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कहानी साइरस मिस्त्री की, जिनकी कंपनी ने देश का सबसे लंबा रेलवे पुल और बंदरगाह बनाया

साइरस मिस्त्री के बारे में कहा जाता है कि एक बड़ी शख्सियत होने के बावजूद वे किसी तरह की लाइमलाइट से दूर रहते थे.

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नहीं रहे टाटा सन्स के पूर्व चेयरपर्सन साइरस मिस्त्री (फाइल फोटो- पीटीआई)

साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) के बारे में जब भी बात होती है तो सबसे पहले टाटा ग्रुप का नाम सामने आता है. साइरस टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे और इस ग्रुप के साथ उनका लंबा विवाद चला था. इस विवाद को भारतीय कॉरपोरेट जगत के बड़े विवादों में गिना जाता है. इस किस्से को आगे बताएंगे. पहले बता दें कि शांत और सादगी पसंद माने जाने वाले साइरस मिस्त्री अब इस दुनिया में नहीं रहे. 4 सितंबर को मिस्त्री की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. यह हादसा तब हुआ जब वे अहमदाबाद से मुंबई जा रहे थे.

महाराष्ट्र के पालघर में उनकी कार हादसे का शिकार हुई. मर्सिडीज़ कार में उनके अलावा 3 और लोग थे. इस हादसे में साइरस के अलावा दिनशॉ पंडोल नाम के व्यक्ति की भी मौत हो गई. बाकी लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. साइरस मिस्त्री की मौत पर लोग अलग-अलग तरीके से दुख जता रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनका निधन उद्योग जगत के लिए एक बड़ी क्षति है. वहीं केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने लिखा कि साइरस मिस्त्री को भारत की आर्थिक तरक्की में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा.

कौन थे साइरस मिस्त्री?

साइरस मिस्त्री की उम्र अभी 54 साल थी. पारसी समुदाय से आने वाले साइरस उद्योगपति पालोनजी शापोरजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे थे. इसी साल 28 जून को साइरस के पिता का भी निधन हुआ था. पालोनजी मिस्त्री 150 साल से ज्यादा पुरानी कंस्ट्रक्शन कंपनी शापोरजी पालोनजी ग्रुप के चेयरपर्सन थे. कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में उन्होंने साम्राज्य खड़ा किया था. निधन के वक्त उनकी कंपनी की नेट वर्थ 2 लाख 31 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का थी. पालोनजी ने आयरलैंड की महिला से शादी की और उसके बाद आयरिश नागरिकता ले ली थी.

साइरस मिस्त्री के पास भी आइरिश नागरिकता थी. लेकिन वे भारत के स्थायी निवासी बनकर रहे. 4 जुलाई 1968 को साइरस का जन्म हुआ. मुंबई में पले बढ़े. हायर एजुकेशन के लिए ब्रिटेन जाने से पहले मुंबई के चर्चित कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल से पढ़ाई की. बाद में लंदन के इंपीरियल कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. फिर लंदन बिजनेस स्कूल से मैनेजमेंट में मास्टर्स भी किया.

पढ़ाई पूरी होने के तुरंत बाद साइरस फैमिली बिजनेस में आ गए. साल 1991 में मिस्त्री को शापोरजी पालोनजी एंड कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया. कुछ साल बाद, 1994 में शापोरजी पालोनजी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त कर दिए गए. साल 1992 में साइरस की भारत के सबसे बड़े वकीलों में एक इकबाल चागला की बेटी रोहिका चागला से शादी हुई. साइरस भारत के बिजनेस जगत में बहुत जल्दी बड़ी शख्सियत बन गए थे. इसके बावजूद उनके बारे में कहा जाता था कि वे किसी तरह की लाइमलाइट से दूर रहते थे.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कंपनी की जिम्मेदारी संभालते हुए साइरस ने शापोरजी पालोनजी का कंस्ट्रक्शन बिजनेस 159 करोड़ रुपये से 11 हजार करोड़ तक बढ़ा दिया. इसके अलावा शापोरजी पालोनजी ग्रुप को कंस्ट्रक्शन के इतर अलग-अलग फील्ड में भी उतारा. साइरस की सरपरस्ती में कंपनी ने मरीन, तेल और गैस, रेलवे सेक्टर, रियल एस्टेट में भी कारोबार को बढ़ाया. जब तक वो कंपनी के डायरेक्टर रहे, शापोरजी पालोनजी ग्रुप ने कई चीजों में रिकॉर्ड बनाए, जैसे देश के सबसे ऊंचे रेसिडेंशियल टावर का निर्माण, सबसे लंबा रेल पुल और सबसे बड़े बंदरगाह का निर्माण.

