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पुतिन की सेना ने छोटे से शहर बखमुत को जीतने में आठ महीने क्यों लगाए?

रूस का यूक्रेन के बखमुत को जीतने का दावा

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रूस का यूक्रेन के बखमुत को जीतने का दावा

यूक्रेन के शहर बखमुत से एक वीडियो वायरल हुआ. वीडियो में कुछ लोग पूरे जोशो-खरोश से झंडे लहरा रहे हैं. गौर से देखेंगे तो दो झंडे नज़र आएंगे. एक झंडा तो जाना-पहचाना है, रूस का. दूसरा झंडा किसका है? वो है प्राइवेट मिलिटरी ग्रुप वेग्नर का. वही वेग्नर ग्रुप, जिसके लोग यूक्रेन की जंग में रूसी आर्मी के साथ मिलकर लड़ रहे हैं. वही वेग्नर ग्रुप, जिसने रूसी आर्मी पर गद्दारी का आरोप लगाया था. वही वेग्नर ग्रुप, जिसका मालिक पुतिन का शेफ़ येवगेनी प्रिगोझिन है.

लेकिन ये लोग दोनों झंडे एक साथ क्यों लहरा रहे हैं? क्योंकि रूस को यूक्रेन के मोर्चे पर बड़ी फ़तह हासिल हुई है. और, ये जीत दिलाई है वेग्नर ग्रुप में.

ये मोर्चा है बखमुत का. जिस पर क़ब्ज़े के लिए रूस पिछले कई महीनों से कोशिश कर रहा था. और, यूक्रेनी सैनिक उसे अपने क़ब्ज़े में बचाए रखने के लिए. बखमुत रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नाक का सवाल बन गया था. शुरुआती दौर में नुकसान झेलने के बाद रूसी सैनिकों को पीछे हटना पड़ा था. फिर वेग्नर ग्रुप ने मोर्चा संभाला. रूसी सेना की मदद की. गोला-बारूद कम पड़े तो रूसी जनरलों को निशाने पर भी लिया. और, अब वो मोर्चा क़ब्ज़ाने का दावा कर रहे हैं.

प्रिगोजिन बखमुत को जीतकर रूसी सेना के हवाले करने की बात कर रहे हैं. इस पर यूक्रेन का भी बयान आया. राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेन्स्की ने इसे कोरा झूठ बया दिया. ज़ेलेंस्की G7 समिट के लिए जापान के हिरोशिमा गए हुए थे. वहां उन्होंने बखमुत की तुलना हिरोशिमा से कर डाली. अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था. जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी और पूरा शहर तबाह हो गया था.

बखमुत की ख़बर G7 समिट के बीच में आई थी. जल्दी ही ये पूरी समिट के एजेंडे पर हावी हो गई.

तो आइए जानते हैं,

- रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बखमुत इतना अहम कैसे हो गया?

- बखमुत की लड़ाई इतने लंबे समय तक कैसे खिंच गई?

पोपसना नाम का शहर बखमुत के पूरब में बसा है. 24 किलोमीटर दूर. रूस की नज़र लंबे वक्त से बखमुत शहर पर थी. लेकिन इस पर कंट्रोल करने के लिए पोपसना पर कब्ज़ा करना ज़रूरी था. वो इसलिए, क्योंकि रूसी सैनिक बखमुत में हमले से पहला अपना बेस जमा सकें. जंग के लिए ज़रूरी तोपों और दूसरे हथियारों का अड्डा लगाया जा सके. पोपसना पर कब्ज़ा करने का एक कारण और था कि यहां से बखमुत तक एक सड़क जाती है. इसे कब्ज़ाने के बाद बखमुत की सड़क का एक्सेस रूस को मिल जाता. इसी इरादे से 8 मई 2022 को रूसी सेना ने पोपसना पर कब्ज़ा कर लिया और उसी दिन से शुरू हुआ बखमुत का काउंटडाउन.

रूस धीरे-धीरे बखमुत की तरफ बढ़ रहा था. अगस्त 2022 तक रूस बखमुत के काफी नज़दीक आ चुका था. इसकी तश्दीक ब्रिटेन की खूफिया एजेंसी ने भी की. उन्होंने उस वक्त रूस का सबसे सफल मोर्चा उसी इलाके को बताया था.

