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"पंजाब की आज़ादी, जंग, ख़ालिस्तान, भिंडरावाले"… कौन है ये नया ‘ख़ालिस्तानी’, जो खुलेआम टहल रहा है?

"तिरंगा हमारा झंडा नहीं है. इस झंडे ने हमारे ऊपर बेइंतहा जुल्म किए."

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क्या अमृतपाल सिंह (दाएं) चरमपंथ और भिंडरावाले (बाएं) का नया चेहरा है?

पंजाब के मोगा का रोडे गांव. जो जानते हैं, वो जानते हैं कि ये पंजाब के उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले का गांव है. वही भिंडरांवाले जिसने 1980 के दशक में सिखों के लिए अलग देश ख़ालिस्तान की मांग उठाते हुए पूरे पंजाब में कोहराम मचा दिया था. इसी गांव में भिंडरावाले की स्मृति में बना एक गुरुद्वारा है - गुरुद्वारा संत खालसा. गुरुद्वारे के पास एक मंच बना है, और मंच के सामने शामियाना तना हुआ है. मंच पर एक 29 साल का नौजवान खड़ा है. सामने भीड़ है. नौजवान की अभी अभी दस्तारबंदी की गई है, यानी उसे सिखों वाली पगड़ी बांधी गई है. सिर पर तुलनात्मक रूप से भारी पगड़ी बांधे हुए ये नौजवान वहां जुटी भीड़ से मुख़ातिब है,

"भिंडरावाले मेरी प्रेरणा है. मैं उनके दिखाए रास्ते पर चलूंगा. मैं उनके जैसा बनना चाहता हूं क्योंकि ऐसा हर एक सिख चाहता है. लेकिन मैं उनकी नकल नहीं उतार रहा. मैं उनके पैरों के धूल के बराबर भी नहीं हूं."

ये नौजवान आगे कहता है,

मैं पंथ की आजादी चाहता हूं. मेरे खून का हरेक कतरा इसके लिए समर्पित है. बीते समय में हमारी जंग इसी गांव से शुरू हुई थी. भविष्य की जंग भी इसी गांव से शुरू होगी. हम सभी अब भी दास हैं. हमें अपनी आजादी के लिए लड़ना होगा. हमारा पानी लूटा जा रहा है. हमारे गुरु का अपमान किया जा रहा है. पंथ वास्ते जान देने के लिए पंजाब के हरेक युवा को तैयार रहना चाहिए.”

ये सब किसी 3-4 दशक पुराने कालखंड में नहीं बल्कि वर्तमान में हो रहा है. तारीख़ थी 29 सितंबर 2022. कैमरे के फ़्लैश चमक रहे थे. बंपर सस्ते इंटरनेट की मदद से इसे लाइव स्ट्रीम करने में लोकल चैनलों को सहायता मिल रही थी. पंजाब के पानी और पंजाब के पंथ — दो ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर इस नौजवान को भीड़ खड़ी होकर सुन रही थी. ठीक उसी वक़्त लोगों में ये भी बातें हो रही थीं कि बोलने वाले की वेशभूषा जरनैल सिंह भिंडरावाले से कितनी मिलती जुलती है!

रोडे में आयोजित जनसभा (विशेष सूत्र)

कौन था ये व्यक्ति? अचानक कहां से प्रकट हो गया और कैसे उसका नाम रातों-रात मीडिया पर छा गया? जब पूरे हिंदुस्तान में राष्ट्रवाद सिर चढ़कर बोल रहा है, ऐसे समय में कौन है ये नौजवान जो सिखों से कह रहा है कि उन्हें “अपनी आज़ादी के लिए लड़ना होगा”? चिटपिटे की तरह रह-रहकर बज उठने वाली ख़ालिस्तान की माँग के संदर्भ में ये “भविष्य की जंग” भिंडरांवाले के गांव से शुरू करने की बात कैसे कह गया? किस के दम पर बोल रहा है ये नौजवान? कौन खड़ा है इसके पीछे? कौन है ये शख्स जिसने अपना स्वरूप जरनैल सिंह भिंडरावाले जैसा बना रखा था? वही भिंडरावाले जिसे जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुई सैन्य कार्रवाई यानी ऑपरेशन ब्लूस्टार के दौरान मार डाला गया था. और सबसे ज़रूरी सवाल ये कि UAPA-राजद्रोह लगाने और वीज़ा कैंसिल करने जैसी कार्रवाईयां जब आम हों, तो कैसे एक ऐसा नयानवेला-सा बंदा पंजाब में खुलेआम घूम रहा है? उस पर कोई केस क्यों नहीं हो रहा है?

