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पाकिस्तानी तालिबान, सेना और पुलिस पर हमले क्यों करता है?

TTP अब पुलिस और सेना को निशाना क्यों बना रही है?

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मस्जिद में हुए ब्लास्ट के बाद की तस्वीर (Reuters)

मस्जिद की एक छत थी, जो ज़मीन पर रेशा-रेशा होकर उधड़ी पड़ी थी. एक कालीन थी, जिसका रंग ख़ून से सुर्ख हो चुका था. एक इमारत थी, जो टूटकर मासूम लोगों के शरीर को बेजान बनाए जा रही थी. कुछ सायरन लगी गाड़ियां थी, जिनका आना-जाना किसी अनहोनी का संकेत दे रहा था. जिन्हें देखकर लोग कुछ दहशत में और कुछ दयालुता में जगहें छोड़ दे रहे थे. कुछ पल पहले वो जगह उत्साह से गले मिलते और ठहाके लगाते लोगों से गुलज़ार थी. मगर कुछ पलों के अंतर में उसका चरित्र बदल गया था.

दरअसल, 30 जनवरी 2023 की दोपहर पाकिस्तान के पेशावर में एक मस्जिद के अंदर बम धमाका हुआ. इसमें 90 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि लगभग डेढ़ सौ लोग घायल हुए हैं. जिस मस्जिद में धमाका हुआ था, वो पुलिस लाइन्स में थी. ये जगह पेशावर की सबसे सुरक्षित जगहों में से एक मानी जाती है. तमाम सुरक्षा-व्यवस्था के बीच एक फिदायीन हमलावर कई किलो विस्फोटक लेकर मस्जिद के अंदर घुसा. और, नमाज के तुरंत बाद उसने ख़ुद को उड़ा भी लिया. मीडिया रपटों के मुताबिक, धमाके के वक़्त मस्जिद में लगभग पांच सौ लोग मौजूद थे. धमाके के ज़ोर से मस्जिद की छत गिर गई. कई लोग उसमें भी दब गए. उन्हें निकालने के लिए रातभर ऑपरेशन चलाया गया.

बम ब्लास्ट की ख़बर ने पाकिस्तान के साथ-साथ पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और आर्मी चीफ़ आसिम मुनीर तुरंत मौके पर पहुंचे. भेंट-मुलाक़ात के बाद शरीफ़ बोले, 

‘ये बम धमाका नहीं, पाकिस्तान पर हमला है. इसके दोषियों को इतिहास से मिटा दिया जाएगा.’

दोषी कौन? पहले तो इस धमाके की ज़िम्मेदारी तहरीके तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने ली. लेकिन थोड़ी देर बाद उसने मना कर दिया. हालांकि, सारे सूत्र उसी की तरफ़ इशारा करते हैं. उसका पुराना रेकॉर्ड इस धारणा को पुष्ट करता है. ये वही TTP है, जिसके साथ बैठकर शरीफ़ सरकार महीनों तक शांति समझौता करने की कोशिश में जुटी थी. और, ये वही TTP है, जिससे बात करने के लिए पाकिस्तानी अफ़सरों की टीम काबुल के चक्कर लगाते रहते थे. वहां अफ़ग़ान तालिबान मध्यस्थ की भूमिका निभाता था. ये सब शरीफ़ सरकार की निगहबानी और उनकी शह में होता था. 

मस्जिद में हुए ब्लास्ट के बाद की तस्वीर (Reuters)

दिलचस्प ये कि पाकिस्तान ने TTP को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है. इसके बावजूद वे आतंकियों से हथियार रखने की गुहार लगाते थे. जब बात नहीं बनी तो TTP ने संघर्षविराम से कट्टी कर ली. इसके बाद से उसने पाकिस्तान में कई आतंकी हमले किए हैं. जनवरी 2023 की शुरुआत में TTP ने बयान जारी कर कहा था कि, अब से नेताओं और मंत्रियों को निशाना बनाया जाएगा. जानकारों का कहना है कि, ये कहना दुखद तो है, लेकिन पेशावर की मस्जिद में हुआ बम ब्लास्ट महज एक ट्रेलर है. अगर सरकार ने अपनी पॉलिसी नहीं बदली तो क़यामत नज़दीक है.