अक्टूबर 2022 में पूर्वी यूक्रेन में रूस को भयानक नुकसान हुआ. निप्रो, खेरसोन समेत कई प्रांतों से उसे अपनी सेना पीछे हटानी पड़ी. इसका असर बखमुत में भी दिखा. वहां भी रूसी सेना कमज़ोर पड़ती दिख रही थी. ऐसे समय में वेग्नर ग्रुप सामने आया. वेग्नर ग्रुप लंबे समय तक सीक्रेट मिलिटरी संगठन के तौर पर काम कर रहा था. रूस में प्राइवेट मिलिटरी रखना गैरकानूनी है. वेग्नर पर अफ़्रीकी देशों में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लग रहे थे. इसलिए, रूसी सरकार उसके साथ संबंध जोड़ने से बच रही थी. लेकिन युद्ध में हुए नुकसान के बाद उन्होंने नैतिकताओं को ताक पर रख दिया. प्रिगोझिन ने रूस की जेलों में जाकर ख़तरनाक अपराधियों को भर्ती किया. उन्हें लड़ने के एवज में रिहाई का ऑफ़र दिया गया. आरोप ये भी हैं कि इसके लिए प्रिगोझिन को पुतिन ने फ़्री हैंड दे दिया था.

फिर आया अक्टूबर 2022 का महीना. वेग्नर ग्रुप ने रूसी सेना के साथ मिलकर बखमुत पर ज़ोरदार हमला किया. यूक्रेन को इसकी उम्मीद नहीं थी. हमले के कुछ दिनों बाद ज़ेलेन्स्की का बयान आया कि बखमुत में हालात नाजुक हैं. यूक्रेनी सेना कमज़ोर पड़ रही थी. उनकी हिम्मत जवाब दे रही थी. ज़ेलेन्स्की ने दिसंबर 2022 में एक सर्रप्राइज विजिट की. उन्होंने सेना के जवानों से मुलाकात की. उनका हौसला बढ़ाया. उस वक्त ज़ेलेन्स्की ने यूक्रेन की सेना को ‘सुपरह्यूमन’ बुलाया था.

लेकिन इस विजिट का कोई ख़ास असर दिखा नहीं. जनवरी 2023 आते-आते यूक्रेन की सेना कई इलाकों से पीछे हट गई थी. उनमें से एक इलाका था, सोलेदार की खदानें. ये बखमुत के उत्तर में पड़ती हैं. प्रिगोझिन ने यहां से अपने सैनिकों के साथ तस्वीरें भी पोस्ट की और इलाके की जीत की जानकारी दी.

रूसी सेना आगे बढ़ती रही और यूक्रेन पीछे हटता रहा. अप्रैल 2023 में प्रिगोजिन का एक वीडियो रिलीज़ हुआ. इसमें उन्होंने दावा किया कि वो बखमुत के सिटी हॉल में रूसी झंडा लहरा रहे हैं. लेकिन यूक्रेन ने इन दावों को ख़ारिज कर दिया. कहा कि ये पक्का नहीं है कि वो बखमुत का ही सिटी हॉल है.

इस वाकये के चंद दिन बाद ही रूस के सामने एक नई मुसीबत आ गई. वेग्नर ने रूसी सेना पर पर्याप्त हथियार न देने का इल्ज़ाम लगा दिया. कहा, हमारे पास केवल 10 से 15% गोला-बारूद बचा है. यूक्रेन 15 मई तक हम पर बड़ा हमला कर सकता है.

प्रिगोझिन ने इस हालात के लिए रूसी सेना को ज़िम्मेदार ठहराया. कहा कि हम रोजाना हजारों लड़ाकों के शव घर भेजने को मजबूर हैं. गोला-बारूदों की कमी पर उन्होंने रक्षा मंत्री सर्गेई शोईगू को भी लेटर लिखा. कहा, हम डरपोक चूहों की तरह भागना नहीं चाहते. ऐसे में हमारे पास मरने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है. अमेरिका के इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर (ISW) के मुताबिक, प्रिगोझिन को ज़रूरत की तुलना में 20 प्रतिशत हथियार ही मिल पा रहे थे.

तब प्रिगोझिन ने कहा कि अगर हमें पर्याप्त मात्रा में हथियार नहीं मिले तो हम पीछे हट जाएंगे. उस वक़्त पुतिन के एक और वफ़ादार रमज़ान कादिरोव ने अपनी आर्मी भेजने का ऑफ़र दिया था. लेकिन वो स्थिति नहीं आई. उससे पहले ही रूसी सरकार ने वेग्नर के साथ तालमेल जमा लिया. स्थिति संभली और फिर एक बार रूस इस लड़ाई में आगे बढ़ता नज़र आया.