अपने समर्थकों के साथ जरनैल सिंह भिंडरावाले (इंडिया टुडे)

इस बंदे का नाम है - अमृतपाल सिंह. उम्र 29 साल. और अभी-अभी इसने एक संगठन की बागडोर संभाली है. इस संगठन का नाम है – ‘वारिस पंजाब दे’. और ‘वारिस पंजाब दे’ की कहानी जाकर जुड़ती है दीप सिद्धू से. अभिनेता और एक्टिविस्ट संदीप सिंह उर्फ़ दीप सिद्धू जो 26 जनवरी 2021 को लालक़िले पर खालसा पंथ का झंडा फहराने को लेकर ख़बरों में आए थे और 15 फ़रवरी 2022 को एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई. अपनी मौत से छह महीने पहले यानी सितंबर 2021 में सिद्धू ने ‘वारिस पंजाब दे’ की नींव रखी थी. ये वो समय था जब पंजाब में विधानसभा चुनाव चल रहे थे और आम आदमी पार्टी खरामा-खरामा जीत की ओर बढ़ रही थी.

दिल्ली में हुए किसान मार्च के दौरान लालकिले पर सिख पंथ का झंडा फहराने के लिए सिद्धू की बहुत आलोचना हुई थी और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार भी किया था. दिल्ली के बाहर डेरा डाले किसान संगठनों ने इस घटना के बाद से ही सिद्धू से दूरी बनानी शुरू कर दी. शायद यही कारण था कि दीप सिद्धू को एक नया संगठन बनाने की ज़रूरत पड़ी. इस सबसे पहले दीप सिद्घू भारतीय जनता पार्टी के सांसद और फ़िल्मी एक्टर सनी देओल के सहयोगी भी रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी तस्वीरें पहले ही वायरल हो चुकी थीं.

PM मोदी और सनी देओल के साथ दीप सिद्धू (दाएं से दूसरा)

‘वारिस पंजाब दे’ की नींव रखते हुए दीप सिद्धू ने ऐलान किया था कि ये संगठन पंजाब के युवाओं को एकजुट करेगा. इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक दीप सिद्धू ने तब इस संगठन को एक प्रेशर ग्रुप बताया था और कहा था कि ये पंजाब के अधिकार और पंजाब की संस्कृति का बचाव करेगा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दे उठाएगा, साथ ही दिल्ली की तानाशाही के खिलाफ़ आवाज़ भी उठाएगा. जानकारों ने “दिल्ली की तानाशाही” का अपने तरीक़े से पाठ किया.

दीप सिद्धू को लाल क़िले प्रसंग से मिली “शोहरत” की वजह से ‘वारिस पंजाब दे’ भी सुर्ख़ियों में आ गया. स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि शुरुआत में किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया लेकिन फिर जिस तेजी से नौजवानों का इसकी ओर झुकाव होने लगा, उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था. फ़ेसबुक पेज, इंस्टाग्राम पेज वग़ैरह बने, वहां पर लोगों की प्रतिक्रियाएं आने लगी. तो क्या ये “दिल्ली की तानाशाही” जैसे जुमले का कमाल था? पंजाब के एक पत्रकार नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं,

“पंजाब में हमेशा से एक रिक्त स्थान मौजूद रहा है. राजनीतिक रूप से इस रिक्त स्थान को अकाली दल और कांग्रेस ने भरने की कोशिश की, अब आम आदमी पार्टी वही काम कर रही है. दीप सिद्धू, सिद्धू मूसेवाला या ये अमृतपाल सिंह जैसा कोई भी बंदा आकर तल्ख़ी से बोल देता है, तो उसका एक बेस बनने लगता है. लोग जुड़ने लगते हैं.”

