लहराने के आरोप में भी FIR दर्ज कर ली गई है.

'वारिस पंजाब दे' के कानूनी सलाहकार की तरफ से लगाई याचिका में आरोप लगाया गया था कि अमृतपाल सिंह को जालंधर के शाहकोट में हिरासत में लिया गया था, हलफनामे में पुलिस इस बात का भी खंडन किया कहा- अमृतपाल सिंह को किसी भी समय न तो गिरफ्तार किया गया, न ही हिरासत में लिया गया है.

ये तो हुई अदालत की बात. पंजाब के IG (हेडक्वार्टर)  सुखचैन सिंह गिल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया, कि पुलिस ने चार और लोगों को गिरफ्तार किया है. आरोप है कि इन लोगों ने भागने में अमृतपाल की मदद की. अटकलों के बाज़ार में ये बात भी गर्म थी कि अमृतपाल इसलिए लापता है, क्योंकि उसे पंजाब पुलिस ने नहीं, किसी ''केंद्रीय'' एजेंसी ने गिरफ्तार किया है. IG ने साफ करते हुए कहा कि ये मामला अब भी पंजाब पुलिस के पास है, NIA को नहीं दिया गया है.

4 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस के पास अमृतपाल तो नहीं दिखा, मगर अब उसके CCTV फुटेज आ रहे हैं. एक फुटेज टोल प्लाजा से ही आई है, जिसमें वो मर्सडीज गाड़ी में सवार दिखता है. पुलिस ने बताया कि वो मरसडीज से उतर कर एक जगह पर ब्रेजा कार में सवार हो जाता है, जिसे वो खुद चला रहा था. आगे वो बुलेट पर बैठकर भागता है, जिसकी तस्वीर भी आ गई है.

ये हुए दिन भर के अपडेट. अब आते हैं सवालों पर. क्या अमृतपाल सिंह वाकई देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बन चुका है? वो इतना ताकरवर है कि उसे समूचे राज्य की पुलिस मिलकर भी नहीं खोज पा रही है? या खोज लिया तो बता नहीं रही, ताकि माहौल ना बिगड़े. हो जो भी एक सवाल यहां राजनीति का भी है. पूछा जा रहा है कि आखिर दो साल के अंदर एक व्यक्ति दुबई से लौट कर इतना बड़ा कैसे बन गया? क्या ये आम आदमी पार्टी का का फेलियर है या फिर केंद्र को भी इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए?

यहां एक और बिंदु पर गौर करना आवश्यक है. अमृतपाल और उसके साथियों का मकसद तो राजनैतिक है, लेकिन उन्होंने धर्म को ढाल की तरह इस्तेमाल किया है. अपने पहनावे से लेकर बातचीत में उसकी कोशिश रहती है, कि वो एक पंथिक सिख दिखे. पूरी मैसेजिंग इस तरह की है, जैसे खालिस्तानी जो कह रहे हैं, वो तो सिख धर्मग्रंथों में निहित शिक्षा से ही निकला है. एक वाक्य पर ये लोग बहुत ज़ोर देते हैं - ''राज करेगा खालसा.'' आप किसी भी आम सिख से पूछेंगे, वो इसे बड़े ही सामान्य ढंग से लेंगे. मिसाल के लिए सुबह-शाम होने वाले ''जप-जी'' में इसका ज़िक्र होता रहता है. लेकिन खालिस्तानी इसे ऐसे पेश करते हैं, जैसे ये कोई मूल मंत्र हो. मानो सिख धर्मग्रंथ ये कह रहे हों कि अमुक इलाके पर खालसा शासन ही मान्य होगा.

जैसे हिंदु धर्म में राम राज्य की बात की जाती है वैसे ही सिख धर्म में कहा जाता है ''राज करेगा खालसा''. राम राज्य का मतलब ये नहीं कि एक धर्म या जाति का राज होगा, तभी सब अच्छा होगा. राजा राम की शासन व्यवस्था और भारतीय लोकतंत्र में बहुत फर्क है. क्या इसका मतलब ये है कि लोकतंत्र में राम राज्य नहीं हो सकता? बिलकुल नहीं. राम, सत्य और न्याय की बात करते हैं. बराबरी की बात करते हैं. हम इन मूल्यों पर चल पाए, तो अपने आप राम राज्य स्थापित होने लगेगा. इसीलिए शब्दों में फंसने की जगह हमें देखना होगा कि धर्मग्रंथ कह क्या रहे हैं, और आधुनिक संदर्भ में उसे कैसे व्याख्यायित किया जाए. यही बात ''राज करेगा खालसा'' पर लागू होती है. इसे एक कौम की राजनैतिक आकांक्षा की तरह पेश तो किया जा सकता है, लेकिन जैसा कि हमने कहा, संदर्भ मायने रखता है.

