The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

जस्टिस चंद्रचूड़, जिन्होंने अपने CJI पिता के फैसलों को ही पलट दिया!

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नोटिफ़िकेशन जारी किया कि 9 नवंबर को जस्टिस चंद्रचूड़ बतौर CJI शपथ लेंगे.

post-main-image
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फाइल फोटो- PTI)

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) देश के अगले चीफ जस्टिस बनने वाले हैं. आज, 16 अक्टूबर को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नोटिफ़िकेशन जारी कर ये जानकारी दी, कि 9 नवंबर को जस्टिस चंद्रचूड़ बतौर मुख्य न्यायाधीश CJI शपथ लेंगे. इससे पहले 7 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने मौजूदा CJI यूयू ललित को अपने उत्तराधिकारी का नाम बताने के लिए पत्र भेजा था. CJI यूयू ललित ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की. 

जस्टिस चंद्रचूड़ की उम्र अभी करीब 63 साल है. उनका कार्यकाल पूरे दो साल का होगा.

चीफ जस्टिस यूयू ललित इस साल 8 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. यूयू ललित अगस्त में ही चीफ जस्टिस बने थे. नियमों के मुताबिक वो सिर्फ ढाई महीने के लिए इस पद पर रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के जज 65 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं. चीफ जस्टिस का चयन आम तौर पर सीनियॉरिटी के आधार पर होता है. इस तरह देखें तो फिलहाल चीफ जस्टिस ललित के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ दूसरे सीनियर जज हैं.

कौन हैं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़?

जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़. उनके परिचय की शुरुआत यहां से हो सकती है कि जब वो दिल्ली यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई कर रहे थे, तब उनके पिता देश के चीफ जस्टिस थे. यहां से जस्टिस चंद्रचूड़ के जीवन और करियर का एक मोटा-माटी आकलन किया जा सकता है. देश के इतिहास में पहली बार है कि एक चीफ जस्टिस का बेटा चीफ जस्टिस बनने जा रहा है.

पिता जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (YV Chandrachud) देश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे. करीब साढ़े 7 साल चीफ जस्टिस रहे. 16वें चीफ जस्टिस के तौर पर वे फरवरी 1978 से जुलाई 1985 तक पद पर रहे. तत्कालीन पूना (अब पुणे) में जन्मे वाई वी चंद्रचूड़ ने लॉ कॉलेज पूना से LLB की पढ़ाई की थी. 1973 में सुप्रीम कोर्ट आने से पहले वो करीब 11 सालों तक बॉम्बे हाई कोर्ट के जज थे.

चीफ जस्टिस बनने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने संजय गांधी के खिलाफ फैसला दिया. 'किस्सा कुर्सी का' फिल्म के प्रिंट को जलाने के विवाद में संजय गांधी को सजा मिली थी. ये एक राजनीतिक व्यंग्य फिल्म थी. संजय गांधी जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, लेकिन चीफ जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने ये कहते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं.

हार्वर्ड से कानून की डिग्री

अब वापस जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ पर आते हैं. 11 नवंबर 1959 को उनका जन्म हुआ. 20 साल की उम्र में दिल्ली के मशहूर सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएट हो गए. फिर 1982 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से LLB की पढ़ाई परी कर ली. फिर अमेरिका चले गए. वहां हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से कानून में मास्टर्स भी कर लिया. यानी LLM. इत्तेफाक ये है कि जब वो कानून की बारीकियों को समझ रहे थे, उसी दौरान उनके पिता देश के चीफ जस्टिस थे. हार्वर्ड स्कूल से ही उन्होंने 1986 में डॉक्टोरेट इन जूरिडिकल साइंसेस (SJD) की डिग्री पूरी की.