बहरहाल, दीप सिद्धू की मौत के बाद ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख का पद खाली था. लेकिन वारिस पंजाब दे ख़बरों में बना हुआ था. हर साल 6 जून को ऑपरेशन ब्लूस्टार की बरसी होती है. इसी दिन 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर सेना ने सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल यानी स्वर्ण मंदिर पर धावा बोल दिया था. जरनैलसिंह भिंडरावाले और उसके हथियारबंद अनुयायी वहीं छिपे थे. फ़ौज ने टैंकों के जरिए दरबार साहब पर गोले दागे थे. इस कार्रवाई में भिंडरवाला के साथ साथ उनके कई अनुयायी भी मारे गए. तो जब साल 2022 में ब्लूस्टार की बरसी आई तो प्रोटेस्ट मार्च निकाले गए. और इस बार वारिस पंजाब दे का भी मार्च निकालने वालों में था, और ख़बरें बताती हैं कि इस और दूसरे संगठनों की संलिप्तता देखते हुए पंजाब पुलिस ने वयस्था भी चाक चौबंद कर रही थी.

रोडे में सभा को संबोधित करता अमृतपाल सिंह (फ़ोटो - विशेष सूत्र)

वापिस चलते हैं रोडे गांव. अब जब अमृत पाल सिंह की दस्तारबंदी भिंडरांवाले के गांव रोडे में की गई तो सवाल उठने लाजिमी थे.  भिंडरावाले जैसा भेष धरे अमृत पाल सिंह स्टेज से कह रहा था कि दीप सिद्धू जैसे लोग मरते नहीं हैं. उसने इशारे ही इशारे में सिद्धू की मौत के कारणों पर शक ज़ाहिर करते हुए कहा,

“दीप सिद्धू एक क़ौमी शहीद थे. गुरु की सेवा में लगे लोग ऐक्सिडेंट में नहीं मरते हैं. हमें पता है कि उनकी मौत कैसे हुई? और किसने उन्हें मारा?”

अमृतपाल सिंह का सच क्या है?

अचानक प्रकट हुए अमृत पाल सिंह के बारे में बहुत जानकारियां नहीं थीं. खोजने पर पता चला कि वो अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा गांव का रहने वाला है. पढ़ाई कक्षा 12 तक की. और ख़ालिस्तान, भिंडरावाले और इससे जुड़ा तमाम ज्ञान इंटरनेट की बदौलत हासिल किया. अब तक वो दुबई में रहकर ट्रांसपोर्ट का बिज़नेस चलाता था. पर अब दुबई से काम समेटकर वापिस आ गया है.

अमृतपाल सिंह (फेसबुक - अमृतपाल सिंह)

यहां पर ये बात भी स्पष्ट करना ज़रूरी है कि अमृत पाल सिंह कुल 6 साल के अंतराल के बाद सितंबर 2022 में भारत आया है. वो न किसान आंदोलन के समय आया, न ही सितंबर 2021 में ‘वारिस पंजाब दे’ की घोषणा के समय आया और न ही फ़रवरी 2022 में दीप सिद्धू की मौत के समय. ऐसा उसने ख़ुद न्यूज़ 18 को दिए इंटरव्यू में कहा.

इसी बीच अमृतपाल सिंह के सोशल मीडिया को खंगालें तो कहानी और साफ़ होती है. इस स्टोरी को लिखे जाने तक अमृतपाल की सबसे लेटेस्ट twitter पोस्ट है उसकी प्रोफ़ाइल इमेज, जिसमें उसने भिंडरावाले जैसा भेष बनाया है और गोद में है एक बच्चा. रिप्लाई और रीट्वीट में लोगों ने इस फ़ोटो की प्रशंसा की है.