ये सारी बातें हमने इसीलिए बताईं, क्योंकि अमृतपाल पर हो रही कार्रवाई को धर्म के चश्मे से देखने की शुरुआत हो गई है. उसकी गिरफ्तारी के लिए एक तरफ पंजाब पुलिस दिन रात हाथ पैर मार रही है. लेकिन सूबे में ही कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अमृतपाल और उसके सहयोगियों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं. हरसिमरत ने ये बयान संसद परिसर में 20 मार्च को दिया था. जिसमें राज्य और केंद्र पर हमला तो है, लेकिन संतुलन नज़र आता है. लेकिन उनके पति और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के बयानों की तासीर काफी अलग थी. 20 मार्च की ही शाम उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट किए. जिसमें पहले ट्वीट में उऩ्होंने लिखा -

''अकाली दल पंजाब में कठपुतली आप सरकार की अघोषित एमरजेंसी और राज्य में दमन के राज की कड़ी निंदा करता है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और चुनावी लाभ के लिए सबसे देशभक्त सिख समुदाय को बदनाम करने की खतरनाक साजिशों के खिलाफ हम सरकार को चेतावनी देते हैं.''

एक और ट्वीट में उन्होंने लिखा,

''शिरोमणि अकाली दल गैर-संवैधानिक तरीकों का सहारा लेकर केवल संदेह के आधार पर निर्दोष सिख युवाओं, विशेषकर अमृतधारी युवाओं की अंधाधुंध गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करता है. हम गिरफ्तार किए गए सभी बेगुनाहों की तत्काल रिहाई की मांग करते हैं.''

तो शिरोमणि अकाली दल अमृतपाल पर कार्रवाई को सिख समुदाय के खिलाफ साजिश के तौर पर पेश कर रहा है. तो क्या ये माना जाए सुखबीर सिंह बादल की पार्टी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को पाने के लिए ऐसा कर रही है? 

हमने अब तक तीन स्टेकहोल्डर्स पर बात कर ली. केंद्र, अकाली दल और आम आदमी पार्टी. अब एक और स्टेकहोल्डर पर आते हैं - विदेश में बसे सिख. खालिस्तान पर दी लल्लनटॉप ने जब-जब बात की है, तब-तब इस बात को रेखांकित किया है कि खालिस्तान को लेकर अगर कहीं वाकई समर्थन है, तो वो विदेश में है, न कि पंजाब में. ये बात इन दिनों फिर देखने को मिल रही है. लंदन में भारतीय उच्चायोग में तिरंगे का अपमान हुआ, अमेरिका के सैन फ्रैनसिस्को में भारतीय काउंसुलेट पर हमला हुआ, कैनडा में प्रदर्शन चल ही रहे हैं. लेकिन पंजाब से ऐसी किसी अप्रिय घटना की जानकारी अब तक नहीं आई है. जैसे-जैसे इंटरने सेवाएं बहाल होंगी, संभव है कि कुछ नई जानकारियां सामने आएं, लेकिन ये बात लगभग स्पष्ट है कि भले छिटपुट प्रदर्शन हुए हों, लेकिन कहीं कुछ बड़ा नहीं हुआ.

ऐसे में सवालों की सुई विदेश में बसे सिख समुदाय की ओर घूम जाती है. अक्सर लोग ये कह देते हैं कि विदेश में बसे सिख ही पंजाब का माहौल खराब कर रहे हैं. लेकिन ये बात गलत है. सिख जैसे भारत के हर कोने में रहते हैं, उसी तरह वो दुनिया के लगभग सभी देशों में मिलते हैं. खालिस्तानी बस कुछ देशों में प्रभावशाली हैं, और वहां भी सारे सिख उनसे इत्तेफाक नहीं रखते.

खालिस्तानी संख्या में कम हैं, लेकिन शोर बहुत मचाते हैं. बीते दिनों लगातार ये आरोप लगे कि ऑस्ट्रेलिया, कैनडा या ब्रिटेन में भारत विरोधी गतिविधियों पर कार्रवाई नहीं होती. भारत के हाथ बंधे हैं, क्योंकि वो राजनयिक स्तर पर विरोध जताने से ज़्यादा विदेशी धरती पर कुछ कर नहीं सकता. लेकिन अमृतपाल पर मचे घमासान के बीच एक खबर आई है, जिससे भारतीय एजेंसियां राहत महसूस कर रही हैं. 29 जनवरी 2023 को मेलबर्न में कथित खालिस्तान रेफरेंडम के दौरान हिंसा हुई थी. इस मामले में विक्टोरिया पुलिस ने छह संदिग्धों की तस्वीरें जारी कर दी हैं. और आम लोगों से इनके बारे में जानकारी देने की अपील की है.

