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मेहुल चौकसी का रेड कॉर्नर नोटिस हटवा बचाने के पीछे कौन?

मेहुल चौकसी के अलावा और किस-किस भगौड़े की तलाश कर रही हैं एजेंसियां?

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मेहुल चौकसी (साभार: इंडिया टुडे)

बैठकी लायक चाय की दुकानें हमारे देश में लुप्त होती जा रही हैं. लेकिन जो बची हैं, वहां अगर आप कभी पहुंचे तो एक न एक इज़रायल विशेषज्ञ से तो आप मिलेंगे ही. वो आपको बताएंगे कि इज़रायल के साथ बुरा करने वाले दुनिया में चाहे जहां छिप जाएं, वो उन्हें किसी भी हाल में पकड़ ही लेता है. और फिर करता है न्याय. आप ये किस्से सुनकर रश्क करने लगेंगे. कि भैया हमारे यहां तो भगोड़ों को भारत लाने की ''बात'' ही होती रहती है. आता कोई नहीं. नीरव मोदी, ललित मोदी, संदेसरा परिवार, विजय माल्या. ये हज़ारों करोड़ का घोटाला करके फरार हैं. और विदेश में ऐश कर रहे हैं. अब खबर आई है कि ऐसे ही एक भगोड़े मेहुल चौकसी के खिलाफ इंटरपोल द्वारा जारी रेड कॉर्नर नोटिस खारिज हो गया है. तो अब वो बिना रोकटोक कहीं भी घूम सकता है.

क्या वाकई भारत वैश्विक शक्ति बनने के तमाम दावों के बीच भगोड़ों को वापिस लाने में विफल रहा है? और क्या इज़रायल वाले तरीके से इनपर कार्रवाई की मांग का वास्तव में कोई आधार है? या फिर अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत प्रत्यर्पण को लेकर एक बेहतर समझ विकसित करने की आवश्यकता है. इन्हीं सारे सवालों के जवाब जानने की कोशिश करेंगे.

जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, भगोड़ा माने भागा हुआ. भागा क्यों? कानून से बचने. और बचा कैसे? जूरिस्डिक्शन माने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर. सादी भाषा में, जहां तक आपका थाना लगता है, चोर उससे आगे भाग जाए, तो आप ज़्यादा कुछ कर नहीं सकते. जैसे मेहुल चौकसी और उसके भांजे नीरव मोदी को ही लीजिए. ये दोनों ठग गीतांजली नाम से हीरों की कारोबार करते थे. कंपनी की टैगलाइन - ट्रस्ट फॉरेवर. लेकिन भरोसे की बात करने वाले चौकसी-मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक को इतना चूना लगाया कि उसे रुपये में नहीं, डॉलर में बताया जाता है. तकरीबन 2 अरब डॉलर या भारतीय रुपये में 13 से 14 हज़ार करोड़ के बीच की रकम (क्योंकि बाज़ार भाव ऊपर नीचे होता रहता है). इस खेल में ये अकेले नहीं थे, पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारी भी शामिल थे. मिलिभगत से मुंबई स्थित PNB की ब्रैडी हाउज़ शाखा से ''लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग'' माने LOU हासिल किए गए. LOU दिखाकर आप संबंधित बैंक की विदेशी ब्रांच से पैसा उधार ले सकते हैं. ये एक छोटी अवधि का कर्ज़ होता है.

मामे-भांजे की कंपनियों ने 12 सौ से भी ज़्यादा बार यही किया. जो पैसा मिला, उसे कंपनी में न लगाकर खुद ही डकार गए. तब जाकर पंजाब नेशनल बैंक की नींद खुली, कि कुछ गड़बड़ है. 25 जनवरी 2018 को PNB ने आधिकारिक रूप से मामले का संज्ञान लिया और जैसा कि नियम है, 29 जनवरी को भारतीय रिज़र्व बैंक को सूचना दी. और RBI ने मामला हैंडओवर किया CBI को. लेकिन चौकसी मोदी को इस सब की भनक लग गई थी. जब तक CBI ने मामला दर्ज किया और वॉरंट लेकर आरोपियों की दहलीज़ पर पहुंची, तब तक वो देश छोड़कर भाग चुके थे.

मेहुल चौकसी ने एंटीगुआ और बारबाडुआ की नागरिकता हासिल कर ली थी, इसीलिये वो वहीं गया. भारतीय एजेंसियों ने मेहुल का भारतीय पासपोर्ट खारिज नहीं किया, बावजूद इसके, उनके सामने ढेर सारी कानूनी अड़चनें आ गईं क्योंकि तकनीकी रूप से मेहुल अब एक विदेशी नागरिक था, जिसने अतीत में भारतीय कानून तोड़ा था.
एजेंसियों ने इंटरपोल से संपर्क किया. ये अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसमें अलग अलग देशों की पुलिस साथ मिलकर काम करती हैं, ताकि अपराधी सिर्फ इसलिए न छूट जाएं कि वो अमुक देश की सीमा से बाहर चले गए. चौकसी के नाम एक रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाया गया. इस नोटिस के तहत चौकसी को गिरफ्तार किया जा सकता था. लेकिन अब यही खारिज हो गया है.