कुछ पीछे चलते हैं. टाइमलाइन में 4 अगस्त को अमृतपाल सिंह ने एक वीडियो अपलोड किया है. लगभग डेढ़ मिनट के इस वीडियो को अब तक 5 हज़ार से ज़्यादा लोग देख चुके हैं. इस वीडियो में अमृतपाल सिंह को कहते सुना जा सकता है,

“क्या तिरंगा हमारा झंडा है हमारा यानी कि सिखों का? तिरंगा हमारा झंडा नहीं है. अगर हमारा झंडा होता तो दरबार साहब पर हमला करके सिखों के झंडे को उतारकर तिरंगा क्यों लहराया गया? सिखों के ऊपर हमले किए गए. सिखों का कत्लेआम किया गया. इस झंडे ने हमारे ऊपर बेइंतहा जुल्म किए. हमारे 9 जवानों को मार दिया गया. 15 अगस्त को जिस तरीके से सरकार ने लोगों को लाखों तिरंगे भेजे, वैसे ही हम लोगों से आग्रह करते हैं कि वह अपने घर के ऊपर निशान साहब लगाएं.”

इसके पहले 1 अगस्त को भी एक पोस्ट अमृतपाल सिंह ने अपलोड की है. इसमें एक फ़ोटो है. बाईं तरफ़ है स्वर्ण मंदिर उर्फ़ दरबार साहिब की फ़ोटो साल 1984 की, जिसमें शिखर पर तिरंगा झंडा फहराता दिखाई दे रहा है. दूसरी तरफ़ है साल 2021 की लाल क़िले की फ़ोटो, जिस पर खालसा ध्वज फहराता दिखाई दे रहा है. साथ अमृतपाल सिंह ने लिखा है,

“साल 1947 में हमारे लोगों के क़त्लेआम और विस्थापन का जश्न हमें नहीं मनाना चाहिए. ये इंडिया में हिंदुओं की आज़ादी थी और मुसलमानों की पाकिस्तान में, लेकिन ये सिखों के लिए एक दासता की शुरुआत थी. हम उनकी हिम्मत का जश्न बनाएंगे, जिन्होंने भारत के अत्याचारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाई.”

25 जून को किए ट्वीट में अमृतपाल सिंह ने सिद्धू मूसेवाला के आख़िरी और यूट्यूब द्वारा हटा दिए गाने SYL का ज़िक्र करते हुए लिखा,

“भारत को हमें हमारी आज़ादी देनी होगी, वरना हम ख़ुद से ले लेंगे. भारत ने साल 1947 से हम पर जुल्म किया है. हम भारत के खिलाफ़ हैं.”

इसके एक दिन पहले यानी 24 जून को उसने लिखा,

“अगर तथ्यों से भरे एक गाने (SYL) से पंजाब का दूसरे राज्यों के साथ संबंध ख़राब होता हो, तो संबंध ख़राब हो जाने चाहिए.”

इसके अलावा कुछ और पोस्ट हैं, जो और विवादित लगती हैं. ऐसी ही एक पोस्ट है जिसमें पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की फ़ोटो है, और उनके चेहरे पर ऐसे निशान बनाए गए हैं, मानो गोलियां दागी गई हों. पोस्टर से मालूम पड़ रहा है कि माता साहिब कौर पर एनिमेटेड मूवी विधायकों को दिखाई जाएगी. और 6 अप्रैल को किए अपने इस ट्वीट में अमृतपाल सिंह ने कहा है कि ये एनिमेटेड मूवी दिखाना मर्यादा के खिलाफ़ है. 

एक पोस्ट में लिखा है - पंजाब को ख़ालिस्तान चाहिए.