लौटकर आते हैं भारत, जहां अमृतपाल और उसके साथियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA के तहत कार्रवाई की जा रही है. ये एक बहुत सोचा-समझा कदम है. सुरक्षा एजेंसियों को इस बात का अंदाज़ा रहा होगा कि जैसे ही पुलिस कार्रवाई शुरू होगी, आरोपी शरण मांगने अदालत चले जाएंगे. इसीलिए NSA का सहारा लिया गया, जिसमें प्रशासन को ये अधिकार है कि वो बिना विधिवत कार्यवाही और मुकदमे के, किसी संदिग्ध को एक साल तक हिरासत में रख सकता है. इसके लिए बस इलाके के ज़िला मैजिस्ट्रेट को एक आदेश जारी करना होता है, जिसमें वो ये बताते हैं कि अमुक व्यक्ति से भारत की सुरक्षा को खतरा है. अब इस ''खतरे'' की व्याख्या बहुत स्पष्ट नहीं है.

एक बार NSA लग जाए, तो आरोपी को 24 घंटों के भीतर मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की बंदिश नहीं होती. बेल याचिका लगाने का अधिकार भी नहीं रहता. और अगर बेल मिल जाए, तो फिर किसी दूसरे मामले में NSA लगाया जा सकता है. आरोप एक तीन सदस्यीय बोर्ड के सामने अपनी बात रख सकता है. लेकिन बोर्ड के सामने ये साबित करना कि हिरासत गैरकानूनी है, बड़ा मुश्किल होता है, क्योंकि कानून में व्याख्या के लिए बहुत जगह छोड़ी गई है. ऐसे में प्रशासन का हाथ मज़बूत रहता है.

एक और बात है, NSA के तहत प्रशासन के पास जूरिस्डिक्शन, माने क्षेत्राधिकार वाली बंदिश भी नहीं रहती. वो संदिग्ध को हिरासत में लेकर देश की किसी भी जेल में भेज सकती है. भारत जैसे विशाल भूगोल वाले देश में इस बात का भी बड़ा महत्व है. जब प्रशासन को लगता है कि अमुक व्यक्ति पर कार्रवाई से इलाके में माहौल खराब हो सकता है, तो वो किसी दूसरे राज्य की मदद ले लेता है. एक बार संबंधित व्यक्ति इलाके से बाहर चला जाए, तो समय के साथ माहौल शांत हो ही जाता है. इसीलिए अमृतपाल प्रकरण में असम से मदद ली गई है. 

आपने भी गौर किया होगा कि आम आदमी पार्टी और भाजपा एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते, लेकिन पंजाब और असम प्रशासन के बीच गज़ब का समन्वय देखने को मिल रहा है. आरोप कब गिरफ्तार होते हैं, कब फ्लाइट में बैठाए जाते हैं और कब गुआहाटी लैंड करते हैं और कब सड़क मार्ग से डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल पहुंच जाते हैं, किसी को मालूम नहीं चलता. जबकि ये काम बीते दिनों से जारी है. आज भी तीन लोग इसी तरह डिब्रूगढ़ पहुंचे. बस काम भर की जानकारी ही बीट रिपोर्ट्स तक पहुंचती है. ये संकेत है कि अमृतपाल प्रकरण में तैयारी तो काफी की गई थी. ये मानने के भी पर्याप्त कारण हैं कि चंडीगढ़ और गुवाहाटी इस मामले में अकेले नहीं हैं. दिल्ली भी शामिल है.

यही सब देखकर लोग पूछ रहे हैं कि कैसा होता, अगर ये पूरा तंत्र, सभी स्टेकहोल्डर समय से जाग गए होते. जो समन्वय अब दिख रहा है, क्या कुछ पहले नहीं हो सकता था. बिलकुल हो सकता था. लेकिन तब राजनीति के लिये ज़मीन कहां से तैयार होती. अब भी देर नहीं हुई है. जब जागो, तब सवेरा की लीक पर चलते हुए ये पूरा चक्र रोका जा सकता है. बशर्ते आप जागें. आप सवाल पूछें. आप ज़िम्मेदारी तय करें.