दरअसल हुआ ये था, कि चौकसी को भारत भेजने को लेकर भारत की एंटीगुआ-बारबाडुआ की सरकार से बात चल रही थी. मई 2021 में चौकसी, एंटीगुआ-बारबाडुआ के पड़ोसी देश डॉमिनिका में मिला. वहां उसे गैरकानूनी ढंग से डॉमिनिका में घुसने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. एंटीगुआ की सरकार ने भी कह दिया कि अब तो भैया चौकसी जी को डॉमिनिका के रास्ते भारत ही भेज दिया जाए. भारतीय एजेंट्स को लेकर एक जेट डॉमिनिका पहुंच भी गया था.

लेकिन चौकसी के वकीलों ने मामले को डॉमिनिका की अदालतों में घसीट लिया. चौकसी ने दावा किया कि डॉमिनिका वो अपनी मर्ज़ी से नहीं आया था. बल्कि उसे कथित भारतीय एजेंट्स जबरन लाए थे. कोर्ट में सुनवाई लंबी खिंचने लगी और कथित भारतीय एजेंट्स को लौटना पड़ा. पहले चौकसी को मेडिकल ग्राउंड पर बेल मिली. और 2022 में वो डॉमिनिका में अवैध रूप से घुसने के मामले में बरी भी हो गया. वो वापिस एंटीगुआ ही चला गया, क्योंकि वहां सरकार उसे पसंद करे न करे, उसने नागरिकता 1 लाख डॉलर माने तकरीबन 80 लाख रुपये देकर हासिल की है. और एंटीगुआ के कानून के तहत, उसकी नागरिकता वैध है और उसे मर्ज़ी के विपरीत भारत नहीं भेजा जा सकता.

एक चारा बाकी था, कि अगर चौकसी कभी किसी तीसरे देश पहुंचे, तो वहां इंटरपोल के नोटिस की तामील में उसे गिरफ्तार कर लिया जाए. चौकसी के वकील ये जानते थे. सो उन्होंने इंटरपोल में एक याचिका देकर रेड कॉर्नर नोटिस खारिज करने की मांग की. 2020 में एक बार चौकसी इसमें असफल रहा था. लेकिन उसने दोबारा अपील की और इस बार नोटिस खारिज हो ही गया.

तो अब चौकसी भारत छोड़कर दुनिया में कहीं भी घूम सकता है. ज़ाहिर है, भारतीय एजेंसियों के लिए ये एक बड़ा सेटबैक है. रही बात भांजे नीरव मोदी की, तो वो ब्रिटेन की एक जेल में है. सुनकर लग सकता है कि अब तो नीरव मोदी को भारत लाने में कोई समस्या नहीं आएगी. तिसपर प्रत्यर्पण से जुड़ा हर केस जो नीरव मोदी ने लड़ा, उसमें वो हारा ही है. लेकिन प्रत्यर्पण में कानूनी अड़चनें खत्म नहीं हुई हैं. और इसमें अभी काफी वक्त भी लग सकता है. सिर्फ नीरव ही नहीं, एक लंबी लिस्ट है, जिनके पीछे भारतीय एजेंसियां पड़ी हैं, लेकिन वो पकड़ से बाहर हैं. चाहे प्रत्यर्पण संधि हो, या न हो.

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गितने-गितने थक जाएंगे, एक-दो को छोड़ दें तो इनमें से ज्यादातर भगौड़े तो लंदन में ही बसे हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज़ ट्रस हैं या उनकी जगह ऋषि सुनक आ जाते हैं. प्रत्यर्पण एक पेचीदा विषय है. कई बार प्रत्यर्पण संधि होने के बावजूद आरोपियों को लाने में अड़चन आती है. फिल्मीं बातें करना आसान होता है, उनपर अमल करना मुश्किल. देश के सरकारी बैंकों को चूना लगाने वाले अगर कहीं छिपे हैं, और हम उन्हें देखकर भी वापिस नहीं ला पा रहे, तो ये चिंताजनक है. लेकिन ज़्यादा चिंता की बात ये है कि ये अपराधी बाहर भाग कैसे जा रहे हैं. इसीलिए जैसे कि हम हमेशा कहते हैं, सवाल पूछिए, जवाबदेही तय कीजिए.