बहुत सारी पोस्ट हैं जो वामपंथी झुकाव वाले एक्टिविस्टों की ओर साफ़ इशारा कर रही हैं. कुछ उदाहरण देखते चलिए -

एक और, जहां ये भी कहा गया है कि हमें भारतीय न्याय व्यवस्था में भरोसा नहीं है -

 

एक और उदाहरण देखें,

मौक़े-मौक़े पर अमृत पाल सिंह ने ट्विटर स्पेस, क्लब हाउस और दी सिख न्यूज़ नाम के टेलीग्राम-ट्विटर आधारित संगठन की चीज़ें पोस्ट की हैं. और इन बातों पर धीरे-धीरे लोगों का बढ़ता समर्थन भी साफ़ तौर पर दिखता है.

अमृतपाल सिंह का समर्थक कौन?

अमृत पाल सिंह ने ख़ुद के लिए समर्थन का बेस भी तैयार करना शुरू कर दिया है. मीडिया चैनलों में उसके इंटरव्यू चलने लगे हैं. प्रोफ़ाइल लिखी जाने लगी है. और समर्थन की आवाज़ भी दिखने लगी है. संगरूर से सांसद और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत सिंह मान ने भी रोडे गांव में अमृत पाल सिंह के कार्यक्रम में शिरकत की थी. राजनीति में आने से पहले मान एक IPS अफ़सर थे, पर उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में सरकारी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था. उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया पर जेल से ही उन्होंने 1989 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता. लेकिन उन्होंने ज़िद की कि वो संसद में तभी प्रवेश करेंगे जब उन्हें तलवार अंदर ले जाने की अनुमति दी जाएगी. ये अनुमति नहीं मिली और उन्होंने विरोध में लोकसभा सीट से इस्तीफ़ा दे दिया.

सांसद सिमरनजीत सिंह मान

मान ने कई मौक़ों पर ख़ालिस्तान का समर्थन किया है. और 2022 के लोकसभा उपचुनाव में जब उन्हें फिर जीत मिली तो उन्होंने घोषित तौर पर इसे भिंडरावाले को समर्पित किया. अमृतपाल सिंह की दास्तारबंदी के कार्यक्रम से निकलकर मान जब मीडिया से मुखातिब हुए तो उन्होंने कहा कि ख़ालिस्तान की डिमांड उठाना कहीं से गलत नहीं है.

“हम ख़ालिस्तान के बारे में लिख सकते हैं, बात कर सकते हैं और मीटिंग कर सकते हैं, बिना किसी डर के. ख़ालिस्तान की नींव जल्द ही रखी जाएगी.”

ये एक लोकसभा सांसद बोल रहा था. और इस बात से लोगों के बीच की इस फुसफुसाहट को थोड़ा और बल मिल जाता है कि अमृतपाल के पीछे संगरूर सांसद के भी लोग लगे हुए हैं.

साल 1984 का ऑपरेशन ब्लूस्टार (इंडिया टुडे)

बहरहाल , अमृतपाल के नाम से बने फ़ेसबुक पेज पर लाइक बढ़ रहे है, उसकी सोशल मीडिया पोस्ट पर उसकी तारीफ़ करते सैकड़ों कमेंट आसानी से मिल जाएंगे. और ये सब किसी क्लोज़ नेट्वर्क में नहीं हो रहा है, सबकुछ खुलेआम, सामने से.

पंजाब के एक वरिष्ठ पत्रकार हमसे कहते हैं,

“पंजाब में ऐसे लोगों को समर्थन हाल के दिनों में बहुत मिलने लगा है. ऐसी आवाज़ें खुलेआम उठने लगी हैं. ये नया नॉर्मल है. इसके लिए करना कुछ नहीं है, बस आपको ऑपरेशन ब्लूस्टार और पंजाब के पानी (सतलुज-यमुना लिंक) जैसे संवेदनशील मुद्दों को छेड़ते रहना है. फिर लोगों को अचंभा होता है कि जब सब इतना सम्हलकर बोल रहे हैं, तो इतना उग्र होकर बोलने वाला ज़रूर कोई साहसी इंसान है. लोग उसके पीछे लग जाते हैं. और अमृतपाल जैसे लोग उन्हीं संवेदनशील मुद्दों को कुरेदते रहते हैं.”