कानून की भरपूर पढ़ाई के बाद वकालत शुरू की. साथ ही कानून पढ़ाने भी लगे. अमेरिका की ओकलामा यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल लॉ पढ़ाया. 1988 से 1997 के बीच बॉम्बे यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे. इसके अलावा ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड लॉ स्कूल और येल लॉ स्कूल में कई लेक्चर्स भी दिए.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (फोटो-PTI)

इस दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उनकी वकालत जारी थी. बंधुआ मजदूरों के अधिकारों, ठेका मजदूरों, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर कोर्ट में पेश हुए. साल 1998 में बॉम्बे हाई कोर्ट के सीनियर वकील नियुक्त हुए. फिर दो साल बाद ही देश के एडिशनल सॉलीसिटर जनरल (ASG) बन गए. इस दौरान सरकार के कई मामलों की कोर्ट में पैरवी की.

फिर 29 मार्च 2000 को बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बन गए. यहां 13 साल से ज्यादा जज के पद पर रहे. 31 अक्टूबर 2013 को प्रोमोशन हुआ और इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए. फाइनली मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए. सुप्रीम कोर्ट में आने के तुरंत बाद उनके हिस्से कई महत्वपूर्ण मुद्दे आए, जिनके फैसलों में वो शामिल रहे.

जब पिता के फैसलों को पलटा

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अडल्ट्री (व्यभिचार) को अपराध बताने वाले कानून को खत्म कर दिया था. कोर्ट की 5 जजों की संविधान बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे. कोर्ट ने IPC की धारा-497 को गैरकानूनी बताया था. पहले शादीशुदा महिला के दूसरे पुरुष से संबंध को अपराध माना जाता था. पति की शिकायत पर अगर पुरुष दोषी पाया गया तो उसे सजा होती थी. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अडल्ट्री तलाक का आधार हो सकता है लेकिन अपराध नहीं है. कोर्ट ने कहा था कि महिला के शरीर पर उसका अपना हक है, पति उसका मालिक नहीं हो सकता है. जबकि, साल 1985 में चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने इसी तरह के एक मामले में IPC की धारा-497 को बरकरार रखा था.

इसी तरह का एक और मामला है. अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों वाली संविधान बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था. कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना था. इस बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी थे. ये फैसला अलग-अलग सरकारी योजनाओं में आधार कार्ड को अनिवार्य करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया था. हालांकि, कोर्ट ने निजता के अधिकार और मौलिक अधिकारों से जुड़े पुराने मामलों पर भी टिप्पणी की.

अप्रैल 1976 में जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आपातकाल की स्थिति में मौलिक अधिकारों के निलंबन को सही माना था. ये मामला एडीएम जबलपुर केस से चर्चित है. हालांकि, उस दौरान भी 5 जजों में एक जज जस्टिस एचआर खन्ना ने इस फैसले से असहमति जताई थी. अगस्त 2017 के फैसले में कोर्ट ने 1976 के जजमेंट को गलत बताया और कहा कि अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार को किसी भी परिस्थिति में खत्म नहीं किया जा सकता है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि जीने का अधिकार ऐसा है, जिसे कभी नहीं छीना जा सकता.

जस्टिस चंद्रचूड़ के महत्वपूर्ण फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने अबॉर्शन को लेकर एक बड़ा फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था कि सभी महिलाएं सुरक्षित और लीगल अबॉर्शन कराने की हकदार हैं. चाहे वो शादीशुदा हों या अविवाहित. इस बेंच की अगुवाई जस्टिस चंद्रचूड़ ही कर रहे थे. बेंच ने संविधान के अनुच्छेद-14 का हवाला देते हुए कहा था कि अविवाहित महिलाओं को गर्भपात कराने के नियमों से बाहर रखना असंवैधानिक है. फैसले के बाद अविवाहित महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी को खत्म कराने का अधिकार मिल गया.

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी. पहले मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का जाना मना था. कोर्ट की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी थे. बेंच ने कहा था कि महिलाओं को पूजा से रोकने से उनकी गरिमा को ठेस पहुंचती है. सालों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक नियम बदले जाने चाहिए. 5 जजों की इस बेंच में एकमात्र जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने असहमति जताई थी. जस्टिस इंदू ने कहा था कि कोर्ट को धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.