टाटा ग्रुप के साथ रिश्ता

साइरस मिस्त्री के परिवार का टाटा ग्रुप के साथ रिश्ता 1930 से ही है, जब मिस्त्री के दादा ने टाटा संस में 12.5 फीसदी स्टेक खरीदा था. बाद में हिस्सेदारी बढ़कर 18 फीसदी से भी ज्यादा हो गई. साल 2006 में पालोनजी टाटा ग्रुप के बोर्ड से रिटायर हो गए. इसके बाद सिर्फ 38 साल की उम्र में साइरस टाटा के इस बोर्ड में शामिल हुए. टाटा ग्रुप से जुड़ने के बाद वे टाटा पावर और टाटा एलेक्सी के डायरेक्टर भी रहे. अगले कुछ सालों तक टाटा स्टील, टाटा केमिकल्स और टाटा मोटर्स के कारोबार से भी जुड़े.  

साल 2012 में टाटा सन्स के चेयरपर्सन बने. टाटा संस के छठे चेयरपर्सन. कहा जाता है, जब उन्होंने कमान संभाली उसके तुरंत बाद ही रतन टाटा के साथ मामला बिगड़ गया. उन पर आरोप लगने लगा कि वे अपने फैसलों में रतन टाटा को जगह नहीं दे रहे. विवाद बढ़ा तो टाटा संस के बोर्ड ने 2016 में उन्हें हटाने का फैसला लिया.

टाटा सन्स के साथ विवाद

टाटा सन्स बोर्ड ने 24 अक्टूबर 2016 को साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया. इसके बाद साइरस से कहा गया कि वे ग्रुप की अन्य कंपनियों से भी बाहर निकल जाएं. मिस्त्री ने इस्तीफा दे दिया. लेकिन इसके बाद वे इसे चुनौती देते हुए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) पहुंच गए. यानी कंपनियों की निचली अदालत. शापोरजी पलोनजी ग्रुप की दो कंपनी साइरस इन्वेस्टमेंट और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन ने टाटा ट्रस्ट और टाटा सन्स के निदेशकों के खिलाफ याचिका दाखिल की.

इनमें टाटा सन्स पर अनियम‍ितता बरतने का आरोप लगाया गया. कहा गया कि प्रबंधन और नैतिक मूल्यों का उल्लंघन किया गया. आरोप ये भी थे कि रतन टाटा और कंपनी के ट्रस्टी एन सूनावाला सुपर डायरेक्टर की तरह काम कर रहे थे. कहा कि दोनों वरिष्ठ काम में दखलअंदाज़ी कर रहे थे. आरोप लगाया गया कि मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाने का काम ग्रुप के कुछ प्रमोटर्स ने किया. साइरस की तरफ से आरोप ये भी लगाए गए कि ग्रुप और रतन टाटा के खराब प्रबंधन की वजह से ग्रुप को आय का काफी ज्यादा नुकसान हुआ.

2018 में NCLT ने मिस्त्री की दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया. NCLT ने कहा कि आरोपों में कोई आधार नहीं दिखता. इसके बाद साइरस मिस्त्री ने NCLAT में दोबारा अपील की. इस बार फैसला आया कि टाटा सन्स के डायरेक्टर साइरस मिस्त्री को पद से हटाने का फैसला सही नहीं है. मिस्त्री को दोबारा बहाल करने का आदेश दिया गया. कंपनी में मिस्त्री की 18.4 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी. ये हिस्सेदारी टाटा संस के बाद सबसे बड़ी थी.

साइरस मिस्त्री का कहना था कि उन्हें भी बोर्ड में उनकी हिस्सेदारी के हिसाब से जगह मिले. टाटा समूह ने मिस्त्री के आरोपों को खारिज किया. कहा कि साइरस मिस्त्री को इसलिए निकाला गया क्योंकि बोर्ड उनके प्रति विश्वास खो चुका था. मिस्त्री पर ये भी आरोप लगे कि उन्होंने जानबूझकर कंपनी को नुकसान पहुंचाने की नीयत से कंपनी की संवेदनशील जानकारी लीक की. इस कारण ग्रुप की वैल्यू को नुकसान पहुंचा. फिर पिछले साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT का फैसला पलटा और रतन टाटा के पक्ष में फैसला दिया.

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