हमने इंडियन एक्सप्रेस से लम्बे समय तक जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह से बात की. जगतार सिंह ने पंजाब की मिलिटेंसी लम्बे समय तक कवर की है और उनकी क़िताब “रिवर्स ऑन फ़ायर” चर्चा के केंद्र में रही है. जगतार सिंह कहते हैं,

“पंजाब की जो चोट है, उसका कोई इलाज नहीं निकला. और उस चोट से ही अमृतपाल सिंह जैसे लोग निकलते हैं. सिखों का एक संगठन है, जो अब 1981 की तरह ग़ुस्से में तो नहीं है, लेकिन उसके मन में रोष ज़रूर है. वो लोग ऐसे लोगों से जुड़ जाते हैं. पंजाब में इस समय की स्थिति बहुत चिंताजनक है.”

“खुला कैसे घूम रहा है?”

अमृतपाल सिंह ने सितंबर 2022 की शुरुआत में भारत में कदम रखा था, और तब से वो यहीं बना हुआ है. कई लोगों को इस पर आश्चर्य हो रहा है कि कैसे उसे खुलेआम खालिस्तान और अलगाव की बात करने की छूट मिली हुई है, जबकि 25 अगस्त 2022 को एक अमरीकी सिख पत्रकार अंगद सिंह को सरकार ने दिल्ली हवाई से ही बैरंग लौटा दिया. अंगद सिंह Vice न्यूज़ की तरफ़ से भारत में कुछ डॉक्यूमेंटरी बनाने आए थे, लेकिन उन्हें एयरपोर्ट से ही वापिस अमरीका भेज दिया गया. इसी घटना का ज़िक्र करते हुए जगतार सिंह कहते हैं,

“एक बंदे को आप एकाध घंटे में ही दिल्ली से वापिस भेज देते हो. जबकि एक पंजाब चला आता है और इस तरह के बयान दे रहा है. ऐसे बयान जिनसे हिंसा भड़क जाए. आप इतनी तेज़ी से राजद्रोह का केस लगा सकते हो, लेकिन यहीं एक व्यक्ति खुला घूम रहा है, ये कैसे संभव है?”

पंजाब के जानकार एक और पत्रकार ने इसी मुद्दे पर हमसे बात करते हुए कहा,

“ये मानने में कठिनाई होती है कि पंजाब पुलिस, पंजाब की ख़ुफ़िया एजेंसी या केंद्र की एजेंसियों को इस व्यक्ति के बारे में कुछ पता ही नहीं है. ऐसा हो सकता है क्या?”

अमृतपाल सिंह के पीछे कौन है?

ये इन दिनों पंजाब में पूछे जा रहे कुछ सबसे बड़े सवालों में से एक है. और इसको लेकर चल रही हैं कुछ हायपोथेसिस. जैसे एक हायपोथेसिस ये है कि किसी शातिर और मंजे हुए ख़ालिस्तानी ने अमृतपाल सिंह को ट्रेनिंग दी है. एक हायपोथेसिस ये है कि क्या अमृतपाल सिंह के इस प्राकट्य के पीछे आईएसआई या ऐसे दूसरे सीमापार संगठनों का तो हाथ नहीं है! और एक हायपोथेसिस ये भी कि क्या अमृतपाल सिंह कोई राजनीति का प्लांटेड व्यक्ति है, जिसका आगे आने वाले समय में चुनावों में इस्तेमाल किया जाएगा?