सबरीमाला फैसले से कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक और बड़ा फैसला सुनाया. 6 सितंबर 2018 को कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. इसके साथ ही IPC की धारा-377 खत्म हो गई थी. इस धारा को पहली बार साल 1994 में चुनौती दी गई थी. तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि जो जैसा है उसे वैसा ही स्वीकार करना चाहिए. इसे लेकर लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी. वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि LGBT लोगों के निजी जीवन में झांकने का अधिकार किसी को नहीं है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़. (फोटो-PTI)

जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच में भी शामिल थे, जिसने अयोध्या विवाद पर फैसला दिया था. 9 नवंबर 2019 को पांच जजों की संविधान बेंच ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए विवादित 2.77 एकड़ की जमीन सौंपने का आदेश दिया था. कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा था कि 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद गैरकानूनी तरीके से गिराई गई थी. इस फैसले के बाद अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने का रास्ता तैयार हुआ. कोर्ट ने मुसलमानों को मस्दिद बनाने के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीने देने का भी निर्देश दिया था. इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दाखिल हुई, लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.

इसके अलावा कई फैसलों और सुनवाइयों में जस्टिस चंद्रचूड़ अपनी टिप्पणी और असमहतियों के लिए भी मशहूर हैं. कई मामलों में बेंच के फैसले के साथ होते हुए भी अलग टिप्पणी करते हैं. साल 2018 में भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट में रखा गया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था. कोर्ट की बेंच ने 2-1 से हाउस अरेस्ट को सही ठहराया था. लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने असहमित जताते हुए कहा था कि विरोध के नाम पर विपक्ष की आवाज को नहीं दबाया जा सकता है. उन्होंने कहा था कि कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी सही नहीं है, उनका मीडिया ट्रायल किया गया.

वहीं जज लोया की मौत के मामले में SIT जांच की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. याचिका को खारिज करने वाली तीन जजों की बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल थे. बेंच ने कहा था कि SIT जांच की मांग कर रही याचिका में कोई मेरिट नहीं है.

जस्टिस चंद्रचूड़ के दो बेटे हैं. अभिनव चंद्रचूड़ और चिंतन चंद्रचूड़. अभिनव, बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं और कोर्ट से जुड़े मसलों पर अखबार में कॉलम भी लिखते हैं. कई किताबें भी लिख चुके हैं, जिनमें भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की बायोग्राफी भी है. अभिनव ने भी अपने पिता की तरह हार्वर्ड लॉ स्कूल से LLM की पढ़ाई की है.

जस्टिस चंद्रचूड़ से उम्मीदें!

अपने फैसलों के कारण जस्टिस चंद्रचूड़ की पिछले सालों में खूब चर्चा हुई है. निजता के अधिकार, सबरीमाला मंदिर, समलैंगिकता को लेकर फैसलों में अपनी टिप्पणियों को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुर्खियों में जगह बनाई है. इधर, मैरिटल रेप, समलैंगिक विवाह और देशद्रोह कानून की वैधता जैसे मामलों पर देश में लंबे समय से बहस चल रही है. जस्टिस चंद्रचूड़ से ऐसे मसलों पर महत्वपूर्ण फैसले की उम्मीदें हैं.

सुप्रीम कोर्ट से बाहर भी जस्टिस चंद्रचूड़ अपनी टिप्पणियों को लेकर चर्चा में बने रहे हैं. वो लोकतंत्र, असहमति और फ्री स्पीच को बचाने की वकालत करते रहे हैं. कई कार्यक्रमों में उन्होंने ऐसा कहा है. फरवरी 2020 में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान लाइन कही थी- असहमति लोकतंत्र का एक 'सेफ्टी वॉल्व' है. उन्होंने कहा था कि असहमति को एक सिरे से राष्ट्र-विरोधी और लोकतंत्र-विरोधी करार देना संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के खिलाफ है.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट में जज बनने का पूरा प्रोसेस जान लीजिए