आइए समझते हैं,

- TTP पाकिस्तान के लिए ख़तरनाक क्यों होता जा रहा है?
- TTP अब पुलिस और सेना को निशाना क्यों बना रही है?
- और, पाकिस्तान सरकार शांति कायम करने में नाकाम क्यों हो रही है?

पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम में एक राज्य है. ख़ैबर-पख्तूनख्वाह. आकार की नज़र में ये पाकिस्तान का सबसे छोटा प्रांत है. सबसे छोटा होने के बावजूद पाकिस्तान की पड़ोसी पोलिटिक्स में इसकी भूमिका बेहद अहम है. वजह है, लोकेशन. ख़ैबर-पख्तूनख्वाह की पश्चिमी सीमा अफ़ग़ानिस्तान से लगती है, जबकि पूर्वी सीमा इस्लामाबाद कैपिटल टेरिटरी (ICT) से. इसके अलावा, फ़ेडरली एडमिनिस्टर्ड ट्राइबल एरियाज (FATA) भी खै़बर प्रांत का ही हिस्सा हैं. 2018 से पहले तक FATA को ऑटोनॉमी मिली हुई थी. यहां पाकिस्तान का पूरा संविधान लागू नहीं होता था. तब तक ब्रिटिश भारत के ज़माने से चले आ रहे फ़्रंटियर क्राइम्स रेगुलेशन (FTC) के हिसाब से शासन चलता था. इसमें आम लोगों को वकील, अपील और दलील का अधिकार नहीं था.

2018 में पाकिस्तान ने संविधान संशोधन कर FATA को ख़ैबर प्रांत का हिस्सा बना दिया. पाकिस्तान सरकार इस दिशा में बहुत लंबे समय से काम कर रही थी. और, तभी से इसका विरोध भी हो रहा था. FATA के कई हिस्सों में TTP और दूसरे चरमपंथी संगठनों ने अपना बेस बनाकर रखा था. उन्हें अपनी ज़मीन खिसकने का डर हुआ. वैसे, TTP 2015 के बाद से ही सिमटती जा रही थी. पाक आर्मी के ऑपरेशन में TTP की शक्ति आधी से कम हो चुकी थी. गुट के अधिकतर नेता अफ़ग़ानिस्तान भाग चुके थे. वहां उन्हें अफ़ग़ान तालिबान का साथ मिला. इसके सहारे उन्होंने अपनी ज़मीन बचाकर रखी. उस समय तक अमेरिका ने सीधी लड़ाई में हिस्सा लेना बंद कर दिया था. इसकी बजाय वे अफ़ग़ान नेशनल आर्मी (ANA) और एयर सपोर्ट पर निर्भर हो चुके थे. अमेरिका ने जितनी उम्मीद रखी थी, उसकी तुलना में ANA बहुत कमज़ोर थी. आर्मी कमांडर्स भ्रष्टाचार में व्यस्त थे. और, अधिकतर अफ़ग़ान सैनिकों की लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अमेरिका को नियति की समझ हो चुकी थी. इसलिए, उन्होंने तालिबान के साथ शांति की पहल शुरू की. इसने तालिबान को उभरने का मौका दिया. और, अप्रत्यक्ष तौर पर इसका फायदा TTP को मिला.

मस्जिद में हुए ब्लास्ट के बाद की तस्वीर (Reuters)

अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया. उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान थे. तालिबान की जीत पर इमरान ख़ूब लहालोट हुए. उन्होंने यहां तक कहा कि, तालिबान ने ग़ुलामी की जंज़ीरें तोड़ दी हैं. अक्टूबर 2021 में इमरान ने एक और ऐलान करके सबको चौंका दिया. उन्होंने बताया कि पाकिस्तान सरकार काबुल में TTP के साथ बातचीत कर रही है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर TTP हथियार डाल दे तो उनके लोगों को कोई सज़ा नहीं मिलेगी. उन्हें आम ज़िंदगी गुज़ारने का अधिकार मिलेगा. नवंबर 2021 में TTP और पाकिस्तान सरकार संघर्षविराम पर सहमत हो गए. इमरान सरकार ने गुडविल जेस्चर के तहत जेल में बंद लगभग 100 तालिबानी नेताओं को जेल से रिहा भी किया. ये पाकिस्तान की पिछली पॉलिसी के ख़िलाफ़ था.