अप्रैल में ही प्रिगोजिन ने दावा कर दिया कि बखमुत का 80 फीसदी से ज़्यादा इलाका उसके कंट्रोल में है. यूक्रेन की तमाम जद्दोजहद के बावजूद बखमुत हाथ से निकलता गया और 20 मई को प्रिगोझिन ने वीडियो रिलीज़ कर पूरे बखमुत में कब्ज़े का दावा ठोंक दिया है. यूक्रेन ने इस बार भी इन दावों का खंडन किया है. यूक्रेन ने क्या कहा?

वो जानने से पहले कुछ आंकड़े देख लीजिए.

- बखमुत की लड़ाई 9 महीने और 3 हफ्ते तक चली.

- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 20-30 हज़ार रूसी सैनिक बखमुत में मारे गए या घायल हुए. ध्यान रहे ये घायल और मारे गए सैनिकों का मिश्रित आंकड़ा है.

- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस लड़ाई में 4 हज़ार के करीब यूक्रेनी नागरिक मारे गए. जानकारी के लिए बता दें कि लड़ाई से पहले इस शहर की आबादी लगभग 70 हज़ार लोगों की थी.

- शहर के डिप्टी मेयर ओलेक्जेंदर मारचेंको के मुताबिक, अब शहर में कुछ हज़ार लोग ही बचे हैं. वे अंडरग्राउंड शेल्टर्स में रह रहे हैं. उनके पास न पानी है, न गैस और न बिजली.

जानकारों की मानें तो बखमुत की रणनीतिक तौर पर उतनी अहमियत नहीं है जितनी बड़ी जंग वहां लड़ी जा रही है. बखमुत न तो कोई सैनिक छावनी वाला शहर है. न ही कोई ट्रांसपोर्ट हब. आबादी के लिहाज से भी यहां बहुत कम लोग रहते हैं. इस शहर की पहचान नमक और जिप्सम की खदानों के लिए रही है. भौगोलिक तौर पर इसकी कोई ख़ास अहमियत नहीं है.

जानकारों की माने तो रूस के लिए बखमुत को जीतना एक सैन्य मिशन से ज़्यादा राजनैतिक तौर पर ज़्यादा अहमियत रखता है. रूस की सेना को सेवेरोदोनेत्स्क और लिसिचान्स्क पर कब्ज़ा किए लंबा वक़्त बीत चुका है. उसके बाद से यूक्रेन की ज़मीन पर रूस की बढ़त बहुत धीमी सी पड़ गई है. ऐसे में रूस को जीत चाहिए थी. ताकि अपने देश में युद्ध के पक्ष में प्रोपैगेंडा फैला सके.

इस लड़ाई पर चर्चा करते हुए एक पहलू और है जिसपर बात करना ज़रूरी हो जाता है. वो है रूसी सेना का वर्चस्व. युद्ध की शुरुआत के कुछ दिन बाद से ही वेग्नर ग्रुप जंग में कूद पड़ा था. जब वेग्नर ने हथियारों की कमी का हवाला दिया, तब कादिरोव ने मदद का ऑफ़र दिया. ऐसे में रूसी सेना के वर्चस्व पर सवाल खड़ा होता है. क्या इस पूरी जंग में प्राइवेट आर्मी की अहमियत रूसी सेना से अधिक है? इस बात पर ऐसी कई मीडिया रिपोर्ट्स और वज़न रख देती है. जिसमें कई इलाकों में वेग्नर के लड़ाकों की तादाद रूसी सेना के बराबर बताई गई है.

बखमुत में प्रिगोझिन ने जीत का परचम लहराते हुए शहर पर कब्ज़े का दावा किया. पुतिन ने भी जीत के लिए वेग्ननर और रूसी सैनिकों को बधाई दे डाली. पर यूक्रेन इस हार को स्वीकार नहीं कर रहा है. यूक्रेन के उप-रक्षा मंत्री ने कहा कि हम हारे नहीं हैं लेकिन बखमुत की हालत मुश्किल ज़रूर है. वहीं G7 समिट में स्पेशल न्यौते पर जापान गए हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर ज़ेलेंस्की ने भी रूस की जीत को फ़र्ज़ी बताया है.