पत्रकार जगतार सिंह कहते हैं,

“उसका हरेक कदम स्क्रिपटेड लग रहा है. और इसकी प्रशंसा वो लोग सबसे अधिक कर रहे हैं, जो साल 1987-88 तक कुछ उग्रवादी नेताओं के सलाहकार के रूप में जाने जाते थे. ”

लेकिन इसी समय ये सवाल भी बना हुआ है कि अमृतपाल सिंह का जुड़ाव ‘वारिस पंजाब दे’ से कैसे हुआ? क्योंकि इस संगठन के संस्थापक दीप सिद्धू का परिवार कुछ और कहता है. दीप सिद्धू के परिवार का कहना है कि अमृत पाल सिंह का उनसे कोई नाता नहीं है. दीप सिद्धू के भाई मंदीप सिंह सिद्धू ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा,

“हम उससे पहले कभी नहीं मिले, न ही दीप कभी मिला था. दीप की उससे पहले एकाध दफ़ा फ़ोन पर बात हुई थी, लेकिन उसे बाद में ब्लॉक कर दिया था. हमें नहीं पता कि उसने अपने आपको कैसे मेरे भाई के संगठन का मुखिया घोषित कर दिया. वो समाजविरोधी गतिविधियां चलाने के लिए हमारे नाम का गलत इस्तेमाल कर रहा है. उसको पता नहीं कहां से मेरे भाई के सोशल मीडिया अकाउंट का ऐक्सेस मिल गया, और वो वहां पोस्ट करने लगा”

परिवार से और दीप सिद्धू से ना मिलने की बात तो अपने इंटरव्यू में अमृतपाल सिंह भी स्वीकार करता है. लेकिन वो साथ में बार-बार ये भी कहता है कि पंथ का दास है और ये भी कि वो दीप सिद्धू के रास्ते पर भी आगे चलेगा. इसी समय कुछ लोग दीप सिद्धू के परिवार के दावों को भी संदेह की दृष्टि से देखते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि 29 सितंबर को अमृतपाल सिंह की दस्तारबंदी किए जाने और उसे ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख घोषित करने की घोषणा बहुत दिनों से सोशल मीडिया पर कर दी गई थी. कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या सिद्धू के परिवार ने ये सब भी नहीं देखा?

अमृतपाल सिंह की दस्तारबंदी का ऐलान, जो 29 सितंबर के आयोजन के काफ़ी पहले से सोशल मीडिया पर चल रहा था
प्रशासन का क्या कहना है?

इस संवेदनशील मामले को लेकर हमने पंजाब पुलिस के आला अधिकारियों और कुछेक मंत्रियों से संपर्क किया-सवाल किए. इस स्टोरी को लिखे जाने तक हमारे पास कोई भी जवाब नहीं आया. जवाब आने पर हम अपने पाठकों-दर्शकों से साझा करेंगे. लेकिन ख़बर ये भी है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार से कहा है कि वो इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सतर्क रहें. 

अमृतपाल पर उठे सवालों को लेकर हमने अमृतपाल सिंह की टीम से संपर्क किया तो जवाब मिला कि अभी उन्हें थकान है, लेकिन कुछ दिनों में वो बात ज़रूर करेंगे. बात होगी तो हम अपने दर्शकों तक ज़रूर पहुंचाएंगे. लेकिन इन्हीं सबके बीच अमृतपाल सिंह का एक और बड़ा बयान है, जो स्टोरी ख़त्म होते-होते कौंधता है. दस्तारबंदी के वक़्त रोडे में एक 15-सूत्रीय प्रस्ताव पास किया गया था जिसमें कहा गया था कि “सिखों के मुद्दे में कोई भी दख़ल नहीं दे सकता.” इस मौक़े पर अमृतपाल सिंह ने कहा था,

“विदेश भागने के बजाय यहां के युवाओं को पंजाब में रुककर पंजाब की आज़ादी के लिए जंग लड़ना होगा.”

इसको ऐसे भी पढ़ सकते हैं कि साल 2022 के एक दिन चंडीगढ़ से कुछ 200 किलोमीटर दूर रोडे गांव में दिनदहाड़े पंजाब की आज़ादी की जंग का ऐलान किया गया.