पुरानी पॉलिसी क्या थी?

दिसंबर 2014 में पेशावर में TTP ने एक आर्मी स्कूल पर हमला किया था. इसमें 156 लोग मारे गए थे. इनमें से 133 बच्चे थे. इस घटना के हफ़्ते भर बाद नवाज़ शरीफ़ के नेतृत्व पाकिस्तान सरकार नेशनल ऐक्शन प्लान (NAP) लेकर आई. इस प्लान पर सभी पार्टियां सहमत थीं.
इसके तहत देश में आतंकवाद से लड़ने के लिए 20 पॉइंट्स तय किए गए. कुछ अहम पॉइंट्स जान लीजिए. सरकार ने तय किया कि,

- आतंकी घटनाओं के दोषियों को तुरंत फांसी पर चढ़ाया जाएगा.
- आतंकियों के लिए विशेष अदालतों का गठन होगा. इन्हें सेना के अफ़सर चलाएंगे.
- आतंकी संगठनों को मिलने वाली वित्तीय मदद पर रोक लगाई जाएगी.
- मदरसों को रेगुलेट किया जाएगा. उनमें सुधार पर ज़ोर दिया जाएगा.
- सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने वाले गुटों पर लगाम लगाई जाएगी आदि.

नवाज़ सरकार ने ये तय किया था कि TTP से बातचीत नहीं की जाएगी. इसकी बजाय उनसे सख्ती से निपटा जाएगा. इसका काफी फायदा भी मिला. इसका असर आंकड़ों में भी दिखता है. पाकिस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ पीस स्टडीज़ (PIPS) की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 के बाद आतंकी घटनाओं की संख्या लगातार घटी. 2014 में पाकिस्तान में 600 आतंकी घटनाएं सामने आईं थी. इसके बाद इसमें कमी आने लगी. जैसे,

 

जैसे ही इमरान सरकार ने TTP के साथ बातचीत शुरू की, वैसे ही आतंकी हमले बढ़ने लगे. 2021 में संख्या बढ़कर 207 तक पहुंच गई. इसके अलावा, TTP अपनी मर्ज़ी से संघर्षविराम को तोड़ रही थी. ये इमरान की सोच के ख़िलाफ़ था. इसके बावजूद उन्होंने कोशिश नहीं छोड़ी.

फिर 2022 का साल आया. साल के शुरुआती दिनों में ही इमरान की कुर्सी के पाये खिसकने लगे थे. उनके ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. आख़िरकार, अप्रैल 2022 में इमरान की सरकार गिरा दी गई. इसके बाद शहबाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री बने. उन्हीं के भाई की सरकार नेशनल ऐक्शन प्लान लेकर आई थी. इसलिए, उनका TTP की मांगों के साथ आगे बढ़ना बहुत मुश्किल था. नतीजा, नवंबर 2022 में TTP ने संघर्षविराम समझौते को तिलांजलि दे दी. इसके बाद से TTP ने हमलों की संख्या बढ़ा दी है. अकेले 2022 में 300 से ज़्यादा आतंकी हमले हुए. 

ये 2017 के बाद से पहली बार हो रहा है. इस बार TTP के हमले सबसे ज़्यादा पुलिस और सेना के ठिकानों पर हो रहे हैं. TTP के आतंकी खुफिया एजेंसी के लोगों को भी टारगेट कर रहे हैं. 30 जनवरी को पेशावर की पुलिस लाइन्स की मस्जिद पर हमला किया गया. इसमें हताहत होने वाले अधिकतर लोग पुलिसवाले थे. ये 2014 के बाद पेशावर में हुआ दूसरा सबसे बड़ा आतंकी हमला भी है. इससे पहले TTP ने कई पुलिस थानों और काउंटर-टेररिज़्म सेंटर को निशाना बनाया है.

पेशावर के दौरे से लौटने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने आपात बैठक बुलाई. मीडिया रपटों के अनुसार, सरकार NAP को सख्ती से लागू करने पर विचार कर रही है. जानकारों का मानना है कि, TTP ने सीमा लांग दी है. उनके साथ बातचीत का रास्ता बंद हो चुका है. आशंका जताई जा रही है कि, ये स्थिति एक हिंसक भविष्य की तरफ इशारा कर रही है.

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