ज़ेलेन्स्की हिरोशिमा में हो रही G7 मीटिंग के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने बखमुत की लड़ाई की तुलना हिरोशिमा से कर डाली. ज़ेलेंस्की ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा,

‘बखमुत और यूक्रेन के दूसरे शहर मुझे हिरोशिमा की याद दिलाते हैं. एकदम वैसा ही. कोई जिंदा नहीं बचा है. सारी इमारतें नष्ट हो चुकी हैं.’

यूक्रेन को डर है कि अगर रूस बखमुत पर कब्जा करने में कामयाब रहता है तो उसका अगला शिकार यूक्रेन का चासिव यार शहर होगा. इसके बाद यूक्रेन का किला ढहने में बहुत देर नहीं लगेगी.

यूक्रेन के बाद पीएम मोदी के के विदेश दौरे से जुड़ी ख़बर भी जान लीजिए.

19 जून को पीएम मोदी का तीन देशों का दौरा शुरू हुआ था. पहले चरण में उन्होंने जापान में G7 समिट में हिस्सा लिया. इसी दौरान वो क़्वाड की अनौपचारिक बैठक में भी शामिल हुए. इस साल की क़्वाड समिट ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में होनी थी. लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को जापान से ही वापस लौटना पड़ा. डेट् सीलिंग की समस्या सुलझाने के लिए. इसके कारण इस बार की क़्वाड समिट रद्द कर दी गई है. 

- 21 मई को पीएम मोदी पापुआ न्यू गिनी पहुंचे. पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे ने परंपरा तोड़कर एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया. पीएम मोदी को मुल्क के सबसे बड़े नागरिक सम्मान कम्पेनियन ऑफ़ ऑर्डर ऑफ़ लोगोहु से भी सम्मानित किया गया. इसके अलावा, फिजी ने भी उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया है.

पापुआ न्यू गिनी में पीएम मोदी ने फ़ोरम फ़ॉर इंडिया-पैसिफ़िक आईलैंड्स को-ऑपरेशन (FIPIC) समिट में भी भाग लिया. इस फ़ोरम की स्थापना 2014 में की गई थी. इसका मकसद भारत और पैसिफ़िक ओशन में बसे 14 द्वीपीय देशों के बीच सहयोग बढ़ाना था. इसकी पहली बैठक नवंबर 2014 में फ़िजी में हुई थी.

- पापुआ न्यू गिनी से निकलने के बाद पीएम मोदी ने ट्वीट किया,

‘पापुआ न्यू गिनी की मेरी यात्रा ऐतिहासिक रही. जो प्यार मुझे इस ख़ूबसूरत देश में मिला, उसे मैं हमेशा याद रखूंगा. मुझे FIPIC के नेताओं से भी बातचीत का मौका मिला. हमने संबंधित देशों के साथ रिश्ते मज़बूत करने पर चर्चा की. मैं शानदार स्वागत के लिए प्रधानमंत्री मरापे का भी आभारी हूं. अब सिडनी में अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया निकल रहा हूं.’

- 22 मई को पीएम मोदी ऑस्ट्रेलिया पहुंचे. वहां उन्होंने न्यू ज़ीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस हिपकिंस के साथ बैठक की.

सिडनी में वो प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. इस कार्यक्रम को हाउडी मोदी की तर्ज़ पर आयोजित किया जा रहा है. इसके अलावा, उन्हें ऑस्ट्रेलिया के साथ कई द्विपक्षीय मसलों पर भी चर्चा करनी है.

आखिरी अपडेट बांग्लादेश से है.

सत्ताधारी अवामी लीग की नेता और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को फिर से धमकी मिली है. जान से मारने की. विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के एक नेता ने वीडियो जारी कर कहा, अब कोई 27 या 10 सूत्री मांगें नहीं रखी जाएगी. हमारी एक ही मांग है, शेख़ हसीना को क़ब्र में भेजो. इस धमकी के ख़िलाफ़ अवामी लीग ने 21 मई को पूरे देश में प्रोटेस्ट किया.

22 मई को हाईकोर्ट ने पुलिस से जवाब मांगा. पूछा, धमकी देने वाले को अभी तक गिरफ़्तार क्यों नहीं किया गया?

वैसे, ये पहली बार नहीं है, जब शेख़ हसीना को इस तरह की धमकी मिली हो. कुछ महीने पहले BNP की एक इकाई ‘वॉलंटियर फ़्रंट’ के नेता ने 1975 के हत्याकांड को दोहराने की अपील जारी की थी. 1975 में क्या हुआ था? ये जानने से पहले एक और क़िस्सा सुन लीजिए. शेख़ हसीना पर अब तक 19 दफा जानलेवा हमला हो चुका है. सबसे भीषण हमला अगस्त 2004 में हुआ था. उस समय ढाका में अवामी लीग की रैली चल रही थी. शेख़ हसीना ट्रक पर बने स्टेज पर खड़ी थीं. जैसे ही उनका भाषण खत्म हुआ, ग्रेनेड हमलों की सीरीज़ शुरू हो गई. वहां खड़े लोगों ने ह्यूमन शील्ड बनाकर शेख़ हसीना को बचाया. फिर उनके बॉडीगार्ड्स उन्हें सुरक्षित निकालकर ले गए. हालांकि, तब तक पार्टी के 24 नेता और कार्यकर्ता मारे जा चुके थे. 400 से अधिक लोग घायल हुए थे.

जब ये हमला हुआ, उस वक़्त अवामी लीग विपक्ष में थी. सरकार BNP की खालेदा ज़िया चला रहीं थी. आरोप लगे कि हमला BNP के नेताओं ने कराया. इस आरोप पर आज तक बहस चल रही है.

अक्टूबर 2018 में ढाका की एक अदालत ने इस हमले के लिए 38 लोगों को दोषी ठहराया. 19 को मौत और 19 को आजीवन जेल की सज़ा सुनाई गई.

2001 से 2009 तक विपक्ष में रही अवामी लीग 2009 में चुनाव जीत गई. शेख़ हसीना ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. वो तब से इस कुर्सी पर बनी हुईं है. खालेदा ज़िया का क्या हुआ? 2006 में उनका कार्यकाल खत्म हो गया. नया चुनाव होने से पहले देश में हिंसा शुरू हो गई. फिर कुछ समय के लिए सैन्य सरकार ने शासन किया. इसी दौरान खालेदा ज़िया पर करप्शन का केस चालू हुआ. 2018 में उन्हें 17 बरसों की जेल हुई. मार्च 2020 में मानवीय आधार पर उन्हें रिहा कर दिया गया. लेकिन राजनैतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने पर रोक लगी है. BNP ये रोक हटाने और प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े समेत 10 मांगों को लेकर अवामी लीग की सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन करती रहती है. कई दफ़ा ये मांग हिंसक भी हो जाती है. हालिया धमकी इसी की एक कड़ी है.

अब ये जान लेते हैं कि 1975 में बांग्लादेश में क्या हुआ था?

15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश के इतिहास में पहला तख़्तापलट हुआ. आर्मी के कुछ अफ़सरों ने तत्कालीन राष्ट्रपति शेख़ मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के कई सदस्यों की हत्या कर दी. शेख़ मुजीब की दो बेटियां शेख़ हसीना और शेख़ रेहाना उस समय विदेश में थीं. उनकी जान बच गई. वही शेख़ हसीना मौजूदा समय में मुल्क की प्रधानमंत्री हैं.

शेख़ मुजीब की हत्या के बाद मिलिटरी सरकार बनाई गई. नवंबर 1975 में लेफ़्टिनेंट जनरल ज़ियाउर रहमान चीफ़ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर बने. आरोप लगते हैं कि शेख़ मुजीब की हत्या में ज़ियाउर रहमान का भी हाथ था. उन्होंने इस आरोप से इनकार किया था. उनकी पार्टी BNP भी इस आरोप से पीछा छुड़ाने की कोशिश करती है. ज़ियाउर रहमान 1977 में राष्ट्रपति हो गए. एक बरस बाद उन्होंने BNP के नाम से अपनी पोलिटिकल पार्टी बनाई. उनके कार्यकाल में 18 बार तख़्तापलट की साज़िश रची गई. 19वीं कोशिश सफ़ल रही. 30 मई 1981 को चिट्टेगॉन्ग में ज़ियाउर रहमान की भी हत्या हो गई. 1984 में उनकी विधवा पत्नी खालेदा ज़िया ने BNP की कमान संभाल ली. तब से वो पार्टी की प्रेसिडेंट बनी हुई हैं.

वीडियो: दुनियादारी: इमरान खान ने अवामी लीग से तुलना की, क्या पाकिस्तान में दूसरा बांग्लादेश युद्ध होगा?